दिरंग, अरुणाचल प्रदेश, भारत - आज दिन का आरंभ गुरु पूजा या लामा छोपा के पाठ के साथ थुबसुंग दरज्ञेलिंग विहार के नये मंदिर में प्रारंभ हुआ। जितने पुरुषों के स्वर सुनाई दे रहे थे उतनी ही महिलाओं की आवाज़ भी सुनाई दे रही थी। भारत सरकार के गृह राज्य मंत्री श्री किरेन रिजुजू, जिनका अपना गांव पास में है, ने परम पावन दलाई लामा का स्वागत करने के लिए दिरंग में उनसे भेंट की। चूंकि संसद सत्र में है और लोकसभा में उनकी उपस्थिति की आवश्यक थी, रीजुजू प्रातः विहार के उद्घाटन समारोह में शामिल नहीं हो पाए।
परम पावन अपने कक्ष से पूरे प्रदेश में मौजूद एकमात्र लिफ्ट से मंदिर के ऊपर तले से नीचे से उतरे और अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल पद्मनाभ आचार्य और मुख्यमंत्री पेमा खंडू के बीच अपना स्थान ग्रहण किया। कार्यक्रम का प्रारंभ ब्रह्मांड के मंडल के साथ और परम पावन को प्रबुद्धता के प्रतीक काय वाक् और चित्त की भेंट के साथ प्रारंभ हुआ। इसके बाद आम महिलाओं और पुरुषों दोनों समुदाय के सदस्यों ने एक अनुकरणीय शास्त्रार्थ प्रस्तुत किया।
श्रद्धेय थुबतेन रिनपोछे ने विहार की स्थापना के बारे में एक रिपोर्ट पढ़ी, जिसके दौरान वह कई बार भावुक हो गए। उन्होंने इस संस्था के निर्माण की प्रेरणा का श्रेय परम पावन की लगातार सलाह को दिया कि शिक्षण के एक केंद्र की स्थापना की जाए जहाँ लोग अरुणाचल प्रदेश में नालंदा परम्परा का सरलता से अध्ययन कर सकें। उन्होंने कहा कि उन्होंने ऐसा किया है और जो उपलब्ध हैं उसके अनुसार सर्वश्रेष्ठ सुविधाएँ प्रदान की हैं।
उन्होंने घोषणा की कि उद्देश्य भिक्षु समुदाय और साधारण लोगों के लिए शास्त्रों और विशेष रूप से १७ नालंदा आचार्यों की रचनाओं का अध्ययन करने के लिए अवसर प्रदान करना था। इसका उद्देश्य लोगों को नैतिक व्यक्तित्व और एक करुणाशील हृदय के लिए प्रशिक्षित करना था। उन्होंने एक कार्यक्रम का विवरण दिया जिसमें सप्ताह में तीन दिन परिचयात्मक कक्षाएँ शामिल हैं और बौद्ध धर्म, भोटी भाषा और बौद्ध इतिहास में डेढ़ महीनों तक का एक और गहन कार्यक्रम भी शामिल है, जिसके लिए छात्रों को चार वर्षों बाद एक प्रमाण पत्र से सम्मानित किया जाएगा। उन्होंने एकांतवास के एक कार्यक्रम और एक वार्षिक उपवास एकांतवास कार्यक्रम की योजनाओं का उल्लेख किया। थुबतेन रिनपोछे ने अब तक परम पावन के मार्गदर्शन के लिए कृतज्ञता व्यक्त की और भविष्य के लिए सलाह मांगी।
अपनी टिप्पणी में, अरुणाचल प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष टी. एन. थोंगडोक ने हेलिकॉप्टर उड़ान बंद होने पर सड़क मार्ग से आने के लिए परम पावन की दया की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि जब परम पावन १९५९ में पहली बार इस क्षेत्र से गुज़रे थे, यद्यपि ऐतिहासिक दृष्टिकोण से यह स्थान बौद्ध था, पर इस ओर रुचि कम हो गई थी। उन्होंने कहा कि यह परम पावन की बार-बार यात्रा ही कारण थी और उन्होंने लोगों को जिस तरह प्रेरित किया कि अध्ययन और अभ्यास में रुचि पुनर्जीवित हुई है।
अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल श्री पद्मनाभ आचार्य ने राज्य के लोगों की ओर से परम पावन का स्वागत किया। उन्होंने यह कहते हुए कि परम पावन की उपस्थिति शक्ति और प्रेरणा का स्रोत था, आज के दिन को शुभ दिन कहा।
"प्रिय भाइयों तथा बहनों," परम पावन ने प्रारंभ किया, "मैं सदैव लोगों को भाइयों और बहनों के रूप अभिनन्दित कर प्रारंभ करता हूँ, क्योंकि वास्तविकता यह है कि हम यह ७ अरब मानव हैं। यदि हम इसी पर ज़ोर देते रहें तो धौंस जमाने या धोखाधड़ी के लिए का आधार न रह जाएगा, और तो और, एक-दूसरे की हत्या भी कम होगी। वैज्ञानिकों ने भाषा ज्ञान से पूर्व शिशुओं के साथ किए गए प्रयोगों से स्पष्ट किया है कि आधारभूत मानव प्रकृति करुणाशील है। उन्होंने यह भी प्रमाण पाए हैं कि निरंतर क्रोध, घृणा, डर और संदेह में रहने से उसके प्रभाव से हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली दुर्बल हो जाती है। यह कि करुणा लाभकारी है और क्रोध तथा डर हानिकारक हैं, हम सभी के लिए ७ अरब मनुष्यों के लिए समान है।
"आज हम जिन कई समस्याओं का सामना कर रहे हैं, जैसे कि अमीर और गरीब के बीच की बड़ी खाई वे हमारी अपनी निर्मित हैं। यहाँ भारत में भी जाति-गत भेदभाव है, जो अब अनुचित और तारीख से बाहर है। हम सभी मानव हैं और सुखी होने का समान अधिकार और आकांक्षा रखते हैं। मैं स्वयं को मात्र उनमें से एक मानता हूँ। मैं अपने आप को एक बौद्ध, तिब्बती या दलाई लामा होने के बारे में इस रूप में नहीं सोचता जो मुझे अलग कर देता है और दूसरों के साथ अड़चनें पैदा करता है, जो मुझे मात्र एकाकी कर देगा। मैं पूर्ण रूप से मानवता की एकता और हमारे मानव मूल्यों के महत्व को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध हूँ, इस दृष्टिकोण से कि व्यक्ति, परिवार और समुदाय सुखी हों।"
अपनी यात्रा योजनाओं में परिवर्तन को कठिनाई को एक लाभ के रूप में बदलने को एक उदाहरण के रूप में बताते हुए उन्होंने कहा:
"उस दिन गुवाहाटी से दिब्रूगढ़ तक उड़ान में इतनी उथल पुथल थी कि मैंने सोचा कि मेरा अंत आ गया है। परिणामस्वरूप हमने हेलीकॉप्टर के बजाय सड़क मार्ग से यात्रा करने का निर्णय लिया। लाभ यह हुआ है कि मैं मार्ग पर कहीं अधिक लोगों से मिल पाया हूँ और वे मुझे देख पाए हैं अन्यथा यह संभव न होता।"
परम पावन ने टिप्पणी की कि मिस्र, चीन और सिंधु घाटी की महान प्राचीन सभ्यताओं में से उन्हें लगता है कि सिंधु घाटी ने अंततः महान विचारकों की एक बड़ी संख्या को जन्म दिया। बौद्ध धर्म, विशेषकर नालंदा परम्परा, इस प्रवृत्ति के अंग के रूप में, अंततः पूरे एशिया में फैल गया। उन्होंने आंतरिक अस्तित्व की शून्यता और प्रतीत्य समुत्पाद जैसी प्रमुख अवधारणाओं को संदर्भित किया जो उनके अनुभव के अनुसार हमें अपनी विनाशकारी भावनाओं से निपटने में सक्षम करती हैं।
