बोधगया, बिहार, भारत - कालचक्र अभिषेक हेतु पूर्वापेक्षित अनुष्ठान करने में चार घंटे का समय लगाने के लिए परम पावन दलाई लामा अपने आवास नमज्ञल विहार से भोर होते ही निकले। इनमें प्रार्थना, साधना, कलशों का शुद्धीकरण, समक्ष सर्जन, समर्पण, आनुष्ठानिक रोटियों का समर्पण तथा आत्म सर्जन के अभ्यास शामिल हैं। कालचक्र मंदिर के समक्ष मंच पर आने से पूर्व उन्होंने अत्यंत अल्प समय मध्याह्न के भोजन में लगाया। एक बार पुनः उन्होंने प्रत्येक दिशा में जनमानस की ओर देख अभिनन्दन में हाथ हिलाया और हजारों ने हाथ हिलाकर उसका उत्तर दिया। अनुमानतः यहाँ अब ९५ देशों से २००,००० लोग हैं।
लौटते हुए परम पावन सुप्रसिद्ध लामाओं, जो सिंहासन के दोनों ओर बैठे थे, का अभिनन्दन करने के लिए रुके। परम पावन की बाईं ओर जैसा वे दर्शकों के समक्ष हैं, गदेन ठिपा जेचुन लोबसंग तेनजिन, गेलुग परम्परा के आध्यात्मिक प्रमुख; उनके पूर्ववर्ती गदेन ठिसूर रिनपोछे; ञिङमापा के कथोग गेचे रिनपोछे; जंगचे छोजे; शरपा छोजे; मंगोलिया के मुख्य लामा, खम्बो लामा; नमज्ञल विहार के उपाध्याय ठोमथोग रिनपोछे और नेचुंग और छेरिंगमा कुतेन थे। परम पावन की दाईं ओर सक्या परम्परा के प्रमुख सक्या ठिज़िन; कमछंग काग्यू परम्परा के प्रमुख ज्ञलवंग करमापा; तकलुंग शबडुंग, तकलुंग कग्यू परंपरा के शीर्ष; खोनदुंग ज्ञान वज्र रिनपोछे, सक्या ठिज़िन के कनिष्ट पुत्र; शिशु ठुलशिक रिनपोछे; मंगोलिया से वोसेर रिनपोछे और कुन्देलिंग रिनपोछे थे।
आज, 'हृदय सूत्र' का सस्वर पाठ पहले जापानी में और फिर अंग्रेजी में हुआ। परम पावन ने 'अभिसमयालंकार' से वन्दना का नेतृत्व किया जिसके पश्चात नागार्जुन की 'मूलमध्यमकारिका' से उनके प्रतीत्य समुत्पाद की व्याख्या की प्रशंसा करते हुए बुद्ध की वन्दना का पाठ हुआ:
मैं सम्यक संबुद्ध बुद्ध को साष्टांग करता हूँ,
शिक्षकों में सर्वश्रेष्ठ, जिसने उपदेश दिया
वह जो प्रतीत्य समुत्पादित है, वह
निरोधरहित है, उत्पादरहित है
उच्छेदरहित है अशाश्वत है
आगमन रहित, निर्गम रहित,
एकार्थ रहित, नानार्थरहित
जो शांत है और प्रपञ्चरहित है।
"क्योंकि सभी मातृ सत्व सुखी होना चाहते हैं और दुःख नहीं झेलना चाहते," परम पावन ने प्रारंभ किया, "हमारा उन्हें प्रबुद्धता तक ले जाने का उत्तरदायित्व है। यहाँ तक कि प्रारंभ में यह अनुकरण मात्र ही क्यों न हो, पर बोधिचित्त प्रेरणा का विकास करना महत्वपूर्ण है।"
बुद्ध की देशनाओं का एक संक्षिप्त सारांश देते हुए परम पावन ने उल्लेख किया कि उन्होंने प्रथम धर्म चक्र प्रवर्तन में चार आर्य सत्यों की शिक्षा दी, द्वितीय में प्रज्ञा- पारमिता की और तीसरे में चित्त के प्रभास्वरता की।
