लेह, लद्दाख, जम्मू एवं कश्मीर, ५ अगस्त २०१६ - आज प्रातः तड़के ही परम पावन दलाई लामा ने शिवाछेल फोडंग आवास, चोगलमसर से ४० किलोमीटर की दूरी पर स्थित डगथोग विहार के लिए प्रस्थान किया। मार्ग पर उत्साही लद्दाखियों और तिब्बतियों ने उनका अभिनन्दन किया, जिनमें से कई विविध प्रकार के पुष्प प्रदर्शित कर रहे थे तथा पारम्परिक अभिनन्दन स्कार्फ लिए हुए थे।
सेरत्रि (या शक्ति) गांव के डगथोग विहार में आगमन पर, विहार के आचार्य तथा पूर्व आचार्य ने परम पावन का स्वागत किया। नव निर्मित मंदिर में प्रवेश करने के पूर्व परम पावन और डगथोग विहार और मेकलियोड गंज के नमज्ञल तांत्रिक महाविद्यालय के भिक्षुओं ने बुद्ध और बोधिसत्व का आह्वान करते हुए मंगल छंदों का पाठ किया। मंदिर के अंदर, केन्द्रीय प्रतिमा गुरु पद्मसंभव की थी, जिसके दाहिने और बाईं ओर क्रमशः गुरु दोर्जे डोलो और गुरु पद्म ज्ञलपो की मूर्तियाँ थीं। मंदिर के अंदर एक के बाद एक तीनों गुरुओं के अभिषेक के बाद डगथोग विहार के मुख्य भिक्षुओं ने परम पावन को मंडल का समर्पण प्रस्तुत किया।
तत्पश्चात जब परम पावन रिनछेन तेरज़ोद के कुछ ग्रंथों पर आधारित गुरु दोर्जे डोलो को अपना विशिष्ट छोग समर्पण कर रहे थे तो भिक्षुओं ने गुरू रिनपोछे के लिए विभिन्न प्रार्थनाओं का पाठ कियाः सप्त पंक्ति प्रार्थना, व्याकुलता गीत की प्रार्थनाः करुणाशील गुरु पद्मसंभव का आह्वान, त्वरित बाधा हरण और प्रणिधानों की प्राप्ति, और गुरु दोर्जे डोलो के मंत्र।
जब छोग समर्पण समाप्त हुआ तो परम पावन ने लद्दाख के डगथोग में विहार के प्रांगण में बड़ी संख्या में स्थानीय और पाश्चात्य लोगों को इस वर्ष का प्रथम सार्वजनिक व्याख्यान दिया, जो विहार के प्रांगण में एकत्रित थे। परम पावन ने गुरु दोर्जे डोलो की प्रतिमा का परिचय देते हुए प्रारंभ किया जिसका निर्माण स्वयं परम पावन के आग्रह पर तिब्बत के ञिङमा बौद्ध परम्परा के पूर्व प्रमुख दिवंगत तकलुंग चेटुल रिनपोछे ने किया था। उन्होंने कहा, "लद्दाख में गुरु दोर्जे डोलो की प्रतिमा का निर्माण तिब्बती मुद्दे के आध्यात्मिक और लौकिक मामलों की सहायता के लिए हुआ था। हमने अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम तथा सीमा क्षेत्रों के कुछ स्थानों पर इसी तरह की प्रतिमाओं का निर्माण अधिकृत किया है।"
परम पावन ने आगे कहा कि उन्होंने कल दोर्जे डोलो पर एक सप्ताह का एकांतवास समाप्त किया था और इसलिए समापन अभ्यास के रूप में आनुष्ठानिक भोज समर्पण के लिए वे डगथोग आए थे। यद्यपि पहले परम पावन की जनता से मिलने की कोई योजना नहीं थी, उन्होंने उल्लेख किया कि उनसे मिलने का कारण था, "क्योंकि आप इतने लोग यहाँ आए हैं, मैं आपका अभिनन्दन करना चाहता था।"
"आपकी श्रद्धा आपको यहाँ लेकर आई है। पर बौद्ध धर्म में मात्र श्रद्धा पर्याप्त नहीं है। यह बुद्धि की महत्वपूर्ण विवेकशीलता पर आधारित श्रद्धा पर बल देती है।" परम पावन ने आगे कहा कि बुद्ध ने स्वयं अपनी शिक्षाओं के महत्वपूर्ण विश्लेषण की आवश्यकता पर बल दिया, जैसा वे कहते हैं:
ओ भिक्षुओं तथा विद्वद् जनों
जिस तरह स्वर्ण की जांच
तपाकर, काट कर और रगड़ कर की जाती है
मेरी शिक्षा को भली भांति जांचकर फिर अपनाओ
मेरे प्रति गौरव के कारण नहीं।
अतः परम पावन ने इंगित किया कि मात्र बुद्ध ऐसे थे जिन्होंने अपने अनुयायियों से उनकी शिक्षाओं को केवल श्रद्धा और भक्ति के आधार पर स्वीकार करने के बजाय उनकी जांच करने को कहा। जबकि विश्व के अन्य धर्मों के सभी संस्थापकों ने अपने अनुयायियों से जो उन्होंने प्रकट किया, उस पर विश्वास करने को कहा है।
