पीसा, टस्कनी, इटली, आज जब पावन दलाई लामा पीसा कांग्रेस हॉल पहुँचने के लिए गाड़ी से टस्कन ग्रामीण प्रदेशों से होते हुए गुज़रे तो प्रातः खिली और उज्ज्वल थी। उन्हें मानद उपाधि से सम्मानित करने के समारोह के अंग के रूप में परम पावन विश्वविद्यालय के चोगों को पहनने में संकाय के सदस्यों के साथ सम्मिलित हुए। रेक्टर, प्रोफेसर पाओलो मैनकरेला उन्हें सभागार ले गए, जिनके पीछे संकाय के सदस्य शोभायात्रा के रूप में चल रहे थे।
अवसर का परिचय देते हुए रेक्टर ने उल्लेख किया कि परम पावन १४वें दलाई लामा हैं। उन्होंने कहा कि प्रथम गेदुन डुब का जन्म १४वीं शताब्दी में हुआ था, जो पीसा विश्वविद्यालय की स्थापना के बहुत बाद नहीं था। उन्होंने यह भी टिप्पणी की कि आज अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस था और परम पावन एक नोबेल शांति पुरस्कार विजेता थे।
प्रोफेसर एंजेलो गेमिनामी ने परम पावन को मानद उपाधि प्रदान करने में विश्वविद्यालय की मंशा के विषय में बताया। उन्होंने उन्हें तिब्बती बौद्ध धर्म के सबसे प्रतिष्ठित मार्गदर्शक, ११ पुस्तकों और कई लेखों के लेखक के रूप में संदर्भित किया जिन्होंने मनोविज्ञान की समझ और बौद्ध धर्म के दो स्तंभों - करुणा और प्रज्ञा के प्रस्तावक के रूप में योगदान दिया है। फ्रांसिस्को वरेला, डैनियल गोलमैन, पॉल एकमन और रिचर्ड डेविडसन का उनके विशिष्ट सहयोगियों के बीच उल्लेख किया गया। उनकी प्रेरणा का निम्न उद्धरण में संक्षेपीकरण किया गयाः "जैसा कि विज्ञान में है उसी तरह बौद्ध धर्म में विज्ञान यथार्थ की प्रकृति को महत्वपूर्ण परीक्षण द्वारा जांचा जाता है।"
लौदातियो या प्रशंसा के शब्दों के उपरांत एमी कोहेन वेरेला ने कहा कि "उनकी करुणा ऐसी है जो हमारी समग्र मानवता को पहचानती है।" उन्होंने आगे कहा कि यह उन्होंने निजी रूप से अपने दिवंगत पति फ्रांसिस्को वरेला के साथ परम पावन की घनिष्ठ मित्रता में देखा था।
इसके बाद रेक्टर ने परम पावन को नैदानिक और स्वास्थ्य मनोविज्ञान में स्नातकोत्तर उपाधि ऑनोरिस कौसा की उपाधि से सम्मानित किया और सभागार करतल ध्वनि से गूंज उठा।
"सम्मानित विद्वानों, भाइयों और बहनों," परम पावन उत्तर में बोले, "मैं अत्यंत सम्मान का अनुभव कर रहा हूँ कि मुझे इस उपाधि से सम्मानित किया गया है। वक्ताओं ने जो अभी कहा है, मैं उनकी प्रशंसा करता हूँ, पर उनकी कुछ प्रशंसा अतिशयोक्ति थी। मैं स्वयं को ७ अरब मनुष्यों में से एक मानता हूँ। मेरा मानना है कि सम्प्रति विश्व में सम्पूर्ण मानवता की एकता की भावना प्रासंगिक है। जिन कई समस्याओं का सामना हम कर रहे हैं वह 'हम' और 'उन' के बीच विभाजन पर केन्द्रित है।
"जहाँ अन्य प्रमुख धर्म समग्र मानवता की बात करते हैं, बौद्ध धर्म सभी सत्वों की सोच रखता है। संस्कृत परम्परा जिसका मूल पालि परम्परा में है, कारण के माध्यम से अनन्त प्रेम का विकास करने की शिक्षा देती है। जब से मैं बच्चा था तब से मैं उत्सुक रहा हूँ। मैंने सदैव जानना चाहा है कि कैसे और क्यों। यह किस तरह काम करता है? ऐसा क्यों हुआ?
