माल्मो, स्वीडन, १२ सितंबर २०१८ कल, परम पावन दलाई लामा ने दिल्ली से स्वीडन के लिए सीधी उड़ान भरी। मालमो हवाई अड्डे आगमन पर मौसम हवादार और गीला था; पर इसके बावजूद शहर ले जाने से पहले आईएम के अध्यक्ष बिर्चे मल्लर तथा महा सचिव एन स्वेनसेन ने उनका स्वागत किया। आईएम एक विकास संगठन है जो गरीबी और बहिष्कार से संघर्ष कर रहा है और उसे सामने ला रहा है। १९३८ में इसकी स्थापना ब्रिटा होल्मस्ट्रॉम द्वारा की गई और अब यह विश्व भर के तेरह देशों में काम करता है, जो लोगों की शिक्षा, अच्छे स्वास्थ्य और गरिमापूर्ण जीवन को बनाए रखने की क्षमता पर केंद्रित है।
आज प्रातः मीडिया के सदस्यों के साथ एक संक्षिप्त बैठक के दौरान, एन स्वेन्सन ने परम पावन का परिचय दिया और बताया कि यह वर्ष आईएम की स्थापना की ८०वीं वर्षगांठ है और साथ ही तिब्बतियों के साथ साझेदारी के ५०वें सालगिरह का वर्ष भी है। उन्होंने २०१६ में आईएम द्वारा ह्यूमनियम धातु के प्रारंभ का उल्लेख किया, यह धातु जो अवैध शस्त्रों के पुनर्नवीनीकरण से बनी है। उन्होंने कहा, "हम आपको यहां अपने बीच में पाकर बहुत खुश हैं और आप जो कहना चाहते हैं उसे सुनने के इच्छुक हैं।"
परम पावन ने प्रारंभ किया, "सबसे पहले हमारे संबंध न तो राजनीतिक हैं, न ही धन से संबंधित हैं। हमारे संबंध इस तरह से प्रारंभ हुए कि जब मनुष्य स्वयं को कठिनाइयों में पाते हैं, तो अन्य उनकी सहायता के लिए आते हैं। जैसा कि वैज्ञानिक कहते हैं, आधारभूत मानव प्रकृति करुणाशील है और आईएम एक ऐसा संगठन है जो करुणा को क्रियान्वित करता है। हम तिब्बती जब पहली बार निर्वासन में आए तो भविष्य अंधकारमय प्रतीत हो रहा था, पर कई व्यक्तियों और संगठनों ने हमें सहायता प्रदान की - आईएम उनमें से एक था, जिसकी मैं सराहना करता हूँ।
"मेरे लक्ष्यों में से एक मानवता को अधिक करुणाशील होने के लिए प्रोत्साहित कर एक बेहतर विश्व बनाना है। मानसिक स्तर पर हम करुणा उत्पन्न कर सकते हैं, पर यदि भौतिक स्तर पर हम शस्त्रों की उपलब्धता को सीमित करते हैं तो यह हिंसा और हानि को कम करने में प्रभावी होगा। अतः हमारा लक्ष्य एक विसैन्यीकृत विश्व होना चाहिए। यदि हम २१वीं शताब्दी के प्रारंभ में एक दृष्टि अपनाते हैं और प्रयास करते हैं तो हम युद्ध व हत्या के बिना एक सुखी युग बना सकते हैं। समस्याएं तब भी उत्पन्न होंगी, पर हमें उन्हें विभिन्न रूप से संबोधित करने की आवश्यकता है। हमें उनका समाधान बल का उपयोग करने के बजाय संवाद द्वारा करना चाहिए।"
परम पावन से पूछे गए प्रथम प्रश्न में स्वीडन में हाल के ध्रुवीय चुनाव परिणाम को लेकर उनकी सलाह मांगी गई। परम पावन ने उत्तर दिया कि इस तरह की सलाह देने के लिए उन्हें स्थिति का और गहन अध्ययन करना होगा जो वह करने में असमर्थ हैं। उन्होंने आशा व्यक्त की, कि एक समृद्ध, शांतिपूर्ण देश के रूप में जहां धनवानों तथा निर्धनों के बीच का अंतर अपेक्षाकृत छोटा है, स्वीडन की छवि बनी रहेगी।
