थेगछेन छोलिंग, धर्मशाला, हि. प्र., भारत, आज प्रातः तूफानी नभ तले परम पावन दलाई लामा अपने निवास से चुगलगखंग की ओर रूसी और बौद्ध विद्वानों के बीच दूसरे संवाद विश्व की समझ में भाग लेने के लिए पैदल निकले। इस कार्यक्रम का आयोजन तिब्बती संस्कृति और सूचना केंद्र (मॉस्को), सेव तिब्बत फाउंडेशन (मॉस्को) और दलाई लामा ट्रस्ट द्वारा किया गया था, जिसे लोमोनोसोव मॉस्को स्टेट यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर कानशियसनेस, इंस्टिट्यूट ऑफ फिलोसफी, रूसी एकेडमी ऑफ साइंस का सहयोग प्राप्त था।
दिर में, उन्होंने बुद्ध शाक्यमुनि की प्रतिमा के समक्ष अपना सम्मान अभिव्यक्त किया तथा निकट बैठे भिक्षुओं का अभिनन्दन किया। फिर वे मंदिर के मुख्य प्रांगण में एकत्रित नौ रूसी वैज्ञानिकों के बीच अपने पुराने मित्रों का अभिनन्दन करने हेतु उन्मुख हुए। शेष स्थान १५० पर्यवेक्षकों से भरा था, जिनमें ७५ रूसी, १८ तिब्बती भिक्षु, जिन्हें विज्ञान के अध्ययन का अनुभव है, बौद्ध तर्क शास्त्र संस्थान, सराह के १७ छात्र, मेन-ची-खंग से २५ छात्र, तिब्बती चिल्डर्न्स विलेज के ५० छात्र, तोंग लेन से तीन शामिल हैं और धर्मशाला सरकारी कॉलेज के दो शिक्षकों और गदेन फोडंग के १८ अतिथियों से भरा था।
मास्को में तिब्बत कार्यालय में परम पावन दलाई लामा के प्रतिनिधि तेलो रिनपोछे ने संक्षेप में धर्मशाला में रूसी और बौद्ध विद्वानों के बीच इस दूसरे संवाद का परिचय दिया। उन्होंने रूसी वैज्ञानिकों के साथ-साथ सीधा वेबप्रसारण देखने वाले लोगों का स्वागत किया, यह टिप्पणी करते हुए कि कार्यवाही अंग्रेजी, रूसी, चीनी तथा भोट भाषाओं में उपलब्ध कराई जा रही है।
संचालक प्रो कॉन्स्टेंटिन अनोकिन ने बैठक में भाग लेने के लिए परम पावन का धन्यवाद किया। उन्होंने उन्हें बताया कि सभी प्रतिभागियों ने उनकी पुस्तक 'यूनिवर्स इन ए सिंगल एटम' पढ़ा था और प्रभावित हुए थे और उनका मंतव्य संवाद को उसमें दिए गए विचारों पर आधारित करना था। उन्होंने पूछा कि क्या परम पावन कोई प्रारंभिक टिप्पणी करना चाहेंगे।
"भाइयों और बहनों, यही मेरा विश्वास है कि हम ७ अरब मनुष्य हैं," परम पावन ने प्रारंभ किया। "आज हम जिन कई समस्याओं का सामना कर रहे हैं, वे हमारी अपनी बनाई हुई हैं। और फिर भी वैज्ञानिक कहते हैं कि हमारी मूल मानव प्रकृति अनिवार्य रूप से करुणाशील है। हम समस्याओं को जन्म देते हैं क्योंकि हम भावनाओं के प्रवाह के अधीन हैं और क्योंकि हम अन्य लोगों को 'हम' और 'उन' के संदर्भ में देखते हैं। संकुचित दृष्टिकोण के कारण हम भूल जाते हैं कि हम मानवता का अंग हैं, जिससे हम दूसरों को नुकसान पहुँचाते हैं। हम मानते हैं कि हमारे शत्रुओं का विनाश हमारी जीत है और संभव है अतीत में यह सच हुआ होगा। पर, आज हम इतने अन्योन्याश्रित हैं कि जब दूसरों को नुकसान पहुँचाया जाता है तो हमें भी नुकसान पहुँचता है, इसके अतिरिक्त हमें जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याओं से निपटना पड़ता है जो हमें प्रभावित करते हैं।
