ब्रसेल्स, बेल्जियम, ११ सितंबर २०१६ - आज प्रातः वीआरटी- लेमिश टीवी समाचार के स्टेफान मीरबरगेन द्वारा लिए गए साक्षात्कार का प्रथम प्रश्न था कि क्या वह बेल्जियम और यूरोप की अपनी यात्रा का आनंद ले रहे हैं। परम पावन दलाई लामा ने हाँ में उत्तर देते हुए १९७३ में पश्चिम की अपनी पहली यात्रा प्रारंभ करते समय बीबीसी के मार्क टली से जो उन्होंने कहा था उसका स्मरण किया कि वह यात्रा कर रहे थे क्योंकि वह स्वयं को विश्व का नागरिक मानते हैं। उन्होंने पुष्ट किया कि वे आशावादी हैं और विश्वास रखते हैं कि यदि शिक्षा में सुधारने के उचित प्रयास किए जाएँ, इसे और अधिक समग्र और सार्वभौमिक मूल्यों का समावेशी बनाया जाए, तो इस शताब्दी में विश्व अधिक सुखी, अधिक शांतिपूर्ण स्थान हो जाएगा।
|
जब वे माइंड एंड लाइफ यूरोप के तीसरे दिन के सम्मेलन में सम्म्लित होने पुनः बोज़र ललित कला केन्द्र जाने के लिए गाड़ी से रवाना हुए तो ब्रसेल्स की रविवार की प्रातः सड़कें मौन थीं और आकाश में बादल छाए थे।
थियो सोवा पाँचवें और अंतिम सत्र की संचालिका थीं। उन्होंने कलाकार ओलाफुर इलियासन को अपने कार्य के बारे में बात करने के लिए आमंत्रित किया। उन्होंने सभागार की छत पर ज्यामितीय प्रकाश मूर्तिकला की ओर ध्यान आकर्षित किया जिसके विषय में उन्होंने बताया कि वह छत पर सौर पैनल द्वारा संचालित है। कलाकृति का प्रकार्य वक्ताओं और श्रोताओं के लिए जीवंत रूप में संदर्भ के एक साझा बिंदु के रूप में कार्य करना था। उन्होंने प्रकाश और पानी के खेल में इंद्रधनुष और उनकी उपस्थिति में हमारी धारणा की भागीदारी की बात की। उन्होंने छोटे पोर्टेबल सौर बत्ती के निर्माण की एक परियोजना का भी वर्णन किया जिससे वह जुड़े हैं जो उन लोगों के लिए प्रकाश लाती है जिनके पास उसका कोई अन्य साधन नहीं है।
एक लम्बे समय से जुड़ी शांति कार्यकर्ता तथा सामाजिक परिवर्तन की प्रस्ताविका सिला एल्सवर्थी ने समझाया कि वर्षों से उन्होंने हर स्तर पर परमाणु हथियार कार्यक्रम में भाग लेने वाले लोगों से बात की है। उन्होंने कहा कि उन्होंने उन लोगों से भी बात की है जो दूसरों की रक्षा के लिए स्वयं को संकट में डालते हैं, वे लोग जो युद्ध को रोकना जानते हैं। उन्होंने संकेत किया कि हमारे शस्त्र निष्क्रिय हो चुके हैं। आज मानवता जो बड़े संकटों का सामना कर रही है जैसे कि जलवायु परिवर्तन और अमीर और गरीब के बीच खाई का संबंध न तो हमारी वस्तुओं से है और न ही हमारे शस्त्रों के उपयोग से।
|
उन्होंने कहा, "मैं एक योजना बना रही हूँ कि लोग वास्तव में युद्ध को रोकने के लिए क्या कर सकते हैं।"
उन्होंने वर्णित किया कि किस तरह उन्होंने २५ वर्षों से भी अधिक संवादों का आयोजन किया है और वे निर्णय लेने वालों और उनके जानकार आलोचकों को एक साथ लायी हैं। इस कार्यक्रम के पाँच साल के बाद उन्होंने ध्यान करने वालों को, जहाँ बातचीत चल रही थी उसके बगल वाले या नीचे वाले कमरे में बैठने के लिए आमंत्रित किया। उन्होंने एक अवसर का स्मरण किया जब अमेरिकी विदेश विभाग के एक सदस्य ने उनसे बलपूर्वक कहा कि जिस कमरे में उनकी बैठक चल रही थी उसमें कुछ विशिष्ट बात थी। उन्होंने उन्हें ध्यान करने वालों को प्रत्यक्ष कर दिया।
