परम पावन 14 वें दलाई लामा
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यंग प्रेसिडेन्ट्स ऑर्गनाइजेशन के सदस्यों के साथ बैठक १९/जून/२०१७

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यूपोर्ट बीच, सीए, संयुक्त राज्य अमेरिका - आज प्रातः तिब्बती और अन्य शुभचिंतक द्वारा उन्हें सैन डिएगो से विदा करने के लिए एकत्रित होने का पश्चात परम पावन दलाई लामा तड़के ही मार्ग द्वारा निकल पड़े और समय रहते न्यूपोर्ट बीच पहुँच गए। लगभग १२० तिब्बती, वियतनामी, चीनी और अन्य मित्रों सहित और प्रमुख रूप से ऐनाहिम के महापौर उनके स्वागत के लिए उपस्थित थे। तिब्बतियों ने 'छेमा छंगफू’ पारंपरिक स्वागत तैयार किया था, जिसमें से अतिथि चम्पा और अनाज की चुटकी लेता है और मंगल कामनाएँ करते हुए हवा में बिखेरता है जिसके बाद छंग के एक प्याले में उंगली डुबोता है। परम पावन ने ऐसा किया और महापौर टेट को निर्देशित किया कि इसे किस तरह किया जाए।

यंग प्रेसिडेंट्स ऑर्गनाइजेशन, जो कि युवा मुख्य अधिकारियों का एक वैश्विक नेटवर्क है, के स्थानीय अध्याय के सदस्यों के साथ भेंट कर, परम पावन के पुराने मित्र महापौर मेयर टैट ने उनका परिचय दिया और परम पावन ने हमेशा की तरह अपना संबोधन प्रारंभ किया।
 
"मैं सदैव जिन लोगों से बात करता हूँ उन्हें भाइयों और बहनों के रूप में संबोधित कर प्रारंभ करता हूँ, क्योंकि मेरा मानना है कि हम सात अरब लोग भाई और बहनें हैं। हम सब का जन्म एक ही तरह से होता है और हम अपने माता और पिता के स्नेह और विशेष रूप से अपनी माताओं के प्रेम से पोषित होते हैं। करुणाशील प्रेम धर्म के कारण नहीं आता; वैज्ञानिकों का कहना है कि आधारभूत मानव प्रकृति करुणाशील है। यह आशा का संकेत है, यदि हम अपनी अद्भुत बुद्धि को ठीक तरह से लागू करते हैं और इसे उचित रूप से पोषित करते हैं।
 
"दुःख की बात है कि आज हमारी शिक्षा व्यवस्था बाहरी लक्ष्यों पर ध्यान देती है और आंतरिक विश्व पर अपर्याप्त ध्यान देती है। चर्च इस ओर ध्यान दिया करता था, पर आज विद्यालयों को ऐसे नैतिक मार्गदर्शन प्रदान करने की आवश्यकता है।

"आपके साथ पारस्परिक बातचीत करने का यह अवसर पाकर मुझे प्रसन्नता है और मै अपने परिचय के लिए मेरे पुराने मित्र मेयर टॉम टेट का आभारी हूँ। उन्होंने जिस तरह अपने शहर में दयालुता को बढ़ावा देने के लिए स्वयं को समर्पित किया है, मैं उसकी सराहना करता हूँ और उन्हें और उसकी पत्नी का धन्यवाद करना चाहूँगा।
 
"मैं आपके साथ कुछ बातचीत करना पसंद करूँगा, पर इसके पूर्व मैं अपनी कुछ गहन चिंताओं की रूपरेखा देना चाहूँगा। मैं इस विचार को लेकर प्रतिबद्ध हूँ कि यदि मानवता सुखी और संतुष्ट है तो प्रत्येक सुखी होगा। हम सामाजिक प्राणी हैं। हमारा अस्तित्व समुदाय पर निर्भर करता है इन दिनों हम एक वैश्विक अर्थव्यवस्था का अंग हैं। हम जलवायु परिवर्तन जैसी वैश्विक समस्याओं का सामना करते हैं, जिनसे निपटने के लिए हमें सहयोग और एक साथ काम करना है। कभी कभी असहमति पैदा हो सकती है, पर हम उन पर काबू पा सकते हैं।
 
