सारनाथ, वाराणसी, भारत, भारतीय दार्शनिक विचार परम्पराएँ और आधुनिक विज्ञान में चित्त पर केन्द्रीय उच्च तिब्बती शिक्षा संस्थान में सम्मेलन का दूसरा दिन प्रारंभ हुआ, परम पावन दलाई लामा पहुँचे, मंच पर उनके साथ के प्रस्तुतकर्ताओं, संचालकों और उत्तरदाताओं का अभिनन्दन किया और अपना आसन ग्रहण करने से पूर्व श्रोताओं की ओर देख अभिनन्दन में हाथ हिलाया।
प्रथम सत्र के संचालक प्रो. जे. गारफील्ड थे, संस्थान के एक पुराने मित्र, जो स्मिथ कॉलेज में दर्शनशास्त्र, तर्कशास्त्र और बौद्ध अध्ययन के प्रोफेसर हैं। उन्होंने इस अवसर पर उल्लेख किया कि पहले से ही उल्लखित उपलब्धियों के अतिरिक्त संस्थान ने छात्रों और संकाय के अंतर्राष्ट्रीय आदान-प्रदान का नेतृत्व किया है। २६ वर्षीय पुराना यह कार्यक्रम तिब्बती ग्रंथ एवं अभिलेख पुस्तकालय और बौद्ध तर्क संस्थान जैसी संस्थानों के लिए एक प्रारूप बन गया। उन्होंने टिप्पणी की कि सफलता की कुंजी नेतृत्व और सहयोग हैं।
गारफ़ील्ड ने कोलंबो विश्वविद्यालय, श्रीलंका में पालि और बौद्ध अध्ययन के प्रोफेसर असंग तिलकरत्ने का परिचय दिया। उन्होंने चित्त के थेरवाद विश्लेषण के बारे में बात की - जो किसी भी भारतीय दार्शनिक में चित्त की सबसे परिष्कृत विश्लेषणों में से एक है। 'आत्मन' के अस्तित्व को त्यागने के बाद, बौद्ध धर्म चित्त, मनो और विन्नान के संदर्भ में चित्त का विश्लेषण करता है।
चित्त कुछ ऐसा है जो क्लेशित अथवा या विशुद्ध, विकसित या अविकसित, अनुशासित या अनुशासनहीन है और अंततः मुक्त है। विन्नान साधारणतया चेतना को इंगित करता है। यह पंञ्च मनोवैज्ञानिक-भौतिक स्कंधों में से एक है और प्रतीत्य समुत्पाद के द्वादांश श्रृंखलाओं में से एक है। यह परजन्म में एक भूमिका निभाता है, उस कारक के रूप में जो कि इस अस्तित्व से दूसरे आने वाले को जोड़ता है। मनो का उल्लेख मुख्य रूप से किसी अन्य ऐन्द्रिक इकाई के समान हुआ है जिसमें धर्म को वस्तु के रूप में लिया गया है। ये तीनों एक ही वस्तु के विभिन्न पक्षों को रेखांकित करते हैं।
टिप्पणी करने के लिए आमंत्रित किए जाने पर, परम पावन ने टिप्पणी की कि थेरवाद शब्द विनय का एक विभाजन है। उन्होंने कहा कि वह पालि परम्परा के विषय में बात करना पसंद करते हैं, जो बर्मा, श्रीलंका और इसी तरह की बौद्ध परंपराओं को संदर्भित करता है और संस्कृत परम्परा, जो अधिकांश रूप से भारतीय परम्पराओं को संदर्भित करती है। उन्होंने आगे कहा कि वह हीनयान तथा महायान शब्दों का प्रयोग करना पसंद नहीं करते क्योंकि महायान अनुयायियों में हीनयान से संबंधित लोगों को हेय दृष्टि से देखने की प्रवृत्ति होती है और हीनयानियों में प्रश्न करने की प्रवृत्ति होती है कि महायान वास्तव में बुद्ध की शिक्षा है अथवा नहीं।
संस्कृत परम्परा में तीन धर्म चक्र प्रवर्तन की बात आती है, जिनमें से सबसे प्रथम पालि परम्परा का प्रतीक है - जिसमें शमथ, विपश्यना तथा बोध्यंग के ३७ कारक शामिल हैं - जबकि अन्य दो चक्र प्रवर्तन संस्कृत परम्परा को दर्शाते हैं। उन्होंने स्मरण किया कि अतीत में कुछ लेखकों ने तिब्बती बौद्ध धर्म को लामावाद के रूप में संदर्भित किया मानो जैसे कि यह एक प्रामाणिक बौद्ध परम्परा न हो, पर आज यह नालंदा परम्परा के उत्तराधिकारी के रूप में सार्वभौमिक रूप से स्वीकार किया गया है।
