तवांग, अरुणाचल प्रदेश, भारत - विगत रात की भारी वर्षा ने प्रातःकालीन आकाश को स्वच्छ कर दिया था और भोर का सूरज धुंध से भरे पहाड़ों पर चमक रहा था जब परम पावन दलाई लामा यिगा छोजिन प्रवचन स्थल पुनः पधारे। तवांग विहार के प्रांगण में, नीचे जाती सड़क पर और उनके सिंहासन के मार्ग पर लोग आतुरता से उनका अभिनन्दन करने हेतु प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने सिंहासन से संबोधित किया।
"इन सार्वजनिक प्रवचनों का यह तीसरा दिन है। पहले दिन मैंने बुद्ध की देशनाओं का परिचय दिया और आपके लिए 'भावना क्रम' का पठन किया। परम्परागत प्रारंभ मृत्यु और अनित्यता इत्यादि की व्याख्या से होता है, पर मुझे वह इतना उचित नहीं लगता। मुझे मैत्रेय के 'अभिसमयालंकार' की रूप रेखा का अनुपालन का पालन करना अच्छा लगता है जो सत्य द्वय से प्रारंभ होता है, सांवृतिक और परमार्थ और फिर चार आर्य सत्यों के परीक्षण साथ ही त्रिरत्नों में शरण लेने तक जाता
"सत्य द्वय के साथ प्रारंभ करने का अर्थ है कि प्रारंभ में ही शून्यता का परिचय देना, जिसे प्रतीत्य समुत्पाद के संदर्भ में दिया जा सकता है। यह एक ऐसा दृष्टिकोण है जो सार्वभौमिक रूप से आकर्षक हो सकता है। जैसे अन्य धर्म एक उद्धारकर्ता को प्रस्तुत करते हैं बौद्धों में बुद्ध, धर्म और संघ हैं, जिन्हें चंद्रकीर्ति उन लोगों के शरण के रूप में वर्णित करते हैं जो मुक्ति की इच्छा रखते हैं। मैंने इस दृष्टिकोण को १७ नालंदा पंडितों की स्तुति के अंतिम पद में संदर्भित किया है।
वस्तु की अवस्थिति और सत्य द्वय का अर्थ जान
सत्य चतुष्टय से प्रवृत्ति और निवृत्ति के विनिश्चय से
तर्क पुष्ट श्रद्धा को त्रिशरण में दृढ़ कर
मोक्ष मार्ग मूल में दृढ़ अधिष्ठान हो।
"रिगजिन दोनडुब अभिषेक, जो मैं आज प्रदान करने वाला हूँ वह मुझे ठुलशिक रिनपोछे से प्राप्त हुआ, जो सही अर्थों में गैर-सांप्रदायिक दृष्टिकोण को अपनाने के अतिरिक्त वास्तव में महान अभ्यासी थे। शिक्षा के इस क्रम को रिगजिन गोदेमछेन ने प्रकट किया जो कि जंगतेर (उत्तरी निधि) परम्परा के पूर्ववर्ती थे, जिसे बाद में दोर्जे डग विहार द्वारा जारी रखा गया और जिसमें पञ्चम दलाई लामा ने भाग लिया।"
परम पावन ने समझाया कि अभिषेक और अभ्यास गुरु पद्मसंभव पर केन्द्रित हैं, जो तिब्बती लोगों के देखभाल को लेकर विशेष रूप से प्रतिबद्ध हैं। यह याचना प्रार्थना के एक पद में अभिव्यक्त है, एक वन्दना जिसकी रचना उन्होंने मंत्री मंडल के अनुरोध पर १९८० में की।
विशेषकर जब राजा ठिसोंग देचेन और उनके बेटे, राजकुमार,
ने आपसे अपनी करुणा के साथ तिब्बत के लोगों को ध्यान में रखने का आग्रह किया
आपने उन्हें अपना वचन दिया, आपकी चिर प्रतिज्ञा,
कि आप सदैव हमारे हितार्थ कार्य करेंगे,
अतः अब हम आपसे आग्रह करते हैं: आपकी करुणा से हमारा ध्यान रखें।
परम पावन ने सुझाया कि जब वे अभिषेक की तैयारी कर रहे हों तो श्रोता गुरु रिनपोछे की सप्तांग प्रार्थना और वज्र गुरु मंत्र का जाप करें।
