मेस्सिना, सिसिली, इटली, मेस्सिना शहर ताओरमिना से सिसिली तट पर थोड़ी दूर पर स्थित है। महापौर रेनाटो एकोरिन्ती आज प्रातः वहाँ परम पावन दलाई लामा का स्वागत करने तथा उन्हें सीधे विटोरियो इमानुएल थियेटर के मंच तक अनुरक्षण के लिए उनके साथ थे।
परम पावन का परिचय देते हुए उन्होंने कहा कि "यह हमारे शहर के लिए एक असाधारण क्षण है। हम आपको यहाँ पाकर और अपने बीच आपकी उपस्थिति का अनुभव कर अत्यंत प्रसन्न हैं। विश्व में शांति लाने का हमारा उत्तरदायित्व है। कल, आपने ग्रीक थियेटर में व्याख्यान दिया था, कई लोगों ने आपका संदेश सुना है, पर हमें इस पर सोचने और समझने की आवश्यकता है। मेरा उद्देश्य आपको सिसिली लाना रहा है ताकि अाप हमसे बात कर सकें।
"क्या मैं सही था?" उन्होंने १२०० संख्या के प्रबल श्रोताओं से पूछा, और थिएटर करतल ध्वनि से गूंज उठा।
एकोरिन्ती ने परम पावन का परिचय आर्चबिशप गियोवन्नी एक्कोला से कराया और उन दोनों में तत्काल ही पारस्परिक सहजता प्रतीत हुई। आर्चबिशप ने परम पावन का स्वागत करते हुए आनन्द व्यक्त किया, शांति और करुणा का व्यक्ति, जो विभिन्न धार्मिक परम्पराओं के लोगों के बीच सामंजस्यपूर्ण संबंधों को सुरक्षित करने के लिए निरंतर कार्यरत है।
महापौर एकोरिन्ती के साथ शहर के एक अन्य अधिकारी मेसिना के 'बिल्डर ऑफ पीस, जस्टिस एंड नॉनवायलेंस प्राइज' प्रथम बार परम पावन को प्रदान करने के लिए शामिल हुए। न्याय के बिना कोई शांति नहीं है, उन्होंने घोषणा की और न्याय मात्र अहिंसा द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।
इस अवसर के संचालक राय पत्रकार लौरा पास्क्युनी ने परम पावन को सभा को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया।
"मेरे सम्मानित आध्यात्मिक बंधु" उन्होंने आर्चबिशप को संबोधित करते हुए प्रारंभ किया, "मेरे अच्छे मित्र रेनातो, सत्य और न्याय के समर्थक, भाइयों व बहनों, मैं यहाँ आकर और इस पुरस्कार के ग्रहण करते हुए अत्यंत खुश हूँ। मैं अब ८२ वर्ष से ऊपर का हो चुका हूँ और यद्यपि मैंने निश्चय किया था कि आगामी महीने अमरीका की यात्रा करना बहुत दूर होगा पर मैं यहाँ यूरोप और इटली में हूँ क्योंकि मेरे पुराने मित्रों ने मुझे आमंत्रित किया है -ऐसे व्यक्ति जो एक सच्चे मानवीय धरातल पर मित्र हैं।
"यद्यपि मैं २०वीं शताब्दी से संबंध रखता हूँ, पर कल प्राचीन ग्रीक थियेटर में उन विचारों के बारे में बोलते हुए मैं भावुकता से भर गया था जो प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता से निकले थे। मैं जहाँ भी जाता हूँ, मेरे दो संदेश हैं, सम्प्रेषण के लिए दो प्रतिबद्धताएँ। एक मानवीय सुख को बढ़ावा देना है - सौहार्दता तथा चित्त की शांति का महत्व। सभी प्रमुख धर्म इसके बारे में, साथ ही साथ सहिष्णुता, क्षमा और आत्म-अनुशासन की शिक्षा देते हैं।
"चित्त की शांति का वास्तविक स्रोत प्रेम व करुणा है; ऐसा प्रेम नहीं जो हम उन के लिए अनुभूत प्यार करते हैं जो हमारे निकट हैं और पहले से ही हमसे प्रेम करते हैं, अपितु परोपकारिता की असीमित भावना, एक प्रेम जिसे सभी सत्वों तक विस्तृत किया जा सकता है, जिसमें आपके वैरी भी शामिल हैं। ऐसी क्षमता मात्र मनुष्य रखते हैं, और यही एक ऐसा कारण है कि मैं लोगों को मानवता की एकता का स्मरण कराने का प्रयास करता हूँ।
