अमरावती, आंध्र प्रदेश - आज प्रातः जब परम पावन दलाई लामा दिल्ली में अपने होटल से आंध्र प्रदेश में विजयवाड़ा की यात्रा के लिए रवाना हुए तो ठंड थी और अंधेरा छाया हुआ था। गन्नवरम हवाई अड्डे पर कोहरे के कारण उनकी उड़ान के उतरने में विलम्ब हुआ, परन्तु आंध्र प्रदेश विधान सभा के सभापति डॉ कोडेला शिव प्रसाद राव, मंत्री पल्ले रघुनाथ रेड्डी और डी उमामहेश्वर राव साथ ही विजयवाड़ा के पुलिस आयुक्त गौतम सवंग गुलदस्ते और नाश्ते के साथ उनका स्वागत करने की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने पत्रकारों को, जो उनके शब्दों की प्रतीक्षा कर रहे थे, को बताया कि मानव सुख के लिए चित्त की शांति आवश्यक थी और कहा कि वह आंध्र प्रदेश लौटते हुए प्रसन्न थे, जो उनके अनुसार नागार्जुन जैसे अतीत के महान बौद्ध आचार्यों का निवास रहा है।
इसके पहले कि वे विशाल मंच पर अपना स्थान ग्रहण करते, परम पावन ने उनके और सह अतिथियों, श्री वेंकैया नायडू, श्रीमती किरण बेदी, श्रीमती इला बेन भट्ट के साथ बातचीत में कुछ समय बिताया।
राष्ट्रीय गीत और राज्य गान गाए गए और एक उद्घाटन दीप प्रज्जवलित किया गया। सम्मेलन के अध्यक्ष सभापति डॉ कोडेला शिव प्रसाद राव ने अतिथियों और प्रतिभागियों का समान भाव से स्वागत किया तथा अवसर का परिचय दिया, यह कहते हुए कि राष्ट्रीय महिला संसद में भाग लेते हुए वे कितने सौभाग्यशाली और प्रसन्नता का अनुभव कर रहे थे। उन्होंने कहा कि उद्देश्य महिलाओं के सशक्तिकरण और नेताओं के रूप में निर्णय लेने में उनकी बढ़ती भागीदारी को प्राप्त करना था।
एक लंबा उत्साह भरा वक्तव्य, जो अधिकांश रूप से अंग्रेजी में था, में मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने सभी अतिथियों और १०,००० श्रोताओं का स्वागत किया। उन्होंने इस कार्यक्रम की मेजबानी करते हुए अपनी गहन प्रसन्नता व्यक्त की और टिप्पणी की कि वह इसे ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण मानते हैं कि यह कृष्णा और गोदावरी नदियों के संगम और नागार्जुन, जिनके छात्र के रूप में परम पावन स्वयं को मानते हैं, के साथ जुड़े एक क्षेत्र के निकट हो रहा है। उन्होंने आगे कहा कि तेलुगू देशम पार्टी के संस्थापक एन टी रामाराव, जिसका नेतृत्व वे अब कर रहे हैं, ने महिलाओं का सम्पत्ति अधिकार और बेहतर शिक्षा के अवसर को प्रारंभ करने का मार्ग प्रशस्त किया था। उन्होंने पूरी तरह से महिलाओं को सशक्त बनाने और महिलाओं के लिए कई अवसरों के लिए ३३% आरक्षण प्रारंभ करने के अपने उद्देश्य को दोहराया। उन्होंने आशा व्यक्त की कि महिलाओं का स्वप्न एक दृष्टिकोण बन जाएगा जो बाद में एक यथार्थ का रूप लेगा।