इसके प्रारंभ में परम पावन ने उल्लेख किया कि यद्यपि हम चित्त का अनुभव करते हैं, पर कुछ वैज्ञानिक इसे मात्र मस्तिष्क का एक प्रकार्य कहकर खारिज कर देते हैं। चूंकि चित्त का कोई रूप नहीं है और इसे मापा नहीं जा सकता इसलिए वैज्ञानिक अभी तक इसे पूरी तरह से जांच नहीं कर सके हैं। पर बौद्ध परम्परा में, चित्त कहाँ से आता है, कहाँ रहता है और कहाँ जाता है, की खोज करते हुए हम उसकी यथावत् प्रकृति की खोज करते हैं। साधारणतया ऐन्द्रिक धारणाएँ हमें व्यस्त और विचलित रखती हैं, पर जब हम चित्त के परम रूप की खोज करते हैं - जो मात्र स्फुटता और जागरूकता है तो वे बंद हो जाती हैं। उन्होंने इस पर जो लोंगछेनपा ने लिखा है, उसे पढ़ने का सुझाव दिया।
परम पावन ने टिप्पणी की कि प्रज्ञापारमिता की देशना, जो द्वितीय धर्म चक्र प्रवर्तन का केन्द्र थी, शून्यता की स्थापना का आधार प्रदान करती है। तृतीय धर्म चक्र प्रवर्तन ने चित्त की प्रभास्वरता का परिचय दिया। तंत्र के अभ्यास हेतु शून्यता और चित्त की प्रभास्वरता दोनों आवश्यक है। उन्होंने उल्लेख किया कि २, ३, ४ और ५वें दलाई लामा समावेशी गैर सांप्रदायिक अभ्यासी थे। इसके अतिरिक्त तेर्तोन सोज्ञल से मिलने के बाद, १३वें दलाई लामा, लेरब लिंगपा वज्रकिलय के अभ्यास में लग गए। परम पावन ने कहा कि उनके अपने संदर्भ में, ज़ोगछेन के कई पहलू उनके अन्य तांत्रिक अभ्यासों के पक्ष को उजागर करते हैं।
अभिषेक के पूर्ण होने पर, परम पावन ने घोषणा की कि वे तीन दिनों के प्रवचन के अंत तक पहुँच चुके हैं। उन्होंने इस बात के लिए अपनी प्रसन्नता व्यक्त की कि वे आ सके और मोनयुल के लोगों को कुछ लाभ प्रदान कर सके। उसके पश्चात श्वेत तारा कामना पूर्ति चक्र पर आधारित परम पावन के लिए दीर्घायु प्रार्थना की गई। अंत में विस्तृत स्वर्ण का पानी चढ़ा तीन आयामी मंडल के अतिरिक्त उन्हें नागार्जुन और शांतरक्षित की रजत मूर्तियां भेंट की गईं।
समापन समारोह के अंग के रूप में, परम पावन को अरुणाचल प्रदेश के लोगों के साथ उनके संबंधों के विषय पर एक पुस्तक के तिब्बती संस्करण के विमोचन के लिए आमंत्रित किया गया, जिसका शीर्षक था 'ओशन एंड द ब्लू माउंटेन'। तत्पश्चात गीत व नृत्यों का एक संक्षिप्त प्रदर्शन हुआ जिसमें ड्रम, झांझ और बांसुरी के साथ याक और स्नो लायन नृत्य थे जिनसे परम पावन काफी मनोरंजित प्रतीत हुए।
विधायक जम्बे टाशी ने धन्यवाद के शब्द कहे "इस क्षेत्र के लोगों की ओर परम पावन के आने के लिए उन्हें धन्यवाद कहते हुए मेरा ह्रदय से आनन्द से भर उठता है । १९५९ के बाद से यह आपकी छटवीं यात्रा है। हम आपके द्वारा दिए गए करुणा,अहिंसा और अंतर्धार्मिक सद्भाव के संदेश को फैलाने का वादा करते हैं।
"सब कुछ ठीक हो गया," परम पावन ने कहा "मैंने अभी आपके द्वारा प्रस्तुत सांस्कृतिक प्रदर्शनों का आनंद लिया है, विशेषकर याक जिसका सिर पूरी तरह घूम सकता है। आज, याक का एक बछड़ा था और स्नो लायंस का भी शावक था। पीले रंग के नर्तको ने मुझे तिब्बत के दो भाग के नर्तकों का स्मरण करा दिया। मैं भूटान के कलाकारों की भी सराहना करता हूँ।"
