डेपुंग लाची, मुंडगोड, कर्नाटक, भारत, आज प्रातः परम पावन दलाई लामा ने मुंबई से हुबली के लिए उड़ान भरी। हुबली हवाई अड्डे आगमन पर शरपा छोजे रिनपोछे, डेपुंग लाची और डेपुंग लोसेललिंग के उपाध्याय तथा गदेन लाची के एक प्रतिनिधि ने उनका स्वागत किया। हवाई अड्डे से वे गाड़ी से मुंडगोड के तिब्बती आवास गए, जहाँ मार्ग पर लोग पंक्तिबद्ध थे, जिनमें से अधिकांश तिब्बती, युवा और वयोवृद्ध भिक्षु, भिक्षुणियाँ और साधारण लोग अपने हाथों में सफेद स्कार्फ और फूल लिए उनके वहाँ से गुज़रते समय उनका अभिनन्दन करते प्रसन्न दिखाई दे रहे थे। । डेपुंग लाची महाविहार की सीढ़ियों पर एक बार पुनः पूर्व गदेन पीठ धारक रिज़ोंग रिनपोछे और शरपा चोजे ने उनका स्वागत किया।
मंदिर के अंदर परम पावन ने बुद्धों और बोधिसत्वों के प्रति अपनी सम्मान व्यक्त किया और अपना आसन ग्रहण किया। परम पावन के दीर्घायु के लिए प्रार्थना के दौरान चाय और मीठे चावल परोसे गए। कारवार के डीसी ने उन्हें एक स्कार्फ समर्पित किया।
एकत्रित उपाध्यायों, पूर्व उपाध्यायों, उच्च लामा और दर्शनशास्त्र के शिक्षकों को संबोधित करते हुए परम पावन ने समझाया कि इस वर्ष वे सेरा, डेपुंग और गदेन महाविहारों की संक्षिप्त यात्रा करने की इच्छा रखते थे और इस अवसर पर उनका मुख्य उद्देश्य भिक्षुओं को प्रव्रजित करना था। इसके अतिरिक्त वे डेपुंग लोसेललिंग महाविहार के ध्यान और विज्ञान केंद्र और सेरा मे के नूतन शास्त्रार्थ प्रांगण का उद्घाटन करेंगे।
"मैं आप सभी को देख कर बहुत प्रसन्न हूँ। निर्वासन में आने के बाद से आप सभी मनुष्यों और तिब्बतियों के रूप में अपनी योग्य क्षमता को पूरा करने के लिए कार्यरत रहे हैं। गदेन ठिसूर रिजोंग रेनपोछे, जिनसे मैंने कई शिक्षा प्राप्त की है यहाँ हैं। उन्होंने अपनी क्षमतानुसार धर्म की सेवा की है।
"बुद्ध और तिब्बत की शिक्षाओं के लिए इस कठिन समय के दौरान, सभी ने अपनी क्षमतानुतार सर्वश्रेष्ठ कार्य किया है, जो महान पुण्य का स्रोत है। भविष्य में आप आने वाले जीवनों में धर्म की सेवा जारी रख सकेंगे। आपने अपने जीवन को सार्थक बनाया है - अनुमोदना करें और सभी सत्वों की प्रबुद्धता के लिए पुण्य समर्पित करें।
"बुद्ध शाक्यमुनि का परिनिर्वाण २५०० से अधिक वर्षों पूर्व हुआ, नागार्जुन जैसे आचार्य आए और चले गए, परन्तु श्रवण, पठन चिंतन और ध्यान के अभ्यास से बुद्ध की देशनाओं को संरक्षित किया गया है।
"जैसा मैं नियमित रूप से लोगों को बताता हूँ, भोट देश का बौद्ध धर्म विशुद्ध नालंदा परम्परा है। यह चित्त और भावनाओं, तर्कशास्त्र और दर्शन के प्रकार्य को समझने का एक स्रोत है जिसे मुख्य रूप से सेरा, डेपुंग, गदेन और कुछ सीमा तक टाशी ल्हुन्पो में संरक्षित किया गया है। यह गौरव की बात है।
"आज विश्व में व्यापक स्तर पर करुणा और अहिंसा की तत्कालित आवश्यकता है। चित्त व भावनाओं के प्रकार्य की समझ और तर्क का उपयोग, जो उनके विकास में योगदान दे सकता है यह सब कुछ धार्मिक साहित्य के कार्यों में पाया जा सकता है। पर इन व्याख्याओं का एक धर्मनिरपेक्ष और शैक्षणिक तरीके से अध्ययन किया जा सकता है। यही कारण है कि मैं इन दिनों समकालीन भारतीयों के बीच प्राचीन भारतीय ज्ञान को पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रहा हूँ।"
परम पावन ने स्मरण किया कि द्वितीय ज्ञलवा गेदुन ज्ञाछो के समय सेरा और डेपुंग का दलाई लामाओं के साथ एक विशेष जुड़ाव था। ये कहते हुए कि कल गदेन ङमछो, जे चोंखापा का परिनिर्वाण दिवस, उन्होंने पूछा कि यहाँ यह दिन प्रथागत रूप से किस तरह मनाया जाता है। फिर उन्होंने सुझाया कि वह कल प्रातः डेपुंग लोसेललिंग शास्त्रार्थ प्रांगण में एक लघु प्रवचन देंगे।