नई दिल्ली, भारत - आज भारत अन्तर्राष्ट्रीय केन्द्र के सभागार में “मुस्लिम समुदाय के मध्य विविधता का उत्सव” विषय पर आयोजित सम्मलेन में 350 से अधिक लोग उपस्थित थे । परमपावन दलाई लामा के प्रोत्साहन और प्रेरणा से लद्दाख के मुस्लिम लोगों ने इसका आयोजन किया ।
परमपावन के आगमन पर अंजुमन मोइन-उल ईस्लाम के डॉ अब्दुल कयूम और अंजुमन ईमामिया लेह के अशरफ अली बरचा ने उनका स्वागत किया । मंच पर आसन ग्रहण करने के पूर्व परमपावन ने सभागार में उपस्थित मुस्लिम मौलवियों का व्यक्तिगत रूप से अभिवादन किया।
उन्होंने अपनी प्रारम्भिक टिप्पणी में कहा कि लद्दाखी मुसलमान पांचवें दलाई लामा के समय ल्हासा आये थे और उन्होंने एक मस्जिद निर्माण के लिए उन्हें भूमि दान किया था । इसके बाद उनके प्रतिनिधियों को हम हमेशा तिब्बती सरकारी कार्यक्रमों में आमंत्रित किया करते थे ।
भारत में शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच विवादों की कोई खबर सुनने को नहीं मिलता है, लेकिन दूसरे जगहों पर इन सम्प्रदायों के सदस्य एक दूसरे को मार रहे हैं । परमपावन ने दुःख व्यक्त करते हुये कहा कि यह एक ही धर्म को मानने वाले लोगों के बीच हो रहा है, जो एक ही अल्लाह का इबादत करते हैं, एक ही पवित्र ग्रन्थ को पढ़ते हैं और एक दिन में पाँच बार नमाज़ की पद्धति का पालन करते हैं ।
उन्होंने आगे कहा “मुझे लगता है कि भारतीय मुसलमानों को धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देने में अधिक सक्रिय होना होगा । इसलिए मुझे लगा कि दिल्ली में भारतीय मुसलमानों की एक बैठक उपयोगी हो सकती है और आप लोगों द्वारा इसका आयोजन करने की मैं सराहना करता हूँ । मुझे यह जानकर भी खुशी हुई कि ईरान के भाई-बहन भी इसमें भाग ले रहे हैं । हमें दुनिया के सामने यह स्पष्ट करना होगा कि धार्मिक सद्भाव बनाए रखना कितना महत्वपूर्ण है ।”
सिद्दीक वाहिद ने अतिथियों और प्रतिभागियों का स्वागत किया । उन्होंने मुस्लिमों और तिब्बत के बीच 8वीं शताब्दी से चली आ रही सम्बन्ध का जिक्र किया और कहा कि तिब्बती भाषा चार सार्क देशों- भारत, नेपाल, पाकिस्तान और भूटान में अपनाया गया है । उन्होंने हाफिज गुलाम मोहम्मद से तिलवात ए कुरान शरीफ का पाठ करने का अनुरोध किया, जिसका सार यह था कि- “मत बंट जाओ, अल्लाह तुम्हें साथ लाता है, आप सब भाई हैं।”
इसके बाद ए. कयूम गिरी ने कहा कि इस सम्मेलन का उद्देश्य मुस्लिम समुदाय के मध्य विविधता के उत्सव को मनाना है । हालांकि लद्दाख के मुसलमान संख्या में कम हैं, लेकिन वे इस उम्मीद के साथ इसका आयोजन कर रहे हैं कि इस तरह का सम्मेलन भविष्य में भी जारी रहेगा और इनमें बढ़ोतरी होगी । “हम दुनिया को 'दुनिया की छत’ पर स्थापित सद्भाव से अवगत कराना चाहते हैं तथा यह बताना चाहते हैं कि इसे हमारे देश तथा कहीं और कैसे लागू किया जा सकता है ।”