इसके बाद मिशेल बिटबोल, सीएनआरएस, पेरिस में डायरेक्टियोर डी रीशेचे हैं और इस समय अभिलेखागार हुसरल, जो फिनोमोनोलॉजी में अनुसंधान का एक केंद्र है, ने अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने ऑस्ट्रियाई भौतिक विज्ञानी एरविन श्रोडिंगर की ओर ध्यान आकर्षित किया, जिनकी क्वांटम भौतिकी के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका थी और जिन्होंने अद्वैत वेदांत और मध्यमक बौद्ध धर्म से प्रेरणा ली।
उन्होंने सुझाया कि श्रोडिंगर के लिए चित्त तथा भौतिक वस्तु के द्वैत में यह विश्वास कि स्वभाव सत्ता रखती हुई वस्तुओं के अपने आंतरिक गुण हैं, वास्तव में अत्यंत सरलीकृत रूप है। यह हमारे चेतना अनुभव में अलग किए गए वस्तुओं के पक्ष हैं जो हमारे द्वारा उन वस्तुओं पर स्वभाव सत्ता थोपे जाने का परिणाम है। श्रोडिंगर ने बल देते हुए कहा कि ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हमारे संदर्भ में हम उन्हें एक झूठा अस्तित्व प्रदान करना चाहते हैं, पर इस प्रपञ्च के बीच वस्तुओं और स्वयं के बीच कोई वास्तविक अंतर नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि चित्त तथा चेतना की एकता पर तर्क करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि यह प्रत्यक्ष रूप से अनुभव किया जा सकता है।
बिटबोल ने तर्क दिया कि श्रोडिंगर द्वारा भारतीय विचारों को गहन रूप से आत्मसात करने से वह द्वैतवाद या विहारीय भौतिकता से समझौता किए बिना चित्त-शरीर की समस्या को संबोधित कर सके।
परम पावन ने टिप्पणी की कि प्रस्तुति ने उन्हें यथार्थ के अर्थ की गहन समझ, जो विश्व के बारे में हमारे सरल समझ से विपरीत है, की आवश्यकता के बारे में प्रेरित किया था। उन्होंने नागार्जुन के अवलोकन के प्रति संकेत किया - 'कर्म और क्लेशों के क्षय में मोक्ष है; कर्म और क्लेश विकल्प से आते हैं, विकल्प मानसिक प्रपञ्च से आते हैं, शून्यता में प्रपञ्च का अंत होता है। कर्म और क्लेश अज्ञानता में निहित हैं और अज्ञान प्रतीत्य समुत्पाद के द्वादशांग श्रृंखला में प्रथम है।
परम पावन ने अपनी शंकाएं दोहराई कि क्वांटम भौतिक विज्ञानी के अंतर्दृष्टि का उनके क्लेशों पर कोई प्रभाव पड़ता है। बिटबोल ने उन्हें बताया कि बौद्ध धर्म उन्हें विश्व को बेहतर रूप से समझने और अस्वस्थता की भावना को दूर करने में सहायक है।
प्रातः के तीसरे प्रस्तुतकर्ता डॉ थुबतेन जिनपा, गदेन महाविहारीय विश्वविद्यालय के शरचे महाविद्यालय में एक भिक्षु के रूप में प्रशिक्षित हुए जहाँ उन्होंने गेशे ल्हारमपा की उपाधि प्राप्त की। वे कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में पीएचडी उपाधि के लिए गए और अब मैगिल विश्वविद्यालय में धार्मिक अध्ययन के स्कूल में एडजण्ट प्रोफेसर हैं। उनकी प्रस्तुति चित्त उद्देश्य बौद्ध दर्शन में चेतना के तीन मुख्य लक्षणों पर केन्द्रित थी - चेतना का वस्तु का निर्देशित पक्ष; रिफ्लेक्सीविटी, चेतना की स्व प्रकट करने वाली प्रकृति और व्यक्तिपरकता जो चैतसिक घटनाओं के अनुभवात्मक आयाम अथवा उनके प्रथम व्यक्ति के चरित्र को दर्शाती है।