उन्होंने सुझाव दिया कि बुद्ध न केवल बौद्ध धर्म के संस्थापक थे, बल्कि एक महान विचारक और वैज्ञानिक भी थे जिन्होंने अपने अनुयायियों को सलाह दी कि वे उनकी शिक्षाओं को जस का तस स्वीकार न करें पर तर्क के प्रकाश में उसका परीक्षण व जांच करें। अतीत के विद्वान जैसे नागार्जुन और बुद्धपालित ने ऐसा ही किया था।
"आधुनिक भारतीय भी पश्चिमी देशों का अनुकरण करने की प्रवृत्ति रखते हैं और आधुनिक शिक्षा भी भौतिक लक्ष्यों की ओर उन्मुख है जिसमें आंतरिक शांति की ओर बहुत कम ध्यान दिया गया है। हम नैतिक संकट के समय में रह रहे हैं, जो केवल प्रार्थना पर निर्भर होकर सुलझाया नहीं जा सकेगा, अपितु चित्त को प्रशिक्षित कर और अपनी विनाशकारी भावनाओं का सामना कर ही संभव हो पाएगा। हमें सामान्य अनुभव, सामान्य ज्ञान और वैज्ञानिक निष्कर्षों से प्राप्त सार्वभौमिक मूल्यों की आवश्यकता है और दूसरे ओर हमें आधुनिक शिक्षा को चित्त और भावनाओं के प्रकार्य के प्राचीन भारतीय ज्ञान के साथ जोड़ना होगा।"
इस विहार को शिक्षण केंद्र के रूप में देखने की उनकी आशा के संबंध में परम पावन ने टिप्पणी की:
"आपने यहाँ अद्भुत काम किया है; जो कुछ भी आपने अभी तक प्राप्त किया है मैं वास्तव में इसकी सराहना करता हूँ। धन्यवाद।"
समारोह का समापन करते हुए थुबतेन रिनपोछे ने परम पावन, राज्यपाल और मुख्यमंत्री को बुद्ध की प्रतिमा भेंट की। स्थानीय विधायक फुरपा छेरिंग ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि, "वे इस क्षेत्र में आने और आशीर्वाद देने के लिए परम पावन के प्रति कृतज्ञ हैं।" अतिथि मध्याह्न के भोजन के लिए ऊपर एकत्रित हुए।
पूर्वाह्न में, परम पावन एक विस्तृत मैदान पर स्थित प्रवचन स्थल पर गए, जहाँ अनुमानतः २०,००० लोग उन्हें सुनने के लिए इकट्ठे हुए थे। उन्होंने समझाया कि वे क्या करने जा रहे थे।
"आज मैं पुनः आपके साथ हूँ। निर्धारित कार्यक्रम तवांग के लिए उड़ान भरना था पर मौसम ने उसे बदल दिया। मैं यहाँ पूर्वनियोजित कार्यक्रम से पहले आया हूँ और जो प्रवचन मैं देने वाला हूँ, वह चेनेरेज़िंग की अनुज्ञा है जो दुर्भाग्यपूर्ण लोकों से मुक्त करता है और इससे पूर्व 'चित्त शोधन के अष्ट पद'। इस समय मैं आपको गुरु योग का एक पठन संचरण देने जा रहा हूँ, 'अवलोकितेश्वर से आध्यात्मिक गुरु की अवियोज्यता' ताकि जब मैं अनुज्ञा की तैयारी करूँ आप उसका पाठ कर सकें।
गुरु योग के पाठ के दौरान और उसके साथ के छोग समर्पण में महिलाओं ने समान रूप से भाग लिया। वे मंत्र पाठ में संगीत वादन और परम पावन को छोग समर्पण में सम्मिलित हुईं।
"हम यहाँ व्यवसाय अथवा मनोरंजन के उद्देश्य से नहीं हैं," परम पावन ने कहा "आज विश्व में लोग जो करने में असफल हो रहे हैं, वह सुख उत्पन्न करने के लिए अपने चित्त का उपयोग करना है; वे इसके बजाय ऐन्द्रिक अनुभव में खोए हुए हैं। सभी धार्मिक परंपराओं में चित्त की शांति में योगदान करने के उपाय हैं, जहाँ विश्वास मुख्यतः प्रधान है, जो बात बौद्ध धर्म को अलग-थलग करता है कि यह ज्ञान द्वारा समर्थित विश्वास को नियोजित करता है। यह हमें अपनी बुद्धि का उपयोग करने का निर्देश देता है। अज्ञान दुःख को जन्म देता है, पर हम वास्तविकता की अंतर्दृष्टि से इसे दूर कर सकते हैं।
