नई दिल्ली, भारत - परम पावन दलाई लामा आज प्रातः जब उनके परिवार के घर लौटे तो श्री और श्रीमती अनलजीत सिंह, उनके बेटे वीर, साथ ही श्री और श्रीमती नजीब जंग ने उनका स्वागत किया। उन्होंने घर से होते हुए बगीचे में एक शामियाने के नीचे मंच पर उनका अनुरक्षण किया। कल जो मार्ग और पृष्ठभूमि सुनहरे गेंदों से मंडित था उसके स्थान पर आज श्वेत कारनेशन सजा था। ३३० से अधिक श्रोता, जिनमें अधिकतर भारतीय थे जो २१वीं सदी में युवा हुए हैं, ने मुस्कान और सम्मान भरे नमस्कार के साथ परम पावन का अभिनन्दन किया।
'हृदय सूत्र', प्रज्ञा पारमिता के संक्षिप्त पाठ के उपरांत परम पावन ने अपने समक्ष एकत्रित सभी लोगों को संबोधित किया।
"सभी को सुप्रभात," उन्होंने प्रारंभ किया, "मैं इसे एक औपचारिक बौद्ध प्रवचन नहीं मानता जितना कि नालंदा आचार्यों द्वारा प्रस्तुत विचारों की एक अकादमिक समीक्षा मानता हूँ जो आज भी उपयोगी बनी हुई है। मनुष्य के रूप में हममें सदैव अपने आप में सुधार लाने की क्षमता है, यह स्मरण रखते हुए कि बुद्ध ने सम्यक संबुद्धत्व की प्राप्ति प्रार्थना के माध्यम से नहीं अपितु मार्ग का अनुसरण कर की। जैसा कि 'हृदय सूत्र' में आता है कि सभी बुद्ध जो प्रज्ञापारमिता पर आश्रित्य होकर त्रिकाल में व्यवस्थित हैं वे प्रकट होकर अनुत्तर सम्यक्संबोधि को प्राप्त करते हैं। जिस मंत्र से इसकी इति होती है वह इसे प्रकट करता है - 'तद्यथा गते गते पारगते पारसंगते बोधि स्वाहा - यह इस प्रकार है: जाएँ, आगे जाएँ, उससे पार जाएँ, उचित रूप से पार जाएँ, बोधि में स्थापित हों' जो अभ्यासियों को पांच मार्गों से आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करता है।
"गते गते - जाएँ, आगे जाएँ संभार मार्ग तथा प्रयोग मार्ग और शून्यता के प्रथम अनुभव को इंगित करता है, पारगते - उससे पार जाएँ, दर्शन मार्ग को इंगित करता है, शून्यता की प्रथम अंतर्दृष्टि और प्रथम बोधिसत्व भूमि की प्राप्ति, पारसंगते - उचित रूप से पार जाएँ - भावना मार्ग और बाद की बोधिसत्व भूमियों को इंगित करता है, जबकि बोधि स्वाहा - बोधि में स्थापित हों - सम्यक संबुद्धत्व की आधारशिला रखने का संकेत है।
"बुद्ध बहुत पहले एक साधारण व्यक्ति थे जिन्होंने बुद्धत्व की प्राप्ति के लिए प्रभास्वरता अथवा तथागत गर्भ का विकास करते हुए बुद्धत्व प्राप्त करने हेतु प्रयास किया।"
परम पावन ने समझाया कि क्लेश मिथ्या दृष्टि पर आधारित हैं जिन पर काबू पाया जा सकता है क्योंकि वे निराधार हैं, जबकि सम्यक् दृष्टि भली भांति स्थापित हैं। उन्होंने एक सामान्य परिचय और किसी शिक्षा के मुख्य विषय के बीच के अंतर की ओर ध्यानाकर्षित किया। उन्होंने स्मरण किया कि जब वे बहुत छोटे थे तो जो वे जिसका अध्ययन कर रहे थे उसमें वे बहुत रुचि उत्पन्न नहीं कर सके, पर एक बार जब उन्हें वह समझ आने लगा तो उनके मन में बहुत उत्साह जागा।
परम पावन ने एक २०वीं सदी के तिब्बती आचार्य न्येनगोन सुंगरब के प्रति अनुमोदन को संदर्भित किया जिन्होंने बौद्ध शिक्षाओं की सामान्य संरचना और वे शिक्षाएँ जो विशेषकर विशिष्ट शिष्यों या शिष्यों के समूहों के लिए अनुकूल थे, को वर्गीकृत किया। इस दृष्टिकोण से देखने पर नालंदा पंडितों के ग्रंथ और सूत्र के संग्रह बौद्ध शिक्षाएँ की सामान्य संरचना के वर्ग में आते हैं। दूसरी ओर तांत्रिक शिक्षाएँ, अत्यंत विशिष्ट शिष्यों के अनुकूल हैं।
परम पावन तर्क दिया कि तिब्बत में बौद्ध निर्देश की सामान्य संरचना के संरक्षण पर पर्याप्त ध्यान न देकर इन विशेष शिक्षाओं और उनके वंशावली और अनुष्ठानों को बनाए रखने पर बहुत ज़ोर दिया जाता था। उन्होंने डोमतोनपा ने जिस तरह महत् कार्यों, गहन वंशावली और अभ्यास की वंशावली के बीच अंतर स्पष्ट किया, उसके प्रति शंका व्यक्त की मानों पहले दोनों का अभ्यास करना ही न हो। उन्होंने यह भी इंगित किया कि बूंदें, नाड़ियाँ और स्वप्न योग हिंदू और बौद्ध तंत्र दोनों में पाया जा सकते हैं। खुनु लामा रिनपोछे के अनुसार जो उन्हें अलग करता है वह यह कि बौद्ध तंत्र शून्यता की समझ पर आधारित है। वास्तव में परम पावन ने टिप्पणी की कि शून्यता की समझ के बिना बौद्ध तंत्र का अभ्यास व्यर्थ है।