जिनपा ने स्पष्ट किया कि आज चेतना का व्यक्तिपरक आयाम चेतना पर समकालीन पश्चिमी दार्शनिक और वैज्ञानिक व्याख्या के लिए एक महत्वपूर्ण केन्द्र है। मानसिक घटनाओं की एक मुख्य विशेषता यह है कि जिस विषय में वे अनुभव कर रहे हैं, फिर चाहे यह पीड़ा की सरल अनुभूति या नीला रंग देखना हो जो कुछ दार्शनिकों द्वारा 'यह कैसा महसूस होता है' के रूप में संदर्भित किया गया है। दो अन्य विशेषताएँ, उद्देश्य, यह विचार कि चेतना कुछ के बारे में है, इसमें विषय और रिफ्लेक्सीविटी है, आत्म-चिंतनशील जागरूकता के आधार स्तर को वर्तमान वस्तु की जांच पर अधिक ध्यान दिया गया है।
जिनपा ने इस पर शांतरक्षित को उद्धृत किया: 'चेतना की प्रकृति आत्म-अभिव्यक्ति जागरूकता है और जो प्रतिबिंबित नहीं होती है वह अचेतन है'। दिङ्नाग, धर्मकीर्ति और शांतरक्षित 'सशक्त रिफ्लेक्सीविटी' के समर्थक थे, और बल देते हुए कहा कि रिफ्लेक्विटी चेतना का मूलभूतरूप है, न कि उद्देश्य है। परन्तु माध्यमक दार्शनिक, चंद्रकीर्ति स्पष्ट रूप से इस तरह के एक 'सशक्त रिफ्लेक्सीसिटी' का खंडन करते हैं।
जिनपा ने समाप्त करते हुए कहा कि इन तीनों को चेतना के विशिष्ट गुणों के रूप में परिभाषित करने से वैज्ञानिक परियोजनाओं के समक्ष इसे समझाने के लिए गंभीर चुनौतियाँ खड़ी होंगी। परम पावन हँसे और कहा कि मध्यमक दृष्टिकोण से ऐसा प्रतीत होता है कि जिनपा के विचार शून्यतावादी और वस्तुनिष्ठ थे। परन्तु उन्होंने यह भी बताया कि अन्य विचारों के संपर्क में आने से हमारी बुद्धि व्यापक बनती है और यह कि विश्लेषण सदैव लाभकारी होता है।
चाय के लिए लघु अंतराल के बाद, प्रातः की दूसरी संचालिका जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की समाजशास्त्री रेणुका सिंह ने श्रोताओं से पुनः एकत्रित होने के लिए कहा। उन्होंने अंतिम प्रस्तुतकर्ता सीओन रेमोन का परिचय दिया जो सम्प्रति सेवानिवृत्त हैं पर जिनके शोध में न्यूरोसाइंस, कॉर्टिकल न्यूरोडैनामिक्स और मस्तिष्क/चित्त की बातचीत शामिल थी। उन्होंने तंत्रिका विज्ञान और भौतिकी के दृष्टिकोण से चित्त की प्रकृति की समीक्षा की।
यद्यपि न्यूरोसाइंस ईईजी और एफएमआरआई की सहायता से प्रेम, क्रोध, दुःख, करुणा आदि जैसी मस्तिष्क के भावनात्मक स्थितियों का मानचित्र बना सकता है और माप सकता है, फिर भी यह चित्त की प्रकृति को परिभाषित करना कठिन पाता है, यानि की मानव चेतना को। इसकी व्याख्या करने के लिए एक व्यापक सिद्धांत की आवश्यकता है। भौतिकविदों ने क्वांटम सिद्धांत पर आधारित चेतना के सिद्धांतों को प्रस्तावित किया है, जो यह समझने में सहायता कर सकता है कि किस तरह बाहरी विश्व के साथ व्यवहार हमारे आंतरिक विचार प्रक्रियाओं को बदलता है। इसी तरह, हमारी चैतसिक स्थितियों में परिवर्तन भी बाहरी विश्व के बारे में हमारी दृष्टि को प्रभावित कर सकते हैं।
तंत्रिका वैज्ञानिकों के बीच प्रचलित दृष्टिकोण यह है कि चित्त मस्तिष्क से उत्पन्न होता है और जब मस्तिष्क मर जाता है तो चित्त भी समाप्त होता है। परन्तु कुछ तंत्रिका वैज्ञानिकों ने अब इस विचार पर प्रश्न उठाना प्रारंभ कर दिया है। कुछ लोग कहते हैं कि चित्त या चेतना मस्तिष्क से अलग हो सकती है और हो सकता है कि चित्त का वह हिस्सा मस्तिष्क के साथ मिला हो, पर फिर भी वह एक अलग इकाई है। रामन चित्त की प्रकृति की जांच के लिए बेहतर उपकरणों के साथ एक अंतर्विषय दृष्टिकोण बनाने की इच्छा रखते हैं।