"मैं संयुक्त राज्य अमेरिका की उसके आणविक शस्त्रों के लिए प्रशंसा नहीं करता अपितु उसके लोकतंत्र, स्वतंत्रता तथा स्वाधीनता की वकालत का प्रशंसक हूँ। मैं आशा करता हूँ कि यहां स्वीडन में आप इन मूल्यों को जीवित रख सकते हैं।
"हाल ही में बड़ी संख्या में शरणार्थी, मध्य पूर्व से कइयों ने अपने जीवन को लेकर भय से यूरोप पलायन किया है। उन्हें आश्रय और सहारा दिया गया है, परन्तु दीर्घकालिक समाधान में विशेष रूप से उनके बच्चों के लिए प्रशिक्षण और शिक्षा प्रदान करना शामिल होना चाहिए, ताकि शांति बहाल होने पर वे अपने देशों के पुनर्निर्माण के लिए लौट सकें।"
सोशल मीडिया के माध्यम से घृणा फैलाए जाने के बारे में पूछे जाने पर परम पावन ने टिप्पणी की, "मानव के रूप में हम सभी समान हैं और मैं लोगों को यह शिक्षित करने का प्रयास कर रहा हूं कि सुख का अंतिम स्रोत सौहार्दता और शांत चित्त है। हमें चित्त की शांति पर अधिक ध्यान देना होगा।"
एक अन्य प्रश्नकर्ता यह जानना चाहते थे कि क्या परम पावन निराश थे कि चीन के आर्थिक शक्ति के रूप में उभरने के कारण अपेक्षाकृत कम राष्ट्रपति और प्रधान मंत्री उनसे मिलने के लिए तैयार थे। उन्होंने उत्तर दिया कि एक ओर से वे निराश नहीं हैं क्योंकि उनकी मुख्य रुचि सामान्य लोगों से मिलने की है और दूसरी ओर २००१ से, जब तिब्बतियों ने प्रथम निर्वाचित नेतृत्व प्राप्त किया था, तब से वे राजनैतिक उत्तरदायित्व से सेवानिवृत्त हो गए हैं। और तो और उन्होंने इस परम्परा की इतिश्री कर दी है जिसके अंतर्गत दलाई लामा राजनीतिक और आध्यात्मिक नेता के रूप में कार्य करते हैं।
यह पूछे जाने पर कि क्या वे जलवायु परिवर्तन को लेकर चिंतित हैं, परम पावन ने उत्तर दिया कि जहां वे रहते हैं उन्होंने बर्फबारी में गिरावट देखी है। यह पूछे जाने पर कि हम क्या कर सकते हैं, उन्होंने टिप्पणी की, कि एक समय में स्टॉकहोम से जाती हुई नदी में कारखानों के प्रदूषण के कारण कोई मछली नहीं थी। उन्होंने इंगित किया कि यदि हम अपने व्यवहार में परिवर्तन लाएँ तो अंतर ला सकते हैं। एक बार कारखानों ने नदी को प्रदूषित करना बन्द कर दिया तो मछली वापस आ गई। उन्होंने कहा कि पेरिस समझौते के अनुसार, साथ मिलकर काम करना आवश्यक है।
परम पावन एक और प्रश्नकर्ता के साथ सहमत थे कि शस्त्र निर्माण और बिक्री पर कटौती विश्व शांति के लिए महत्वपूर्ण है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि नोबेल शांति विजेता इसे अपना समर्थन देंगे। हालांकि, उन्होंने आणविक अस्त्र को समाप्त करने के लिए सह नोबेल शांति पुरस्कार विजेताओं के और स्वयं के प्रस्ताव कि इन शस्त्रों को रखने वाले देशों के लिए एक समय सारिणी निर्धारित की जाए, पर कुछ न हुआ, का स्मरण किया। परम पावन ने उल्लेख किया कि उन्होंने राष्ट्रपति ओबामा और भारतीय शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी से इस मुद्दे को उठाने के लिए कहा है।