"बुद्ध ने सलाह दी, 'जिस तरह बुद्धिमान स्वर्ण का परीक्षण जलाकर, काटकर और रगड़कर करता है, अतः, भिक्षुओं, मेरे शब्दों को परीक्षण के उपरांत ही स्वीकार करें केवल मेरे प्रति सम्मान के कारण नहीं।' वह केवल एक धार्मिक शास्ता न थे, पर एक महान विचारक थे। परीक्षण व प्रयोग का यह दृष्टिकोण नालंदा परम्परा के विद्वानों जैसे नागार्जुन, दिङ्नाग और धर्मकीति, जो अपने तर्क के प्रयोग में कड़े थे, ने अपनाया। इस तरह मैं भी दीर्घकाल से वैज्ञानिक दृष्टिकोण का प्रशंसक रहा हूँ।
"मैं स्वयं को अर्ध बौद्ध भिक्षु और आधे वैज्ञानिक के रूप में मानता हूँ। यह मानद उपाधि मुझे प्रोत्साहित करती है। मैं अब ८२ वर्ष का हूँ और मैं वचनबद्ध हूँ कि मेरे अपने शेष १५-२० वर्षों को मैं चित्त विज्ञान के चिन्तन को पोषित करने में स्वयं को समर्पित कर दूँगा।"
प्रोफेसर रिकार्डो ज़ुची ने परम पावन को व्याख्यान के लिए धन्यवाद दिया, जिसने उनके अनुसार माइंड साइंस संगोष्ठी के द्वितीय सत्र को प्रारंभ किया है और जो माइंड साइंस बनाम न्यूरोसाइंस पर केन्द्रित है। उन्होंने प्रोफेसर डोनाल्ड हॉफमैन को उनकी प्रस्तुति 'चेतना के लिए शारीरिक आधार के विरोध का मामला' के लिए आमंत्रित किया।
हॉफमैन ने यह पूछते हुए प्रारंभ किया, 'क्या हम यथार्थ को जस का तस देखते हैं?' हम मानते हैं कि हम करते हैं, पर उन्होंने कई छवियाँ दिखाईं जो दर्शाती हैं कि जिस यथार्थ को हम देखते हैं, हम उसमें योगदान देते हैं। उन्होंने पूछा, 'क्या पदार्थ से चेतना बनती है?' और उत्तर दिया कि उनके तंत्रिका विज्ञान के अधिकांश सहयोगी ऐसा मानते हैं।
प्रश्न को दोहराते हुए, 'क्या हम यथार्थ को जस का तस देखते हैं?' उन्होंने पूछा, 'क्या हम गलत हो सकते हैं?' उन्होंने कहा कि धरती की धारणा में परिवर्तन हो गया था कि वह गोल है और सूर्य के चारों ओर कक्ष में घूमती है।
चूंकि मस्तिष्क का एक तिहाई भाग दृष्टि से संबंधित है, अतः कुछ लोग कहते हैं कि हम जो देखते हैं, उसे निर्मित करते हैं। तंत्रिका वैज्ञानिकों का कहना है कि हम यथार्थ का 'पुनर्निर्माण' करते हैं। हॉफमैन ने अपनी 'फिटनेस बीट्स द्रूथ प्रमेय' का उल्लेख किया, जो यह प्रस्ताव करता है कि उस पुनर्निर्माण में जो विकल्प हैं, वे उसके आधार पर नहीं किए जाते जो यथार्थ है पर उस आधार पर जो हमारे अस्तित्व में बैठता है।
टिप्पणी करने के लिए आमंत्रित किए जाने पर परम पावन ने उल्लेख किया कि नागार्जुन ने विश्लेषण की वकालत की कि वस्तुएँ और घटनाएँ किस तरह अस्तित्व रखती हैं। यदि आप स्थान का विश्लेषण करते हैं तो आप उस बिन्दु की ओर संकेत नहीं कर सकते कि वह क्या है। वस्तुएँ और घटनाएँ जो हम देखते हैं और अनुभव करते हैं, वे मानसिक संरचनाएँ हैं; हम उन्हें चित्त से ज्ञापित करते हैं। इसका अर्थ यह नहीं है कि वस्तुओं का अस्तित्व नहीं हैं, पर ये कि स्वभाव सत्ता नहीं रखतीं अपने में और अपने संबंध में। वे उन की हमारी धारणा के संबंध में अस्तित्व रखती हैं।
सत्य द्वय एक सांवृतिक व परमार्थ अस्तित्व प्रकट करते हैं। विश्लेषण करने पर हम अग्नि नहीं पाते और न ही हम अपनी उंगली पाते हैं, पर यदि हम अपनी उंगली को अग्नि में डालें तो वह जल जाती है और पीड़ा होती है।
परम पावन ने यह बताना जारी रखा कि चित्त के प्रकार्य की तिब्बती बौद्धों की समझ के अनुसार हममें ऐन्द्रिक चेतना और मानसिक चेतना है। दृश्य चेतना एक वस्तु देखती है, पर उसे जस का तस सुनिश्चित नहीं कर सकती कि; यह एक धारणात्मक प्रक्रिया है।
परम पावन ने चेतना के विभिन्न स्तरों को रेखांकित किया। साधारण जाग्रतावस्था की चेतना, जो ऐन्द्रिक चेतना द्वारा प्रभावित होती है, वह अपेक्षाकृत स्थूल होती है। चेतना उस समय सूक्ष्मतर होती है जब हम स्वप्न देखते हैं और ऐन्द्रिक चेतना निष्क्रिय होती है। गहन निद्रा में चेतना और अधिक सूक्ष्म होती है जबकि सूक्ष्मतम चेतना मृत्यु के समय प्रकट होती है।
