तिथि / घटना (तिब्बती पंचांग तिथि)
१७ दिसंबर १९३३ / तेरहवें दलाई लामा का ५७ वर्ष की आयु में ल्हासा में निधन (जल-पक्षी वर्ष, १०वां महीना, ३०वां दिन)
६ जुलाई १९३५ / तिब्बत में आम्दो प्रांत के ताक्सर नामक स्थान पर जन्म (लकड़ी-सुअर वर्ष, ५वां महीना, ५वां दिन)
जुलाई १९३९ / आम्दो प्रांत से ल्हासा के लिए तीन महीने की यात्रा हेतु प्रस्थान
१९३९ / बुमछेन शहर के समीप चौदहवें दलाई लामा की आधिकारिक मान्यता की सार्वजनिक घोषणा
८ अक्टूबर १९३९ / आम्दो से तीन महीने की यात्रा के पश्चात् ल्हासा में प्रवेश (पृथ्वी-खरगोश वर्ष, ८वां महीना, २५वां दिन)
२२ फरवरी, १९४० / राज्याभिषेक समारोह (लौह-ड्रैगन वर्ष, पहला महीना, १४वां दिन)
१९४० / पांच वर्ष की आयु में मठीय शिक्षा प्रारंभ
१९४२ / ताक्डा रिन्पोछे से श्रामणेर की दीक्षा प्राप्त की (पहला महीना, १०वां दिन)
१७ नवंबर १९५० / १९४९ में तिब्बत पर चीन के आक्रमण के बाद पूर्ण राजनैतिक सत्ता ग्रहण की (लौह-बाघ वर्ष, १०वां महीना, ११वां दिन)
१६ दिसंबर १९५० / चीनी धमकी के कारण ल्हासा से ड्रोमो के लिए प्रस्थान
जनवरी १९५१ से जुलाई १९५१ / ड्रोमो (यातुंग) में प्रवास
२३ मई १९५१ / पेकिंग के दबाव में तिब्बती प्रतिनिधिमंडल ने १७-सूत्रीय समझौते पर हस्ताक्षर किया
१६ जुलाई १९५१ / तिब्बत के नागरिक और सैन्य मामलों के नवनियुक्त आयुक्त और प्रशासक जनरल च्यांग चिन-वू के नेतृत्व में चीनी प्रतिनिधिमंडल ने ड्रोमो (यतुंग) में परमपावन से मुलाकात की
२४ जुलाई १९५१ / ड्रोमो (यातुंग) से ल्हासा के लिए प्रस्थान (लौह-खरगोश वर्ष, ५वां महीना, १७वां दिन)
१७ अगस्त १९५१ / ड्रोमो से ल्हासा पहुंचे (लौह-खरगोश वर्ष, ६वां महीना, १३वां दिन)
१९५४ / लिङ रिन्पोछे से उपसम्पदा की दीक्षा प्राप्त की (लकड़ी-अश्व वर्ष, पहला महीना, १५वां दिन)
१९५४ / नोरबुलिङका महल, ल्हासा में प्रथम कालचक्र अभिषेक प्रदान किया।
जुलाई १९५४ से जून १९५५ / शांतिवार्ता के लिए चीन का दौरा और माओ च़े-तुंग और चाउ एन-लाई, चू तेह और देंग शियाओपिंग सहित अन्य चीनी नेताओं के साथ मुलाकात
नवंबर १९५६ से मार्च १९५७ तक / २५००वें बुद्ध जयंती समारोह में भाग लेने के लिए भारत का दौरा
फरवरी १९५९ / ल्हासा में मोनलाम समारोह के दौरान गेशे ल्हारम्पा की उपाधि प्राप्त की (पृथ्वी-सुअर वर्ष, पहला महीना, १३वां दिन)
१० मार्च १९५९ / परमपावन को ल्हासा में चीनी सेना शिविर के एक प्रदर्शनी में जाने से रोकने के लिए हज़ारों की संख्या में तिब्बती नागरिक नोरबुलिङका महल, ल्हासा के सामने एकत्रित हुए। ल्हासा में तिब्बती जन-विद्रोह प्रारम्भ।