माल्मो लाइव के नाम से जाना जाने वाले सभागार में एक स्वीडिश पत्रकार और टेलीविजन प्रस्तुतकर्ता कट्टिस अह्लस्ट्रॉम ने परम पावन का स्वागत किया और १२०० की संख्या के दर्शकों से उनका परिचय करवाया। उन्होंने लिसा एकदल द्वारा मन्द गति में और रिकर्ड सोडरबर्ग के उत्साह भरे स्वर में प्रस्तुत गीतों को सुनने के लिए परम पावन को आमंत्रित किया, जिसका उन्होंने आनंद उठाया। अपना संबोधन प्रारंभ करने से पूर्व उन्होंने दर्शकों पर अधिक प्रकाश डालने की मांग की ताकि वे जिन लोगों को संबोधित कर रहे थे, उनके चेहरे देख सकें।
"भाइयों और बहनों, मानव के रूप में हम सब समान हैं। हम चाहे स्वीडिश हों या तिब्बती वह गौण है। हम शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से समान हैं। हम सभी एक सुखी जीवन जीना चाहते हैं पर फिर भी हम जिन कई समस्याओं का सामना कर रहे हैं, धमकाना, धोखाधड़ी और गरीबी, वे मनुष्यों द्वारा निर्मित की गई हैं। साथ ही, सामाजिक प्राणियों के रूप में, हम जीवित रहने के लिए समुदाय पर निर्भर रहते हैं। अतः हम पर ऐसी समस्याओं को सुलझाने का उत्तरदायित्व है और हमें पर-कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए कार्य करना है।
"हमें मित्रों की आवश्यकता होती है और मैत्री विश्वास पर आधारित है जो तब आता है जब आप दूसरों के हित के प्रति सोच रखते हैं। स्व हित के सरल दृष्टिकोण से हमें दूसरों के प्रति अधिक सोच विकसित करने की आवश्यकता है।
"ब्रह्मांड विज्ञान, भौतिकी, तंत्रिका विज्ञान और मनोविज्ञान पर विगत ४० वर्षों में वैज्ञानिकों के साथ गंभीर वार्ता के दौरान, मैंने उन शिशुओं के साथ प्रयोगों को देखा है जो अभी बोल नहीं सकते। उन्हें ऐसे चित्र दिखाए जाते हैं जिनमें कोई किसी अन्य व्यक्ति की सहायता कर रहा है और कोई किसी अन्य के प्रयासों को बाधित कर रहा है। शिशु सहायक व्यवहार को लेकर स्पष्ट स्वीकृति व्यक्त करते हैं और दुःख व्यक्त करते हैं जब वे किसी को हानिकारक या बाधक के रूप में देखते हैं। इससे यह निष्कर्ष निकालता है कि आधारभूत मानव प्रकृति करुणाशील है।
"करुणा की सौहार्दता किसी भी तरह की शंका को दूर करती है तथा उस तरह के आत्मविश्वास को पैदा करती है जो आपको ईमानदारी व सच्चाई से आचरण करने की अनुमति देती है। सभी ७ अरब मनुष्यों ने अपनी मांओं के कारण जन्म लिया और फिर जीवित रहने के लिए उसकी दया पर निर्भर रहे। मेरे अपने संबंध में करुणा की मेरी पहली शिक्षक मेरी मां थी।
"मैं सदैव स्वयं को एक और इंसान के रूप में सोचता हूं, न कि किसी विशेष व्यक्ति या १४वें दलाई लामा के रूप में। मैं जिनसे भी मिलता हूँ उनका अभिनन्दन मैं मुस्कान के साथ करता हूँ। मेरे नित्य प्रति के अभ्यास में मैं सभी सत्वों को अपने प्रिय के रूप में देखता हूँ, इसी कारण मैं अपने व्याख्यान का आरंभ इस तरह करता हूँ - 'भाइयों और बहनों ...' हमारे बीच राष्ट्रीयता, जाति या धर्म की विभिन्नताओं पर बल देने से मात्र समस्याएँ जन्म लेती हैं, जबकि आधारभूत रूप से हम सभी समान हैं।
