पेरिस, फ्रांस, १२ सितंबर २०१६ - ब्रसेल्स में अपनी अंतिम सुबह परम पावन दलाई लामा ने युवा अध्यक्ष संगठन, जो युवा मुख्य कार्यकारी अधिकारियों का एक वैश्विक नेटवर्क है, के सदस्यों के साथ भेंट की। उन्होंने कहा कि वे स्वीकार करते हैं कि विज्ञान ने दिखाया है कि आधारभूत मानव प्रकृति करुणाशील है, पर वे जानना चाहते थे कि इस खोज को वह अपने कारोबार में किस तरह व्यवहृत करें। परम पावन ने कहाः
"हर मानव गतिविधि की गुणवत्ता अंततः आपकी प्रेरणा पर निर्भर करता है। यदि आप घृणा, भय अथवा ईर्ष्या से प्रेरित हैं तो आप जो भी करें उसके ठीक होने की संभावना नहीं है। दूसरी ओर क्रोध जैसी विनाशकारी भावनाओं का विस्फोट किसी अन्य घटना के लिए एक सहज प्रतिक्रिया हो जाती है। मनुष्य के रूप में हमारी बुद्धि हमें निष्पक्ष करुणा में प्रशिक्षित करने की अनुमति देती है। हम इस तरह से प्रेरित होते हैं तो परिणाम और अधिक स्थायी होता है, जबकि क्रोध का परिणाम अपेक्षाकृत अल्प समय का होता है। आप जो कुछ भी सच्ची, निष्पक्ष करुणा से प्रेरित होकर करें वह कभी आपके पश्चाताप का कारण न बनेगा। इसका आवश्यक रूप से धर्म से कोई लेना देना नहीं है, क्योंकि यह हमारे सामान्य ज्ञान और हमारे सामान्य अनुभव में निहित है।"
परम पावन ने अपने युवा श्रोताओं को एक तिब्बती भिक्षु के बारे में बताया, जिनको वह जानते थे, जो १९५९ में तिब्बत में ही रह गए थे, जिन्हें गिरफ्तार किया गया था और १८ वर्षों के लिए कठोर कारागार में डाल दिया गया। जब १९८० के दशक में उन्हें छोड़ा गया तो वह भारत आए जहाँ परम पावन ने उनसे भेंट की और उनसे पूछा कि क्या हुआ था। भिक्षु ने बताया कि उन्हें प्रायः संकट का सामना करना पड़ा था जब परम पावन ने पूछा कि उनका क्या मतलब था तो उन्होंने कहा कि वे अपने चीनी कारागार के अधिकारियों के प्रति करुणा भावना को खोने के संकट में थे। परम पावन ने स्मरण किया कि वे यह अनुभव करते हुए कितने भावुक हो उठे थे कि भिक्षु ने करुणा के खोने को एक संकट माना।
"यह," उन्होंने कहा, "सच्चे आध्यात्मिक अभ्यास का प्रमाण है। इस तरह की करुणा शक्ति का एक स्रोत है। यह आत्म-विश्वास और एक पारदर्शी ईमानदारी लाता है। यदि आप अपने कर्मचारियों या ग्राहकों से इस तरह की करुणा के साथ व्यवहार करेंगे तो आप सफल होंगे।"
परम पावन ने आगे कहा कि परिस्थितियों के अनुसार ऐसे अवसर हो सकते हैं कि एक करुणाशील प्रेरणा के साथ आपको एक कड़ी कार्रवाई या कठोर शब्दों के प्रयोग करने की आवश्यकता पड़े। उन्होंने कहा कि वह एक स्पष्ट प्रेरणा और अपने चित्त में एक महत्तर लक्ष्य रखने के साथ संगत रखता है।
प्रौद्योगिकी के उपयोग के बारे में पूछे जाने पर परम पावन ने दोहराया कि वह रचनात्मक है अथवा नहीं, वह आपकी प्रेरणा और जिस तरह से उसका प्रयोग किया जाता है, दोनों पर निर्भर करता है। उन्होंने सौर ऊर्जा के उपयोग से विलवणीकरण संयंत्र से पानी उत्पन्न कर भूमि को उपजाऊ बनाकर खाद्य उत्पन्न करने और सहारा और मध्य ऑस्ट्रेलिया के रेगिस्तान में हरियाली लाने के अपने सपने की बात की।
