मुंबई, महाराष्ट्र, भारत - आज मुंबई में परम पावन दलाई लामा को 'नेशनल स्पोर्ट्स क्लब ऑफ इंडिया डोम में अंतर्धर्म संवाद' द्वारा विश्व शांति और सद्भाव पर एक संगोष्ठी में सम्मिलित होने हेतु शानदार बांद्रा-वरली सीलिंक होते हुए जाना पड़ा। आगमन पर उनके मेजबान आचार्य डॉ लोकेश मुनि ने ढोल और श्रृंग वाद्य के उद्घोष नाद के साथ उनका स्वागत किया।
जैसे ही अंतर्धर्म संवाद के प्रतिभागी, आचार्य डॉ लोकेश मुनि के नेतृत्व और परम पावन तथा स्वामी रामदेव के साथ मंच पर आए एक उत्साह भरे तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी। कार्यवाही का उद्घाटन करने हेतु उन्होंने एक साथ मिलकर दीप प्रज्ज्वलित किया। प्रत्येक अतिथि को एक पारम्परिक दुशाले और अवसर के एक स्मृति चिन्ह के साथ सम्मानित किया गया।
केन्द्रीय विद्युत मंत्री पीयूष गोयल प्रथम वक्ता थे क्योंकि उन्हें बाद में दिन में नागपुर में राष्ट्रीय कैंसर संस्थान के पहले चरण के शुभारंभ में भाग लेने हेतु प्रस्थान करना था। उन्होंने परम पावन को एक "विश्व प्रसिद्ध आध्यात्मिक नेता" के रूप में अभिनन्दित किया जिनसे हम सभी प्रेरणा ग्रहण करते हैं। उन्होंने कहा कि यह गर्व का विषय है कि डॉ लोकेश मुनीजी, जिन्होंने अपना जीवन शांति और सद्भाव के लिए समर्पित किया है, सभा का नेतृत्व कर रहे हैं और उन्होंने सम्पूर्ण देश में लोगों को एक साथ लाने के लिए एक सच्ची प्रतिबद्धता की है।
गोयल ने कहा कि इस समय विश्व में जलवायु परिवर्तन और आतंकवाद सबसे बड़ी चुनौतियाँ हैं। उन्होंने टिप्पणी की, कि भारत वायुमंडलीय प्रदूषण को रोकने के लिए कदम उठा रहा है, पर उसे इसके प्रति जागरूक होना चाहिए कि असहिष्णु सोच समाज को क्षति पहुँचा सकती है। उन्होंने भारत के लिए पांच 'पी' की शक्ति, प्रोस्पेरिटी (समृद्धि), प्रेस्टीज(प्रतिष्ठा), प्लेशर (आनन्द) तथा पोसिशेन (स्थिति) की प्राप्ति की आकांक्षा के साथ समाप्त किया। विवेक ओबेरॉय, जो शांति के राजदूत की भूमिका के रूप में उपस्थित थे, ने भी मंत्री के साथ एनसीआई समारोह में भाग लेने हेतु विदा ली।
आध्यात्मिक धर्मों में शांति और सद्भाव पर बोलने के लिए आध्यात्मिक नेताओं में से सबसे प्रथम मौलाना डॉ कल्बे सादिक ने इस समय सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनी जा रही बाबरी मस्जिद के मामले का संदर्भ दिया। उन्होंने कहा कि यदि निर्णय हिंदू समुदाय के पक्ष में होता है तो उनके समुदाय को इसे स्वीकार करना चाहिए और यदि वह मुस्लिम समुदाय के पक्ष में है तो उन्हें दूसरे पक्ष को जमीन देनी चाहिए क्योंकि भेंट देना विवादों को सुलझाने का एक तरीका है। अकाल तख्त के मुख्य जत्थेदार ज्ञानी गुरबचन सिंह ने कहा कि दृश्य रूप में अंतर के बावजूद सभी धर्मों में एकता है क्योंकि वे एक आम संदेश देते हैं।
आर्कबिशप फेलिक्स एंथोनी मचाडो ने हमारे हृदयों में शांति की आवश्यकता की बात की, यदि हम विश्व में शांति निर्मित करने की खोज में हैं। उन्होंने कहा, जो आवश्यक है वह है एकता और सत्य। केंद्रीय कृषि और पंचायत राज मंत्री ने आध्यात्मिक नेताओं के प्रति सम्मान भाव से अभिनन्दन व्यक्त किया। केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन, साथ ही पृथ्वी विज्ञान मंत्री, डॉ हर्षवर्धन ने ४००० से अधिक की संख्या के श्रोताओं को बताया कि भारत को आगे ले जाने के लिए जो कुछ भी किया जा सकता है उसे लेकर सरकार दृढ़ है पर उसे लोगों के समर्थन और भागीदारी की आवश्यकता है।