"और तो और ठीक इस समय, सीरिया और यमन जैसे स्थानों में लोगों की हत्या की जा रही है, जबकि अन्य भुखमरी का शिकार हो रहे हैं। और सबसे दुखद बात है कि लोग धर्म के नाम पर एक दूसरे की हत्या कर रहे हैं। हम अपनी ७ अरब मनुष्यों की एकता को पहचानने के अल्पकालीन विफलता से अपनी करुणाशील प्रकृति का विरोध करते हैं।
"सामाजिक प्राणियों के रूप में हम अपने समुदाय पर निर्भर करते हैं, अतः समय आ गया है कि लोगों को शिक्षित किया जाए कि मानव होने के नाते हम सभी समान हैं। हमारा भविष्य एक-दूसरे पर निर्भर करता है। बहुत आत्म केंद्रित होना अवास्तविक होना है। संकीर्ण सोच का आत्म-हित अशिक्षित सोच का परिणाम है।
"हजारों वर्षों से धार्मिक परम्पराओं ने सभी मनुष्यों के लिए प्रेम का संदेश सम्प्रेषित किया है, पर उसका प्रभाव सीमित रहा है। अब आधुनिक शिक्षा भौतिकवादी लक्ष्यों की ओर उन्मुख है। पर फिर भी यह हमारा आम अनुभव है कि हमने अपनी माँओं से जन्म लिया है और उसी के पालन पोषण में बड़े हुए हैं, परिणामस्वरूप छोटे बच्चे सहज करुणाशील प्रकृति प्रकट करते हैं।
"वैज्ञानिक सचेत करते हैं कि निरंतर भय और क्रोध हमारे स्वास्थ्य के लिए बुरा है, जबकि करुणाशील और सौहार्दपूर्ण होना हमारे शारीरिक और मानसिक कल्याण में योगदान देता है। अतः जिस तरह स्वस्थ से रहने के लिए हम शारीरिक स्वच्छता का ध्यान रखते हैं, हमें एक तरह की भावनात्मक स्वच्छता विकसित करने की आवश्यकता है।"
परम पावन ने उल्लेख किया कि वह ३० वर्षों से अधिक ब्रह्मांड विज्ञान, न्यूरोबायोलॉजी, भौतिकी और मनोविज्ञान पर वैज्ञानिकों के साथ बातचीत में संलग्न रहे हैं। उन्होंने टिप्पणी की कि ये क्षेत्र ऐसे हैं जो आधुनिक विज्ञान और बौद्ध विज्ञान में समान हैं। उदाहरण के लिए, आकाश गंगाओं के उभरने, बने रहने और विनाश के बारे में एक सामान्य एकमतता है और अतीत में ऐसी संभावना है कि एक से अधिक 'बिग बैंग' रहे हों।
जहाँ तक भौतिकी विज्ञान का प्रश्न है, परम पावन ने सूचित किया कि परमाणु भौतिक विज्ञानी राजा रामण्णा ने उन्हें बताया था कि क्वांटम भौतिकी विज्ञान के लिए नया था परन्तु बौद्ध आचार्य नागार्जुन के लेखन में इससे मिलती जुलती अवधारणाएँ मिलती हैं। मनोविज्ञान के संदर्भ में, हमारी भावनाओं से निपटने के तरीके के बारे में अधिक शिक्षा की आवश्यकता है। परम पावन ने टिप्पणी की कि हमें यह सीखने की आवश्यकता है कि विनाशकारी क्रोध और दूसरों के लिए चिंता की सामान्य कमी किस तरह की होगी। शस्त्र तथा बल प्रयोग किसी समस्या का समाधान नहीं है, उन्होंने आगे यह पुष्ट करते हुए कहा कि हिंसा सिर्फ प्रतिहिंसा को जन्म देती है, और इस प्रकार यह क्रम निरंतर रहता है।
उन्होंने सलाह दी कि एक शांतिपूर्ण चित्त हमारे स्वास्थ्य के लिए अच्छा है और हमारा लक्ष्य हिंसा से बचने और इस शताब्दी को संवाद का बनाने का होना चाहिए। उन्होंने कहा कि जहाँ अब हर कोई धर्म को स्वीकार नहीं करता, वैज्ञानिक निष्कर्षों का अधिक सार्वभौमिक आकर्षण होता है। अतः, इस तरह की बैठकों के प्रयोजनों में से एक यह है कि किस तरह लोगों को सौहार्दता विकसित करने हेतु किस तरह एक धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण से शिक्षित किया जाए।