उनकी प्रतिक्रिया के लिए आमंत्रित किए जाने पर परम पावन ने १९७९ में सोवियत संघ की यात्रा का स्मरण किया। वैज्ञानिकों के साथ संवाद में उन्होंने छठे, मानसिक, चेतना का उल्लेख ऐन्द्रिक चेतना से अलग किया। उन्होंने इसे धर्म का एक विषय कहकर खारिज कर दिया। तब से, ऐन्द्रिक चेतना को इस तरह से मापा गया है जो मानसिक चेतना के साथ नहीं किया गया है। परम पावन ने अपने मित्र, वुल्फ सिंगर के अवलोकन की सूचना दी कि मस्तिष्क में कोई केंद्रीय सत्ता नहीं है।
परम पावन ने रिपोर्टों में उन्हें भी जोड़ा जो उन्होंने अनुभूति परक ध्यानाभ्यासियों के बारे में कहा था जिनके शरीरी नैदानिक मृत्यु के बाद कुछ समय के लिए ताजे रहते हैं। न्यूजीलैंड में मृत्यु को प्राप्त करने वाले एक लामा इस स्थिति में थे और चौथे दिन उनके हाथों में हरकत हुई। उनके बाएँ हाथ ने उनके दाहिने हाथ की अंगूठी वाली उंगली पकड़ी। न तो वैज्ञानिक और न ही बौद्धों के पास इसका कोई स्पष्टीकरण है।
परम पावन ने तिब्बत के एक साधक का भी उल्लेख किया, जिसे सांस्कृतिक क्रांति के दौरान गिरफ्तार किया गया था और उन्हें 'संघर्ष सत्र' में ले जाया जा रहा था। उन्होंने कहा कि वे कुछ समय तक बैठ कर आराम करना चाहते थे। वे चेतना के स्थानांतरण में संलग्न हुए और कुछ देर में वे नहीं रहे। रमोन ने नैदानिक मृत्यु के बाद ध्यान समापत्ति में रहने वाले लोगों के बारे में जानने का प्रश्न उठाया और सुझाया कि दूर से ही बदलते शारीरिक गर्मी को मापने के तरीके हैं जिससे शरीर में इलेक्ट्रोड को लगाना अनावश्यक होगा।
अपनी अंतिम टिप्पणी में परम पावन ने अपनी भावना दोहराई कि विनाशकारी भावनाओं से निपटने के लिए सीखने के संदर्भ में प्राचीन भारतीय विचारों से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। उनका तर्क है कि भारत एकमात्र देश है जो प्राचीन भारतीय ज्ञान के साथ आधुनिक शिक्षा के लाभों को जोड़ सकता है जिससे और अधिक लोगों को चित्त की शांति प्राप्त करने में सक्षम बनाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि दक्षिण भारत के तिब्बती विहारों में सैकड़ों भिक्षु हैं, जो २० वर्ष के श्रमसाध्य अध्ययन के बाद इस की शिक्षा देने के योग्य हैं।
धन्यवाद के अपने शब्दों में, केन्द्रीय उच्च तिब्बती शिक्षा संस्थान के कुलपति गेशे ङवंग समतेन ने सम्मेलन में भाग लेने के लिए परम पावन के प्रति आभार व्यक्त किया। उन्होंने शिक्षा और चित्त प्रशिक्षण द्वारा लोगों को शांति और सुख के विचारों के दृष्टिकोण के बारे परिवर्तन लाने में परम पावन ने जो प्राप्त किया है, इसके प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त की। इसके अतिरिक्त, परम पावन के धार्मिक सद्भाव और मानवीय मूल्यों की सराहना को पोषित करने के प्रयासों के दूरगामी प्रभाव हुए हैं। वहाँ उपस्थित सब की ओर से उन्होंने हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त की।
मंच छोड़ने से पहले, परम पावन ने संचालकों, प्रस्तुतकर्ताओं और उत्तरदाताओं के प्रति अपनी प्रशंसा व्यक्त की। बाहर कोहरा उठ चुका था और सूर्य बाहर आ गया था। परम पावन ने निकट के जीवन ज्योति विद्यालय से दृष्टिहीन और आंशिक दृष्टि युक्त लड़कियों के समूह से भेंट की। उन्होंने उनसे पुराने मित्रों की तरह भेंट किया और कहा कि वे उन्हें याद करते हैं और प्रायः उनके विषय में सोचते हैं। उसके बाद पुस्तकालय के लॉन पर एक शामियाने में वे सम्मेलन के प्रतिभागियों के साथ शामिल हुए जहाँ मध्याह्न का भोजन करते हुए उन्होंने आपसी बातचीत की। तत्पश्चात परम पावन अपने निवास लौट आए और दिन के कार्यक्रमों से निवृत्त हुए।