मुख्य अतिथि शहरी विकास मंत्री श्री एम वेंकैया नायडू ने अंग्रेजी, तेलुगू और हिंदी के मिश्रित रूप में उत्साहजनक रूप से संबोधित किया। उन्होंने भी घोषणा की वह राष्ट्रीय महिला संसद में भाग लेते हुए कितने खुश थे जहाँ महिलाओं के मुद्दों पर चर्चा की जा सकती है, बहस की जा सकती है और निर्णय लिया जा सकता है - जो लोकतंत्र के सिद्धांत हैं। उन्होंने टिप्पणी की कि महिलाएँ पहले से ही अपने बच्चों, उनके परिवारों और घर की देखभाल करते हुए बहुत काम कर रही हैं, पर यह कार्य जीडीपी में शामिल नहीं है। उन्होंने महिलाओं को गुमनाम हीरो के रूप में संदर्भित किया।
उन्हें संबोधन के लिए आमंत्रित किए जाने से पूर्व एक लघु चित्र द्वारा श्रोताओं को परम पावन की गतिविधियों का परिचय कराया गया ।
"यद्यपि मैं आमतौर पर मैं भाइयों और बहनों के रूप में अभिनन्दन कर प्रारंभ करता हूँ पर आज मैं सबसे पहले बड़ी बहनों और छोटी बहनों और साथ ही अपने छोटे भाइयों को भी सलाम करना चाहूँगा।
यह मेरा आधारभूत विश्वास है कि मनुष्य के रूप में हम सभी एक समान हैं। सभी जीवित ७ अरब मनुष्य अनिवार्य रूप से शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से समान हैं। मेरा मानना है कि हमें मानवता की एकता की भावना के साथ मिलकर काम करने की आवश्यकता है। जिन कई समस्याओं का सामना हम आज कर रहे हैं, वे हमारे 'हम' और 'उन' के संदर्भ में दूसरों देखने की हमारी प्रवृत्ति से आती है।
"बच्चे इस तरह भेदभाव नहीं करते, वे दूसरों को सहजता के साथ स्वीकार करते हैं। परन्तु जैसे वे बड़े होते हैं, वे हमारे बीच जो समानता है उसके बजाय आपसी अंतर पर अधिक ध्यान देते हैं - जैसे कि राष्ट्रीयता, धर्म और लिंग। आधारभूत रूप से मनुष्य के रूप में, हम समान हैं।
"मैं मानवता की एकता के आधार पर भाईचारे और भगिनीचारे की भावना को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध हूँ। मैं प्रायः लोगों को बताता हूँ कि मानव समाज के प्रारंभिक दिनों में, लोग शिकार करते और भोजन जमा करते थे और जो कुछ भी उनके पास होता उसे आपस में बांट लेते थे। बाद में जब कृषि और संपत्ति के विचार उभरे तो एक नेतृत्व की आवश्यकता ने जन्म लिया। और चूँकि कसौटी शारीरिक शक्ति थी, पुरुष प्रमुख बन गए। तब से बेहतर शिक्षा समानता की संभावना को लेकर आई, पर आज हमारी शिक्षा व्यवस्था ही अपर्याप्त है। बच्चे स्वाभाविक रूप से ईमानदार, खुली प्रकृतिवाले तथा करुणाशील होते हैं, पर चूँकि इन गुणों को पैसा बनाने या बल प्रयोग के लिए प्रासंगिक नहीं माना जाता वे और अधिक भौतिक लक्ष्यों को अपनाते हुए बड़े होते हैं।
"हमें दया और करुणा को बढ़ावा देने हेतु अधिक से अधिक प्रयास करना है, ये गुण जिनमें महिलाएँ स्वाभावतः अधिक निपुण हैं तो यदि हम सफल होना चाहते हैं तो महिलाओं का नेतृत्व आवश्यक है।
"यदि २१वीं सदी को २०वीं से अलग होना है, तो जैसी स्थिति है हम उससे आत्मतुष्ट नहीं रह सकते, यदि कुछ भी परिवर्तित न होगा तो दुःख के अलावा कुछ भी न होगा। यहाँ इस समय हम शांतिपूर्वक ढंग से महिलाओं के सशक्तिकरण पर चर्चा कर रहे हैं, जबकि अन्य स्थानों पर लोग एक दूसरे की हत्या कर रहे हैं। हम दूसरों की अपने बहनों और भाइयों के रूप में पहचान करना चाहिए और यदि हम ऐसा करें तो हम २१वीं सदी को शांति का युग बना सकते हैं।