"मैं अंतर्धार्मिक सद्भाव के महत्व को भी चिह्नांकित करता हूं। आज धर्म के नाम पर हम जो युद्ध और हत्या देखते हैं वह अचिन्तनीय है। भारत में, महान विविधता के बावजूद, हम पाते हैं कि धार्मिक सद्भावना बनी हुई है।
"हम अपने ही अनुभव को देख सकते हैं। जिन परिवारों के सदस्य एक दूसरे से प्रेम करते हैं और भरोसा करते हैं, वे सुखी हैं, फिर चाहे वे बहुत धनवान न हों। जिन परिवारों के सदस्य एक-दूसरे को लेकर शंकाकुल हैं, वे धनी होने के बावजूद सुखी नहीं हैं। मैंने देखा है कि युवतियां अपने सौंदर्य को बढ़ाने के लिए समय तथा सौंदर्य प्रसाधनों पर धन खर्च करती हैं, पर चाहे आप जो भी लगा लें, यदि आपका चेहरा क्रोध से भरा हुआ हो तो कोई भी उसके प्रति आकर्षित नहीं होगा।
"हमारे निर्वासन के प्रारंभिक दिनों में एक तिब्बती भिक्षु अधिकारी जिसे मैं अच्छी तरह जानता था, ने चीवर त्याग कर विवाह कर लिया। एक बार मैंने उसकी नवविवाहिता पत्नी के सादे दिखने पर उसे छेड़ा और उसने मुझे बताया कि संभवतः उसका चेहरा कोई खास न हो, पर उसका आंतरिक सौंदर्य अनूठा था। मेरे पास कहने को कुछ शेष न था, पर मैंने समझा कि एक सफल विवाह की वास्तविक कुंजी आंतरिक सौंदर्य, सौहार्दता है।"
कट्टिस अहलस्ट्रॉम ने परम पावन के लिए श्रोताओं द्वारा प्रस्तुत प्रश्न पढ़े। पहला यूरोप में आने वाले शरणार्थियों से संबंधित था और उन्होंने पहले मीडिया के सदस्यों से जो कहा था, उसे दोहराया कि अल्प अवधि में सहायता प्रदान करना अच्छा है। परन्तु दीर्घ अवधि में अधिकांश शरणार्थी उन देशों को लौटना चाहते हैं, जहाँ से उन्होंने पलायन किया है। महत्वपूर्ण बात वहां शांति की बहाली है और उन्हें विशेष रूप से युवाओं को प्रशिक्षण देना है ताकि वे अपने देशों के पुनर्निर्माण में सक्षम हों, पर साथ ही यथार्थवादी होना चाहिए कि आप किस तरह की सहायता प्रदान कर सकते हैं।
"हम तिब्बती शरणार्थी ६० वर्षों से निर्वासन में हैं, पर हमारी इच्छा अपने देश लौटने और उसे बहाल करने की है। भारत में निर्वासन में हमने अपने बच्चों को शिक्षित करने और अपनी भाषा, अस्मिता और संस्कृति को जीवित रहने के लिए कार्य किया है, इस आशा के साथ कि जब परिस्थितियां अनुमति दें तो वे उन्हें अपनी मातृभूमि में बहाल कर सकें।"
यह पूछे जाने पर कि समाज में किस तरह घृणा से निपटा जाए परम पावन ने टिप्पणी की, कि अपनी परिष्कृत भाषा और अद्भुत बुद्धि के साथ मनुष्य एकमात्र प्राणी हैं जो युद्ध में संलग्न होता है, जो व्यवस्थित हिंसा है। शेरों और बाघों जैसे शिकारी केवल भूख लगने पर अन्य प्राणियों पर आक्रमण करते हैं। जैसे यदि चिड़ियाघर में, उन्हें भऱपेट खिलाया गया हो तो वे अन्य जानवरों के लिए कोई संकट नहीं हैं।