शांति लाने के प्रयास में एक अन्य दृष्टिकोण लेते हुए डॉ एल्सवर्थी एक मूल्य रखी हुई व्यापार योजना तैयार कर रही हैं जो शांति की लागत के विपरीत युद्ध की लागत रखता है। नतीजा यह है कि शांति को सुरक्षित करने के लिए जो एक डॉलर खर्च होता है, तो १८०० डालर से अधिक युद्ध पर खर्चा होता है। जहाँ एक ऐसे विश्व में युद्ध के लिए १३ खरब डालर खर्च करने की इच्छा है, शांति १.७ खरब डालर में प्राप्त की जा सकती है। पृथ्वी पर शांति सुनिश्चित करने की दिशा में जो कदम साधारण लोग उठा सकते हैं वे यह कि साधारण माता-पिता इस पर ज़ोर दें कि बच्चों को स्कूल में ध्यान सिखाया जाए।
|
इस प्रस्तुति का उत्तर देते हुए परम पावन ने नोबेल शांति पुरस्कार विजेताओं की एक बैठक में भाग लेने के बारे में बताया, जो २०१४ के उत्तरार्ध में रोम से केप टाउन स्थानांतरित कर दी गई थी। बैठक में इंटरनेशनल फिसिशियन फॉर द प्रिवेंशन ऑफ न्यूक्लियर वॉर (आइपीपीएनडब्ल्यू) के एक प्रतिनिधि ने श्रोताओं को अचंभित कर दिया जब उसने भीषण परिणामों की बात की यदि आज एक महत्वपूर्ण परमाणु विनिमय हो। परिणामस्वरूप बैठक में परमाणु हथियारों को कम करने और उसके उन्मूलन के लिए एक समय सारिणी निर्धारित करने तथा परमाणु शक्तियों को उत्तरदायी ठहराने में सहमति हुई। अब तक कुछ नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि जापान कड़े रूप से परमाणु हथियारों का विरोध करता है और उसे उनके उन्मूलन के लिए एक आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए आमंत्रित किया जा सकता है।
उन्होंने कहा, "लोगों को जो करना चाहिए, वह यह कि असंभव राजनेताओं को कार्य न करने के लिए असंभव कर दें। और एक बार परमाणु हथियार नष्ट हो गए तो हम आक्रामक पारम्परिक शस्त्रों के उन्मूलन पर ध्यान दे सकते हैं। मनुष्य में सामन्य ज्ञान है और उसका मूल स्वभाव करुणाशील है। मेरा मानना है कि हम शिक्षा और जागरूकता बढ़ाते हुए असैनिकीकृत विश्व को प्राप्त कर सकते हैं।"
दर्शकों ने डॉ सिला एल्सवर्थी की प्रस्तुति तथा परम पावन के बाद की टिप्पणी के उत्साहपूर्वक अनुमोदन को तालियों की गड़गड़ाहट से संकेतित किया।
इसके बाद संगठनों में शक्ति और देखभाल के विषय में बोलते हुए फ्रेडेरिक लालौ ने सुझाया कि चूँकि इतने सारे लोग विशेष रूप से पश्चिम में जहाँ वे काम करते हैं, उसे लेकर मोहभंग की स्थिति में हैं उन्हें एक नए दृष्टिकोण की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि उन्होंने रूपक के महत्व को देखा है और टिप्पणी की, कि हम संगठनों को एक मशीन की तरह देखते हैं जैसा कि हम अपने शरीर को लेकर सोचते हैं, बजाय इसके कि हम उन्हें जीवित प्राणी की तरह देखें, जो वे हैं। संगठन को एक जीवित प्राणी के रूप में देखने की सफलताओं में शक्ति के क्रम में परिवर्तन शामिल है। शीर्ष पर बैठे मालिक की संरचना वाला पिरामिड़ अब नहीं है। भय के स्थान को अब सुरक्षा की भावना ने ले लिया है और चूँकि संगठन एक बेजान मशीन नहीं है जिसका प्रोग्राम किया जाना है, भविष्य पर इसके उद्देश्य व परिप्रेक्ष्य अलग हैं।
थियो सोवा ने लालौ को नई शैली से काम कर रहे संगठन का एक उदाहरण देने के लिए आमंत्रित किया। उन्होंने नीदरलैंड के एक स्वास्थ्य संगठन का उदाहरण दिया जिसका मूल्यांकन कड़े ढंग एक मशीन के रूप में किया गया था। नर्सों की गतिविधियों का समय और गति से आकलन किया गया था और उनका मूल्यांकन हुआ। परिणाम नर्सों और उनके रोगियों के बीच अक्षमता और गहरा असंतोष था। जब एक नर्स ने एक संगठन का आरम्भ नए ढंग से किया तो उसने चार नर्सों के साथ शुरू किया। इसमें तेजी से १४,००० और ७५% शेयर बाजार की वृद्धि हुई है और जिसमें कर्मचारी और रोगियों के संतोष की भावना बढ़ी है।
