धर्मशाला, हि. प्र., भारत, २९ अगस्त २०१६ (द्वारा - तेनज़िन मोनलम, phayul.com) - तिब्बत के आध्यात्मिक नेता परम पावन दलाई लामा ने आज कहा कि आज के विश्व में 'भावनात्मक स्वास्थ्य' पर शिक्षा की अत्यंत आवश्यकता है। तिब्बती नेता चुगलगखंग के मुख्य मंदिर में नागार्जुन के मध्यमक के रत्नावली पर चार दिवसीय प्रवचन के प्रथम दिन बोल रहे थे।
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"शारीरिक शिक्षा की तरह, आज भावनात्मक स्वास्थ्य की शिक्षा की बहुत बड़ी आवश्यकता है। वर्षों से चल रहे कई विद्वानों और शिक्षाविद् मित्रों के साथ विचार विमर्श के पश्चात यह निष्कर्ष निकाला गया है कि किसी धार्मिक पक्ष को छुए बिना नैतिकता पर एक पाठ्यक्रम तैयार किया जाए," दलाई लामा ने एशिया के एक समूह द्वारा अनुरोध किए गए प्रवचन के दौरान कहा।
उन्होंने कहा कि मैत्री विश्वास पर निर्मित होती है और वह विश्वास ईर्ष्या और दुर्भावनापूर्ण विचार न रखते हुए मात्र प्रेम व करुणा के साथ प्राप्त की जा सकती है।
"हम सब को अपनी पहचान और धर्म को परे रखना चाहिए और स्वयं को सबसे पहले मनुष्य के रूप में देखना चाहिए। आधारभूत स्तर पर हम सभी सात अरब मनुष्य एक सुखी जीवन की कामना करते हुए समान हैं," उन्होंने कहा।
आध्यात्मिक नेता ने आगे कहा कि बुद्ध की शिक्षाओं के अनुयायी के रूप में और ८१ वर्षों का अवलोकन और अनुभव रखते हुए उन्होंने अत्यधिक तकनीकी विकास देखा है पर नैतिक मूल्यों के विकास का अभाव है। उन्होंने कहा कि आधुनिक शिक्षा, जो अधिकांश रूप से भौतिकवादी मूल्यों पर केंद्रित है, को नैतिक मूल्यों को शामिल करना चाहिए जिसके जड़ें प्रेम और करुणा में हों।
एक श्रद्धालु के प्रश्न का उत्तर देते हुए तिब्बती नेता ने कहा कि धन महत्वपूर्ण और तथा भौतिक सुख के लिए उपयोगी है, परन्तु मानसिक आराम के लिए नहीं। "उदाहरण के लिए, मेरे अरबपति मित्र, उनके पास इतना धन है, लेकिन एक मनुष्य के रूप में वे बहुत दुखी हैं। इसलिए अपार धन चित्त की शांति लाने में असफल होता है। चित्त की शांति लाने का एक ही मार्ग विनाशकारी भावनाओं को नष्ट करना है।"
५७ विभिन्न देशों के ७, ००० से अधिक श्रद्धालुओं ने प्रवचन के प्रथम दिन भाग लिया, जिनमें एशियाई देशों के समूह, जिनके अनुरोध पर प्रवचन का आयोजन किया जा रहा है, के १५५० लोग सम्मिलित थे।