बोधगया, बिहार, भारत, आज प्रातः तड़के ही कालचक्र मैदान में पहुँचने पर सर्वप्रथम परम पावन दलाई लामा ने प्रवचन सिंहासन के बगल में एक आसन ग्रहण किया, अवलोकितेश्वर मंडल युक्त मंडप की दिशा के विपरीत दिशा की ओर देखते हुए। आधे घंटे से भी अधिक समय तक उन्होंने स्वयं को तैयार करने के लिए प्रारंभिक प्रक्रियाएँ शुरू की ताकि बाद प्रातः वे अवलोकितेश्वर अभिषेक प्रदान कर सकें। एक बार जब वह पूरा हो गया तो वे सिंहासन पर आसीन हुए।
मंगोलियाई भिक्षुओं के एक समूह ने अपनी मूल भाषा में 'हृदय सूत्र' का उत्साहपूर्ण स्वर में सस्वर पाठ किया। जब उन्होंने समाप्त किया तो उनमें से कइयों ने परम पावन को नीलमणि वर्ण वाला नीला रेशम स्कार्फ प्रदान किया जो मंगोलियाइयों का बहुत प्रिय है। उनके पश्चात जापानियों के एक मिश्रित समूह ने जापानी में 'हृदय सूत्र' का पुनः सस्वर पाठ किया जो 'मोकुग्यो' एक काठ की मछली की घंटी के साथ लयबद्ध था। नमज्ञल विहार के वरिष्ठ भिक्षुओं ने मंडल और बुद्ध के काय, वाक् तथा चित्त के तीन प्रतीक समर्पित किए।
"पहले हम 'बोधिसत्वों के सैंतीस अभ्यासों' का पाठ करेंगे," परम पावन ने घोषणा की। चूँकि लेखक थोंगमे संगपो, ङुल्छु आश्रम में रहते थे अतः उनके नाम के साथ ङुल्छु जोड़ दिया गया। उन्हें 'ज्ञलसे' के रूप में भी संदर्भित किया जाता है, जिसका अर्थ है 'विजेताओं का पुत्र', यह इंगित करने के लिए कि वे एक बोधिसत्व थे। उनके समकालीनों में से एक बुतोन रिनछेन डुब थे, जिनकी बाहों में पीड़ा थी और उन्होंने थोंगमे संगपो को, एक बोधिसत्व के रूप में, आशीर्वाद के तौर पर फूँकने के लिए कहा। संभवतः परिणामस्वरूप उन्होंने कुछ राहत का अनुभव किया।
"थोंगमे संगपो के बारे में एक और कथा में आता है कि किस तरह उनके नीचे गांव में दिए गए समर्पणों को पहाड़ दर्रे पर लूट लिया गया। पर वह इतने सहृदय थे कि उन्होंने चोरों को संकट से बचाने के लिए उन दानकर्ताओं के रास्ते से दूर रहने की चेतावनी दी जिन्होंने उन्हें वे समर्पण दिए थे।"
ग्रंथ का प्रथम छंद शिक्षाओं को सुनने, उन पर चिंतन करने और जो समझा है उस पर भावना करने की सलाह देता है ताकि चित्त उससे भली भांति परिचित हो जाए। परम पावन ने बुद्ध शाक्यमुनि के साहस और अनगिनत कल्पों तक आध्यात्मिक अभ्यास में संलग्न होने के दृढ़ संकल्प पर टिप्पणी की। एक बार जब उन्हें बुद्धत्व प्राप्त हुआ तो उन्होंने अपने अनुभव से मार्ग की शिक्षा दी। जहाँ छंद १० 'परोपकारी व्यवहार के विकास' की सलाह देता हैं, परम पावन ने पूछा, "यदि आप स्वार्थी बने रहें तो आप पर कौन विश्वास करेगा? आप जितने परोपकारी होंगे, उतना ही आप अपने स्वयं के लक्ष्यों की पूर्ति कर पाएँगे।"
उन्होंने लब्रांग टाशी खिल के एक भिक्षु की कहानी सुनाई जो तिब्बत में चीनी सैनिकों द्वारा मारा जाने वाला था। उन्होंने जल्लाद को प्रतीक्षा करने के लिए कहा और अपने आध्यात्मिक गुरु से प्रार्थना की - "मुझे दूसरों की नकारात्मकताओं को स्वयं पर लेने का आशीर्वाद दो और मुझ में जो भी श्रेष्ठ गुण हैं वे उन्हें दे दो।" फिर उन्होंने सैनिक से कहा, "अब आप मुझे गोली मार सकते हैं।"