परम पावन वे कुछ विस्तार से सूक्ष्म चित्त की प्रभास्वरता के विषय में बात की और बताया कि किस प्रकार जाग्रतावस्था का चित्त अपेक्षाकृत स्थूल होता है। स्वप्नावस्था का चित्त और अधिक सूक्ष्म होता है और उससे सूक्ष्म होता है गहन निद्रावस्था का चित्त और सूक्ष्मतम होता है प्रभास्वरता का चित्त जो मृत्यु के समय प्रकट होता है। चित्त की इस सूक्ष्मतम अवस्था में बने रहने की क्षमता उस समय प्रतिफलित होती है जहाँ नैदानिक मृत्यु हो गई है, रक्त संचालन बंद हो गया है, मस्तिष्क का प्रकार्य बंद हो गया है, पर फिर भी शरीर ३ अथवा ४ सप्ताह तक ताजा बना रहता है। वैज्ञानिक इस प्रक्रिया की जाँच का प्रारंभ कर रहे हैं।
परम पावन ने कहा, "चित्त के इन सूक्ष्म स्थितियों तक पहुँचने का एक उपाय स्वप्न दर्शन या स्पष्ट स्वप्न को काम में लाना है। परिणामस्वरूप, आप एक स्वप्न काय प्राप्त कर सकते हैं जो स्थूल काय से पृथक हो सकता है। ध्यान करने वाले इस अवसर को सूक्ष्म चित्त की प्रभास्वरता तक पहुँचने के लिए उपयोग में ला सकते हैं और माया काय प्राप्त कर सकते हैं। कालचक्र अभिषेक द्वारा चित्त की प्रभास्वरता को प्रकट करना हमारा उद्देश्य है।
"मैंने आत्म सर्जन कर लिया है, समर्पण कर लिया है और बाल्यावस्था के रूप से सात अभिषेक देने के लिए अनुज्ञा ले ली है।"
परम पावन ने समझाया कालचक्र तंत्र के साथ बड़े समूहों के लिए अभिषेक देने की एक परम्परा जुड़ी हुई है। उन्होंने बताया कि इस अवसर पर तिब्बत और चीन से कई लोग बोधगया में इस समारोह में भाग लेने के इच्छुक थे, पर उनके नियंत्रण से परे परिस्थितियों के कारण वे ऐसा करने में असमर्थ रहे हैं। उन्होंने कहा कि उनकी भक्ति के परिणामस्वरूप, प्रक्रियाओं का अनुपालन करते हुए और अपने चित्त को उनकी ओर निर्देशित कर, वे दूर रहते हुए भी अभिषेक प्राप्ति को लेकर आश्वस्त हो सकते हैं। उन्होंने इसकी तुलना विनय की दूरस्थ प्रव्रज्या देने से की।
अभिषेक की कार्यवाही मंडल की औपचारिक भेंट से प्रारंभ हुई, जिसमें सिक्योंग डॉ लोबसंग सांगे के नेतृत्व में समूचे मंत्रीमंडल ने भाग लिया। इसके बाद बाधाओं को हटाने, पुष्प वितरण, संवर लेने, योग की उत्पत्ति, रहस्य को बनाए रखने का उपदेश और आँखों पर पट्टी बांध कर मंडल में प्रवेश हुए ।
जब परम पावन समापन अनुष्ठानों और प्रार्थना में संलग्न हुए, उन्होंने श्रोताओं से वापिस जाने का आग्रह किया। परन्तु यह भी घोषणा की गई थी कि रेत मंडल को देखने का अभ्यास भी तत्काल ही प्रारंभ होगा और श्रोतागण ऐसा करने हेतु पंक्तिबद्ध होने के लिए आगे बढ़े। उन्होंने कालचक्र मंदिर में प्रवेश किया और वे ज्योतिर्मय रेत मंडल पर टकटकी लगा कर देख सके। उन्हें पीछे टंगे कालचक्र थंकाओं को देखने के लिए भी प्रोत्साहित किया गया। यह प्रक्रिया देर शाम तक चली।
कल वास्तविक रूप से अभिषेक प्रदान किया जाएगा।