परम पावन से १००,००० पौध लगाने की एक परियोजना के लिए आशीर्वाद देने के लिए कहा गया। उन्होंने ऐसा किया तथा कहा कि उन्होंने पर्यावरण की देखभाल करने का मूल्य सीखा है। जैसे ही उन्होंने यिगा छोजिन से प्रस्थान किया, उन्होंने और मुख्यमंत्री ने अपने स्वयं का पौध रोपण किया और यह स्पष्ट था कि हर परिवार अपने साथ एक पौध ले जा रहा था। परम पावन के समापन शब्द थे,
"आपके विश्वास और भक्ति के कारण सब कुछ अच्छी तरह से सम्पन्न हो गया - धन्यवाद। प्रसन्न तथा सहज रहें। निस्सन्देह यह संसार की प्रकृति है कि चीजें गलत हो सकती हैं, पर जब ऐसा होता है तो उन्हें एक व्यापक परिप्रेक्ष्य से देखें और वे इतने बुरे नहीं लगेंगे। हम एक दूसरे से फिर मिलेंगे।"
तवांग विहार में मध्याह्न भोजनोपरांत, परम पावन पहले बुद्ध पार्क गए जहाँ उन्होंने बुद्ध की विशाल प्रतिमा, जो समूचे शहर में सबसे भव्य है, को प्राण प्रतिष्ठित किया। वहाँ से वे कलावंगपो कन्वेंशन सेंटर पहुँचे जहाँ १००० व्यावसायिक लोग उन्हें सुनने की प्रतीक्षा कर रहे थे।
His Holiness was asked to give his blessings to a project to plant 100,000 saplings. He did so saying that he had learned to value caring for the environment. As he left Yiga Choezin, he and the Chief Minister planted their own saplings and it was clear that every family was taking a sapling away with them. His Holiness’s closing words were,
“Everything has gone well because of your faith and devotion—thank you. Be happy and take it easy. Of course, it’s in the nature of samara that things can go wrong, but when they do, look at them from a wider perspective and they won’t seem so bad. We’ll see each other again.”
After lunch at Tawang Monastery, His Holiness drove first to the Buddha Park where he consecrated the colossal statue of the Buddha that dominates the town. From there he proceeded to the Kalawangpo Convention Centre where 1000 professionals waited to hear him speak.
विधायक छेरिंग टाशी ने अवसर का परिचय दिया। परम पावन को 'ओशन एंड द ब्लू माउंटेन' के अंग्रेजी संस्करण और कुछ अन्य पुस्तकों के विमोचन करने के लिए आमंत्रित किया गया। मुख्यमंत्री ने उन्हें एक स्मारिका प्रस्तुत की। अपने वक्तव्य में उन्होंने विश्व शांति की बात की जिसके लिए आवश्यक प्रावधान व्यक्तियों के भीतर की आंतरिक शांति है। उन्होंने कहा कि प्रथम विश्व युद्ध के उपरांत शांति को लेकर बहुत कम बात की गई यद्यपि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इस पर चर्चा हुई थी। परन्तु उन्होंने सुझाया कि शीत युद्ध की अवधि से खुला संघर्ष बचा है, परन्तु यह वास्तविक शांति का युग नहीं था क्योंकि यह भय पर आधारित था।