१५ मार्च १९५९ / नोरबुलिङका महल के बाहर चीनी सैनिकों ने तोपों से गोले दागा
१७ मार्च १९५९ / नोरबुलिङका महल, ल्हासा से रात में पलायन
३१ मार्च १९५९ / तिब्बत से १४ दिनों के दु:खद पलायन के बाद भारत में प्रवेश किया
१८ अप्रैल १९५९ / अंतर्राष्ट्रीय प्रेस कांफ्रेंस आयोजित कर औपचारिक रूप से १७-सूत्रीय समझौते को अस्वीकार किया
२० अप्रैल १९५९ / मसूरी पहुंचे और बिड़ला हाउस में रहने लगे
३० अप्रैल १९६० / स्वर्ग आश्रम में रहने के लिए धर्मशाला में आगमन
१९६३ / तिब्बत के लिए लोकतांत्रिक संविधान का मसौदा प्रस्तुत किया। पहली निर्वासित तिब्बती संसद (तिब्बती पीपुल्स डेप्युटी की सभा) धर्मशाला में स्थापित हुई।
१९६७ / (निर्वासन में आने के बाद) जापान और थाईलैंड की पहली विदेश यात्रा
१९६८ / स्वर्ग आश्रम से वर्तमान समय के थेगछेन छोएलिङ (बायर्न इस्टेट) में निवास स्थानान्तरित
सितंबर से नवंबर १९७३ / पश्चिम की पहली यात्रा (इटली, स्विट्जरलैंड, नीदरलैंड, बेल्जियम, आयरलैंड, नॉर्वे, स्वीडन, डेनमार्क, यूके, पश्चिम जर्मनी और ऑस्ट्रिया)
१९७९ / १९५९ में निर्वासन में आने के बाद से चीन के जनवादी गणराज्य की सरकार के साथ पहला संपर्क स्थापित हुआ
जून १९८८ / यूरोपीय संसद के सदस्यों को स्ट्रासबर्ग, फ्रांस में तिब्बत के लिए ऐतिहासिक स्ट्रासबर्ग प्रस्ताव प्रस्तुत किया
१० दिसंबर १९८९ / ओस्लो, नॉर्वे में शांति के लिए १९८९ का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया
१९९२ / विभिन्न प्रकार के अतिरिक्त प्रमुख लोकतांत्रिक पहलों को प्रारम्भ किया, जिसमें तिब्बती पीपुल्स डेप्युटी सभा द्वारा कालोन (मंत्रियों) के प्रत्यक्ष चुनाव और एक न्यायपालिका शाखा की स्थापना शामिल है। पूर्व में परमपावन द्वारा कालोन का सीधे तौर पर नियुक्त किये जाते थे।
२००१ / तिब्बत के इतिहास में कालोन ठिपा (वरिष्ठ मंत्री) के पद के लिए पहली बार तिब्बती लोगों द्वारा सीधे तौर पर लोकतांत्रिक चुनाव
मार्च और मई २०११ / १४ मार्च को परमपावन दलाई लामा ने तिब्बती पीपुल्स डेप्युटीज़ (निर्वासन में तिब्बती संसद) सभा को एक पत्र भेजकर उनसे अपनी राजनैतिक सत्ता को हस्तांतरित करने का अनुरोध किया। २९ मई को परमपावन ने कानूनी तौर पर औपचारिक रूप से लोकतांत्रिक विधि द्वारा निर्वाचित नेता को अपनी सत्ता के हस्तांतरण पर हस्ताक्षर किया। इसी के साथ दलाई लामाओं का तिब्बत के आध्यात्मिक और राजनैतिक दोनों के प्रमुख होने की ३६८ साल पुरानी परम्परा समाप्त हो गयी।