विल्नियस, लिथुआनिया - दिवस के प्रथम कार्यक्रम के रूप में परम पावन दलाई लामा ने इर्यटस. टीवी चैनल को एक विशेष साक्षात्कार दिया, जिस दौरान तीन युवा बच्चों को उनसे प्रश्न पूछने का अवसर मिला।
यह पूछे जाने पर कि आप कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं कि आपने किसी चीज़ के बारे में सही निर्णय लिया है, परम पावन ने उत्तर दिया:
"जीवन काफी जटिल है। पर मैं अपने दिमाग का उपयोग करता हूँ - मानव मस्तिष्क में महान क्षमता है। परन्तु हमें अपनी नकारात्मक भावनाओं को हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए। हमें वस्तुनिष्ठ होकर वस्तुओं की अलग-अलग कोणों से जांच करनी चाहिए। यदि आप ऐसा करें तो आप जो कुछ भी करेंगे वह यथार्थवादी होगा। हमें अपनी मानव बुद्धि का उपयोग करना है। फिर जैसे हमारा आत्मविश्वास बढ़ता है यह आंतरिक शक्ति लाता है।"
होटल की खचाखच भरी लॉबी में, मीडिया के सदस्यों के साथ परम पावन के साथ पारस्परिक चर्चा में भाग लेने के लिए ६० से अधिक लोग एकत्रित हुए थे।
शिक्षा के लक्ष्यों के बारे में एक प्रश्न के उत्तर में, परम पावन ने समझाया:
"मैं स्वयं को ७ अरब मनुष्यों में से एक मानता हूँ। हम मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक रूप से एक समान हैं। और तो और वैज्ञानिक अब कहते हैं कि उनके पास प्रमाण हैं कि हमारी आधारभूत मानव प्रकृति करुणाशील है। यह आशा का एक कारण है। हम अपने नित्य प्रति के अनुभव में इसका सत्य देख सकते हैं। जब हमारे चित्त अधिक करुणाशील होते हैं तो हम मानसिक रूप से खुश और शारीरिक रूप से अच्छा अनुभव करते हैं। अगर हम निरंतर क्रोध या भय में हों तो यह प्रतिरक्षा तंत्र को दुर्बल करता है।
"हर कोई सुखी रहना चाहता है- और कोई भी दुःख नहीं चाहता। फिर भी हम जिन कई समस्याओं का सामना कर रहे हैं उनमें से अधिकांश हमारी अपनी निर्मित हैं। अतः हमें इसके बारे में और अधिक सावधानी से सोचना है। जब हम युवा होते हैं तो आम तौर पर प्रेम व स्नेह की सराहना करते हैं, पर जैसे-जैसे हम बड़े हो जाते हैं, हम 'हम' और 'उन' के बीच भेदभाव करते हैं।
"आधुनिक शिक्षा प्रणाली भौतिक लक्ष्यों की ओर बहुत अधिक उन्मुख है, जिसमें आंतरिक मूल्यों के लिए कम समय है। मेरा सुझाव है कि जिस तरह हम अपने शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए शारीरिक स्वच्छता पर ध्यान देते हैं, हमें अपने चित्त की शांति बनाए रखने के लिए भावनात्मक स्वच्छता की भावना पैदा करने की भी आवश्यकता है। हमें इसके बारे में अपनी सामान्य शिक्षा में प्रशिक्षण शामिल करने की आवश्यकता है।"
पुरुषों और महिलाओं की सापेक्ष भूमिकाओं पर टिप्पणी करने के लिए आमंत्रित किए जाने पर, परम पावन ने समझाया कि ऐतिहासिक रूप से, जब नेतृत्व के लिए मानदंड शारीरिक बल था, तो पुरुष स्वाभाविक रूप से नेता बन गए। अब, शिक्षा ने इस तरह के अंतर को दूर कर दिया है और विश्व भर में महिलाओं और पुरुषों के बीच समान अधिकारों का अधिक सम्मान है। उन्होंने टिप्पणी की कि जहाँ महिलाओं में भेदभाव करने के पुराने तरीके दिखाई देते हैं, हमें उनका विरोध करना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि चूंकि वैज्ञानिकों ने दिखाया है कि कई महिलाएँ दूसरों की पीड़ा के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं, अतः करुणा और मानव मूल्यों को बढ़ावा देने में उनकी विशिष्ट भूमिका है।
विल्नियस विश्वविद्यालय में २००० से अधिक लोगों के उत्साह भरे जनमानस ने परम पावन का अभिनन्दन किया। तिब्बत सदन के निदेशक प्रोफेसर विटिस विदुनास द्वारा एक संक्षिप्त परिचय दिए जाने के बाद, परम पावन ने अपना व्याख्यान प्रारंभ किया।