उस समय हृदय बंद हो जाता है और मस्तिष्क मर जाता है। फिर भी ध्यान के अनुभव वाले लोगों के उदाहरण हैं जिनके शरीर नैदानिक मृत्यु के बावजूद ताजा रहते हैं। वे इस स्थिति में कुछ दिनों या कुछ हफ्तों के लिए रह सकते हैं। बौद्ध मनोविज्ञान वर्णित करता है कि ऐसा इसलिए है क्योंकि सूक्ष्मतम चित्त ने अभी भी शरीर का त्याग नहीं किया है, और जब ऐसा होता है, तो शरीर का ह्रास होता है। परम पावन ने उल्लेख किया कि वैज्ञानिक इन घटनाओं में रुचि ले रहे हैं, जिनके परीक्षण सरल नहीं हैं।
उन्होंने तिब्बत में गिरफ्तार किए गए एक ध्यानी सिद्ध की बात की जिसे संघर्ष सत्र में ले जाया जा रहा था। मार्ग पर उन्होंने कुछ क्षण आराम करने के लिए मांगे, ध्यान में बैठे और चेतना के स्थानांतरित होने के अभ्यास में रत हुए। उसने अपनी चेतना को बाहर निकाल दिया और उनकी मृत्यु हो गई। परम पावन ने ऐसी कहानियों को ऐसे रहस्य के रूप में संदर्भित किया जिनको समझाने की आवश्यकता है।
प्रोफेसर स्टीवन लॉरीज़ व्यक्तिगत रूप से में संगोष्ठी में भाग लेने में असमर्थ रहे और एक वीडियो लिंक के माध्यम से '(गैर) चेतना और गंभीर क्षतिग्रस्त मस्तिष्क' पर अपनी प्रस्तुति दी। उन्होंने यह भी पूछा कि विज्ञान हमें यथार्थ के बारे में क्या बता सकता है। उन्होंने यह स्वीकार किया कि यद्यपि चेतना का विज्ञान विकसित किया जा रहा है, पर यह अभी भी चित्त और पदार्थ के बीच की खाई को पाटने में असफल रहा है। परन्तु उन्होंने खुले दिमाग के रहने की आवश्यकता पर बल दिया।
उन्होंने कहा कि चुंबकीय अनुनाद इमेजिंग के माध्यम से अवधारणात्मक जागरूकता, आंतरिक जागरूकता और बाह्य जागरूकता के बारे में बहुत कुछ सीख लिया गया है। उन्होंने कोमा की अवस्था के रोगियों और लॉक-इन सिंड्रोम वाले लोगों के बारे में भी बात की। इसकी तुलना ध्यान में ध्यान कर्ताओं का परीक्षण करते समय चित्त और मस्तिष्क के बारे में जो सीखा गया है, उसके साथ की जा सकती है। मरणासन्न व्यक्तियों के अनुभवों के बारे में और भी अधिक जानकारी प्राप्त की जा रही है
उन्होंने जो देखा और सुना है, उस पर टिप्पणी करते हुए परम पावन ने कहा कि हमें मानसिक चेतना के बारे में अधिक जानने की आवश्यकता है। लॉरीज़ ने जो कहा उस का अनुपालन करते हुए उन्होंने एक सरकारी अधिकारी की कहानी को बताई जिसे वे तिब्बत में जानते थे जिनकी मां ने घोषणा की थी कि वह एक सप्ताह के लिए सोएँगीं और कोई उन्हें परेशान न करे। स्पष्ट था कि निगरानी करने के लिए कि क्या हो रहा है, कोई मशीन उपलब्ध न थी, पर ऐसा प्रतीत हुआ कि उस सप्ताह महिला के स्वप्न शरीर ने अपना भौतिक स्वरूप त्याग कर यहाँ वहाँ यात्रा की। उनकी बाद की सूचना जो कुछ उन्होंने देखा व सुना था, जाहिरी तौर पर उन स्थानों पर जो हो रहा था उससे मेल खाता था जिसे उन्होंने वर्णित किया था।
इस तरह के उदाहरणों के अतिरिक्त परम पावन ने घोषणा की कि उनके द्वारा प्रारंभ किए एक प्रोजेक्ट के परिणामस्वरूप, बौद्ध विज्ञान और दर्शन से संबंधित सामग्री को भोट भाषा में अनूदित विशाल आध्यात्मिक साहित्य से निकाले व संकलित किए गए हैं। भोट भाषा में चार खंड प्रकाशित किए गए हैं। इनमें से प्रथम खंड जिसका संबंध बाह्य विश्व के विज्ञान से है और दूसरा खंड, चित्त की अवस्थाओं से संबंधित है इत्यादि, चीनी भाषा में प्रकाशित किए गए हैं और शीघ्र ही अंग्रेजी और अन्य यूरोपीय भाषाओं में प्रकाशित होने वाले हैं।
परम पावन ने अपने होटल लौटने से पहले सम्मेलन के प्रस्तुतकर्ताओं और आयोजकों के साथ मध्याह्न का भोजन किया। कल, वह पीसा से रवाना हो कर लातविया में रीगा की यात्रा करेंगे, जहाँ वे तीन दिवसीय बौद्ध प्रवचन देंगे।