थेगछेन छोएलिङ, धर्मशाला, हि. प्र. – आज सुबह जब परमपावन दलाई लामा मुख्य तिब्बती मन्दिर पहुंचे तब च़ुगलागखाङ को गेंदे के फूलों की मालाओं से सजाया गया था और लगभग 11,000 लोग एकत्रित हुये थे । भारत के विभिन्न प्रांतों तथा युरोप और अमेरीका से 25वें ज्ञालयुम छेन्मों मेमोरियल स्वर्ण कप फुटबॉल टूर्नामेन्ट में भाग लेने आये 23 टीमों के तिब्बती युवाओं का एक समूह मन्दिर के नीचले तल पर परमपावन के दर्शन हेतु खड़े थे । परमपावन ने उन्हें सस्नेह अभिवादन किया तथा उनके साथ एक तस्वीर खिंचवाई ।
परमपावन ने मन्दिर में सिंहासन पर विराजने के पश्चात् वहां एकत्रित सभा को सम्बोधित करते हुए कहा “प्रत्येक वर्ष सागा दावा के दौरान (तिब्बती पंचांग का चौथा महीना जिसे बुद्ध के जन्म, बुद्धत्व और निर्वाण के रूप में मनाते हैं ) हम दस करोड़ 'मणि मन्त्र' (अवलोकितेश्वर के षडाक्षरी मन्त्र) का जाप करते हैं । अनेक जगहों पर लोग इस मन्त्र जाप साधना में भाग लेते हैं । इन जापों के प्रभाव से 'मणि' गोलियों को अधिष्ठित किया जाता है जिन्हें बाद में व्यापक तौर पर वितरित किए जाते हैं । जिस अनुष्ठान का प्रयोग हम कर रहे हैं इसे सेरकोङ छ़ेनशाब रिन्पोछे ने संकलित किया था ।
“ज़ोङकार छोएदे मठ के भिक्षुओं ने मुझे आर्यावलोकितेश्वर अभिषेक के लिए अनुरोध किया है । मणि मन्त्र जाप करते समय हमारी साधना को अर्थपूर्ण बनाने के लिए बोधिचित्त और शुन्यता के दर्शन पर चिंतन करना अत्यावश्यक है । ऐसी परिकल्पना करनी चाहिए कि आर्यावलोकितेश्वर हमारे समक्ष साक्षात् उपस्थित हैं । आर्यावलोकितेश्वर सभी गुणों से सम्पन्न हैं । वे करुणा के प्रतिमूर्ति हैं जिसे आचार्य चन्द्रकीर्ति ने साधना के प्रारम्भ में, मध्य में और अन्त में अत्यावश्यक कहा है ।”
परमपावन ने 19वीं शताब्दी के आचार्य ञेनगोन सुंगराब का अवलोकन प्रस्तुत करते हुये कहा कि बुद्ध की शिक्षाओं को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है । पहला- सामान्य संरचना से सम्बन्धित, जिसमें त्रि-धर्मचक्र प्रवर्तन सूत्र इत्यादि हैं तथा दूसरा विशेष विधान से सम्बन्धित है । जिन लोगों का कर्म विशुद्ध था उन्हें तथागत गौतम बुद्ध ने मण्डल में मुख्य देव के रूप में प्रकट होकर तन्त्र का उपदेश दिया था जो विभिन्न प्रकार के शिष्यों की आवश्यकता और अभिरुचियों के अनुसार दिए गए विशेष उपदेश थे ।