परम पावन ने कहा, "इस संदर्भ में, पूर्वी और पश्चिम की संस्कृतियों के बीच रूस की एक विशिष्ट भूमिका है। जब मैं युवा था, तो हमारे विहारों में रूसी, बुर्यात, कलमीकिया और थूवा के विद्वान थे, अतः हमारा पहले से ही सम्पर्क रहा है। इसके अतिरिक्त, १३वें दलाई लामा के समय, ज़ार के साथ कुछ संपर्क था। इसलिए मैं रूस के विद्वानों के साथ भेंट करने तथा चर्चा करने का अवसर पाकर बहुत प्रसन्न हूँ।"
न्यूरोबायोलॉजिस्ट प्रोफेसर पावेल बलबान ने संवाद का प्रारंभ किया तथा परम पावन को बताया कि वे मस्तिष्क का अध्ययन करते हैं, विशेषकर भावनाओं के प्रकार्य का। उन्होंने टिप्पणी की, कि जहाँ चूहे के मस्तिष्क में आनंद केंद्रों को दिखाया जा सकता है जिन्हें भावनात्मक प्रतिक्रिया प्रकट करने के लिए उत्तेजित किया जा सकता है, पर वे यह जानने में भी रुचि रखते हैं ऊपरी तौर से सम्प्रेषण न करने वाले घोंघों में भी भावनाएँ हैं अथवा नहीं।
परम पावन ने उस प्रश्न को दोहराया जो वे प्रायः वैज्ञानिकों के समक्ष रखते थे। उन्होंने समझाया कि कभी-कभी, जब वे आश्वस्त होते हैं कि कोई मलेरिया मौजूद नहीं है, वे मच्छर को अपना खून चूसने देते हैं। पर एक बार उसका पेट भर गया तो वह मच्छर बिना कोई प्रशंसा का संकेत दिए उड़ जाता है। तो, उनका प्रश्न यह है कि मस्तिष्क को प्रशंसा दिखाने में सक्षम होने से पहले कितना बड़ा होना चाहिए? बलबान ने सूचित किया कि चूहों पर की गई उनकी जाँच से पता चला है कि वे अन्य प्रजातियों की तरह हैं जिनमें से ३०-४०% करुणा की नैसर्गिक भावना प्रकट करते हैं। परम पावन ने उत्तर दिया कि स्तनपायी इस तरह प्रतिक्रिया देते हैं, पर यह देखना दिलचस्प होगा कि कछुए जैसे सरीसृप जो अंडों से निकलते हैं और जिन्हें जीवित रहने के लिए माँ से कोई सीधे संबंध नहीं होता और न ही करुणा की तत्कालिक आवश्यकता होती है।
परम पावन ने सिफारिश की, कि मनुष्य के रूप में हमें यह आकलन करने की आवश्यकता है कि क्रोध का कोई मूल्य है अथवा नहीं - यह टिप्पणी करते हुए कि यह हमारी चित्त की शांति को नष्ट कर देता है। दूसरी ओर करुणा आशावादिता और आशा लाती है। उन्होंने टिप्पणी की, कि कुछ धार्मिक परम्पराएँ बेहतर व्यवहार लाने के लिए भय पर निर्भर करती हैं। वे इसे नकारते हैं क्योंकि यह नैराश्य तथा निराशा की ओर ले जाता है।
परम पावन ने चित्त से संबंधित दो प्रश्न प्रस्तुत किए। प्रथम के बारे में उन्होंने पूछा कि यदि एक परिपूर्ण शुक्राणु एक परिपूर्ण गर्भ में एक परिपूर्ण अंडे से मिलता है तो क्या प्रारंभ होगा? और यदि नहीं, तो वह तीसरा कारक क्या है? दूसरा, उन्होंने मृत्यु पर कुछ श्रेष्ठ ध्यान करने वालों में देखी गई एक घटना का उल्लेख किया। यद्यपि नैदानिक मृत्यु हो चुकी है, पर शरीर कुछ दिनों तक ताजा रहता है, क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि सूक्ष्मतम चेतना अभी भी बनी हुई है। अब तक, वैज्ञानिकों के पास कोई उत्तर नहीं कि क्या हो रहा है।