कठिनाइयों से निपटने के बारे में एक प्रश्न का उत्तर देते हुए परम पावन ने उत्तर दिया कि जीवन कठिन है और यह कल्पना करना कि हमें किसी समस्या सा सामना नहीं करना पड़ेगा, अवास्तविक होगा। उन्होंने कहाः
"जब मैं बहुत छोटा था तो पढ़ाई को लेकर बहुत अनिच्छुक था, पर अपनी प्रारंभिक किशोरावस्था में मेरी रुचि जागी। फिर १६ वर्ष की आयु में चीनी आक्रमण के परिणामस्वरूप मैंने अपनी स्वतंत्रता खो दी। २४ वर्ष की अवस्था में मैंने अपना देश गंवाया। विगत ५७ वर्षों में एक शरणार्थी के रूप में सभी तरह की समस्याएँ रही हैं। एक चीनी मित्र के शोध ने स्पष्ट किया है कि १९५६ और १९६२ के बीच कुल ३००,००० तिब्बतियों की हत्या हुई थी। ऐसे दुःख का सामना करते समय ८वीं सदी के भारतीय आचार्य शांतिदेव की सलाह बहुत सहायक रही है। उन्होंने सावधानी से समस्या का आकलन करने का सुझाव दिया। यदि उसका समाधान किया जा सकता है तो चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है, बस जो आवश्यक हो उसे करें। यदि उसका समाधान नहीं किया जा सकता, तो चिंता किसी तरह से सहायक न होगी।"
ब्रसेल्स के दक्षिण-पूर्व के लूवन विश्वविद्यालय में परम पावन एक पैनल, जिनमें: एमजीआर जोज़ेफ डी केसेल, मेकलेन-ब्रसेल्स के आर्चबिशप; अल्बर्ट गुईगुई, बेल्जियम के मुख्य रबाई; सालाह एकाल्लाउई बेल्जियम मुस्लिम कार्यकारिणी के अध्यक्ष और बेल्जियम के संयुक्त प्रोटेस्टेंट चर्च के अध्यक्ष स्टीवन फुइटे शामिल थे, के साथ १००० छात्र श्रोताओं के समक्ष एक अंतर्धर्म संवाद में संलग्न हुए। बातचीत, फ्रांसीसी में हुई और परम पावन की टिप्पणी का अनुवाद श्रद्धेय मैथ्यू रिकार्ड द्वारा किया गया।
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"आदरणीय आध्यात्मिक भाई - और कोई बहन नहीं? - छोटे भाइयों और बहनों, १९५९ में मैं एक शरणार्थी बना और १९७३ में यूरोप की पहली बार यात्रा की। भारत से लंबी उड़ान के उपरांत हम रोम में उतरे, जहाँ मैं यह देखकर आश्चर्यचकित था कि यद्यपि वहाँ के परिदृश्य में अंतर था पर लोग मनुष्य के रूप में एक समान थे। तब से, हम और अधिक अन्योन्याश्रित बन गए हैं और हम सब अब जलवायु परिवर्तन के संकट का सामना कर रहे हैं। अंतरिक्ष से हमारा विश्व मात्र एक छोटा नीला ग्रह है जहाँ कोई भी राष्ट्रीय सीमाएँ दिखाई नहीं पड़तीं। इसी कारण मैं मानवता की एकता का विचार, यह विचार है कि हम सब एक मानव परिवार के हैं, को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध हूँ। मैं यहाँ आप सब, कई धार्मिक परम्पराओं के नेताओं, के बीच आकर बहुत खुश हूँ।"
