यूपोर्ट बीच, सीए, संयुक्त राज्य अमेरिका - आज प्रातः एनाहेम शहर के स्कूल के प्रधानाध्यापक और शिक्षक, महापौर टॉम टेट के मित्र परम पावन दलाई लामा से मिलने आए। परम पावन के परिचय में महापौर टेट ने उल्लेख किया कि किस तरह सिटी ऑफ काइंडनेस प्रोजेक्ट और वन मिलियन एक्ट ऑफ काइंडनेस अभियान में भाग लेने के कारण एनाहिम के विद्यालयों में सकारात्मक परिवर्तन आया है। उन्होंने स्मरण किया कि जब श्रद्धेय तेनेज़िन दोनदेन ने सुना कि वे उन्हें परम पावन से मिलने धरमशाला लेकर आए, जिसके लिए उन्होंने उन्हें धन्यवाद दिया।
"सबसे पहले, मैं उन लोगों से मिलने का अवसर पाकर अत्यंत प्रसन्न हूँ जो सक्रिय रूप से शिक्षा में शामिल हैं," परम पावन ने प्रारंभ किया। "हमारा आम लक्ष्य एक सुखी मानवता का निर्माण करना है। इस शताब्दी का बड़ा भाग अभी भी हमारे समक्ष है। मेरा मानना है कि यदि हम इस पर एक स्पष्ट दृष्टिकोण के साथ कार्य करना प्रारंभ करें तो शताब्दी का उत्तरार्ध अधिक सुखी व अधिक शांतिपूर्ण हो सकता है।
"इन दिनों यदि किसी व्यक्ति को शेर या हाथी मार डालता है तो यह खबर बन जाती है, पर किसी अन्य इंसान द्वारा मारा जाना अब असाधारण नहीं है। इस बीच, प्रत्येक मानव को सुखी होने के अधिकार के बावजूद, हम टेलिवज़न पर भुखमरी से मरने वाले कई बच्चों के चित्र देखते हैं। हम उदासीन कैसे रह सकते हैं? ये लोग हमारे भाई-बहन हैं। हमें कुछ करने की आवश्यकता है।
"हिंसा दीर्घ काल से मानव इतिहास का अंग रही है, पर अतीत में चूँकि, लड़ने में हाथों से काम लिया जाता था, इसका प्रभाव सीमित था। आज, हमारे पास सामूहिक विनाश के हथियार हैं, जैसे परमाणु हथियार, जो इतने शक्तिशाली हैं कि पूरी मानवता संकट में है। हिंसा क्रोध से आती है और क्रोध हमारे सोचने की शक्ति पर हावी हो जाता और जो घटित हो रहा है उसे हम उचित रूप से समझ नहीं पाते कि क्या हो रहा है। साथ ही क्रोध भय और चिंता से संबंधित है।
"हमें यह सीखने की आवश्यकता है कि उन सकारात्मक भावनाओं को कैसे विकसित किया जाए, जो क्रोध और भय जैसी विनाशकारी भावनाओं का प्रतिकार करते हैं। उदाहरणार्थ, करुणा आत्मविश्वास और पारदर्शी ढंग से कार्य करने की क्षमता लाती है। यह विश्वास को सशक्त करता है जो मैत्री का आधार है।
"सभी प्रमुख धार्मिक परम्पराएँ प्रेम के विषय में सिखाती हैं और इस संदेश की रक्षा के लिए वे सहिष्णुता और क्षमा की भी सलाह देते हैं। परन्तु इन दिनों, जब १ अरब लोग दावा करते हैं कि उनकी कोई धार्मिक आस्था नहीं है तो मात्र आस्था पर निर्भर होने के बजाय हमें अपनी बुद्धि का उपयोग कर जांच करनी है कि क्या क्रोध कोई लाभ देता है। यदि हम ईमानदार हों तो देखेंगे कि क्रोध हमारे चित्त की शांति को नष्ट कर देता है। सौभाग्य से, मनुष्य के रूप में हमारे गुणों में से एक, सौहार्दता जैसे मानवीय मूल्यों को सुदृढ़ करने की हमारी क्षमता है।
"शिक्षा में हमें पता लगाना चाहिए कि उन मानवीय मूल्यों को किस तरह निर्मित किया जाए, जो वैज्ञानिक निष्कर्ष, आम अनुभव और सामान्य ज्ञान पर आधारित हैं। भारत और यहाँ एमरी विश्वविद्यालय द्वारा विद्यालयों में इस अभ्यास को लाने के लिए एक पाठ्यक्रम तैयार किया जा रहा है। हम यह सिखाने का उद्देश्य रखते हैं कि मानसिक स्तर पर दया और करुणा स्थायी आनंद को जन्म देते हैं। वे भय कम करते हैं।"
परम पावन ने समझाया कि हम मात्र आंतरिक शांति के आधार पर २१वीं शताब्दी को शांति का युग बनाएंगे। परन्तु उन्होंने कहा कि इसके लिए हम मात्र प्रार्थना द्वारा क्रोध पर काबू न कर पाएंगे और चित्त की शांति स्थापित नहीं कर सकेंगे। प्रार्थना मात्र से अग्नि का प्रकोप बुझता नहीं, यह कहीं अधिक महत्वपूर्ण है कि पहले इसके भड़कने को रोका जाए।