"मेरा दूसरा संदेश और प्रतिबद्धता धार्मिक सद्भाव से संबंधित है। इस ग्रह पर हमारे मध्य कई विभिन्न धार्मिक परम्पराएँ हैं और ऐसा प्रतीत होता है कि, दुख की बात है, उन के बीच के भेद संघर्ष की ओर ले जा सकते हैं। यह प्रेम के संदेश के बावजूद है जिसकी अभिव्यक्ति वे सभी करते हैं। हमें धार्मिक समन्वय को पोषित करने हेतु एक विशेष प्रयास करने की आवश्यकता है और मैं विशेष रूप से प्रोत्साहित हूँ कि मेरे ईसाई भाई यहाँ हमारे साथ हैं।
"आज का यथार्थ यह है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था और जलवायु परिवर्तन का राष्ट्रीय अथवा धार्मिक सीमाओं को लेकर कोई सम्मान नहीं है - वे हम सभी को प्रभावित करते हैं। यहाँ यूरोप में, दो विश्व युद्धों के विनाश के उपरांत यूरोपीय संघ का विचार उभरा, जिसके परिणामस्वरूप आधे से अधिक शताब्दी तक शांति रही। भविष्य में रूस को सम्मिलित किया जाना चाहिए तथा अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और एशिया तक इस तरह के संघों के विचार को बढ़ाया जाना चाहिए। जहाँ संयुक्त राष्ट्र सरकारों का एक संघ लगता है, हमें लोगों के विश्वव्यापी संघ की खोज करना चाहिए। शांति का हमारा स्वप्न केवल एक विसैन्यीकृत विश्व में पूरा होगा। यह ऐसा है जिसके लिए मैं अपने ईसाई भाई से आग्रह करता हूँ कि वे प्रार्थना करें।"
परम पावन ने श्रोताओं से कहा कि वे उनके प्रश्नों के उत्तर देना चाहेंगे और सबसे पहला उनके निजी जीवन के बारे में अधिक जानने का अनुरोध था।
उन्होंने कहा, "साधारण रूप से तिब्बती हंसमुख लोग हैं।" "इसमें एक तथ्य यह है कि हम एक विशाल स्थान पर छोटी सी जनसंख्या वाले लोग हैं, पर हमारी सामुदायिक भावना प्रबल है। जैसा कि मैंने उत्तर भारत के पर्वतीय प्रदेशों में कहीं और पाया है, यह हमारी प्रथा थी कि हम अपने द्वार बंद न करें और किसी भी आगंतुक का स्वागत करें।
"मेरे अपने परिवार में मेरी बहनें और भाई सदैव हंसी और मजाक करते थे। जब मैं पांच वर्ष का था तो दलाई लामा के रूप में पालन करने के लिए मुझे अपने परिवार से लाया गया। राजभवन में अधिकारी औपचारिक थे, परन्तु सफाई कर्मचारी खुला और मैत्री भाव रखते थे। यही लोग थे जो मुझे सही समाचार देते और मेरे साथ खेला करते थे।
"मेरे शिक्षक कठोर थे और मुझे अध्ययन हेतु प्रोत्साहित करने के लिए एक कोड़ा लिए मुझे धमकी देते थे, क्योंकि मैं एक आलसी और अनिच्छुक छात्र था। जब अध्ययन का समय होता तो ऐसा लगता मानो आकाश में अंधेरा छा गया हो।
"इटली के लोग भी खुश और हंसमुख प्रतीत होते हैं। औपचारिकता में मेरी कोई रुचि नहीं है और तिब्बत में बहुत औपचारिकता थी। शरणार्थी बनने के पश्चात मैं औपचारिकता और औपचारिक शिष्टाचार से मुक्त हो गया और आजकल मैं अन्य लोगों को अपने भाइयों और बहनों के रूप में मानता हूँ।"
सुख के बारे में एक प्रश्न का उत्तर देते हुए, परम पावन ने कहा कि बिल्ली और कुत्ते जैसे जानवर भी हमारी ही तरह सुखी रहना चाहते हैं, पर केवल मनुष्य इस संबंध में जागरूक हैं। प्रेम व करुणा आत्मविश्वास निर्मित करते हैं, जो भय तथा खीज को कम कर, सुख के वास्तविक नाशक क्रोध को कम करता है।
एक और प्रश्नकर्ता ने परम पावन से चार आर्य सत्यों को संक्षिप्त रूप से व्याख्ययित करने के लिए कहा। वे हँसे और कहा कि इसमें पूरा दिन लगेगा। उन्होंने यह स्वीकार करते हुए प्रारंभ किया कि कई लोग सृजनकर्ता ईश्वर को मानते हैं, अन्य, विशेषकर भारत में, कुछ सांख्य, जैन और बौद्ध, इसके बजाय कार्य कारण के नियम पर विश्वास करते हैं। बुद्ध ने समझाया कि दुःख व सुख हेतुओं के कारण उत्पन्न होते हैं। उन्होंने प्रतीत्य समुत्पाद के आधार पर चार आर्य सत्यों की देशना दी, यह विचार कि सब कुछ अन्य कारकों पर निर्भर करता है।