"उस दिन जब मैं मेयो क्लिनिक में था, मैंने देखा कि रोगियों के साथ उनकी पृष्ठभूमि, राष्ट्रीयता, नस्ल या विश्वास के बारे में प्रश्न किए बिना उपचार की आवश्यकता के दृष्टिकोण से ही व्यवहार किया जा रहा है। हमारी अधिकांश समस्याएँ हमारे बीच इस तरह के गौण अंतर पर अत्यधिक बल देने से प्रारंभ होती हैं। एकमात्र उपाय यह स्मरण रखना है कि हम मानव होते हुए मूल रूप से एक समान हैं। हमें मानवता की एकता पर बल देने की आवश्यकता है।
 
"सभी प्रमुख धार्मिक परम्पराएँ प्रेम, क्षमा और सहनशीलता का एक ही संदेश सम्प्रेषित करती हैं। वे विभिन्न दार्शनिक बिंदुओं को अपनाते हैं, लेकिन उनका उद्देश्य एक ही है। वे सांस्कृतिक पक्षों को भी अपनाते हैं, जो अलग-अलग समय, स्थान और परिस्थितियों को दर्शाते हैं, जहाँ उनका जन्म हुआ था। इनमें यहूदी उक्ति 'आंख के लिए एक आंख', शरीया कानून का मुस्लिम गठन, पुरुष प्रभुत्व की सामान्य प्रथा और भारत में जाति व्यवस्था का आधिपत्य और भेदभाव शामिल हैं।

"ये प्रथाएँ वास्तव में धार्मिक शिक्षण में आधारित नहीं हैं और जहाँ वे अनियंत्रित हैं और उपयोगी नहीं हैं, उनमें परिवर्तन करना चाहिए। एक उदाहरण दलाई लामा संस्था की भूमिका हो सकती है। मैंने राजनैतिक उत्तरदायित्व से अपनी सेवानिवृत्ति के साथ, यह स्पष्ट कर दिया है कि भविष्य में दलाई लामा मात्र आध्यात्मिक विषयों के साथ सम्बद्धित रहेंगे। चूँकि धर्मों में प्रेम और करुणा का एक आम संदेश है, मैं उन के बीच सामंजस्य को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध हूँ।"
 
परम पावन ने अपने विचार समझाए कि बौद्ध या मुस्लिम आतंकवादी की संज्ञा देना गलत है। उन्होंने घोषणा की कि एक आतंकवादी केवल एक आतंकवादी है और जैसे ही लोग इस तरह की कार्रवाई में शामिल होते हैं, वे ईमानदार मुसलमान या बौद्ध नहीं रहते। उन्होंने टाइम पत्रिका को उद्धृत किया जिसके मुख पृष्ठ पर बर्मा में एक 'बौद्ध आतंकवादी' का चित्रण किया गया था, पर बल देते हुए कहा कि जब उस भिक्षु ने मुसलमानों को आतंकित करना प्रारंभ किया तो उसका व्यवहार भिक्षु जैसा नहीं रह गया था। इसी तरह, मुसलमान मित्रों ने उनसे कहा है कि जो कोई रक्तपात शुरू करता है, वह एक सच्चा मुसलमान नहीं रह जाता और यह कि मुसलमानों को अल्लाह के सभी प्राणियों के संरक्षण के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
 
अंत में, परम पावन ने व्यक्त किया कि तिब्बती होने के नाते में वह तिब्बती पठार की पारिस्थितिकी की रक्षा के लिए जागरूकता बढ़ाने के लिए समर्पित हैं। एशिया की प्रमुख नदियों के स्रोत के रूप में, एक अरब से अधिक लोग इसके जल पर निर्भर हैं। वह तिब्बती संस्कृति को जीवित रखने के लिए भी समर्पित हैं, बौद्ध धर्म का प्रचार करने के लिए नहीं, बल्कि चित्त और भावनाओं के कामकाज के ज्ञान में क्या उपयोगी है, को साझा करने के लिए। हमारे विनाशकारी भावनाओं से निपटने के उपायों के बारे में हमें यह जो बता सकता है उसका अध्ययन शैक्षणिक दृष्टिकोण से किया जा सकता है।

इसी के साथ मेल खाती धर्मनिरपेक्ष नैतिकता की भावना की आवश्यकता है। धर्मनिरपेक्षता जिस रूप में भारत में समझी जाती है वह सभी धर्मों का निष्पक्ष रूप से सम्मान है और उनके विचारों का भी जिनकी किसी धर्म में आस्था नहीं है। उन्होंने कहा कि उन धार्मिक संस्थाओं का विरोध करना जो भ्रष्ट हो गए हैं, एक बात है पर प्यार और करुणा के आधारभूत धार्मिक सिद्धांतों का विरोध कौन करेगा ?
 
