बोधगया, बिहार, भारत, कल अंधेरा होने के बाद बोधगया पहुँचने के उपरांत परम पावन दलाई लामा की पहली इच्छा एक तीर्थयात्री के रूप में अपना सम्मान व्यक्त करने के लिए आज महाबोधि मंदिर की यात्रा थी। वे तिब्बती मंदिर से महाबोधि मंदिर परिसर के पश्चिमी द्वार तक गाड़ी से गए। बोधगया मंदिर प्रबंधन समिति के सदस्यों और सक्या गोंगमा ठिज़िन रिनपोछे, जो यहाँ २६वें सक्या मोनलम में भाग ले रहे हैं, ने उनका स्वागत किया।
<परम पावन सीढ़ियों से नीचे उतरे और अपने जूतों के स्थान पर सफेद चप्पल पहनी। फिर वे मंदिर के पश्चिमी भाग में गए जहाँ बोधि वृक्ष वज्रासन के पीछे स्थित है। यह वह स्थान है जहाँ बुद्ध शाक्यमुनि बैठे थे जब २५०० वर्षों से पहले उन्हें सम्यक् संबुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी। परम पावन ने सक्या मोनलम के अंग के रूप में स्थापित समर्पणों के बीच एक दीप प्रज्ज्वलित किया। फिर अंदर के प्राकार में उन्होंने मंदिर की प्रदक्षिणा की, उन्होंने मुस्कुराते हुए लोगों की ओर देख हाथ हिलाकर अभिनन्दन किया, जो पत्थर की रेलिंग से झांक रहे थे।
महाबोधि मंदिर के द्वार पर परम पावन रुके और प्रवेश करने से पूर्व बुद्ध प्रतिमा के समक्ष तीन बार साष्टांग प्रणाम किया। उन्होंने सम्यक् संबुद्ध की विख्यात प्रतिमा का निरीक्षण किया तथा अन्दर पहुँचकर पुनः नमस्कार किया और कई भिक्षुओं के साथ बैठ गए। उन्होंने साथ साथ में प्रार्थनाओं व स्तुतियों का पाठ किया जिनमें 'त्रिरत्न अनुस्मृति', 'प्रतीत्य समुत्पाद स्तुति', '१७ नालंदा पंडितों की स्तुति', 'सत्य दुंदुभी नाद बुद्ध प्रार्थना', 'बुद्ध देशनाओं के व्यापी प्रसार के लिए प्रार्थना', प्रतीत्य समुत्पाद धारणी, 'सत्य के शब्द' और परिणामना के श्लोक सम्मिलित थे।
जब वह मंदिर से बाहर आए तो परम पावन मुस्कुराए और आसपास के बगीचे में खड़े जनमानस को देख अभिनन्दन में हाथ हिलाया। वे मुड़े और एक बार फिर बुद्ध के प्रति श्रद्धा अर्पित की और फिर प्रदक्षिणा जारी रखी।मार्ग में साथी तीर्थयात्रियों का अभिनन्दन करते हुए, वे पश्चिम की ओर पहुँचे, पुनः वज्रासन के समक्ष नतमस्तक हुए, प्रवेश द्वार की ओर की सीढ़याँ चढ़ी, जनमानस का अभिनन्दन किया, गाड़ी में सवार हुए और तिब्बती मंदिर-गदेन फेलज्ञे लिंग लौट गए।