अशरफ ए. बरचा ने कहा कि लद्दाख एक सुदूर क्षेत्र है और वहां पर मुस्लिम अल्पमत में हैं, लेकिन वहां वे स्थिर, शांत और शांतिप्रिय हैं । उन्होंने आशा व्यक्त की कि वक्तागण भविष्य में आने वाली किसी भी प्रकार के समस्याओं को दूर करने के उपायों की खोज करेंगे तथा एक रचनात्मक संवाद को प्रोत्साहित करेंगे ।
परमपावन ने अपने सम्बोधन में कहा कि आज सात अरब मनुष्य इस धरती पर रहते हैं और उनमें से एक अरब लोगों को धर्म में कोई रुचि नहीं है और शेष छह अरब लोग विभिन्न धार्मिक परम्पराओं में से किन्हीं एक का अनुसरण करते हैं । उन्होंने उल्लेख किया कि भारतीय साधना पद्धति में मन को एकाग्र करने की साधना (शमथ साधना) से अहिंसा और करुणा की परम्परा का उदय हुआ है । उन्होंने कहा कि चीन और मिस्र की प्राचीन सभ्यताओं की तुलना में सिंधु घाटी सभ्यता में परिष्कृत दार्शनिक विकास के क्षेत्र में विशेष रूप से कार्य हुआ था ।
“आज हर कोई सुखी जीवन जीना चाहता है और कोई भी दुःख भोगना नहीं चाहता । वास्तव में सुख हमारे जीवन के अस्तित्व का आधार है । आज वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि मनुष्य का बुनियादी स्वभाव दयालु है । यह तथ्य एक व्यक्ति का दूसरे लोगों पर निर्भर होकर जीवित रहने से जुड़ा हुआ है । जिन लोगों का पालन-पोषण करुणामय वातावरण में होता वे दूसरों की अपेक्षा अधिक प्रसन्न और सफल दिखाई देते हैं । दूसरी ओर, वैज्ञानिकों का कहना है कि निरन्तर क्रोध या फिर भय में रहने से हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यून सिस्टम) कमज़ोर हो जाती है ।
“आज दुनिया में हमारे द्वारा निर्मित कई समस्याएं हैं जिनका हम सामना कर रहे हैं । ये समस्याएं मुख्यतः हमारे द्वारा ‘वे’ और ‘हम’ के रूप में दूसरों को देखने की हमारी प्रवृत्ति से उत्पन्न हुयी हैं । बच्चे इस प्रकार भेद नहीं करते हैं । उनके साथ खेलने वाला साथी जब तक मुस्कुराते हुये आनन्दपूर्वक खेलता है वे इसकी परवाह नहीं करते कि वे किस धर्म, जाति या राष्ट्र के हैं । हमें मानवीय एकात्मता को स्मरण रखने की आवश्यकता है, कि मनुष्य होने के नाते हम सब एक समान हैं, और मैं लोगों को यह बताने के लिए प्रतिबद्ध हूँ ।
“हमारी सभी धार्मिक परम्पराएं प्रेम का सन्देश देती हैं । बौद्ध शब्दावली में हम इसे इस प्रकार कहते हैं- सभी प्राणी हमें अपनी माँ के समान प्रिय हैं । तिब्बत में मुसलमान बहुत शांतिप्रिय थे । भारत के उत्तर में स्थित तुरतुक गांव के एक इमाम ने मुझे बताया कि एक मुस्लिम को अल्लाह द्वारा निर्मित हर एक सदस्य से प्रेम करना चाहिए । दूसरे जगह पर एक अन्य बुजुर्ग ने मुझे बताया कि जो कोई भी रक्तपात करता है वह एक अच्छा मुसलमान नहीं हो सकता ।”
“हम अभी यहां शांत बैठे हैं, लेकिन हमारे पड़ोसी मुल्क अफगानिस्तान, सीरिया और यमन में बच्चे गहरी पीड़ा में हैं । ऐसा क्यों है? हमें अपने भीतर आन्तरिक शांति उत्पन्न कर शांतिपूर्ण जगत के निर्माण का प्रयास करना होगा । इसमें कोई दो राय नहीं कि हम विभिन्न परम्पराओं तथा अलग-अलग दार्शनिक दृष्टिकोण का अनुसरण करते हैं, लेकिन सभी का अन्तर्निहित सन्देश प्रेम है ।”
