बांबोलिम, गोवा, भारत - गत शनिवार को लद्दाख से लौटने के उपरांत परम पावन दलाई लामा ने दिल्ली में दो दिन बिताए, जिस दौरान कई लोग उनसे मिलने आए। उनमें थाई-तिब्बती पारस्परिक आदान प्रदान कार्यक्रम के सदस्य थे।
परम पावन ने उनसे कहा, "मैं बहुत खुश हूं कि हम थाई और तिब्बती परंपराओं के बीच घनिष्ठ संबंध बनाने की एक नई पहल कर रहे हैं। १९६० के दशक में हमने बैंकाक में चार भिक्षु भेजे और उन्होंने थाई भाषा इत्यादि सीखी परन्तु ताल्लुक समाप्त हो गए।
" बौद्ध धर्म सिखाता है कि हम अपने कार्यों के लिए उत्तरदायी हैं। सबसे पहले तो बुद्ध हम जैसे सामान्य व्यक्ति था, परन्तु दीर्घ काल तक गहन अभ्यास के परिणामस्वरूप उन्हें अंततः बोधगया में बुद्धत्व प्राप्त हुई। उन्होंने सिखाया कि हम सभी में बुद्ध प्रकृति है और केवल प्रार्थना नहीं अपितु चित्त के प्रशिक्षण पर बल दिया।
जब ८वीं शताब्दी शांतरक्षित तिब्बत में बुद्ध की शिक्षाएँ लेकर आए तो उन्होंने पहले सात भिक्षुओं को प्रव्रर्जित कर, विनय के अभ्यास पर बौद्ध धर्म की नींव रखी। आज तक, हमने अन्य बौद्ध परंपराओं में पाए जा रहे विनय के अभ्यास को भी बनाए रखा है।"
थाई पक्ष के प्रतिनिधियों ने परम पावन को बताया कि वे फरवरी २०१९ में बोधगया में अनुबंधित बौद्ध धर्म पर दो दिवसीय सम्मेलन आयोजित करने का प्रस्ताव रखते हैं। इसका उद्देश्य यह पता लगाना होगा कि किस तरह २१वीं शताब्दी में आम जनता के लिए बौद्ध ज्ञान और सलाह अधिक उपलब्ध हो सकता है। परम पावन ने अपना प्रोत्साहन और समर्थन दिया।
नोबल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी के साथ एक अन्य वार्तालाप में, परम पावन ने इस बारे में बात की कि वे किस तरह समकालीन भारत में प्राचीन भारतीय ज्ञान को पुनर्जीवित करने के प्रयास के लिए प्रतिबद्ध हैं।
"मात्र भारत ही चित्त के प्रकार्य की समझ और विनाशकारी भावनाओं से निपटने को आधुनिक शिक्षा और भौतिक विकास हेतु आगे ले जाने को सम्बद्धित कर सकता है। मुझे लगता है कि आज प्राचीन भारतीय ज्ञान को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है। इस तरह का ज्ञान चित्त की अधिक व्यापक शांति में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है।"
सत्यार्थी ने परम पावन को बताया कि उनका मानना है अन्याय को लेकर न्यायपूर्ण रोष ऊर्जा का सकारात्मक स्रोत हो सकता है। परम पावन ने उत्तर दिया कि क्रोध वास्तव में ऊर्जा को मुक्त कर सकता है, पर यह विचारहीन और अस्थिर होता है। परन्तु उन्होंने स्वीकार किया कि शक्तिपूर्ण करुणा जैसी कोई वस्तु है।
महात्मा गांधी के जन्म की १५०वीं वर्षगांठ मनाने के प्रस्तावों के संदर्भ में परम पावन ने सहमति व्यक्त की कि भारत को विश्व में अहिंसा को प्रस्तुत करने में अग्रणी होना चाहिए। उन्होंने टिप्पणी की, कि स्वतंत्रता संग्राम के समय ऐसे लोग थे जिन्होंने अहिंसा को दुर्बलता के संकेत के रूप में खारिज कर दिया, जबकि आज अधिक से अधिक लोग इस बात की सराहना करते हैं कि यह वास्तव में शक्ति का प्रतीक है। उन्होंने स्पष्ट किया कि प्रेरक कारक करुणा होना चाहिए, जबकि उससे उत्पन्न हुई क्रिया और आचरण अहिंसा है।
सत्यार्थी ने परम पावन को बताया कि वे इस बात में रुचि रखते थे कि करुणा को किस प्रकार एक सामाजिक आंदोलन बनाया जाए।
पर पावन ने उत्तर दिया "यदि आप स्थिति की यथार्थवादी समझ रखते हैं और उस पर व्यापक परिप्रेक्ष्य लेते हैं तो आप सकारात्मक परिणामों की आशा कर सकते हैं, समस्याएँ तब उत्पन्न होती हैं जब आप स्थिति का अवास्तविक और संकुचित विचार करते हैं।"
आज प्रातः परम पावन ने दिल्ली से गोवा के लिए प्रस्थान किया जहां वे कल गोवा इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट में उसकी २५वीं वर्षगांठ समारोह के हिस्से के रूप में व्याख्यान देंगे। दाबोलिम हवाई अड्डे आगमन पर संस्थान के निदेशक, अजीत पारुलेकर और बोर्ड के अध्यक्ष अशोक चन्द्र और स्थानीय विधायक ने उनका स्वागत किया। हवाई अड्डे से परम पावन अपने होटल गए, जहां उन्होंने विश्राम के लिए दिनांत किया।