नई दिल्ली, भारत – आज सुबह परमपावन दलाई लामा दिल्ली स्थित गांधी आश्रम में हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई और जैन धर्म के आध्यात्मिक गुरुओं के समागम में सम्मिलत हुये । सबसे पहले आध्यात्मिक गुरुओं ने गांधी जी के स्मारक पर जाकर श्रद्धा अर्पित की तथा सभी ने पुस्तकालय के बाहर एक साथ वृक्षारोपण किया ।
उसके बाद परमपावन एवं अन्य सभी आध्यत्मिक गुरु मंच पर एकत्रित हुये जहां पर मोरारी बापूजी ने कल ही नौ दिवसीय राम कथा प्रारम्भ किया था । सभी ने हरिजन सेवक संघ के सदस्यों के साथ सर्वधर्म सभा के शुभारम्भ के लिये दीप प्रज्जवलन किया ।
डॉ. शंकर कुमार संयल ने सभी आध्यात्मिक गुरुओं का आश्रम में पधाने पर स्वागत किया । गांधी जी ने सन् 1930 और 1940 के बीच देश की सेवा करते हुये यहां अपना समय बिताया था । सभी आध्यात्मिक गुरुओं ने धार्मिक सहिष्णुता, करुणा और अहिंसा के भारतीय प्राचीन परम्परा को बनाये रखने पर ज़ोर दिया और इस धरती के देखभाल के लिए आह्वान किया । हिन्दू धर्म के प्रतिनिधि के तौर पर साध्वी भगवती सरस्वती, स्वामी चिदानन्द सरस्वती और स्वामी बाबा रामदेव उपस्थित थे । शिया परम्परा से मौलाना कोकब महरर्म उपस्थित थे । ज्ञानी गुरबचन सिंह सिख धर्म का प्रतिनिधि कर रहे थे । फॉदर अजीत पत्रीक ने ईसाई परम्परा की ओर से अपनी बात रखी जबकि मौलाना महमूद मदानी ने सुन्नी परम्परा का प्रतिनिधि किया ।
परमपावन ने सभी आध्यात्मिक गुरुओं एवं भाईयों एवं बहनों का अभिनन्दन करते हुये कहा-
“सभी धार्मिक परम्पराएं न केवल प्रेम और शांति का सन्देश देते हैं बल्कि ये सब इन गुणों का किस प्रकार वृद्धि किया जाये इस बारे में शिक्षा देते हैं । मनुष्य का सबसे अच्छा गुण यह है कि वह दूसरे लोगों को भाई और बहन के रूप में देख सके । यही वे आधार हैं जिनसे हम आपस में शांतिपूर्वक रह सकते हैं ।”
“सभी धर्मों में भगवान के प्रति श्रद्धा और सहिष्णुता का पाठ पढ़ाया जाता है, फिर भी हम देखते हैं कि धर्म के नाम पर हिंसा और संघर्ष जारी है । आज यह देश धार्मिक सद्भाव का एक जीवंत मिसाल है जो प्राचीन ज्ञान परम्परा में करुणा पर आधारित अहिंसा के फलस्वरूप स्थापित हुआ है । धार्मिक सद्भावना की इसी स्वस्थ विचारधारा से ही सदियों से यहां विश्व के सभी प्रमुख धर्म शांति और निर्भयता से फल-फूल रहे हैं । इन धर्मों में जो दार्शनिक भिन्न मान्यताएं हैं उनका उद्देश्य करुणा को जागृत करना है । इसलिए, धर्म के नाम पर संघर्ष अकल्पनीय है ।”
परमपावन ने कहा कि भारत को अब धार्मिक सहिष्णुता को बनाये रखने तक सीमित नहीं रहना होगा उसे अब दूसरों को इस मिसाल को अपनाने के लिये प्रोत्साहित करना होगा । उन्होंने उल्लेख किया कि आज एक अरब लोगों का यह कहना है कि उनका धर्म मे कोई रूची नहीं है, तथापि वे सब हमारे भाई और बहने हैं । हमारे तरह ही वे सुख की आशा और दुःख को मिटाना चाहते हैं । उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि हालांकि मन को नियंत्रत करने के उपाय शमथ और विपश्यना साधना के धार्मिक अभ्यास से उत्पन्न हुये हैं, लेकिन आज इन्हें एक शैक्षणिक स्तर पर अध्ययन और लागू किया जा सकता है । इसका उद्देश्य धर्म में विश्वास रखने और न रखने वाले सबका कल्याण करना होना चाहिए ।
“बौद्धधर्म में पाली और संस्कृत दो परम्पराएं हैं । संस्कृत परम्परा को आचार्य नागार्जुन आदि ने आगे बढ़ाया है तथा उन्होंने हेतु और विश्लेषण द्वारा बुद्ध की देशनाओं का अध्ययन किया है । जब कभी भी उन आचार्यों को बुद्ध की देशनाएं तर्क से विरोधाभास दिखाई देता था तो वे उन्हें नैयार्थ के अर्थ में व्याख्या करते थे । आस्तिक हो या नास्तिक सभी इस प्रकार के संशयात्मक मार्ग को अपना सकते हैं ।”
“एक दूसरा महत्त्वपूर्ण विषय यह है कि आज जब जनसंख्या वृद्धि और जलवायु परिवर्तन मानवता के लिये चुनौती बनकर खड़ी है ऐसे में हमें पर्यावरण संरक्षण के लिए गम्भीरतापूर्वक कदम उठाने होंगे । यह धरती हमारा एक मात्र घर है और यदि यह अत्यन्त गर्म हो जाने के कारण रहने लायक नहीं होता है तो हमें यहां से भागकर जाने के लिए कहीं नहीं है । इसलिए हमें जलस्रोतों का संरक्षण करना होगा तथा अधिक से अधिक पेड़ लगाकर जंगलो को पुनर्जिवित करना होगा ।”
परमपावन ने अपने सम्बोधन को समाप्त करते हुये कहा कि प्राचीन भारत में विकसित मन और भावनाओं की क्रियाशैली पर आधारित ज्ञान को आधुनिक शिक्षाओं के साथ संयोजित किया जा सकता है जिससे लोग कलुषित भावनाओं का सामना करना सीख जायेंगे और मन की शांति प्राप्त कर पायेंगे । वस्तुओं का अस्तित्व वैसे नहीं है जैसे वे हमें दिखाई देते हैं, यह क्वांटम भौतिकी के सिद्धान्त से मेल खाता है । यदि हम लोगों में इसकी समझ आ जाये तो इससे क्रोध इत्यादि नकारात्मक विचारों को दूर करने में मदद मिलेगी, क्योंकि ये सब नकारात्मक विचार आभासित विषयों पर आधारित होती हैं । संगीतकारों द्वारा राम कथा धुन की प्रस्तुति के बाद मोरारी बापू ने परमपावन को एक पौधा भेंट किया । उसके बाद सभी आध्यात्मिक गुरुओं ने एक साथ दोपहर का भोजन कर विदा लिया ।