लेह, लद्दाख, जम्मू और कश्मीर, ५ जुलाई २०१७ - बीच बीच में मेघाच्छादित आकाश के नीचे जो दहकते सूर्य से कुछ रक्षा प्रदान कर रहा था, परम पावन दलाई लामा शांत शिवाछेल फोडंग लेह का बाहरी क्षेत्र, जहाँ वे रहते हैं, से शहर के केन्द्र के लिए रवाना हुए। मार्ग लद्दाखियों और तिब्बतियों के समूहों से पंक्तिबद्ध था, जिसमें स्कूल की वर्दी में स्कूली बच्चों की समूची कक्षाएं शामिल थीं, जो मुस्कुराते हुए चेहरे और करबद्ध होकर उनके वहां से गुज़रते समय उनका अभिनन्दन करने हेतु उत्सुक थे।
परम पावन लेह बाजार में अपनी गाड़ी से बाहर निकल कर जोखंग द्वार की ओर चले और जाते समय लोगों के साथ हाथ मिलाते हुए शुभकामनाओं का आदान-प्रदान किया। वे द्वार के अंदर बैठे वयोवृद्धों और दुर्बल लोगों से विशेष रूप से मिले और मुख्य मंदिर के मार्ग में पुराने मित्रों का अभिनन्दन किया। मंदिर के अंदर पहुँचकर उन्होंने मैत्रेय, बुद्ध शाक्यमुनि, अवलोकितेश्वर और अन्य मूर्तियों के समक्ष अपना सम्मान व्यक्त किया और वेदी की ओर उन्मुख होकर अपना आसन ग्रहण किया। बुद्ध की प्रार्थना का पाठ हुआ और चाय प्रस्तुत की गई। परम पावन इस बात पर प्रसन्न थे कि वहाँ एकत्रित अधिकांश इस कंठस्थ पाठ में सम्मिलित हुए थे और उन्होंने पूछा कि क्या वे हृदय सूत्र भी जानते थे, जिसका भी पाठ हुआ।
भोट भाषा में बोलते हुए जिसका लद्दाखी में अनुवाद किया गया, परम पावन ने कहा:
"प्रत्येक वर्ष, निर्माण और विकास हुआ है। और अधिक दुकानें और अधिक विद्यालय खुल गए हैं। लद्दाख में प्रगति हो रही है। परन्तु यूरोप और अमेरिका में उन्नत भौतिक विकास मात्र आंशिक रूप से सफल रहा है क्योंकि इस तरह के विकास से जुड़ी प्रतिस्पर्धा, अभिमान और अहंकार भय, चिंता और दुःख भी लेकर आते हैं।
"विश्व की विभिन्न धार्मिक परम्पराएँ सभी प्रेम और करुणा, सहिष्णुता, संतोष और आत्मानुशासन की शिक्षा देते हैं। उन सभी ने लाखों की सहायता की है। बौद्ध धर्म को भी निम्नलिखित छंद में संक्षेपित किया जा सकता है: 'नकारात्मक कर्म का परित्याग करें; सम्यक पुण्य निर्मित करें; अपने मन को वश में करें। यही बुद्ध देशना है।' यह जिस तरह अन्य परम्पराओं से अलग है, वह इसके दार्शनिक दृष्टिकोण में है। यहाँ लद्दाख में, हम तिब्बतियों की तरह, आप नालंदा परम्परा का पालन करते हैं। यह एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाता है, जो कि कारणों और तर्कों के माध्यम से वस्तुओं का परीक्षण है।
"मेरे धर्म भाइयों और बहनों, आप भी नागार्जुन, दिङ्नाग और धर्मकीर्ति जैसे आचार्यों का अनुपालन करते हैं जिन्होंने बौद्ध दर्शन की व्याख्या तर्कसंगत रूप से की। उन्होंने बुद्ध की उनकी सलाह को हृदयगंम किया कि जो उन्होंने शिक्षा दी है उसे उनके प्रति सम्मान के कारण न स्वीकारें। उन्होंने अपने अनुयायियों को उनकी शिक्षा की जांच इस तरह करने के लिए प्रोत्साहित किया जिस तरह एक स्वर्णकार सोने का परीक्षण करता है और उसे तभी स्वीकार करता है जब वह खरा उतरता है। नालंदा परम्परा की एक अनोखी विशेषता यह है कि इन आचार्यों ने शास्त्रों की परख की और निष्कर्ष निकाला कि कुछ तो शब्दशः स्वीकार किए जा सकते हैं, जबकि दूसरों को व्याख्या की आवश्यकता है।
"जब कंग्यूर और तेंग्यूर की बात आती है तो हम उनकी विषय सामग्री को तीन रूपों से वर्गीकृत कर सकते हैं - बौद्ध विज्ञान, दर्शन और धर्म। धार्मिक पक्ष मात्र बौद्धों के लिए रुचि रखता है। परन्तु चित्त विज्ञान, तर्कशास्त्र और दर्शन जैसे कि सत्य द्वय की व्याख्या, जो इस से संबंधित है कि वस्तुएँ किस तरह दृश्य होती हैं और उनका यथार्थ रूप कैसा है, का अध्ययन किसी के भी द्वारा जो रुचि रखता है शैक्षणिक रूप से किया जा सकता है फिर चाहे वे बौद्ध हों अथवा न हों।
"मेरे लद्दाखी भाइयों और बहनों, मैं आशा करता हूँ कि आप, युवा और वृद्ध दोनों, पर विशेष रूप से युवा पीढ़ी, इनका तदनुसार अध्ययन करेंगे। चलिए अब समवेत रूप में मुनि मंत्र, बुद्ध के मंत्र का पाठ करें।"
मुस्कुराते, मजाक करते और मित्रों का अभिनन्दन करते हुए, परम पावन जोखंग से रवाना हुए और शांति के उद्यान के राजभवन शिवाछेल फोडंग लौटे।