“ईश्वरवादी मानते हैं कि हम सब एक दयालु ईश्वर की रचना हैं, जैसेकि एक ही पिता के बच्चे । हमें इस बारे में विचार करना होगा कि वे कौन से तत्व हैं जो हमें एकजुट करते हैं न कि जो हमें अलग करते हैं । सभी धर्मों में मनुष्य को प्रसन्नचित्त बनाने की क्षमता है और इन परम्पराओं में अद्भुत लोग मौजूद हैं ।”
“बांग्लादेश, बर्मा और श्रीलंका में मुसलमानों और बौद्ध तथा मिस्र में मुस्लिमों और ईसाइयों के बीच धर्म के नाम पर हत्यायें होना अकल्पनीय है । यदि हमारे मन में शांति हो तो दुनिया में शांति सम्भव है । लेकिन धार्मिक सद्भाव अत्यन्त ज़रूरी है । यदि आप पूछें- “क्या धार्मिक सद्भाव संभव है?” उत्तर है- भारत को देखें । पारसी के उदाहरण देखें, जो मुश्किल से 100,000 की संख्या में हैं, लेकिन मुंबई में लाखों हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच पूरी तरह से निर्भय होकर रहते हैं ।”
“मेरा मानना है कि शिया और सुन्नी भाई और बहनें हैं, फिर भी हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान में वे एक-दूसरे को मार रहे हैं । मुझे लगता है कि भारतीय मुसलमानों को दुनिया के बाकी हिस्सों, विशेष रूप से अन्य मुस्लिम देशों के लोगों को प्रदर्शित करना चाहिए कि धार्मिक सद्भाव सम्भव है ।”
परमपावन ने कहा कि तिब्बत के अन्दर तथा बाहर के तिब्बती जनता अपना विश्वास उन पर रखते हैं और एक तिब्बती के रूप में उनका दायित्व है कि तिब्बती लोगों की भलाई करें । वे तिब्बत के प्राकृतिक पर्यावरण और एशिया की कई महान नदियों के स्रोत की रक्षा के लिए भी चिंतित हैं । उन्होंने सतर्क करते हुये कहा कि जलवायु संकट के कारण उपलब्ध पानी की मात्रा में कमी एक वास्तविक खतरा है । परमपावन ने आगे कहा कि तिब्बत की सांस्कृतिक विरासत तथा जहां से यह विरासत आया है ऐसे उन्नत नालन्दा शिक्षण केन्द्र के बारे में लोगों को शिक्षित करने का वे निरन्तर प्रयास कर रहे हैं तथा साथ ही साथ वे मन और भावनाओं की क्रियाशैली के प्राचीन भारतीय ज्ञान के प्रति लोगों की रुचि को जागृत करने के लिए प्रतिबद्ध हैं ।
परमपावन ने प्रतिभागियों के प्रश्नों के उत्तर देते हुये रोहिंग्या शरणार्थियों के प्रति अपनी सहानुभूति व्यक्त की और कहा कि उन्हें पूरा विश्वास है कि यदि भगवान बुद्ध होते तो वे निश्चित रूप से ऐसे लोगों की रक्षा करते । उन्होंने कहा कि आंग सान सू की ने उन्हें बताया कि सैन्य भागीदारी के कारण उस स्थिति से निपटना अत्यन्त मुश्किल था ।
जब उनसे यह पूछा गया कि आन्तरिक शांति कैसे प्राप्त किया जाये, तो परमपावन ने सुझाव दिया कि ‘परमपिता परमेश्वर’ पर विश्वास करने से मदद मिल सकती है । इसके अतिरिक्त, जितने भी पदार्थ हमें दिखाई देते हैं वे वास्तव में वैसे नहीं होते हैं- ऐसे ज्ञान को विकसित कर तथा परोपकार की भावना द्वारा अहितकारी भावनाओं को दूर किया जा सकता है । अहिंसा और करुणा दोनों मन को विनीत करते हैं ।
