बोधगया, बिहार, भारत, बोधगया की साधारण रूप से भीड़ भाड़ युक्त सड़कें लगभग खाली थीं और प्रवचन स्थल क्रमशः भर रहा था जब आज प्रातः परम पावन दलाई लामा प्रवचन स्थल पर प्रातः ७ बजे के किंचित समय से पहले पहुँचे। उन्होंने शीघ्र पहुँचने वालों का अभिनन्दन किया तथा तेरह देव वज्रभैरव अभिषेक की तैयारी प्रारंभ करने हेतु मंडल मंडप के समक्ष बैठे। नमज्ञल विहार के दो भिक्षु अनुष्ठान हेतु पाठ करने में उनका साथ देने के लिए उनके साथ बैठे।
एक डेढ़ घंटे बाद उन्होंने सभा को बताया कि उन्हें किंचित ठंड लग गई है।
"मुझे धर्मशला छोड़े डेढ़ महीना हो गया है। मैं मुंबई, डेपुंग, गदेन और सेरा में सार्वजनिक व्याख्यान तथा प्रवचन देता आ रहा हूँ, जिसके कारण मुझे थकान का अनुभव हो रहा है। कल मैं एक लघु अंतराल ले रहा हूँ और परसों, चूँकि यह छोटा है, मैं एकल नायक वज्रभैरव अभिषेक दूँगा, पर मैं चक्रसंवर अभिषेक किसी अन्य समय दूँगा।
"यह मानव जीवन मुक्ति के मार्ग में संलग्न होने का सर्वोत्तम अवसर प्रदान करता है। भौतिक दृष्टिकोण से हम मृत्यु का सामना करते हैं और मानसिक रूप से हम अज्ञानता से अभिभूत होते हैं। यमंतक इन दोनों स्थितियों के विपरीत है। नागार्जुन ने कहा कि तीन विष क्रोध, मोह व अज्ञान सत्य को लेकर हमारी भ्रांति से उत्पन्न होते हैं। वस्तुएं हमें स्वतंत्र रूप से अस्तित्व ली हुईं प्रतीत होती हैं और हम इस विचार से चिपके रहते हैं। मात्र बुद्ध ने प्रतीत्य समुत्पाद के सत्य की शिक्षा दी। और उसी के आधार पर हम सत्वों पर केन्द्रित कर करुणा विकसित करते हैं और प्रबुद्धता पर केंद्रित कर प्रज्ञा का विकास करते हैं। कहा जा सकता है कि ये दो पंख हैं, जो एक बोधिसत्व को दूसरे किनारे पर जाने की अनुमति देता है।"
परम पावन ने टिप्पणी की कि बुद्ध की सामान्य शिक्षाएँ सार्वजनिक रूप से दी गई थीं, परन्तु तंत्र गुह्य रूप से दिया गया। इसका कारण यह नहीं था कि बुद्ध इन विशेष निर्देशों को साझा नहीं करना चाहते थे, परन्तु चूँकि उनका संबंध नाड़ियों ऊर्जा और बूंदों से है और इसलिए बिना किसी प्रशिक्षण के उनके साथ संलग्न होना खतरनाक हो सकता है।
कई वर्ष पूर्व विद्वान भारतीय प्रोफेसर एलएम जोशी ने परम पावन को बताया था कि भारत में बौद्ध धर्म का ह्रास होने का कारण यह था कि भिक्षु धनवान बन गए थे और जनता ने उन्हें अस्वीकार कर दिया और वे अपना विश्वास खो बैठे। दूसरा कारण तंत्र का दुरुपयोग था - अपने लिए एक साथी लेना विशुद्ध विनय के पालन से मेल नहीं खाता है। अंत में, राजाओं और अन्य स्थानीय शासकों ने क्रमशः अबौद्ध परम्पराओं के प्रति अपना समर्थन बढ़ा दिया। परम पावन ने सुझाया कि अतः गुह्य रूप में तंत्र का अभ्यास करना भी सही विवेकशीलता का विषय है।
फिर उन्होंने अभिषेक प्रदान करना प्रारंभ कर दिया जिसको उन्होंने अथक ऊर्जा से पूरा किया।