बोधगया, बिहार, भारत, आज प्रातः जब परम पावन दलाई लामा कालचक्र मैदान के लिए रवाना हुए तो महाबोधि स्तूप के शिखर से तिब्बती मंदिर के प्रांगण में सूर्य चमक रहा था। जैसा उनका दैनिक नियम सा हो गया है, वे मंच के समक्ष श्रोताओं का अभिनन्दन करने के लिए रुके। हँसते हुए उन्होंने ५०० से अधिक मंगोलियायियों की विनोद भाव से नकल की, कि वे किस प्रकार दोनों हाथों से हवा में अपने रेशमी स्कार्फ को लहराते हैं। एक बार पुनः उन्होंने अवलोकितेश्वर अभिषेक प्रदान करने हेतु स्वयं को तैयार करने के लिए छोटे मंडप में रखे चित्रित मंडल के समक्ष आसन ग्रहण किया।
लगभग एक घंटे के उपरांत परम पावन सिंहासन पर बैठे जब कोरियाई लोगों के एक मिश्रित समूह ने मन्द स्वर में कोरियाई में 'हृदय सूत्र' का एक लकड़ी की मछली, जिसे वे मोकटक कहते हैं, की घंटी की लय पर पाठ किया। वियतनामी भिक्षुओं तथा उपासक उपासिकाओं ने मर्मस्पर्शी, प्रफुल्लित स्वर में ‘हृदय सूत्र' का वियतनामी में सस्वर पाठ किया। परम पावन ने विभिन्न प्रस्तुतियों पर टिप्पणी की:
"विगत तीन दिनों में हमने विभिन्न देशों से 'हृदय सूत्र' का सस्वर पाठ सुना है, जहाँ लोग १००० से अधिक वर्षों से इसे दोहरा रहे हैं - वे दीर्घ साल से स्थापित बौद्ध हैं। प्रबुद्धता प्राप्त करने के बाद बुद्ध ने चार आर्य सत्य इत्यादि की देशना दी और उनकी शिक्षा एशिया भर में फैली। समय परिवर्तित हो गया है, पर अभी भी लोगों ने बहुत हद तक अपनी धार्मिक परम्पराएँ बनाए रखी हैं।
"मैं इसकी अनुमोदना करता हूँ, किसी तरह की प्रतिस्पर्धा अथवा धर्मांतरण की भावना से नहीं किन्तु इस २१वीं शताब्दी में भी इसके सराहनीय वैज्ञानिक और तकनीकी विकास के साथ, आध्यात्मिकता व्यावहारिक रूप से लाभदायी हो सकती है। बौद्ध दार्शनिक और मनोवैज्ञानिक विचार आज लोगों के मोह व क्रोध से विचलित चित्त को परिवर्तित करने में सहायक हो सकते हैं।"
परम पावन ने अभिषेक की प्रक्रिया शुरू की जो संभावित रूप से हस्तक्षेप करने वाले सत्वों को समर्पण देने और उन्हें वहाँ से जाने के लिए कहते हुए प्रारंभ होती है। उन्होंने उनसे वहाँ से जाने को लेकर अनिच्छा व्यक्त की क्योंकि तथाकथित हस्तक्षेप करने वाले सत्व भी ऐसे प्राणी हैं जो हमारी ही तरह सुख की खोज में हैं तथा दुःख का सामना नहीं करना चाहते।
उन्होंने टिप्पणी की, कि चूंकि बोधगया एक असाधारण रूप से विशिष्ट स्थान है, अतः यह धर्म के सार बोधिचित्त को विकसित करने के लिए उपयुक्त है। उन्होंने सुझाया कि हम अपने चित्त को चित्त प्रशिक्षण ग्रंथों में रेखांकित किए अनुसार प्रशिक्षित करें, सत्वों को अपनी माँ के समान दयालु रूप में देखते हुए, उनकी दया का स्मरण कर और उससे उऋण होने का प्रयास करते हुए। उन्होंने कहा कि इसी के साथ आत्म-पोषण व्यवहार की हानि तथा दूसरों के लिए सोच पैदा करने के लाभ पर चिन्तन करना उपयोगी है।