२०वीं शताब्दी के अंत तक वैज्ञानिकों ने मस्तिष्क में रुचि ली, पर चित्त को लेकर नहीं, उन्होंने कहा। परन्तु हाल ही में उन्होंने स्वीकार किया है कि मानसिक प्रशिक्षण के परिणामस्वरूप न्यूरोप्लास्टिसिटी देखी जा सकती है। परिणामस्वरूप मस्तिष्क और चित्त के बीच संबंधों का परीक्षण प्रारंभ हो चुका है। बौद्ध विज्ञान चित्त के विभिन्न स्तरों, सामान्य ऐन्द्रिक, स्वप्नावस्था की चेतना जो अधिक सूक्ष्म है, गहन निद्रा में जो कि और अधिक सूक्ष्म है और चेतना जो मृत्यु के समय प्रकट होती है जो कि सूक्ष्मतम है। परम पावन ने संकेत दिया कि इस चित्त का न तो आदि है और न ही अंत।
प्रो. स्वातोस्लाव मेदवेदेव ने परम पावन को बताया कि उन्होंने मस्तिष्क, कैसे ध्यान रखता है, को लेकर अपने शोध में चित्त और मस्तिष्क के बीच संबंध की प्रकृति की जाँच की है। उन्होंने टिप्पणी की, कि थर्मोडायनामिक्स के नियमों की तरह चीजें हैं जिन्हें गणित द्वारा दिखाया जा सकता है परन्तु प्रयोग द्वारा तरलता से प्रमाणित नहीं किया जा सकता। वह कुछ प्रश्नों के लिए और अधिक तार्किक दृष्टिकोण लेने के पक्ष में हैं। उन्होंने टिप्पणी की, कि पावलोव ने मस्तिष्क में उज्ज्वल बिन्दुओं का उल्लेख किया था, परन्तु अभी एक शताब्दी के बाद ही, यह दर्शाना संभव हो पाया है कि वे किस विषय को लेकर बात कर रहे थे।
मेदवेदेव ने बल देते हुए कहा, "अब हम शुद्ध सिद्धांत से वास्तविक अभ्यास की ओर बढ़ रहे हैं।" "हम मस्तिष्क को समझने का प्रयास कर रहे हैं। यह संभव है कि चेतना अलग-अलग अस्तित्व रखती है और मस्तिष्क एक प्रकार का इंटरफेस है।"
बुद्ध की शिक्षाओं के तीन अवसरों को सारांशित करते हुए जो धर्म चक्र प्रवर्तन के नाम से जाने जाते हैं परम पावन ने समझाया कि प्रथम में उन्होंने चार आर्य सत्यों की शिक्षा दी। द्वितीय में उन्होंने इन सत्यों में से तीसरे को व्याख्यायित किया, अज्ञान पर काबू पाने के संबंध में दुःख निरोध। अज्ञानता ज्ञान से पराजित होती है - इस संबंध में यथार्थ की समझ है कि वस्तुएँ स्वभाव सत्ता से खाली हैं। इसका अर्थ शून्यता नहीं है पर यह कि वस्तुएँ मात्र ज्ञापित रूप में अस्तित्व रखती हैं। परम पावन ने स्पष्ट किया कि जिन लोगों ने इस स्पष्टीकरण को कठिन पाया, बुद्ध ने शिक्षाओं का एक तीसरा वर्ग दिया जिसने चेतना पर चर्चा करने और किस तरह सूक्ष्मतम चेतना को बुद्ध प्रकृति के रूप में देखा जा सकता है, को लेकर एक अलग दृष्टिकोण अपनाया।
तत्पश्चात उन्होंने ज्ञान की तीन वस्तुओं की ओर संकेत किया - जो वस्तुएँ हमारे लिए स्पष्ट हैं, वस्तुएँ जो किंचित अस्पष्ट हैं, परन्तु कारण और अनुमान द्वारा समझी जा सकती हैं तथा वस्तुएँ जो अस्पष्ट है और मात्र दूसरों के साक्ष्य पर निर्भर होकर समझी जा सकती हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने चार युक्तियों का उल्लेख किया - कार्य कारण, अपेक्षा, उपपत्ति साधन तथा धर्मता।
चाय के एक लघु अंतराल के उपरांत आनुवंशिकी (जेनेटिक्स) के एक प्रमुख रूसी विशेषज्ञ प्रोफेसर निकोलाई यानकोव्स्की ने समझाया कि जीन इस बात को प्रभावित कर सकते हैं कि आप ध्यान की ओर प्रवृत्त हैं अथवा मनोवैज्ञानिक चिकित्सा से लाभान्वित होने के इच्छुक हैं। इसी तरह, जीन क्रोध के प्रति संवेदनशीलता को प्रभावित कर सकते हैं। परम पावन जानना चाहते थे कि क्या जीनों की भूमिका की तुलना सूक्ष्म ऊर्जा की भूमिका के साथ की जा सकती है, जो तंत्र में वर्णित चित्त के साथ मेल खाती है।