"विश्व में शांति आंतरिक शांति पर निर्भर करती है। यदि हममें यह हो तो हम समस्याओं को संवाद के माध्यम से देखेंगे, करुणा तथा दूसरों के अधिकारों के प्रति सम्मान की भावना - यह शस्त्रों और बल के प्रयोग की तुलना में कहीं बेहतर समाधान है। बाहरी निरस्त्रीकरण, भीतरी निरस्त्रीकरण पर निर्भर करता है जिसमें महिलाओं को विशिष्ट भूमिका निभानी है। मेरे अपने अनुभव में, मेरे लिए करुणा की पहली शिक्षक मेरी माँ थी। मैंने कभी उनके चेहरे पर क्रोध नहीं देखा। सभी ७ अरब मनुष्यों का जन्म माँ से होता है और उनमें से अधिकांश उसके स्नेह की शरण का आनंद लेते हैं।
"प्रयोग और जांच के माध्यम से वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला है कि आधारभूत मानव प्रकृति करुणाशील है। यह आशा का एक स्रोत है। उन्होंने यह भी स्थापित किया है कि महिलाएँ दूसरों के दुख और संकट के प्रति अधिक संवेदनशील हैं। चूंकि योद्धा और अन्य जो दूसरों की शांति को भंग करते हैं, वे पुरुष हैं तो यदि हमारे अधिकांश देशों का नेतृत्व महिलाएँ करें तो मेरा मानना है कि विश्व एक अधिक सुरक्षित स्थान होगा।
"हमें मात्र सौहार्दता की ही आवश्यकता नहीं है, पर साथ ही पूर्ण रूप से अपनी बुद्धि का उपयोग करने की आवश्यकता है। क्रोध, हमारी बुद्धि तथा और एक व्यापक दृष्टिकोण से चीजों को देखने की क्षमता को ढांक देता है जबकि शिक्षा को हमारे आधारभूत मानवीय मूल्यों को सशक्त करना चाहिए।
"महिलाओं को अधिक आत्मविश्वास का विकास करना चाहिए। अपने आप को कमज़ोर न समझें। आप में पहले से ही करुणा को विकसित करने की क्षमता है, पर इसके अतिरिक्त जिसकी आपको आवश्यकता है वह है निरंतर दृढ़ता।"
परम पावन ने समाप्त करते हुए कहा कि पूर्व वक्ताओं ने इतनी वाकपटुता से जो बातें कही थी उसमें उनकी तरफ से जोड़ने के लिए बहुत कम था, पर वे महिलाओं के वास्तविक उत्थान को देखने में उनके साथ थे।
बैठक के संयोजक श्री राहुल कराड ने समझाया कि उन्होंने किस तरह महिलाओं के लिए संसद के विचार की ओर श्री चंद्रबाबू नायडू का ध्यान आकर्षित किया था और उनका समर्थन जीता था। परन्तु नायडू ने निर्धारित किया कि इसे राज्य विधानसभा के तत्वावधान में होना चाहिए और इसी कारण सभापति बैठक के अध्यक्ष बन बने। कराड ने मुख्यमंत्री की दृष्टि और प्रतिबद्धता की भूरि भूरि प्रशंसा की।
किरण बेदी, जो भारतीय पुलिस सेवा की पहली महिला अधिकारी थीं और जो अपनी सेवानिवृत्ति के बाद एक सामाजिक कार्यकर्ता और राजनेता बनी, अगलीं वक्ता थीं। उन्होंने दो बार "नमस्कार" कहते हुए प्रारंभ किया जब तक कि उन्हें प्रतिक्रिया में श्रोताओं की आवाज़ न सुनाई दी। उन्होंने घोषणा की, कि महिलाएँ जो भी अवसर उन्हें प्रदान किए जाते हैं उसमें उतनी ही अच्छी होती हैं, चाहे वे परिवार, गांव या व्यापक समुदाय में हों। यदि उन्हें अवसर प्रदान किया जाए तो ऐसा कुछ नहीं जो महिलाओं को ऊँचाइयों तक पहुँचने में रोक सके। अवसर उत्पन्न करने के लिए अवसर का उपयोग नेतृत्व पैदा करने का एक मार्ग है। साहस के साथ महिलाएँ बेहतर अभिभावक, शिक्षक व नेता हो सकती हैं।