छंद १५ और १६ 'चित्त शोधन के अष्ट पद' के अनुरूप हैं और छंद १८ व १९ अहंकार के प्रतिकारक हैं। २५ छंद से लेखक छह पारमिताओं - दान, शील, क्षांति, वीर्य, ध्यान, प्रज्ञा की व्याख्या करता है। परम पावन ने ३६वें छंद की प्रथम पंक्ति पर ध्यान आकर्षित किया, 'आप जो भी कर रहे हैं, स्वयं से पूछें,' मेरे चित्त की स्थिति क्या है?' उन्होंने कहा कि थोंगमे संगपो का ग्रंथ उन लोगों के लिए बहुत उपयोगी है, जो क्रोध व मोह वश विचलित हो जाते हैं।
श्रोताओं को बताते हुए कि ज़ोङकर छोदे के भिक्षुओं ने उनसे एक ऐसे ग्रंथ का संचरण देने के लिए कहा था, जिसे उन्होंने लिखा था 'आध्यात्मिक गुरु और अवलोकितेश्वर की अभिन्नता', परम पावन ने इसे पढ़ा। उन्होंने कहा कि तंत्र के अभ्यास में संलग्न होने से पहले शून्यता की कुछ समझ आवश्यक है। उन्होंने उल्लेख किया कि द्वितीय धर्मचक्र प्रवर्तन के दौरान शून्यता की शिक्षा स्पष्ट रूप से दी गई थी जो प्रभास्वरता से संबंधित है। तृतीय धर्मचक्र प्रवर्तन के दौरान तथागतगर्भ या बुद्ध प्रकृति सूत्र में, उन्होंने व्यक्तिपरक प्रभास्वरता की शिक्षा दी।
उन्होंने टिप्पणी की कि चित्त की सभी अवस्थाओं में स्पष्टता और जागरूकता का एक आधार है और वस्तुनिष्ठ प्रभास्वरता और व्यक्तिपरक प्रभास्वरता दोनों अनुत्तर योग तंत्र में व्यवहृत होते हैं। उन्होंने टिप्पणी की कि वस्तुनिष्ठ प्रभास्वरता आंतरिक सत्ता के अभाव से मेल खाता है, नैरात्म्य, जबकि व्यक्तिपरक प्रभास्वरता अन्य से शून्य है।
फिर परम पावन ने उसी पुस्तिका से अभ्यासियों को एक जीवन से दूसरे जीवन में मार्गदर्शन के लिए एक साधना और अवलोकितेश्वर प्रार्थना का पाठ किया।
नागार्जुन की चतुर्वर्गीय संघ की परिभाषा के अनुसार पूर्ण रूप से प्रव्रजित भिक्षु तथा भिक्षुणियाँ साथ ही संवर धारण किए उपासक व उपासिकाएँ, परम पावन ने जो ग्रहण करना चाहते थे उन्हें उपासक संवर देने का प्रस्ताव रखा। इसके बाद उन्होंने बोधिसत्व संवर प्रदान किए जो कि असंग के ग्रंथ बोधिसत्व भूमि में दिए गए शैली के अनुसार थे। परम पावन ने बोधिसत्व संवर ग्रहण करने का स्मरण किया, जो उन्होंने लिंग रिनपोछे से बोधगया में ग्रहण किये थे, वे अब हमेशा नवीनीकरण करते हैं। उस समारोह से पूर्व लिंग रिनपोछे ने उन्हें महाबोधि स्तूप के अंदर बुद्ध की मूर्ति के समक्ष पुनः लिया था।
इन संवरों के संबंध में मुख्य अभ्यास परम पावन ने स्पष्ट किया, "स्वयं को आत्मकेन्द्रितता की अति से आत्मपोषण व्यवहार में डूबने से बचाना है। यदि आप ऐसा कर सकते हैं तो आप १८ मूल पतन या ४२ गौण प्रतिबद्धताओं का उल्लंघन नहीं करेंगे।"
तत्पश्चात परम पावन अवलोकितेश्वर अभिषेक की तैयारी की प्रक्रियाओं में लग गए जो वे कल देंगे। इसमें 'सुरक्षा डोर' और शुद्ध करने वाली कुश घास का वितरण भी शामिल हैं। अपने श्रोताओं को स्मरण कराते हुए कि बुद्ध और उनकी शिक्षा का रूप उदुम्बर पुष्प के सदृश्य दुर्लभ है, परम पावन ने उनसे आग्रह किया वे अनुमोदना करें कि वे उचित निर्देश सुनने और उपासक संवर, बोधिसत्व संवर के साथ अवलोकितेश्वर अभिषेक की प्रारंभिक तैयारियों में सम्मिलित होने में सक्षम हुए हैं।
तिब्बती मंदिर में लौटने के लिए गाड़ी में चढ़ते हुए, परम पावन ने जनमानस की ओर देख अभिनन्दन में हाथ हिलाया, जो ऐसा प्रतीत हुआ मानो कुश घास के खेत के रूप में परिवर्तित हो गया हो।