उन्होंने टिप्पणी की, कि आधुनिक शिक्षा की अपर्याप्तता में से एक यह सिखाने की असमर्थता है कि चित्त की शांति किस तरह प्राप्त करें। चूंकि शारीरिक स्वच्छता शारीरिक स्वास्थ्य को संरक्षित करने के लिए सिखाई जाती है, अतः भावनात्मक स्वच्छता को लागू कर हमारी नकारात्मक भावनाओं से निपटने की शिक्षा से छात्रों को मानसिक रूप से ठीक होने और आंतरिक शांति स्थापित करने में सहायता मिलेगी। उन्होंने कहा कि शिक्षा प्रणाली को धर्मनिरपेक्ष रूप से आंतरिक मूल्यों और नैतिक सिद्धांतों को लागू करने का उत्तरदायित्व उठाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह उनका विश्वास है कि भारत में आधुनिक शिक्षा को चित्त तथा भावनाओं के प्रकार्य की प्राचीन भारतीय समझ के साथ संयोजन करने की बड़ी क्षमता है।
आशावाद के बारे में एक प्रश्न का उत्तर देते हुए परम पावन ने घोषणा की, कि यदि अगली पीढ़ी की शिक्षा और प्रशिक्षण के साथ एक बेहतर, अधिक शांतिपूर्ण विश्व बनाने के प्रयास अब प्रारंभ किए गए तो लगभग ३० वर्षों में वास्तविक परिवर्तन देखा जा सकता है। तिब्बत के संबंध में उन्होंने उल्लेख किया कि वे स्वतंत्रता की मांग नहीं कर रहे, यद्यपि अतीत में यह तीन स्वतंत्र साम्राज्यों में से एक था - चीन, मंगोलिया और तिब्बत। यदि चीनी अधिकारी चीनी संविधान में निर्दिष्ट तिब्बती अस्मिता, संस्कृति और भाषा का सम्मान करें तो तिब्बती चीन के जनवादी गणराज्य के साथ रहकर लाभान्वित हो सकते हैं।
बिर्ते मुल्लर ने आने के लिए परम पावन का धन्यवाद किया, उन्हें एक भेंट प्रस्तुत की और उन्हें बालकनी से देख रहे अपने पोते-बच्चों का अभिनन्दन करने के लिए आमंत्रित किया।
परम पावन मध्याह्न भोजन के लिए आईएम के समर्थकों के साथ सम्मिलित हुए। एन स्वेनसेन ने पुनः ह्यूमानियम धातु और खूबसूरत चीजें-कंगन और अन्य आभूषण, घड़ियां, चक्करदार लट्टू और अन्य खिलौनों के बारे में बात की जिनके लिए इसका उपयोग किया जा रहा है। उन्होंने अहिंसा के प्रतीक का भी उल्लेख किया, एक पिस्तौल जो एक गाँठ में बंधे बैरल के साथ है जो ह्यूमानियम धातु से विभिन्न आकारों में बनाया जाने वाला है। उन्होंने परम पावन और सभी अतिथियों का स्वागत किया।
अपनी अंतिम टिप्पणी में परम पावन ने मध्याह्न के भोजन के लिए अपने मेजबानों का धन्यवाद किया। उन्होंने कहा, "भोजन शारीरिक ऊर्जा उत्पन्न करता है, परन्तु आंतरिक शांति के मार्गदर्शन के बिना शारीरिक ऊर्जा खतरनाक हो सकती है। चूंकि बाह्य निरस्त्रीकरण के साथ आंतरिक निरस्त्रीकरण की आवश्यकता होती है, अतः मैं इस संगठन, आईएम के प्रयासों की सराहना करता हूं जो विश्व में शांति लाने के लिए प्रयास कर रहा है।"
आईएम के मित्रों तथा समर्थकों के साथ तस्वीरों के लिए पोज़ करने के बाद, परम पावन ने अपनी दिनचर्या समाप्त की। कल, वह माल्मो विश्वविद्यालय के छात्रों को संबोधित करेंगे।