उन्होंने स्वच्छ भारत अभियान का उदाहरण दिया और राज्यपाल के रूप में अपने अनुभव बताए कि नालियों की सफाई के लिए कितनी राशि खर्च की गई थी जिसकी आवश्यकता न होती यदि लोग कचड़े को फेंकने को लेकर अधिक जागरूक होते। उनका मानना है कि इस तरह के सामान्य ज्ञान का नेतृत्व महिलाओं को सरलता से आता है और बचाया गया पैसा शिक्षा में योगदान के लिए बेहतर रूप से इस्तेमाल किया जा सकता है।
श्रीमती शिरीन शर्मिन चौधरी, बांग्लादेश संसद की अध्यक्षा, जहाँ प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता दोनों महिलाएँ हैं, ने पूछा कि क्यों हम अभी भी महिलाओं के सशक्तिकरण विषय पर बात कर रहे हैं और उत्तर दिया कि क्योंकि यह अभी भी अधिकांश महिलाओं के लिए एक वास्तविकता नहीं है। उन्होंने स्पष्ट किया कि सहभागितापूर्ण लोकतंत्र को समावेशी लोकतंत्र होना चाहिए।
कार्यक्रम की संरक्षिका, वयोवृद्धा गांधीवादी श्रीमती इला बेन भट्ट ने पूछा कि क्या वास्तव में महिलाओं की आवाज है, यदि मतदाताओं में ४८% महिलाएँ हैं, पर उन्हें मात्र ११% का प्रतिनिधित्व प्राप्त है। उन्होंने कहा कि महिलाओं के मुद्दे राष्ट्र के मुद्दे हैं।
अभिनेत्री और सद्भावना दूत श्रीमती मनीषा कोइराला ने पूछा कि क्या किसी ने भी किसी पंछी को एक पंख से उड़ान भरते देखा है, जिसमें निहित सुझाव यह था कि यह यह केवल पुरुषों के हितों को बढ़ावा देने और महिलाओं के सशक्तिकरण को सीमित करने जैसा बेतुका है। उन्होंने सुझाया कि एक पितृसत्तात्मक समाज में एक पुत्र के जन्म को खुशी के साथ मनाया जाता है। क्या एक लड़की के लिए भी ऐसा ही है? उन्होंने सूचित किया कि जब उनका जन्म हुआ था और उनके दादा को बताया गया तो उनका चेहरा उतर गया। उनकी मां अत्यंत आहत हुईं और हफ्तों तक उनसे बात नहीं की और बहुत बाद में जब उन्हें यह बात बताई गई तो उन्हें भी बहुत चोट लगी। उन्होंने स्मरण किया कि जब वह छोटी थी और जिस तरह पुरुषों और महिलाओं में इस तरह के दोहरे मापदंड काम में लाए जाते हैं उसे देखा तो उसके विरोध में उन्होंने विद्रोह किया।
जब परम पावन कार्यक्रम से निकले तो उनके प्रति सम्मान जताने और उनके साथ सेल्फी लेने के लिए शुभचिंतकों की निरंतर कतार और जनता के अन्य सदस्यों ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया। इसी के साथ पत्रकार वीडियो कैमरा और अपने प्रश्नों को लेकर उनकी प्रतिक्रया के लिए उनकी दिशा में माइक्रोफोन आगे करते हुए धक्का मुक्की करने लगे। आखिरकार वह अपनी गाड़ी तक पहुँचे और अपने होटल के लिए निकल पाए। कल वे हैदराबाद की यात्रा करेंगे।