यंकोव्स्की ने कहा कि जीन कोड के सम्पादन से कुछ एक प्रकार के रोगों के उपचार में योगदान होने की आशा है। उन्होंने यह भी टिप्पणी की कि आनुवांशिक हेरफेर का उपयोग शस्त्र के रूप में किया जा सकता है, जो नैतिकता का प्रश्न उठाता है। उन्होंने इंगित किया कि जब वैज्ञानिक कुछ नई खोज करते हैं तो आवश्यक रूप से नैतिकता तो एक प्रश्न नहीं होता लेकिन एक बार जब वे अभ्यास में इसका उपयोग करने की कोशिश करते हैं, तो नैतिकता का सवाल उठता है। परम पावन ने उत्तर दिया कि चूंकि सभी सत्व सुख की खोज में रहते हैं, जो लाभ और सुख लाता है, उसे अच्छा माना जाता है, जबकि जो पीड़ा का कारण बनता है उसे बुरा माना जाता है।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि चूंकि क्रोध चित्त का अंग है, इसलिए इसके प्रतिकारक को चित्त में व्यवहृत किया जाना चाहिए। उन्होंने देखा कि वैज्ञानिकों ने उनसे पुष्ट किया है कि चट्टानों और मस्तिष्क में सूक्ष्म स्तर पर एक ही तरह के कण होते हैं। एक निश्चित बिंदु पर मस्तिष्क में पदार्थ इस तरह व्यवस्थित होता है कि यह चेतना का आधार बन जाता है। फिर जीवन, सुख और पीड़ा की भावनाओं के साथ होता है। उन्होंने वैज्ञानिकों को इसे युवा विद्वानों के साथ उठाने के लिए प्रोत्साहित किया जिनके मस्तिष्क दोपहर में ताजे होते हैं।
प्रोफेसर एवजेनि रोगाएव ने मस्तिष्क को लेकर अपने शोध का वर्णन किया, यह देखते हुए कि कौन सी जीन स्किज़ोफ्रेनिया को जन्म देती है। उन्होंने कहा कि आनुवांशिक शोध परम पावन के इस दावे की पुष्टि करता है कि हम सभी भाई-बहन हैं और हमें यह पता लगाने के लिए बहुत पीछे नहीं जाना पड़ेगा कि हम सभी के पूर्वजों के समान हैं। उन्होंने साइबेरियाई जंगली लोमड़ी को पालतू बनाने के काम के बारे में बात की जिसमें आक्रामक व्यवहार को शांतिपूर्ण रूप से परिवर्तित करने हेतु प्रारूपों का निर्माण किए जा रहा है।
प्रोफेसर अलेक्जेंडर कपलान ने परम पावन को बताया कि किस तरह मॉस्को में उनके छात्र इस बैठक में रुचि दिखा रहे हैं। उन्होंने स्ट्रोक पीड़ितों के जिन्होंने बोलने या हिलने की क्षमता खो दी है, के मस्तिष्क के साथ सीधा संपर्क करने के अपने प्रयासों का उल्लेख किया। उन्होंने समझाया कि किस तरह परदे पर प्रदर्शित अक्षरों के उनके चयन को उनके मस्तिष्क की प्रतिक्रियाओं से जाना जा सकता है जो सम्प्रेषण को सक्षम करता है। वे इसे अन्यथा स्वस्थ लोगों की भावनाओं के प्रकार्य को समझने की संभावना के रूप में देखते हैं।
परम पावन ने टिप्पणी की कि सूक्षतम चेतना, जिसे तथागतगर्भ के रूप में वर्णित किया गया है, में अत्यधिक क्षमता है और लोग इसकी खोज के प्रयास में हैं पर इसमें बहुत समय लगेगा।
उन्होंने आने वाले सभी को धन्यवाद देते हुए सत्र का समापन किया और आश्वासन दिया कि वह कल पुनः उनसे मिलेंगे। वे मंदिर से निकले और अपने निवास लौट गए। तत्पश्चात बैठक के प्रतिभागियों और पर्यवेक्षकों ने मंदिर के प्रांगण में मध्याह्न भोजन का आनन्द लिया और मध्याह्न में चर्चा के एक और सत्र के लिए एकत्रित हुए।