"आज जीवित ७ अरब मनुष्यों में से कोई भी दुःख नहीं चाहता। फिर भी सभी प्रमुख धर्मों द्वारा प्रेम व सहिष्णुता के बारे में शिक्षा देने के बावजूद, चूँकि हम केवल अपने हितों पर केंद्रित हैं, और बिना किसी चिंता के दूसरों का शोषण करते और धोखा देते हैं, हम स्वयं के लिए समस्याएं उत्पन्न करते हैं।
"२०वीं शताब्दी बल प्रयोग द्वारा समस्याओं के समाधान की प्रवृत्ति के कारण अत्यधिक हिंसा की अवधि थी। अन्योन्याश्रित विश्व जिसमें हम आज रहते हैं, इस तरह की सोच पूरी तरह तारीख से परे है। इसके बजाय मानवता के एकता के आधार हमें वैश्विक उत्तरदायित्व की भावना पैदा करने की आवश्यकता है।"
परम पावन ने घोषणा की कि यदि हम २१वीं शताब्दी को शांति का युग बनाना चाहते हैं तो हमें शस्त्रों के व्यापार को कम करने और परमाणु हथियारों को खत्म करने के उपाय ढूंढने होंगे। उन्होंने टिप्पणी की कि अल्प अवधि में बंदूक की शक्ति प्रबल लग सकती है, परन्तु दीर्घ अवधि में, लिथुआनिया जैसे छोटे राष्ट्रों ने साबित कर दिया है, सत्य की शक्ति अधिक प्रबल है।
परम पावन ने समझाया कि दयालुता और करुणा के मानवीय मूल्यों के आधार पर एक अधिक शांतिपूर्ण विश्व का प्रचार उनकी प्राथमिक प्रतिबद्धता है। इसके बाद, वह अंतर्धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने इंगित किया कि भारत में विभिन्न धर्मों और विचारों के लोग ३००० से अधिक वर्षों से शांति से एक साथ रहते आए हैं। अब, जब जनसंख्या एक अरब से अधिक हो गई है, यद्यपि यदा - कदा समस्याएं उत्पन्न होती हैं, पर धार्मिक सद्भाव का पोषण जारी है, जिससे विश्व को यह पता चलता है कि यह संभव है।
एक तिब्बती के रूप में परम पावन तिब्बती संस्कृति और भोट भाषा जिसमें यह अभिव्यक्त होता है, के संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध हैं। वह तिब्बत की पारिस्थितिकी के लिए भी गहन रूप से चिंतित है, इस बात को ध्यान में रखते हुए कि एशिया भर में एक अरब से अधिक लोग जल के लिए उन नदियों पर निर्भर हैं जिनका उद्गम तिब्बत में होता है।
अंत में, परम पावन ने उल्लेख किया कि वह प्राचीन भारतीय ज्ञान, विशेष रूप से नालंदा परम्परा के पुनरुत्थान के लिए प्रतिबद्ध हैं जिसे ७वीं और ८वीं शताब्दी में तिब्बत में लाया गया। यह उनका दृढ़ विश्वास है कि इसमें निहित चित्त व भावनाओं के प्रकार्य की समझ आज इस युग में प्रासंगिक और संभावित लाभ लिए हुए है जब विश्व भावनात्मक संकट से ग्रसित है।
श्रोताओं के प्रश्नों के उत्तर देते हुए परम पावन ने समझाया कि आज के विश्व में वैज्ञानिक निष्कर्षों और सामान्य ज्ञान के आधार पर गहन आध्यात्मिक मूल्यों की आवश्यकता है। उन्होंने श्रोताओं से आग्रह किया कि उन्होंने जो सुना है उस पर चिन्तन करें और उन्होंने जो कहा उसकी जांच करें।
विश्वविद्यालय से परम पावन ने तिब्बत स्क्वायर गए जहाँ उन्होंने लिथुआनिया स्वतंत्रता के शताब्दी वर्ष में लिथुआनिया और तिब्बत के बीच मैत्री के प्रतीक के रूप में पौधारोपण किया। उसके बाद वे दिवंगत लिथुआनियाई लेखक जुर्गा इवानौस्काइट, जिन्होंने हिम भूमि पर कई किताबें लिखीं, की तिब्बत की तस्वीरों पर एक प्रदर्शनी देखने के लिए पास के नहर गए।
परम पावन ने विल्नियस के पूर्व महापौर, श्री आर्टूरस जुओकास के साथ मध्याह्न का भोजन किया तथा होटल लौटने से पहले अपने अतिथियों को आमंत्रित किया।
कल, परम पावन सीमेंस एरिना में एक सार्वजनिक व्याख्यान देंगे।