परमपावन ने कहा, “पूर्व के आचार्यों ने आर्यावलोकितेश्वर को मुख्य देव के रूप में ध्यान कर मार्ग और भूमियों को प्राप्त किया है । हम तन्त्र को ञीङमा (प्राचीन) और सारमा (नया) परम्परा के रूप में विभेद करते हैं । ञीङमा परम्परा में भी कुछ शिक्षाएं ‘कामा’ दुरस्थ मुखागम तथा कुछ शिक्षाएं ‘तेरमा’ बन्ध-विमोचन निधि वंश के हैं । एक तीसरी परम्परा है जिसकी शिक्षा ‘दागनाङ’ अत्यन्त विशुद्ध आभासों से व्युत्पन्न है । इन अत्यन्त विशुद्ध आभासों में भी तीन प्रकार के हैं- एक जिसमें देव प्रत्यक्ष इन्द्रिय को दिखाई देते हैं, दूसरा वे जिसमें देव ध्यानावस्था में प्रकट होते हैं तथा तीसरा वे जो स्वप्न में दिखाई देते हैं ।
“आज का अभिषेक पांचवे दलाई लामा के ‘साङवा ग्याछेन’ (गुह्यमुद्रा दृष्टि) है जिसे दलाई लामा वंश परम्परा के मुख्य शिक्षाओं के संग्रह के रूप में जाना जाता है । तागडाग रिन्पोछे ने इन शिक्षा संग्रहों को मुझे देना आवश्यक समझा था । जब मुझे इनका अभिषेक दिया जा रहा था तब मुझे प्रत्येक रात अनेक प्रकार के स्वप्न दिखाई देते थे । इन शिक्षाओं में से महासम्पन्न का अभिषेक मुझे प्राप्त हुआ या नहीं इसमें मैं निश्चित नहीं था इसलिए मैंने दिलगो खेनच़े रिन्पोछे से इस अभिषेक को देने के लिए अनुरोध किया ।”
परमपावन ने षड़ाक्षरी मन्त्र ‘ओम मणि पद्मे हूं’ की व्याख्या करते हुये कहा कि ‘ओम’ अक्षर अनेक मन्त्रों का प्रथम अक्षर है तथा इसमें - अ, उ, म तीन वर्ण समाहित हैं जो क्रमशः बुद्ध के काय, वाक् और चित्त के द्योतक हैं । यद्यपि हमारा मन स्वाभाविक रूप से शुद्ध है लेकिन अभी यह अस्थायी दोषों से ढ़का हुआ है । धर्म की तथता में मन को जागृत कर इन्हें दूर किया जा सकता है । इस संदर्भ में, 'मणि', जिसका अर्थ है रत्न, यह विधि या बोधिचित्त को इंगित करता है, 'पद्म', या कमल, यह प्रज्ञा को इंगित करता है जो विशेष रूप से शून्यता को जानने वाली प्रज्ञा है । और 'हूं' उनके अविभाज्य योग साधना को इंगित करता है । इसके आधार पर हमारे काय, वाक् और चित्त बुद्ध के काय, वाक् और चित्त में परिवर्तित किया जा सकता है ।
परमपावन ने अभिषेक देने की प्रक्रिया आरम्भ करते हुये कहा कि हमारा वास्तविक शत्रु हमारे अन्तर्मन में निहित आगंतुक दोष हैं जो हमारी मन की जागृति और सहज प्रवृत्ति को अस्थाई तौर पर धुँधला किये हुये हैं । अभिषेक के दौरान परमपावन ने श्रद्धालुओं को सर्वांगीण योग की साधना करने के लिए प्रेरित किया, जिसमें बोधिचित्तोत्पाद कर हृदय पर अर्ध-चन्द्रमां का कल्पना करने तथा शून्यता का बोध उत्पन्न कर उसे अर्ध-चंद्रमा पर खड़े वज्र में परिवर्तित करने की परिकल्पना करना था । उन्होंने कहा कि वे प्रत्येक दिन ऐसा करते हैं और आप सभी को भी ऐसा करना चाहिए ।
कार्यक्रम की समाप्ति पर परमपावन मार्ग में पंक्ति में खड़े लोगों से बोलते हुये, मुस्कुराते हुये तथा हाथ लहराते हुये मन्दिर के गलियारे तक पहुंचे जहां से वे वाहन में सवार होकर अपने निवास स्थान के लिए पधार गये ।
कल से 10 करोड़ 'मणि मन्त्र' जाप आरम्भ होगा ।