उन्होंने सुझाया कि यहाँ २१वीं सदी में हम अधिक परिपक्व मनुष्य का व्यवहार करने के लिए एक प्रबल आवश्यकता का सामना करते हैं। यद्यपि वैज्ञानिकों ने प्रमाण प्राप्त किए हैं कि आधारभूत मानव स्वभाव करुणाशील है, पर भौतिक लक्ष्यों की ओर उन्मुख वर्तमान शिक्षा व्यवस्था इसके विकास के लिए लगभग कुछ नहीं करती। दूसरी ओर सभी प्रमुख धार्मिक परम्पराओं का आम संदेश प्रेम व करुणा है, उन्होंने कहा। यद्यपि लोग इस्लाम को लेकर परेशान हैं पर परम पावन ने घोषित किया उनके कई अच्छे मुसलमान दोस्त हैं, जो करुणाभाव से दूसरों के हित के लिए चिंतित हैं। उन्होंने कहा कि वे उन्हें बताते हैं कि जो भी रक्तपात का कारण बनता है वह फिर सही मुसलमान नहीं रह जाता। उन्होंने स्पष्ट किया कि जहाँ तक उनका संबंध है, हमें 'मुस्लिम आतंकवादियों' या 'बौद्ध आतंकवादियों' की बात नहीं करनी चाहिए क्योंकि जो लोग आतंकवादी हिंसा में संलग्न होते हैं उनका फिर धार्मिक अभ्यास से कोई संबंध नहीं रह जाता।
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परम पावन धर्म के तीन पहलुओं को रेखांकित कियाः धार्मिक पक्ष, जिसमें प्रेम और करुणा की आम बात शामिल है। उसके पश्चात विभिन्न दार्शनिक दृष्टिकोण हैं, जो कि काफी अलग हो सकते हैं, पर फिर भी प्रेम के अभ्यास का समर्थन करते हैं। तीसरा, सांस्कृतिक पक्ष है, जिसमें प्रथाएँ और रीति रिवाज़ शामिल हैं, जो विभिन्न कालों और विभिन्न स्थानों में पनपे हैं। इनमें से कुछ जैसे कि भारत की जाति व्यवस्था लोकतंत्र और स्वतंत्रता के साथ संगत नहीं रखती और इसलिए इनमें परिवर्तन की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि उन्होंने भारतीय आध्यात्मिक नेताओं के बीच अपने मित्रों को इस तरह के परिवर्तन लाने की आवश्यकता के विषय में बात करने का आग्रह किया है।
धर्म में महिलाओं के स्थान के विषय में पूछे जाने पर परम पावन ने कहा कि शरीर में कुछ अंतर के बावजूद, पुरुष और स्त्रियाँ एक समान इंसान हैं। वैज्ञानिकों ने पाया है कि स्त्रियाँ दूसरों की आवश्यकताओं के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं। यह उन्हें यह सोचने पर बाध्य करता है कि हमारे लगभग २०० देशों के नेताओं में अधिक महिलाएँ हों तो विश्व में संभवतः कम युद्ध हों।
अंत में, उन्होंने कहा कि वह यह उल्लेख करना चाहते थे कि जहाँ अतीत में, जब देशों और समुदायों में कम पारस्परिक व्यवहार था तो इस तरह की सोच स्वीकार्य थी कि केवल एक सत्य और धर्म है। आज, जब हम हमारे समुदाय बहु-सांस्कृतिक और बहु-धार्मिक हो गए हैं तो एक व्यक्ति के स्तर पर एक सत्य और एक धर्म के सोच का औचित्य हो सकता है पर उस समाज और विश्व के संदर्भ में जिसमें हम रहते हैं यह अधिक उपयुक्त होगा कि हम कई सत्य और कई धर्मों के संदर्भ में सोचें।
पैनल और विश्वविद्यालय के सदस्यों के साथ मध्याह्न के भोजन का आनंद लेने के बाद, परम पावन ब्रसेल्स हवाई अड्डे के लिए रवाना हो गए और पेरिस के लिए उड़ान भरी। उनका अभिनन्दन करने के लिए होटल के बाहर तिब्बती एकत्रित हुए थे और यूरोप इकोलोजि ग्रीन्स (ईईएलवी), पेरिस के महापौर के द्वितीय एरोडिसमेंट और उनके पुराने मित्र तथा रॉबर्ट बडिंटर के मृत्यु दंड का विरोध करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता, जैक बौटाउ ने उनका स्वागत किया।