उन्होंने उल्लेख किया कि चित्त की शांति के विकास में चित्त के साथ काम करना - चित्त की शांति प्राप्त करना शामिल है। इसने उन्हें उन लोगों के बारे में जिन्होंने सूक्ष्मतम चित्त के साथ कार्य किया है, के साथ एक असामान्य घटना के बारे में चर्चा करने हेतु प्रेरित किया, वे लोग जो नैदानिक रूप से मृत घोषित किए गए पर, जिनके शरीर ताजा बने हुए हैं। वैज्ञानिक, जिनमें से कुछ इस बात में रुचि ले रहे हैं, के पास अभी तक इस संबंध में कोई स्पष्टीकरण नहीं है। बौद्ध समझाते हैं कि सूक्ष्मतम चेतना अभी तक शरीर से निकली नहीं है, और जब ऐसा होता है तो शरीर परिवर्तित होने लगता है।
परम पावन का विश्वास है कि आंतरिक शांति का एक मार्ग, जिसे वे आंतरिक मूल्य कहते हैं, का विकास है, जिसे आधुनिक शिक्षा अनदेखा करती है। उन्होंने फलित हो रहे एक दस वर्षीय परियोजना के बारे में बात की जो एक धर्मनिरपेक्ष नैतिकता, मूल्यों और नैतिकता की शिक्षा के लिए एक पाठ्यक्रम तैयार करने से संबंधित है, जो किसी एक धार्मिक परम्परा से संबंधित नहीं, पर सभी में समान रूप से निहित हैं।
श्रोताओं के प्रश्नों के उत्तर देते हुए उन्होंने एक से, जिसने पूछा था कि एक अच्छा व्यक्ति किस तरह बना जाए, भावनाओं के मानचित्र से परिचित होने के लिए कहा। किसी अन्य ने पूछा कि क्या धर्मनिरपेक्ष नैतिकता धर्मों के आसन्न संघर्ष का समाधान थी। उन्होंने इस बात का खंडन किया कि इस तरह के टकराव आसन्न हैं परन्तु इस अंतर को स्पष्ट किया कि किस तरह भारत, मलेशिया और कुछ हद तक इंडोनेशिया अन्य धर्मों के लोगों के साथ रहने से परिचित हैं, जबकि अरब के कई राज्यों के मुसलमान केवल इस्लाम से परिचित हैं। परम पावन ने प्रस्तावित किया कि एक सत्य, एक धर्म की धारणा एक व्यक्ति के निजी अभ्यास के लिए प्रासंगिक है, पर एक व्यापक समुदाय में स्पष्ट रूप से कई सत्य व कई धर्म हैं।
जब पूछा गया कि क्या एंटीबायोटिक दवाओं द्वारा सूक्ष्म जीवों को मारना पुण्य से हटकर है तो परम पावन ने स्वीकार किया कि सूक्ष्म जीवों में जीवन हो सकता है, पर उनमें चेतना नहीं होती तो उन्हें मारना किसी सत्व को मारने जैसा नहीं है। उनसे यह भी पूछा गया कि भ्रूण में चेतना कब प्रकट होती है। उन्होंने उत्तर दिया कि उन्होंने पश्चिम में डॉक्टरों से पूछा था कि अगर निर्दोष शुक्राणु, अंडा और गर्भ यदि तीनों साथ मिलें तो क्या गर्भ धारण संभव होगा? उत्तर 'नहीं' है, जिससे यह प्रश्न उठता है कि ऐसा क्या है जो उपस्थित नहीं है? बौद्ध कहेंगे चेतना, जो अनादि व अनंत है।
जिला आयुक्त संग फुनसोक ने धन्यवाद के शब्द ज्ञापित किए। उन्होंने सभी गणमान्य व्यक्तियों और अतिथियों के प्रति आने के लिए कृतज्ञता व्यक्त की, पर परम पावन को विशेष रूप से धन्यवाद कहा। उन्होंने कहा, "मेरा मानना है कि वे कठिन परिस्थितियों में भी इस क्षेत्र के लोगों के लिए अपने स्नेह के कारण यहाँ आए हैं। मुझे विश्वास है कि हम सभी उन्हें सुनने के परिणामस्वरूप बेहतर मनुष्य बनने का प्रयास करेंगे। मैं उन सभी को धन्यवाद देना चाहता हूं जिन्होंने इस कार्यक्रम की सफलता में योगदान दिया और यह आशा व्यक्त करना चाहूँगा कि वह दिन दूर न होगा जब परम पावन इस क्षेत्र से होते हुए तिब्बत वापस जाने में सक्षम होंगे, जिसे उन्होंने ५८ वर्ष पूर्व लिया था।"
परम पावन कल तवांग से प्रस्थान करेंगे और गुवाहाटी और दिल्ली होते हुए धर्मशाला लौटेंगे।