परमपावन ने निर्वाण के बारे में जानने के इच्छुक एक प्रश्नकर्ता से कहा कि यह जटिल विषय है । निर्वाण एक मनोस्थिति है जो गम्भीर यथावत् ज्ञान द्वारा विशुद्ध होता है । उन्होंने स्पष्ट करते हुये कहा कि चूंकि अज्ञानता हमारे मानसिक स्वभाव का हिस्सा नहीं है इसलिए इसे दूर किया जा सकता है । हालांकि, इसे प्राप्त करने के लिए अध्ययन, चिंतन एवं भावना की आवश्यकता होती है ।
एक शिक्षक जो यह जानना चाहते थे कि स्कूली बच्चों को प्रेम और करुणा के बारे में कैसे पढ़ाया जाये । परमपावन ने उत्तर देते हुये कहा कि एक सच्ची मित्रता धन और बल पर आधारित नहीं होती है, बल्कि विश्वास पर आधारित होती है जो दूसरों की भलाई करने के विचार से विकसित होती है । स्कूली बच्चों को बतायें कि एक सच्ची मित्रता आत्मीय भावना पर आधारित होती है ।
परमपावन से सुझाव मांगा गया कि शिया और सुन्नियों के बीच या ईरान और सऊदी अरब के बीच के मतभेदों को कैसे सुलझाया जाये । इस पर परमपावन ने बताया कि राजनेता धर्म के नाम पर वक्तव्य देते हैं जो एक भावनात्मक प्रतिक्रिया को भड़काता है । उन्होंने कहा कि कुछ लोग ईरान को सन्देह की दृष्टि से देखते हैं पर वे इस देश को ऐसे नहीं देखते हैं । यह शिया परम्परा का पालन करने वाले एक लोकतांत्रिक देश है । दूसरी ओर बिन लादेन सुन्नी पक्ष से था । उन्होंने कहा कि हम शियाओं के बारे में पूरी तरह से सामान्यीकरण नहीं कर सकते हैं, और न ही सुन्नियों के बारे में । कुछ व्यक्तियों के दुर्व्यवहार के आधार पर पूरे समुदाय के बारे में सामान्यीकरण करना उचित नहीं है ।
अंत में, परमपावन ने ध्यान के बारे में पूछे गये एक प्रश्न का उत्तर देते हुए स्पष्ट किया कि चित्त और इन्द्रीयों में अन्तर होता है । उन्होंने कहा कि जब हम सपने देखते हैं तो मानसिक चेतना तक स्पष्ट रूप से हमारी पहुँच होती है, उस समय हमारी इन्द्रीय चेतना निष्क्रिय होती है । मन को प्रशिक्षित करने, करुणा उत्पन्न करने और पदार्थों की वास्तविकता को समझने में चित्त की ही भूमिका होती है । शमथ और विपश्यना की सफलता इस पर निर्भर होता है कि आप चित्त और भावनाओं की क्रियाशैली को कितना समझते हैं तथा उनको समझने में आपने कितना परिश्रम किया है ।
परमपावन के वक्तव्य के पश्चात् मुस्लिम मौलवियों ने सम्बोधन प्रस्तुत किया जिसमें मुंबई से बोहरा परम्परा के मौलाना अब्दुल कादिर नुरुदीन ने कहा कि भारत जैसे देश में विविधता होने पर भी सद्भाव कायम है । उन्होंने उल्लेख किया कि पवित्र कुरान दूसरों के साथ साझा मूल्यों की खोज को प्रोत्साहित करता है, जिससे आपस में भरोसा निर्माण होता है । उन्होंने आगे कहा कि भारतीय लोग एक साझा जीवन-शैली से बन्धे हैं, फिर भी दुर्भावना से ग्रस्त कुछ लोग विभाजन को बढ़ावा देने की कोशिश करते हैं, जबकि सुविचार के लोग मित्रता के लिए कार्य करते हैं । उन्होंने वक्तव्य को विराम देते हुये कहा कि सभी मनुष्यों को सहनशीलता और क्षमा की आवश्यकता होती है ।
