थेगछेन छोलिंग, धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश, भारत - आज प्रातः परम पावन दलाई लामा ने अपने निवास पर, प्रथम तिब्बती महिला सशक्तीकरण सम्मेलन में भाग ले रहीं ३०० से अधिक प्रतिनिधियों को संबोधित किया। केन्द्रीय तिब्बती प्रशासन द्वारा आयोजित सम्मेलन गंगचेन क्यीशोंग में हो रहा है और समूचे भारत के तिब्बती आवासियों से प्रतिनिधि इसमें शामिल हैं। उन्होंने यह पूछते हुए प्रारंभ किया कि क्या वे उन चर्चाओं से खुश थे, जो वे कर रहे थे और सुझाव दिया था कि मात्र लैंगिक समानता के बारे में बात करने के स्थान पर इसे प्रभावी बनाने पर काम करना बेहतर होगा।
"हम सभी आज जीवित ७ अरब मनुष्यों का एक भाग हैं, पर हममें से कुछ तो बहुत सम्पन्न हैं जबकि कहीं और अन्य भूख से मर रहे हैं। मेरा मानना है कि यदि हम कठोर परिश्रम करें और आत्मविश्वास विकसित करें तो हम इस असमानता को संबोधित कर सकते हैं। वह आंतरिक बल के विकास पर निर्भर करता है और आंतरिक शक्ति का मूल दूसरों के लिए करुणा विकसित करना है।"
टिप्पणी करते हुए कि तिब्बती लगभग ५८ वर्षों से निर्वासन में हैं, परम पावन ने राजेंद्र प्रसाद और सर्वपल्ली राधाकृष्णन् जैसे भारतीय नेताओं से भेंट का स्मरण किया जिनके देश के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति होने के अतिरिक्त उनकी विद्वत्ता ने उन्हें प्रभावित किया था। उन्होंने कहा कि राधाकृष्णन द्वारा संस्कृत में नागार्जुन और चंद्रकीर्ति के श्लोकों के पाठ सुनकर उनके नेत्र छलक उठे थे। साथ ही उन्होंने कहा कि वे यह भी समझ गए थे कि वे न केवल उन श्लोकों का अर्थ भली भांति समझते थे पर उनका अर्थ भी अच्छी तरह से समझा सकते थे।
परम पावन ने इस आत्मविश्वास का श्रेय तिब्बत में किए गए श्रमसाध्य प्रशिक्षण को दिया, जो उस व्यवस्था पर आधारित था जो मूल रूप से ८वीं शताब्दी में शांतरक्षित द्वारा स्थापित किया गया था। इसमें कारण तथा तर्क द्वारा दर्शन की खोज शामिल थी। यह दृष्टिकोण विभिन्न कोणों से संबद्धित विषय की जांच को प्रोत्साहित करता है, जो कुछ ऐसा है जो शिक्षा की किसी भी शाखा में उपयोगी हो सकता है।
उन्होंने कहा कि चूँकि वैज्ञानिक और अधिक रूप से मान रहे हैं कि चित्त की व्याकुल अवस्था हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, इसलिए हमारी भावनाओं के बारे में अधिक जानने की आवश्यकता को लेकर बढ़ती सराहना है और विशेष रूप से यह कि हमारी विनाशकारी भावनाओं से किस प्रकार निपटा जाए।
"विश्व की कई समस्याओँ का कारण क्रोध हो सकता है," परम पावन ने समझाया "सदैव बढ़ते शस्त्र व्यापार क्रोध और भय के मिश्रण पर आधारित हैं और फिर भी शस्त्र किसी भी तरह का लाभ नहीं देते। वे भोजन नहीं प्रदान करते। उनका एकमात्र प्रकार्य अन्य मनुष्यों को अपंग करना और हत्या करना है।"