"कुछ लोग बौद्ध धर्म को चित्त के विज्ञान के रूप में संदर्भित करते हैं और यह समझ के उपयोग से हमारे चित्त को परिवर्तित करने में सहायक है। जहाँ क्रोध और मोह जैसे क्लेश अज्ञानता में निहित हैं, बुद्ध की शिक्षा वास्तविकता की अंतर्दृष्टि में निहित है। वैज्ञानिक प्रतीत्य समुत्पाद के विचारों की सराहना करते हैं और मैंने उनसे पूछा है कि क्या उनके पास इससे मिलता जुलता कुछ है, पर वे मुझसे कहते हैं 'अभी तक नहीं।"
परम पावन ने श्रोताओं से उन पुस्तकों को खोलने के लिए कहा, 'चित्त शोधन के अष्ट पद' जो उन्हें पढ़ने के लिए दिए गए थे। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह पुस्तक चित्त को ऐन्द्रिक आनंद में खोने के बजाय सुख को विकसित करने के लिए चित्त के उपयोग के विषय में है।
उन्होंने उल्लेख किया कि तिब्बती सम्राट ठिसोंग देचेन ने शांतरक्षित को तिब्बत आने के लिए आमंत्रित किया था, जिन्होंने तिब्बत की भूमि पर बौद्ध धर्म स्थापित किया। दो शताब्दियों के उपरांत परम्परा का ह्रास हो गया और अतीश को इसे पुनर्स्थापित करने के लिए आमंत्रित किया गया। उन्होंने कदमपा परम्परा की स्थापना की, जिससे जुड़े रचयिता इस पुस्तक के लेखक लंगरी थंगपा थे। परम पावन ने स्मरण किया कि सर्वप्रथम यह शिक्षा उन्होंने तगडग रिनपोछे से प्राप्त की थी जब वे केवल एक बच्चे थे और बाद में अपने कनिष्ठ शिक्षक ठिजंग रिनपोछे से प्राप्त की।
यह ग्रंथ बोधिचित्त, मार्ग का करुणात्मक पक्ष और साथ ही शून्यता के गहन पक्ष की शिक्षा देता है। उन्होंने टिप्पणी की, कि एक बोधिसत्व के दो उद्देश्य होते हैं - अन्य सत्व और प्रबुद्धता - और वे प्रज्ञा के आधार पर प्रबुद्धता प्राप्त करने के लिए कार्य करते हैं। उन्होंने अंतिम छंद की सलाह कि अष्ट लौकिक धर्मों के विचारों की मलिनता से बचकर, वस्तुओं को माया की भांति देखकर, बिना किसी मोह के, बंधन से मुक्ति पाएँ, तक लगातार उन छंदों का पठन किया और संक्षिप्त में उन पर टिप्पणियाँ की।
तत्पश्चात परम पावन ने अवलोकितेश्वर की अनुज्ञा प्रारंभ की, जो दुर्भाग्यपूर्ण लोकों से मुक्त करता है और सूचित किया कि यह प्रथा तगफू दोर्जे छंग, जो आर्य तारा द्वारा आशीर्वचित होने के लिए विख्यात थे, द्वारा अनुभूत एक दृष्टि से आती है। उन्होंने कहा कि एक परम्परा है कि प्रत्येक बार जब कोई व्यक्ति इसे प्राप्त करता है तो उसकी दुर्गति का एक जीवन काल समाप्त हो जाता है। अनुष्ठान के दौरान, परम पावन ने बोधिचित्तोत्पाद के एक समारोह का नेतृत्व किया और पुण्यानुमोदन के कई छंदों के साथ समाप्त किया।
कल, परम पावन दिरंग से तवांग के लिए सड़क मार्ग से प्रस्थान करेंगे, एक यात्रा जो उन्हें ४१७० मीटर सेला दर्रे पर ले जाएगा।