लखनऊ के एक शिया शिक्षक मौलाना सैयद कलबी जवाद नकवी ने तीन बिन्दुओं पर प्रकाश डाला । पहले बिन्दु के बारे में बताते हुये उन्होंने कहा कि हममें से अधिकांश असल मुसलमान नहीं हैं बल्कि एक कृत्रिम मुसलमान हैं, क्योंकि असल मुसलमानों से अपेक्षा की जाती है कि वे सभी मनुष्यों की सेवा करें । मुसलमान वह है जो अन्य लोगों की मदद करे चाहे वो किसी भी मजहब का हो । दूसरे बिन्दु पर प्रकाश डालते हुये उन्होंने कहा कि इसलाम में फतह का अर्थ किसी दूसरे देशों पर जीत हासिल करना नहीं है बल्कि इसका अर्थ लोगों के बीच शांति स्थापित करना है । तीसरे बिन्दु पर बोलते हुये उन्होंने कहा जिहाद शब्द का गलत अर्थ निकाला गया है । जब अन्धकार को दूर करने के लिए कोई मोमबत्ती जलाता है- वह जिहाद है । जब कोई निरक्षरता दूर करने के लिए कार्य करता है- वह जिहाद है । एक माँ अपने बच्चे की भूख मिटाने के लिए खाना खिलाती है- वह जिहाद है । खून-खराबा करना जिहाद नहीं है । उन्होंने अपनी बात को समाप्त करते हुये कहा कि एक गैर-मजहबी परमपावन दलाई लामा आज हमें आपस में शांति कायम करने के लिए कह रहे हैं यह हमारी अत्यन्त ही दयनीय स्थिति को दर्शाती है ।
अन्य वक्ताओं में डॉ. मोहम्मद हुसैन मोख्तारी ने कहा कि एक-दूसरे का सम्मान करना धार्मिक कर्तव्य है । उन्होंने धर्म के अनुयायियों के बीच विविधता को स्वीकार करने की सराहना की, लेकिन इस पर भी ज़ोर दिया कि अपने-अपने धर्मों में एकजुटता हो । उन्होंने कहा कि हमें विविधता को एक वास्तविक स्थिति के रूप में समझना होगा तथा समानताओं के साथ-साथ मतभेदों को भी स्वीकारना होगा । यदि हम किसी समूह को भय स्वरूप देखते हैं तो इससे हम एकात्मता हासिल नहीं कर सकते हैं । और न ही किसी अनीश्वरवादी की आलोचना करने से किसी को लाभ होगा ।
भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने विविधता को वांछनीय और सरल अवधारणा कहा । उन्होंने कहा कि हम प्रकृति में क्या पाते हैं - फूल, पेड़ या इंसान, कोई भी एक जैसे नहीं हैं, उनमें विविधताएं हैं । उन्होंने इस सम्मेलन के आयोजन की सराहना की, लेकिन साथ ही आश्चर्य व्यक्त किया कि यदि हम विविधता को ठीक से समझे होते तो आज इसकी आवश्यकता नहीं पड़ती ।
श्री अंसारी ने कहा कि मुसलमान अपनी धार्मिक भाषा और विश्वास में एकजुट हैं लेकिन उनकी प्रथा और रिवाज़ों में विविधता दिखाई देती हैं । उनकी धार्मिक एकजुटता वार्षिक तीर्थ यात्रा हज के दौरान प्रदर्शित होता है । वे चाहे जहां से भी हों उनकी पूजा-पद्धति एक समान होती है ।
प्रातःकालीन सत्र की समाप्ति पर सिद्दिक वाहिद ने परमपावन को इस सम्मेलन में पधारने के लिए धन्यवाद किया और आशा व्यक्त की कि आज यहां जो सीखा गया है उससे लद्दाख, जम्मू-कश्मीर, भारत और दक्षिण एशियायी देशों पर इसका प्रभाव होगा । उन्होंने सम्मेलन को सफल बनाने में योगदान देने वाले सभी को धन्यवाद दिया ।
ईरान से आए प्रतिनिधिमंडल ने परमपावन और श्री अंसारी को उपहार भेंट किये । परमपावन ने मुस्लिम मौलवियों के साथ दोपहर का भोजन किया ।
भोजन के पश्चात् परमपावन अपने होटल लौट आये और कल धर्मशाला लौट जायेंगे ।