आचार्य डॉ लोकेश मुनि ने योग में व्यापक रुचि जगाने के लिए स्वामी रामदेव की सराहना की। परम पावन द्वारा सुझाई गई स्कूल के पाठ्यक्रम में शांति और अहिंसा की शिक्षा शामिल करने की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए, उन्होंने संघर्ष के स्थानों पर हिंसा का सहारा न लेने के लिए परम पावन के आग्रह के संदेश को भी पहुँचाने का सुझाव दिया।
स्वामी रामदेव ने एक विशिष्ट घोषणा के साथ प्रारंभ किया- "भारत माता की जय"। एक लंबे उद्बोधन के दौरान उन्होंने सुझाया कि चीन को यह जान लेना चाहिए कि सभी प्रमुख धर्म शांति और अहिंसा के बारे में हैं। परिणामस्वरूप, भारत, जो एक धार्मिक देश है, बातचीत में संलग्न होने के लिए तैयार है, पर यदि उसका प्रतिद्वंद्वी युद्ध चाहता है तो वह उसके लिए भी तैयार है। जैनाचार्य नमरा मुनि ने कहा कि चूँकि मध्याह्न भोजन का समय हो चुका है वह परम पावन को विलंबित नहीं करना चाहते।
परम पावन को सहारा देकर खड़ा किया गया और उन्होंने मंच पर अपना स्थान लिया। सदैव की भांति उन्होंने अपना संबोधन प्रारंभ कियाः
"आदरणीय आध्यात्मिक भाइयों और .......अरे, कोई बहन नहीं है?
"मैं इस बैठक में आध्यात्मिक नेताओं के बीच होते हुए बहुत खुश हूँ, जो न केवल अपने अभ्यास को ईमानदारी से निभाते हैं पर उनके सामने आई समस्याओं का समाधान अहिंसात्मक तरीके से करने हेतु कार्रवाई भी करते हैं। साधारणतया मैं लोगों से कहता हूँ कि मैं स्वयं को आज जीवित ७ अरब मानवों के अतिरिक्त किसी अन्य रूप में नहीं मानता। मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक रूप से हम समान हैं। मेरे कुछ मित्रों के चेहरे पर बहुत बाल हैं, जो मेरे नहीं पर मूलतः हम समान हैं।
"सम्पूर्ण ७ अरब मनुष्य सुख व आनन्द चाहते हैं, पर उसके स्थान पर उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है - जिनमें से कई मानव निर्मित हैं। तो, एक विरोधाभास है, कोई भी समस्याएँ नहीं चाहता और फिर भी हम उन्हें स्वयं पर लाते हैं। यह किस तरह होता है? हमारी भावनाओं के परिणामस्वरूप, विशेषकर हमारी विनाशकारी भावनाओं के कारण।
"क्रोध और ईर्ष्या हमारे आत्म-केंद्रितता की भावना और दूसरों के प्रति हमारी उपेक्षा से संबंधित हैं। आत्म-केंद्रितता सरलता से भय को जन्म देती है, जो खीज को बढ़ाती है और वह जब क्रोध बनकर भड़कती है तो हिंसा को उकसा सकती है। समय आ गया है कि यदि हम विश्व में शांति की बात कर रहे हैं तो हमें अपनी आंतरिक शांति पर विचार करना होगा।
"इस देश में, सहस्रों वर्षों से अहिंसा कार्रवाई के मार्ग की विशेषता रहा है, पर यह करुणा द्वारा प्रेरित होने से संबंधित है। एक ओर यदि हमारा व्यवहार आत्म-केंद्रित है, एक कृत्रिम मुस्कुराहट और दूसरों को मीठे शब्दों से धोखा देने का प्रयास है - तो यह एक प्रकार की हिंसा है। दूसरी ओर जब माता-पिता या शिक्षक, मेरे शिक्षक की तरह, मात्र एक बच्चे के हित की सोचते हुए कठोर शब्दों का प्रयोग करते हैं, तो वह अहिंसक है।
"इस तरह हिंसा और अहिंसा के बीच का अंतर केवल कार्य की प्रकृति के बारे में नहीं है, यह प्रेरणा के बारे में है। यही कारण है कि हमें करुणा पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है, जो वैज्ञानिक कहते हैं कि हमारी आधारभूत मानवीय प्रकृति है। वे यह भी कहते हैं कि निरंतर भय, क्रोध और शंका हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को दुर्बल करते हैं, जबकि करुणा में हमारे स्वास्थ्य को सबल करने का प्रभाव है।"