परम पावन की प्रतिक्रिया पुनः यह थी कि वे वास्तव में प्रभावित थे। उन्होंने कहा कि इस तरह का एक दृष्टिकोण अर्थ रखता है क्योंकि सब कुछ अन्योन्याश्रित है। जो आवश्यक है, वह वास्तविक परिवर्तन लाने का प्रयास करना है।
थियो के इस अनुरोध पर कि वे सोचें कि वे इस बैठक से क्या लेकर जा रहे हैं, का फ्रेडेरिक ने उत्तर दिया, "हम यहाँ हैं क्योंकि हमारा एक अलग दृष्टिकोण है - इस पर कार्य करने के लिए क्या आवश्यकता होगी?" सिला ने पुरुषों तथा महिलाओं में स्पष्ट स्री शक्ति की बात की और परम पावन से पूछा कि किस तरह पुरुष और स्त्री तत्व में संतुलन वापस लाया जाए । उनका जवाब था
"प्रेम व करुणा सदैव महत्वपूर्ण कारक हैं", उन्होंने उत्तर दिया, "परन्तु राग मिश्रित प्रेम व करुणा नहीं, अपितु दूसरों के कल्याण के लिए सच्ची चिन्ता। इस प्रकार की करुणा अंततः सहज हो जाती है। हम दूसरों पर निर्भर हैं, तो उनके कल्याण के प्रति ध्यान देना हमारे हित में है।"
परम पावन ने श्रोताओं की सतर्कता और एकाग्रता के विषय में भी टिप्पणी की और आगे कहा कि एक और अधिक शांतिपूर्ण विश्व के निर्माण में हम में से प्रत्येक का योगदान है। तानिया सिंगर ने पिछले तीन दिनों में जो चर्चा हुई और जो सीखा उसका संक्षेपीकरण किया। उन्होंने उन सबको धन्यावाद दिया जो प्रतीभागी थे और सम्मिलित हुए थे, जिसमें तिब्बती भी शमिल थे जिन्होंने सुरक्षा भूमिका निभाई।
मध्याह्न भोजनोपरांत परम पावन शहर के किनारे ब्रसेल्स एक्सपो के लिए गाड़ी से रवाना हुए, जहाँ १०,००० लोग उन्हें 'व्यक्तिगत प्रतिबद्धता और वैश्विक उत्तरदायित्व' पर उनके संबोधन को सुनने के लिए एकत्रित हुए थे। माइंड एंड लाइफ यूरोप के प्रबंध निदेशक सेंडर टाइडमेन ने मंच पर आने के लिए उनका स्वागत किया और दो विशिष्ट अतिथियों, ब्रसेल्स-राजधानी क्षेत्र संसद के अध्यक्ष, चार्ल्स पिक्युओ तथा फ्लेमिश संसद के अध्यक्ष जेन प्यूमेन्स कार्यक्रम का परिचय देने का अनुरोध किया। उनका ऐसा करने के पश्चात परम पावन ने अपने बगल में कुर्सियाँ रखने के लिए कहा ताकि वे मंच पर उनके साथ बैठ सकें।
"जब मैं लोगों से मिलता हूँ," अपनी बात प्रारंभ करते हुए उन्होंने कहा, "मैं उन्हें मनुष्य रूप में समान भाव से सोचता हूँ। हम जिस तरह से जन्म लेते हैं और जिस तरह मरते हैं, वह समान है। हम भाई-बहन हैं। आज हम जिन समस्याओं का सामना कर रहे हैं उनमें से कई इसलिए उत्पन्न होती हैं क्योंकि हम अपने बीच के गौण भेदों पर बहुत अधिक ध्यान देते हैं, इसके बजाय कि हम सोचें कि मानव रूप में हम किस तरह समान हैं। 'मेरा देश' और 'उनका देश' के विचार से अत्यंत ग्रसित होने के कारण 'हम' और 'उन' की भावना ने २०वीं शताब्दी में संघर्ष और हिंसा को उकसाया जिसके परिणामस्वरूप दो विश्व युद्ध हुए। आज, जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ती आवृत्ति के अतिरिक्त ऐसी समस्याएँ हैं जो हमारी अपनी बनाई हुई हैं।
|