कई भारतीय परंपराओं ने ध्यान में एकाग्रता का अनुसरण किया और चित्त के कार्य की गहन समझ को एकत्रित किया। यद्यपि यह प्राचीन ज्ञान हाल ही में भारत में उपेक्षित हुआ पर तिब्बत में इसे जीवित रखा गया। और तो और अधिकांश संस्कृत बौद्ध साहित्य को भोट भाषा में अनुवाद करने के लिए किए गए प्रयासों के परिणामस्वरूप यह भाषा इतनी अधिक संवर्धित हुई कि आज भोट भाषा वह माध्यम है जिसके द्वारा यह प्राचीन ज्ञान सटीकता से व्यक्त किया जा सकता है।
परम पावन ने उल्लेख किया कि उन्होंने विहारों को, जो परंपरागत रूप से अनुष्ठानों पर केन्द्रित थे, अध्ययन और शिक्षा पर ध्यान देने के लिए किस तरह प्रोत्साहित किया था। इसी तरह उन्होंने भिक्षुणी विहारों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित किया था। इसका एक परिणाम, उन्होंने गर्व से घोषित किया कि, बीस पूर्ण रूप से योग्य भिक्षुणियों को प्रथम गेशे-मा उपाधि प्रदान की गई। कक्ष में तीन गेशे-मा भिक्षुणियों को संबोधित करते हुए उन्होंने सलाह दी कि अब उनका अपने विहारों तथा विद्यालयों में पढ़ाने का उत्तरदायित्व था।
परम पावन ने साधारण लोगों के लिए भी बौद्ध धर्म और चित्त के आंतरिक विज्ञान के अध्ययन के लिए हाल के दलाई लामा उच्च शिक्षा संस्थान के, मैसूर विश्वविद्यालय के साथ पीएचडी कार्यक्रमों की योजना के प्रस्तावों पर भी बात की।
बौद्ध धर्म में महिलाओं की स्थिति का संकेत देते हुए, परम पावन ने पुष्टि की, कि बुद्ध ने पुरुषों और महिलाओं को समान क्षमता होने के रूप में वर्णित किया था और दोनों को पूर्ण प्रव्रज्या प्रदान की थी। उन्होंने भिक्षुणी परम्परा को प्रारंभ करने या बहाल करने की अभी तक अनसुलझे समस्याओं पर चर्चा की, पर उन्होंने बताया कि एक विशिष्ट वज्रयान नियम महिलाओं के सम्मान को प्रोत्साहित करता है और उन्हें हेय दृष्टि से देखने को वर्जित करता है। इसके अतिरिक्त तिब्बत में महिला पुनर्जन्म जैसे कि समदिंग दोर्जे फगमो को पहचानने की एक स्थापित परम्परा थी।
विश्व में महिलाओं की भूमिका को संदर्भित करते हुए, परम पावन ने वैज्ञानिक निष्कर्षों को बताया कि महिलाएँ दूसरों के कष्टों के प्रति अधिक संवेदनशील होने के साथ-साथ वे एक मां के रूप में महान स्नेह प्रदान करती हैं। उन्होंने समझाया कि किस तरह एक ऐसे समय से जब शिकार एकत्रित करने वाले उनके पास जो कुछ होता उसे सबके साथ बांटा करते थे, से लेकर कृषि के उदय और संपत्ति की भावना के रूप में मानव समाज का विकास हुआ है। इससे नेतृत्व की आवश्यकता हुई और चूंकि मानदंड काफी सीमा तक शारीरिक शक्ति थी, पुरुष वर्चस्व उभरा। तब से शिक्षा ने पुरुषों और महिलाओं के बीच समानता को एक स्तर तक बहाल कर दिया है। परम पावन ने व्यंग्यात्मक रूप से कहा कि, चूँकि साधारणतया महिलाएँ पुरुषों की तुलना में कम आक्रामक होती हैं, यदि अधिक देशों में महिलाओं का नेतृत्व हो तो संभवतः विश्व एक अधिक शांतिपूर्ण स्थान होगा।
परम पावन ने महिलाओं को बढ़ावा देने का उत्तरदायित्व उठाने के लिए कशाग (मंत्रीमंडल) को बधाई देते हुए समाप्त किया और महिलाओं को अवसर का पूरा लाभ उठाने हेतु प्रोत्साहित किया। बैठक का समापन उनके सम्मेलन में भाग लेने वाले विभिन्न समूहों के साथ तस्वीरों के लिए पोज़ करते हुए हुआ।