इस बिंदु की ओर संकेत करते हुए कि बुद्ध की शिक्षाओं का अभ्यास उत्साह और सकारात्मक उद्देश्य से प्रेरित किया जाना चाहिए, परम पावन ने स्पष्ट किया कि भय के लिए कोई स्थान नहीं है। उन्होंने खम में एक आगंतुक की कहानी सुनाई जो विहार के उपाध्याय से मिलने गया था, पर उसे बताया गया कि वह 'वयोवृद्ध लोगों को भयभीत करने के लिए स्थानीय गांव गया था।' परम पावन ने चार आर्य सत्य का अध्ययन करने के महत्व को समझाया, उनके सोलह अंग और बोध्यांग के ३७ तत्व, जो इस विश्वास को जन्म देता है निरोध की प्राप्ति संभव है - तो मार्ग के अनुसरण का एक उद्देश्य है। परम पावन ने थाई भिक्षुओं के एक समूह जो उनसे मिलने आए थे से पूछने की सूचना दी कि वे अपने चार आर्य सत्य के अध्ययन को तर्क पर आधारित करते हैं अथवा ग्रंथीय उद्धरण पर और वे ग्रंथीय उद्धरण को लेकर स्पष्ट थे। परन्तु संस्कृत परम्परा कारण, तर्क और विश्लेषण के उपयोग पर बहुत अधिक बल देती है।
परम पावन ने बुद्ध के तीन धर्म चक्र प्रवर्तनों, सारनाथ में चार आर्य सत्यों की व्याख्या, राजगीर में प्रज्ञापारमिता की व्याख्या और वैशाली में तथागत गर्भ, चित्त की प्रभास्वरता की व्याख्या की समीक्षा की।
चाय के अंतराल के उपरांत परम पावन ने घोषणा की कि उन्होंने अपनी भूमिका में नागार्जुन के ग्रंथ की आवश्यक विषय सामग्री को समझाया था, तो वह इसे और नहीं पढ़ेंगे। उन्होंने नागार्जुन की एक रचना 'सुह्ललेख' की तुलना रत्नावली से की। उन्होंने टिप्पणी की कि प्रथम अध्याय बताता है आपका आचरण किस तरह का हो ताकि एक अच्छे पुनर्जन्म की प्राप्ति सुनिश्चित हो। पांचवा अध्याय समझाता है कि परोपकारिता का विकास किस तरह हो। दूसरा अध्याय, शून्यता की व्याख्या करता है जबकि अध्याय तीन और चार एक राजा के उचित आचरण पर केन्द्रित हैं। बुद्ध को एक विचारक और एक वैज्ञानिक के रूप में बताते हुए परम पावन ने मातृचेट के प्रसिद्ध छंद को उद्धृत किया:
बुद्ध पाप को जल से धोते नहीं,
न ही जगत के दुःखों को अपने हाथों से हटाते हैं;
न ही अपने अधिगम को दूसरों में स्थान्तरण करते हैं;
वे धर्मता सत्य देशना से सत्वों को मुक्त कराते हैं।
समाप्त करते हुए उन्होंने कहा कि बुद्ध ने जो शिक्षा दी हम उसका अभ्यास करते हैं या नहीं वह हम पर निर्भर है।
श्रोताओं से प्रश्नों के उत्तर में परम पावन ने आशावाद की भावना बनाए रखने की आवश्यकता, सद्गुणों को प्रोत्साहित करने में कला की भूमिका और संभावना कि भविष्य में दलाई लामा एक महिला हो सकती हैं को छुआ।
नजीब जंग ने धार्मिक व्यवहारों को उनके संस्थापकों के समय से बंधे रहने, जिसका परिणाम यह है कि आज समलैंगिकता, लैंगिक समानता और प्राकृतिक पर्यावरण के संरक्षण को लेकर धार्मिक दृष्टिकोण स्पष्ट नहीं हैं, के बारे में पूछा। परम पावन ने सुझाया धार्मिक परम्पराओं के तीन पक्ष हैं - धार्मिक अभ्यास, दर्शन और सांस्कृतिक परम्पराएँ। धार्मिक अभ्यास का मूल संदेश प्रेम का महत्व है। सृजनकर्ता के अस्तित्व या उसके न होने के विभिन्न दर्शन उसके समर्थन पर केंद्रित हैं। परन्तु सांस्कृतिक प्रथाएँ, जिनका संबंध एक पूर्व समय से है, को समकालीन रीति रिवाज़ और आवश्यकताओं के अनुसार परिवर्तन के अधीन होना चाहिए।
जब सत्रांत हुआ तो विद्यालोके की ओर से वीर सिंह ने उन सभी को धन्यवाद दिया जिन्होंने इस कार्यक्रम को सफल बनाने में योगदान किया था और भविष्य में इसी तरह के अवसरों की आशा की। श्रोता एक सामूहिक तस्वीर के लिए परम पावन के आसपास एकत्रित हुए और मध्याह्न भोजन के लिए बिखर गए जिसके बाद परम पावन अपने होटल लौट आए। कल वे तालकटोरा स्टेडियम में 'समकालीन भारत में भारतीय ज्ञान को पुनर्जीवित करने पर' एक सार्वजनिक व्याख्यान देंगे जिसका आयोजन भी विद्यालोके ने किया है।