परम पावन ने उल्लेख किया कि बौद्ध धर्म की संस्कृत परम्परा का अनुसरण कर रहे अन्य देशों का अवलोकितेश्वर के साथ कुआनइन के रूप में एक संबंध है। महत्वपूर्ण बात देवता के रूप अथवा उनके सिरों अथवा हाथों की संख्या को लेकर नहीं है, बल्कि इस बात को लेकर है कि वे करुणा के सार का साकार हैं। चन्द्रकीर्ति करुणा के महत्व को स्वीकर करते हैं, जब वे अपने ग्रंथ मध्यमकावातर के प्रारंभ में उसकी वंदना करते हैं। करुणा दूसरों के दुःख को सहन करने में असमर्थ चित्त की अवस्था है। यदि हममें अधिक करुणा होगी तो परम पावन ने आगाह किया कि विश्व में अधिक शांति होगी।
"अवलोकितेश्वर का हिम प्रदेश के लोगों और हमारे पड़ोसियों के साथ भी एक विशिष्ट है," परम पावन ने टिप्पणी की। "मुझे तगडग रिनपोछे से पहली बार इस सहस्र भुजा और सहस्र नयन वाले अवलोकितेश्वर का अभिषेक प्राप्त हुआ। बाद में, मैंने इसे पुनः डोमो में लिंग रिनपोछे से प्राप्त किया। मैंने किसी अन्य मंत्र की तुलना में अधिक 'मणि' का पाठ किया है - मैं नित्य प्रति इसका पाठ करता हूँ। यह तथा बोधिचित्त मेरे अभ्यास समर्पण का अंग है।
"ध्यान की यह विशेष पद्धति भिक्षुणी लक्ष्मी की कल्पनाओं-एक महिला अभ्यासी से आती है। हमें स्वयं को स्मरण कराना चाहिए कि अभिव्यक्ति 'गुह्य मंत्र' में, गुह्य का संदर्भ इससे है कि हमें किस तरह अभ्यास करना चाहिए, जबकि मंत्र का संबंध मन की रक्षा करने से है, उदाहरण के लिए, शून्यता पर भावना करना।
अभिषेक के प्रारंभिक भाग में परम पावन ने न केवल पुनः बोधिसत्व संवर प्रदान किए साथ ही श्रोताओं का 'सर्वव्यापी योग' में नेतृत्व किया। जब उन्होंने अभिषेक पूरा कर लिया तो उन्होंने बताया कि इसका अनुरोध नमज्ञल विहार द्वारा किया गया था, जिसकी स्थापना तृतीय दलाई लामा सोनम ज्ञाछो ने की थी। मंगोलिया के लोग अभिषेक तथा प्रवचन के सह-प्रायोजक थे।
अभिषेक के पश्चात नमज्ञल विहार और मंगोलियाई समूह के अनुरोध पर परम पावन के लिए दीर्घायु समर्पण समारोह हुआ। उस बिंदु पर जहाँ परम पावन को एक विशाल अनुष्ठान रोटी प्रस्तुत की गई मंगोलियाई लोगों ने सावधानी से व्यवस्थित ऊपरी भाग पर चीज़ से भरे कप - से प्रस्तुत किया। मंडल समर्पण के लिए लामा गेगीन ने प्रशस्ति पाठ किया जिसमें न केवल तिब्बतियों की ओर से परम पावन की उपलब्धियों का सर्वेक्षण किया गया था, पर मंगोलियाई को समर्थन देना भी था जिसमें शुगदेन अभ्यास को लेकर उनका कट्टर निरुत्साह भी शामिल था। इस अवसर का समापन मंगोलियाई संगीतकारों के एक समूह के उत्साहपूर्ण कार्यक्रम से हुआ जिसने श्रोताओं का मन मोह लिया।
परम पावन ने उन सभी को धन्यवाद दिया जिन्होंने उनके लिए दीर्घायु समर्पण समारोह में भाग लिया था और उन्हें बताया कि उनकी आस्था और सच्चाई की शक्ति निश्चित रूप से प्रभावी होगी। उन्होंने विशेष रूप से मंगोलियाई लोगों को धन्यवाद दिया, जिन्होंने भाग लेने के लिए इतने प्रयास किए थे। जैसा कुछ श्रोता घर लौटने पर विचार कर रहे हैं, उन्होंने उन्हें शांति से जाने, प्रतीत्य समुत्पाद पर चिन्तन करने और 'ओम मणि पद्मे हुँ' का पाठ करने की सलाह दी।
मध्याह्न के अंत में, बिहार के मुख्यमंत्री माननीय नीतीश कुमार परम पावन से गदेन फेलज्ञे लिंग में उनके निवास पर औपचारिक रूप से मिलने आए।