परम पावन ने हमारी माताओं से हमारे जन्म और पोषण के हमारे सामान्य मानव अनुभव की बात की। उन्होंने टिप्पणी की कि कुछ वैज्ञानिकों ने सुझाया है कि हमारे मस्तिष्क के उचित विकास के लिए माँ का शारीरिक स्पर्श महत्वपूर्ण है। हम सभी प्रेम व स्नेह की सराहना करते हुए बड़े होते हैं। हम सीखते हैं कि ईर्ष्या हमें सुखी नहीं करती, जबकि यदि हम एक दूसरे के साथ ईमानदारी, सच्चाई और पारदर्शी रूप से व्यवहार करें तो हम संतुष्ट रहेंगे।
उन्होंने कहा कि सामान्य ज्ञान हमें बताता है कि हमारा पड़ोसी समृद्ध हो सकता है, पर यदि उस परिवार के सदस्य एक दूसरे का विश्वास नहीं करते, तो वे सुखी न होंगे। दूसरी ओर कुछ ही दूरी पर एक निर्धन परिवार के पास बहुत कम है, पर चूँकि वे एक दूसरे पर विश्वास व स्नेह रखते हैं, वे आनंद से भरे हुए होते हैं। उन्होंने सुझाया कि शिक्षा प्रणाली, जो आंतरिक मूल्यों के स्थान पर भौतिक लक्ष्यों की ओर उन्मुख है, हमारी असहजता में योगदान देती है।
"यदि शिक्षा चित्त तथा भावनाओं के प्रकार्य के विषय में प्राचीन भारतीय ज्ञान पर अधिक ध्यान दे तो हम सीख पाएंगें कि चित्त की शांति किस तरह प्राप्त की जाए। हम शिक्षािवदों और वैज्ञानिकों के साथ कार्यरत हैं ताकि बालवाड़ी से विश्वविद्यालय तक लागू करने के लिए एक पाठ्यक्रम तैयार किया जा सके। हम इसे एक धर्मनिरपेक्ष आधार पर करने का प्रस्ताव करते हैं - धर्मनिरपेक्ष का अर्थ मात्र पूर्वाग्रह के बिना सभी धार्मिक परम्पराओं के प्रति सम्मान ही नहीं, अपितु उन लोगों के विचारों का भी सम्मान करता है जिनकी कोई आस्था नहीं। यदि भारत प्राचीन भारतीय ज्ञान के साथ आधुनिक शिक्षा को जोड़ सके तो वह सभी ७ अरब मनुष्यों के हित में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है।"
परम पावन ने उल्लेख किया कि वह इस जागरूकता को बढ़ाने को लेकर प्रतिबद्ध हैं कि किस तरह शिक्षा और सामान्य ज्ञान द्वारा एक अधिक सुखी, अधिक शांतिपूर्ण विश्व लाया जाए। इस देश में ५८ वर्ष बिताने के बाद उन्होंने प्रशंसित भाव से देखा है कि यहाँ किस तरह जन्म ली हुई धार्मिक परम्पराओं ने उन परम्पराओं के साथ सह अस्तित्व रखा है जो बाहर से आई हैं। इस संबंध में भारत विश्व के लिए एक उदाहरण है। उन्होंने कहा कि यह सोचना भी संभव नहीं है कि धार्मिक आस्था संघर्ष का स्रोत हो। यद्यपि अभी ऐसे स्थान हैं, जहाँ एक ही आस्था में संघर्ष होता है - उदाहरण के लिए सुन्नी व शिया परम्पराओं के बीच - ऐसा कुछ जो भारत में नहीं देखा गया।
"मैं जहाँ भी जाता हूँ, लोगों को बताता हूँ कि धार्मिक सद्भाव के संबंध में, भारत एक जीवंत उदाहरण है कि धार्मिक परम्पराएं शांति और सम्मान के साथ सह अस्तित्व रख सकती हैं।
"एक तिब्बती के रूप में मैं उस ज्ञान को भी संरक्षित करने के लिए चिंतित हूँ जो प्रथम बार आचार्य शांतरक्षित द्वारा ८वीं सदी में तिब्बत में लाया गया। यह नालंदा विश्वविद्यालय की परम्पराओं को प्रतिबिम्बित करता है, जिसका हमने संरक्षण किया है और जिसे चीन की पीपुल्स रिपब्लिक के बौद्धों द्वारा सराहा जा रहा है। भारत हमारा गुरु है और हम विश्वसनीय चेले प्रमाणित हुए हैं, क्योंकि हमने इन दार्शनिक परम्पराओं, तर्कशास्त्र और चित्त की समझ को जीवित रखा है। अब, मैंने भारत में इस प्राचीन ज्ञान को पुनर्जीवित करने के प्रयास की प्रतिबद्धता ली है, जिसके लिए मैं समझता हूँ कि यह एकमात्र देश है जो इसे शिक्षा के आधुनिक दृष्टिकोण से संयुक्त कर सकता है।"
अपने अपने गंतव्य की ओर जाने से पूर्व परम पावन और कई आध्यात्मिक नेताओं ने सौहार्दपूर्ण मैत्री भाव से मध्याह्न का भोजन साथ मिलकर किया।