श्रोताओं के प्रश्नों के उत्तर देते हुए, परम पावन ने अपना दृष्टिकोण स्पष्ट किया कि प्राचीन भारतीय मनोविज्ञान आज प्रासंगिक है, क्योंकि यह स्पष्ट रूप से बताता है कि किस तरह सकारात्मक भावनाओं को विकसित किया जाए और नकारात्मक भावनाओं को कम किया जाए। उन्होंने ध्यानाकर्षित किया कि हम सब में, यहाँ तक कि जानवरों में भी करुणा का मूल बीज है, दूसरों की पीड़ा को दूर करने की इच्छा, पर इसे बढ़ाने और उस बिंदु पर विस्तार करने के लिए जहां हम वास्तव में उस पर कार्य करें, उसके लिए प्रशिक्षण की आवश्यकता है।
उन्होंने अलग-अलग उपायों को अपनाने और जो हम पारस्परिक रूप से सीखते हैं उसे साझा करने की सिफारिश की। उन्होंने यह भी टिप्पणी की कि क्रोध और आक्रामकता कभी-कभी सुरक्षात्मक लगते हैं क्योंकि वे किसी विशेष स्थिति में ऊर्जा लाते हैं, पर जो समझने की आवश्यकता है वह यह कि ऐसी ऊर्जा अंधी होती है। उन्होंने बल देते हुए कहा कि विभिन्न दृष्टिकोण और विभिन्न बिंदुओं पर विचार करने में सक्षम होने के लिए शांत चित्त आवश्यक है।
टिप्पणी करते हुए कि अधिक से अधिक लोग दयालुता पर ध्यान दे रहे हैं, ऐनाहिम में एक दयालुता का शहर और लुइविल में करुणाशील शहर इस बात का प्रमाण है कि शिक्षा में एक क्रांति हो रही है। उन्होंने एनाहिम के शिक्षकों से उस क्रांति का नेतृत्व करने में सहायता करने के लिए कहा।
मध्याह्न में नोआ मैकमोहन के आग्रह पर ऑरेंज काउंटी व्यापार जगत के नेताओं से भेंट करते हुए परम पावन ने अपने पहले विषय को उठाया कि महान भौतिक विकास के बावजूद लोग चित्त की शांति प्राप्त करने में अधिक रुचि दिखा रहे हैं। उन्होंने पुनः बल देते हुए कहा कि यदि हम इस समय प्रयास करें तो शताब्दी के उत्तरार्ध तक एक अधिक शांतिपूर्ण विश्व के उभरने की कल्पना संभव है। उन्होंने दोहराया कि वैज्ञानिकों द्वारा प्रकटित निष्कर्ष कि आधारभूत मानव प्रकृति करुणाशील है, आशा का एक स्रोत है। उन्होंने मुस्कुराने की क्षमता की शक्ति का उल्लेख किया।
विश्व में शांति की बात ने परम पावन को वैश्विक विसैन्यीकरण की आवश्यकता पर चर्चा के लिए प्रेरित किया। उन्होंने खेदपूर्वक शस्त्रों पर खर्च की जा रही राशि और साथ ही पारस्परिक विनाश की नीति के संकट की भी बात की। बिना किसी सीमा के एक वैश्विक दुनिया स्वप्न का उल्लेख करते हुए, वे सोच रहे थे कि क्या उनका यह विचार अवास्तविक माना जाएगा।
उन्होंने घोषित किया कि विश्व में इस में रह रहे ७ अरब लोगों का है, जैसे अमरीका, अमरीकियों का है। उन्होंने पेरिस समझौते से अमेरिका के पीछे हटने पर खेद व्यक्त किया। उन्होंने अनुमान लगाया था कि यदि अधिक महिला नेताएँ हों तो विश्व और अधिक शांतिपूर्ण और सहयोगी स्थान हो सकता है।
यह कहने के लिए चुनौती दिए जाने पर कि क्या धर्म की उपयोगिता का समय समाप्त हो गया है उन्होंने धार्मिक परम्पराओं के तीन पक्षों का उल्लेख किया। धार्मिक पक्ष में प्रेम व करुणा आता है। दार्शनिक पक्ष, उदाहरण के लिए, एक सृजनकर्ता में विश्वास अथवा हेतु फल में विश्वास इस अभ्यास का समर्थन करता है। परन्तु सामाजिक मान्यताओं से प्रभावित सांस्कृतिक पक्ष भी है। जब इस पक्ष को तारीख से बाहर माना जाए तो उन्होंने कहा कि इसे अनुकूलित करना चाहिए। उनकी अंतिम टिप्पणी थी कि जहाँ लोग शारीरिक रूप से आकर्षक दिखने के लिए बहुत कुछ करते हैं, पर आंतरिक सौंदर्य कहीं अधिक महत्वपूर्ण है और स्थायी संबंधों के लिए एक सशक्त आधार है।
कल परम पावन मिनायापोलिस की यात्रा करने के लिए तड़के ही रवाना हो जाएँगे।