परम पावन ने समझाया कि हमें ध्यान से चिन्तन करना होगा कि क्या तीसरा आर्य सत्य, निरोध - दुःख का निरोध संभव है। नकारात्मक भावनाएँ जो दुखों को जन्म देती हैं, जैसे क्रोध व मोह उस दृश्य की ग्राह्यता पर आधारित हैं कि वस्तुएँ स्वतंत्र रूप से अस्तित्व रखती हैं। ऐसा नहीं है।
चूँकि चित्त की मूल प्रकृति शुद्ध है, इस अज्ञान और इस से जनित व्याकुल करने वाली भावनाओं का निर्मूल संभव है - जिससे तीसरे आर्य सत्य, दुःख निरोध की प्राप्ति संभव है।
परम पावन ने टिप्पणी की, कि एक ईसाई दृष्टिकोण से हम सब ईश्वर द्वारा निर्मित हैं। मित्रों ने उनसे कहा है कि उनका यह जीवन ही ईश्वर द्वारा बनाया गया है जिससे उनके साथ एक विशेष सान्निध्य का अनुभव होता है। एक करुणाशील, प्रेम करने वाले ईश्वर की सन्तान के रूप में, उन्होंने जो सिखाया है, उसका अनुपालन आकर्षक है। उन्होंने उल्लेख किया कि जहाँ बौद्ध सिद्धांत जटिल है, ईश्वर पर विश्वास प्रबल व सीधा हो सकता है।
परन्तु परम पावन ने कहा कि आधुनिक विश्व में, शिक्षा प्रणाली भौतिकवादी लक्ष्यों के प्रति उन्मुख है और गहन मानवीय मूल्यों पर बहुत कम ध्यान देती है। एक अरब से अधिक लोग घोषित करते हैं कि उनमें धर्म के प्रति कोई रुचि नहीं है और शेष छह अरबों की आस्था काफी सीमा तक सतही है। कई लोगों में आंतरिक मूल्यों का अभाव है। वे अनभिज्ञ हैं कि क्रोध, भय और घृणा जैसी व्याकुल करने वाली भावनाएँ हमारी चित्त की शांति को अस्थिर करती हैं, जबकि सौहार्दता और करुणा सुख का स्रोत हैं।
उन्होंने समझाया कि संबद्धित वैज्ञानिकों और शिक्षाविदों के साथ वार्तलाप से निष्कर्ष निकला है कि प्रमुख वस्तु शिक्षा है। उनका सुझाव है कि शिक्षा में धर्मनिरपेक्ष नैतिकता की भावना की आवश्यकता है जो सामान्य अनुभव, सामान्य ज्ञान और वैज्ञानिक निष्कर्षों पर आधारित हो। वे चित्त और भावनाओं के प्रकार्य की बेहतर समझ के आधार पर, शारीरिक स्वच्छता के अनुरूप भावनात्मक स्वच्छता की आवश्यकता का भी परामर्श देते हैं।
अंतिम प्रश्न के उत्तर में, परम पावन ने चित्त के विभिन्न स्तरों को समझाया। उन्होंने हमारे अपेक्षाकृत स्थूल जागृतावस्था के साथ प्रारंभ किया जो हमारे ऐन्द्रिक चेतना द्वारा चालित होता है। उन्होंने कहा कि स्वप्नावस्था में चित्त अधिक सूक्ष्म होता है जब ऐन्द्रिक चेतनाएँ कार्य नहीं करतीं। गहन निद्रावस्था में, चेतना और भी सूक्ष्म होती है जैसे जब हम बेहोश होते हैं, इत्यादि। सूक्ष्मतम चेतना मृत्यु के समय प्रकट होती है, जिसे बौद्ध प्रभास्वरता कहकर संदर्भित करते हैं, जिसकी प्रकृति स्पष्टता और जागरूकता है।
जब परम पावन मंच से निकले तो श्रोताओं ने अभिनन्दन में हाथ हिलाया और उनके साथ हाथ मिलाने के लिए उन तक गए। महापौर रेनाटो एकोरिन्ती ने अपने कार्यालय में उन्हें मध्याह्न भोजन के लिए आमंत्रित किया, जिसके बाद उन्होंने परम पावन का परिचय नगर पार्षदों से करवाया। महापौर कार्यालय से परम पावन निकट के क्रीड़ा क्षेत्र गए जो एक हेलिपैड का भी कार्य करता है, जहां रविवार को रग्बी फुटबॉल क्लब के सदस्य उन्हें देख आश्चर्यचकित हुए तथा उनका अभिनन्दन किया। वहां से उन्होंने हेलीकॉप्टर से पलेर्मो के लिए उड़ान भरी जहाँ वे कल 'शिक्षा का आनन्द' पर बोलेंगे।