"कभी कभी लोग करुणा के अभ्यास को दुर्बलता के संकेत के रूप में देखते हैं जो गलत है। यह क्रोध है जो दुर्बलता की निशानी है जबकि स्नेह शक्ति का संकेत है। इसी तरह कुछ लोगों को संदेह होता है कि करुणा का परिणाम केवल दूसरों का लाभ है - गलत। सौहार्दता और करुणा के विकास से सर्वप्रथम हम लाभान्वित होते हैं। यह चित्त की शांति लाती है, जो आत्म-विश्वास को जन्म देता है। यह हमें अपने कार्य को पारदर्शी रूप से करने में सक्षम करता है और हमें और अधिक मित्र देता है। मैत्री विश्वास पर निर्भर है और विश्वास उस समय खिलता है जब हम दूसरों के हित में रुचि दिखाते हैं।
"आधुनिक शिक्षा अपर्याप्त है क्योंकि यह भौतिक लक्ष्यों की ओर उन्मुख है जो आंतरिक मूल्यों, आधारभूत सार्वभौमिक मूल्यों की उपेक्षा की ओर ले जाता है। यदि हम अपनी बुद्धि को काम में लाएँ तो हम इस तरह के मूल्यों को सशक्त कर सकते हैं, तो मेरी पहली प्रतिबद्धता इस तरह के माध्यम से मानव सुख को बढ़ावा देना है।"
उन्होंने बड़ी संख्या के युवा दर्शकों से कहा कि एक बौद्ध भिक्षु और नालंदा परंपरा के छात्र के रूप में उनकी दूसरी प्रतिबद्धता अंतर्धार्मिक सद्भाव को प्रोत्साहित करने की है। उन्होंने कहा कि भारत जहाँ विश्व की सभी प्रमुख धार्मिक परम्पराएँ सदियों से कंधे से कंधा मिलाकर शांतिपूर्ण ढंग से रहती आई हैं, एक जीवंत उदाहरण है कि इस तरह की समरसता संभव है। उनकी तीसरी प्रतिबद्धता उनके तिब्बती होने और एक ऐसे व्यक्ति जिनमें तिब्बत के अंदर और बाहर के तिब्बतियों ने आशा बांध रखी है, से संबंधित है।
|
उन्होंने श्रोताओं के कई प्रश्नों के उत्तर दिए, अंग्रेजी में बोलते हुए जिसका फ्रेंच में अनुवाद श्रद्धेय मैथ्यू रिकार्ड द्वारा किया गया और फ्लेमिश में जो उप शीर्षक साथ बड़े परदे पर प्रदर्शित हुआ। उन्होंने स्पष्ट किया कि माइंड एंड लाइफ संस्थान द्वारा आयोजित कार्यक्रमों के दौरान वे प्राकृति के वैज्ञानिकों के साथ एक लंबे समय से चल रही संवाद श्रृंखला में संलग्न थे। उनके अनुसार इसका कारण वैज्ञानिकों और बौद्धों के आदान प्रादान द्वारा जो आपसी लाभ उन्हें मिला है, वह शामिल है और एक अनुभवजन्य वैज्ञानिक संदर्भ में सार्वभौमिक मूल्यों की स्थापना की संभावना है।
इसके बाद ब्रसेल्स और आसपास के क्षेत्रों से ३,५०० से अधिक तिब्बतियों को संबोधित करते हुए उन्होंने घोषित किया कि निर्वासन में अपने ५७ वर्षों के दौरान उन्होंने अपनी तिब्बती अस्मिता संरक्षित कर ऱखी थी और अब एक विशिष्ट लोगों के रूप में पहचाने जाते हैं। उन्होंने अपने श्रोताओं को स्मरण कराया कि कई लोगों ने उनके उच्च नैतिक मानकों को पहचानते हुए तिब्बतियों की सहायता की है और उन्हें कार्यरत किया है। परम पावन ने टिप्पणी की कि कुछ अवसरों पर इनमें शिथिलता आई है और उन्हें अपनी प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए प्रयास करने की सलाह दी।
|
उन्होंने २१ शताब्दी के बौद्ध होने के महत्व को इंगित किया, वे लोग जो समझते हैं कि बौद्ध धर्म क्या है। उन्होंने स्पष्ट किया कि इसके लिए अध्ययन की आवश्यकता होती है केवल मंत्र जाप और अनुष्ठान नहीं। परन्तु उन्होंने ध्यानाकर्षित किया कि इस पर गर्व किया जा सकता है कि बौद्ध वाङ्मय का समूचा संग्रह भोट भाषा में उपलब्ध है। उन्होंने यह भी टिप्पणी की कि ठि रलपाचेन की हत्या के बाद जो देश का राजनीतिक विखंडन हुआ तबसे यही धार्मिक संस्कृति और भोट भाषा तिब्बती जनमानस को एकीकृत करने के तत्व रहे हैं।
एक लंबे दिन के अंत में मंच छोड़ते हुए श्रोताओं की सामने की पंक्ति से छोटे बच्चे जो उन्हें "बाय बाय" कह रहे थे उसके उत्तर में उन्होंने हाथ हिलाकर "बाय बाय" कहा।