परम पावन ने समझाया कि तिब्बत की बौद्ध परम्पराएँ वहाँ से आई हैं जो भारत के नालंदा विश्वविद्यालय में विकसित हुईं और वे कारण और तर्क पर आधारित हैं , साथ ही उच्च रूप से विकसित प्राचीन भारतीय मनोविज्ञान भी । उन्होंने कहा कि कई वैज्ञानिक जिनसे वे मिले हैं वे उससे सीखने के उत्सुक हैं। उन्होंने आगे कहा कि यद्यपि बौद्ध ग्रंथों में आवश्यक ज्ञान समाहित है, पर इसका अध्ययन एक शैक्षणिक रूप और सामान्य जीवन की प्रासंगिकता के साथ किया जा सकता है।
 
परम पावन ने कई प्रश्नों के उत्तर दिए। वे यूरोप में शरणार्थियों के स्वागत से संबधित थे और परम पावन का विचार था कि उन्हें आश्रय, सहायता और प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए, पर दीर्घकालीन लक्ष्य उन देशों में शांति और विकास की बहाली होना चाहिए जहाँ से उन्होंने पलायन किया है। यह पूछे जाने पर कि करुणा की सबसे बड़ी बाधा क्या है, उन्होंने उत्तर दिया "एक आत्म-केंद्रित व्यवहार और दूसरों को 'हम' और 'उन' में बांटना।" उन्होंने सुझाव दिया कि एक लोकतांत्रिक और अन्योन्याश्रित २१वीं सदी में अधिक खुले और व्यापक विचारधारा वाला होना महत्वपूर्ण है।
 
इस बात पर कि किस तरह नेताओं का सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है उन्होंने सिफारिश की कि जहाँ निर्धनों और जरूरतमंदों को अपने आत्मविश्वास को प्रबल रखना चाहिए, पर जो उन लोगों की सहायता करते हैं उन्हें ऐसा सम्मान के साथ करना चाहिए। अपने स्वयं के नेतृत्व के संबंध में, परम पावन ने बताया कि वे अपने शिक्षकों और कर्मचारियों से लेकर, निर्धन सफाई वालों से भी व्यापक सलाह लेना पसंद करते हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने खुलासा किया कि दुविधा पड़ने पर वे भविष्यवाणी और स्वप्न परीक्षण की भी सहायता लेते हैं।

राजनैतिक उत्तरदायित्व से उनके अवकाश ग्रहण के संबंध में उन्होंने स्पष्ट किया कि यह बढ़ते लोकतंत्र की ओर आग्रह से मेल खाता है जिससे वे बाल्यकाल से प्रेरित थे। और उनके पुनर्जन्म के संबंध में उन्होंने स्मरण किया कि १९६९ के प्रारंभ में उन्होंने कहा था कि दलाई लामा की संस्था का भविष्य तिब्बती लोगों की इच्छा पर निर्भर होगा। उन्होंने विनोदपूर्वक कहा कि चीनी सरकार कभी भी उनकी आलोचना का अवसर नहीं छोड़ती, पर इस बात का दिखावा करती है कि वह कैसे पुनर्जन्म लेंगे। उन्होंने कहा कि सबसे पहले उन्हें अपने विश्वास को अच्छा करना चाहिए और माओ जे दोंग और देंग जियाओपिंग के पुनर्जन्म को पहचानना चाहिए।
 
अंत में, इस प्रश्न पर कि वे क्या खाना पसंद करते हैं, परम पावन ने कहा कि जैसे एक श्रीलंका के भिक्षु ने उन्हें समझाया था कि एक बौद्ध भिक्षु न तो शाकाहारी है और न ही गैर-शाकाहारी, पर जो भी उसे मिलता है उसी से संतोष कर लेता है। पर फिर भी, उन्होंने उल्लेख किया कि वे मुख्य तिब्बती महाविहारों और विद्यालयों के रसोईघरों में शाकाहारिता को प्रोत्साहित करते हैं।
 
इस अवसर का समापन करते हुए महापौर टॉम टेट ने परम पावन को आश्वासित किया, "हम अपने बीच आपकी उपस्थित से प्रोत्साहित हुए हैं।"

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