प्रथम प्रतिबद्धता- परमपावन एक मनुष्य के तौर पर लोगों के मन में इस समझ को उत्पन्न करने में उनकी मदद करने के लिए कटिबद्ध हैं कि यदि हमारा मन अशांत रहता है तो बाहरी भौतिक सुख-साधन भी हमारे भीतर शांति नहीं ला पायेंगे, लेकिन यदि हमारा मन शांत रहता है तो शारीरिक कष्ट भी मन की शांति को भंग नहीं कर पायेंगे। इस तरह वे लोगों को जीवन में खुश रहने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। परमपावन अपनत्व की भावना और मानवीय मूल्य, जैसा कि करुणा, क्षमा, धैर्य, संतोष और आत्म-अनुशासन को पोषित करने की वकालत करते हैं। वे कहते हैं कि मनुष्य होने के नाते हम सब एक समान हैं। हम सभी सुख चाहते हैं और दुःख नहीं चाहते।
वे लोग भी जिनका धर्म में विश्वास नहीं है यदि इन मानवीय मूल्यों को अपने जीवन में आत्मसात करते हैं तो इनसे लाभ ले सकते हैं। परमपावन ऐसे मानवीय मूल्यों को धर्मनिरपेक्ष नैतिकता या फिर सार्वभौमिक मूल्य कहते हैं। वे इन मानवीय मूल्यों के महत्त्व के बारे में बताने तथा उन सभी से इन मूल्यों को साझा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं जिनसे वे मिलते हैं।
दूसरी प्रतिबद्धता- एक बौद्ध भिक्षु के तौर पर परमपावन विश्व के धार्मिक परम्पराओं के मध्य धार्मिक सौहार्द को प्रोत्साहित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। विश्व के सभी प्रमुख धर्मों में दार्शनिक स्तर पर मतभेद होने के बावजूद इनमें एक अच्छे मनुष्य का निर्माण करने में समान क्षमता है। इसलिए यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है कि सभी धार्मिक परम्पराएं एक दूसरे का सम्मान करें तथा अपनी परम्पराओं के मूलभूत मूल्यों से अवगत हों। जहां तक एक सत्य और एक धर्म का विचार है यह वैयक्तिक स्तर पर एक साधक के लिए प्रासंगिक है लेकिन, एक व्यापक समाज के सन्दर्भ में, परमपावन कहते हैं कि हमें यह समझना होगा कि मानव जगत के लिए भिन्न धर्म एवं भिन्न परम्पराओं की आवश्यकता होती है।
तीसरी प्रतिबद्धता- परमपावन एक तिब्बती हैं तथा दलाई लामा का नाम धारण किये हुये हैं। तिब्बती जनता उनके प्रति आशा और विश्वास से देखते हैं। इसलिए वे तिब्बती भाषा, संस्कृति तथा भारत के नालंदा विश्वविद्यालय के आचार्यों से प्राप्त गौरवशाली विरासत को संरक्षित करने एवं तिब्बत के प्राकृतिक पर्यावरण के संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध हैं।
चौथी प्रतिबद्धता- परमपावन ने पिछले कुछ वर्षों से इस चौथी प्रतिबद्धता के बारे में भारतीय युवाओं से संवाद करना प्रारम्भ किया है, जिसका तात्पर्य प्राचीन भारतीय विद्या के मूल्यों को पुनर्जीवित करना है। परमपावन इस बात से आश्वस्त हैं कि भारतीय परम्पराओं से विकसित मन और भावनाओं की क्रियाशैली की विधि तथा ध्यान जैसे मानसिक अभ्यास के उपाय आदि को बताने वाले प्राचीन भारतीय समृद्ध ज्ञान आज के इस युग में भी प्रासंगिक हैं। चूंकि, भारत के पास तर्क और हेतु के विषय में दीर्घकालिक इतिहास है, इसलिए परमपावन को विश्वास है कि प्राचीन भारतीय विद्या, जिसे एक धर्मनिरपेक्ष शैक्षिक दृष्टिकोण से देखा जा सकता है, को वर्तमान शिक्षा के साथ संयोजित किया जा सकता है। वे भारत को एक ऐसे विशेष भूमि के रूप में देखते हैं जहां से प्राचीन और वर्तमान ज्ञान को संयोजित करना फलीभूत हो सकता है जिससे आज के समाज में एक समन्वित तथा नैतिकता पर आधारित जीवनशैली को प्रसारित किया जा सके।