लेह, जम्मू-कश्मीर, भारत, आज भोर होते ही दिल्ली हवाई अड्डे के लिए प्रस्थान के बाद, परम पावन दलाई लामा ने लेह के लिए उड़ान भरी। आगमन पर उनका उन्हें एक सजे छत्र श्रृंग तथा ढोल के साथ औपचारिक स्वागत किया गया। पूर्व गदेन पीठ धारक रिज़ोंग रिनपोछे, डिगुङ छेछंग रिनपोछे और ठिकसे रिनपोछे साथ ही अन्य लामाओं ने उनका अभिनन्दन किया। स्थानीय अधिकारी और विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधि भी अपना सम्मान जताने वहाँ उपस्थित थे, जिनमें सांसद थुबतेन छेवांग और लेह विधायक रिगज़िन जोरा सहित जनता के कई सदस्य भी शामिल थे।
जैसे ही परम पावन की गाड़ी धीरे-धीरे हवाई अड्डे से दूर होती गई, मार्ग पर हजारों लद्दाखी और तिब्बती, भिक्षु व साधारण लोग, वयोवृद्ध और युवा, जिसमें वर्दी में सैकड़ों स्कूल बच्चे भी शामिल थे, पंक्तिबद्ध थे। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि पूरी स्थानीय आबादी परम पावन का स्वागत करने आई हो, उनके चेहरे मुस्कान से खिले हुए, अपने हाथों में स्कार्फ, धूप और पुष्प लिए हुए।
शिवाछेल फोडंग पहुंचने पर गदेन ठिसूर रिजोंग रिनपोछे, डिगुङ छेछंग रिनपोचे, ठिकसे रिनपोचे, तगलुंग मटुल, थुकसे रिनपोछे ने पुनः एक बार परम पावन का स्वागत किया। चाय और मीठे चावल परोसे गए।
"मैं यहां एक बार पुनः आकर बहुत खुश हूँ," परम पावन ने पहले भोट भाषा में और फिर अंग्रेजी में बोलते हुए सभा को बताया। "मुझे लगता है कि मैं शारीरिक रूप से बिलकुल ठीक ठाक हूँ और यदि ऐसा ही रहा तो मैं मैदानों पर मानसून से बचने के लिए यहाँ कुछ समय बिताने की आशा करता हूँ। आप लद्दाख के लोगों के साथ मेरा विशेष संबंध है, जो आपकी आस्था तथा प्रेम - दया पर आधारित है जिसकी मैं बहुत सराहना करता हूँ।
"मैं यहाँ ५० वर्षों से अधिक समय से आ रहा हूं। प्रारंभ में लद्दाख इतना विकसित नहीं था। पर अब यह बदल गया है और हम विभिन्न तरह की भौतिक प्रगति देख सकते हैं। विहारों में भी, ५० वर्ष के पहले की तुलना में, अध्ययन की गुणवत्ता में काफी वृद्धि हुई है। वास्तव में मैंने हाल ही में तवांग फाउंडेशन के सदस्यों से भेंट की, जो यहां से तवांग तक सभी विहारों को गंभीर शिक्षा केंद्रों में परिवर्तन करने की योजना बना रहे हैं।
"उस दिन दिल्ली में विनय विद्वानों के साथ बैठक में, मैंने उनसे पूछा था कि बुद्ध की शिक्षा आज भी प्रासंगिक बनी हुई है अथवा नहीं। चूंकि, अन्य धार्मिक परम्पराओं की तरह, बुद्ध धर्म प्रेम, करुणा और सहनशीलता के बारे में सिखाता है, यह न केवल प्रासंगिक है पर आवश्यक भी है। परन्तु मैं किसी से यह नहीं कहता कि बौद्ध धर्म श्रेष्ठ परम्परा है। ऐसा कहना उसी तरह होगा जैसे कि सभी परिस्थितियों में सभी लोगों के लिए एक दवा सर्वोत्तम है। वास्तव में बुद्ध ने विभिन्न लोगों को उनके विशेष स्वभावों के आधार पर विभिन्न शिक्षा दी, जिन्हें हम तीन धर्म चक्र प्रवर्तन के रूप में संदर्भित करते हैं।"
भीड़ में पुराने मित्रों से ठिठोली करते हुए और दूसरों के साथ हाथ मिलाते हुए, परम पावन ने दिनांत किया। कल वे लेह जोखंग की एक लघु यात्रा करेंगे।