चूँकि तर्क बुद्ध की शिक्षाओं के आलोचनात्मक विश्लेषण में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है, नालंदा आचार्यों जैसे नागार्जुन, और विशेषकर चन्द्रकीर्ति ने ग्रंथों की भली भांति छान बीन की और तर्क तथा कारण के माध्यम से स्पष्ट रूप से संधिनिर्मोचन सूत्र जैसे नेयार्थ शिक्षाओं और नेतार्थों में अंतर किया। बुद्ध की देशनाओं में महत्वपूर्ण बुद्धि तत्व को इंगित करने के लिए, परन पावन ने 'प्रज्ञा पारमिता' के 'प्रज्ञा' शब्द का संदर्भ दिया, जो बुद्धों का परम प्रज्ञा चित्त है, जो दान जैसी अन्य पारमिताओं द्वारा संदर्भित नहीं है।
अतः बुद्ध की शिक्षाओं की गहराई में उतरने के लिए कारण तथा तर्क के उपयोग के महत्व की बात करते हुए परम पावन ने वस्तुओं के तीन पहलुओं की बात की, जो हैं ज्ञान की स्पष्ट/प्रकट, किंचित गुह्य और बहुत गुह्य वस्तुएँ - और कहा कि आनुमानिक तर्क जो शून्यता के समान किंचित गुह्य धर्मों की अंतर्दृष्टि प्राप्त करने के लिए काम में लाया जाता है, हमें स्पष्ट धर्मों के अनुभवजन्य अनुभव पर आधारित करना होता है, जैसे कि हेतु फल के स्थूल स्तर जिसे हम ऐन्द्रिक धारणाओं द्वारा विश्व में अनुभव करते हैं। और ज्ञान के इन दो पहलुओं से संबंधित बुद्ध की शिक्षाओं के सत्य के सत्यापन द्वारा हम अत्यंत गुह्य शिक्षाओं की सत्यता और अचूक प्रकृति का अनुमान लगा सकते हैं जैसे कि हेतु फल सिद्धांत अथवा कर्म।
बुद्ध की शिक्षाओं की सत्यता जानने के लिए कारण तथा प्रयोग के उपयोग के संबंध में, परम पावन ने आधुनिक वैज्ञानिकों के साथ हुए उनके सफल संवादों का संदर्भ दिया, जो ३० वर्ष पूर्व प्रारंभ हुआ था - वे धार्मिक नहीं हैं किन्तु वास्तविकता जानने के लिए परीक्षण के कड़े उपायों का प्रयोग करते हैं। उन्होंने कहा कि ४० से भी अधिक वर्षों से पूर्व जब उन्होंने वैज्ञानिकों के साथ चर्चा की उनकी इच्छा अभिव्यक्त की थी तो किसी पाश्चात्य मित्र ने किसी ऐसे संवाद के विरुद्ध उन्हें चेताया था। पर फिर भी उन्होंने पाश्चात्य वैज्ञानिकों के साथ चर्चा प्रारंभ की और उन्होंने कहा, "आज आधुनिक वैज्ञानिकों के साथ ३० वर्षों से भी अधिक चर्चा करते हुए, मुझे लगता है कि मैं विजेता बनकर उभरा हूँ।"
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परम पावन समझ या प्रज्ञा के तीन रूपों पर केन्द्रित हुए जो अध्ययन, चिन्तन तथा भावना से प्राप्त होती है और जो पहले से बाद तक विकसित होती है। उन्होंने सलाह दी कि कांग्यूर और तेंग्यूर के ३०० से अधिक ग्रथों का साहित्य हमारे ज्ञान की खोज के लिए है, आनुमानिक तर्क, अनुभव और भावना द्वारा शिक्षा की सत्यता में विश्वास का निर्माण। तो हम देख सकते हैं कि किस तरह बुद्ध की शिक्षाओं में, स्वयं शास्ता में इत्यादि हमारी आस्था महत्वपूर्ण परीक्षण और तर्क द्वारा बौद्ध दर्शन के उचित ज्ञान पर आधारित है। परम पावन ने उल्लेख किया कि नालंदा परम्परा के चार दर्शनों में एक ही शिक्षक, बुद्ध की शिक्षा की विभिन्न व्याख्याओं के कारण अंतर है। चूँकि नालंदा परम्परा ने ग्रंथीय उद्धरण के स्थान पर तर्क पर बल दिया, आचार्य दिङ्नाग और धर्मकीर्ति ने प्रमाण पर अपने ग्रंथ लिखे, जिनमें से सभी आज तिब्बती अनुवाद में उपलब्ध हैं।
समापन में परम पावन ने श्रोताओं से कहा, "मैं ८१ वर्ष का हो चुका हूँ पर मैं अभी भी कांग्यूर और तेंग्यूर तथा अन्य ग्रंथों का अध्ययन तथा मनन करता हूँ। परम पावन ने इस सलाह से युवा और अन्य वयस्कों को प्रोत्साहित किया, "यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि युवा पीढ़ी को बुद्ध की शिक्षाओं का अध्ययन करना चाहिए तथा सीखना चाहिए। यहाँ तक कि वयस्कों को भी बुद्ध देशना का अध्ययन करना चाहिए जैसे साक्य पंडित कहते हैं:
तुम्हे ज्ञान की शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए, फिर चाहे
कल ही तुम्हारी मृत्यु होने वाली हो
संभवतः इस इस जीवन काल में तुम विद्वान न बनो
पर जैसे अपनी जमा की गई धन राशि को
[एक बैंक में]
तुम अपर जीवन में उसमें से निकाल सकते हो।
उन्होंने कहा कि वे आगामी दिनों और हफ्तों में और अधिक विस्तृत प्रवचन देंगे। उत्सुक श्रोताओं से हाथ मिलाते हुए वे शिवाछेल फोडंग में अपने आवासीय भवन लौट गए।