ब्रसेल्स, बेल्जियम, ८ सितंबर २०१६ - परम पावन दलाई लामा कल प्रकाश और ग्रीष्म की गरहमाहट से भरे शहर ब्रसेल्स पहुँचे, जो यूरोपीय संघ का केन्द्र है। उनके होटल में ३५० तिब्बतियों ने उनका सौहार्दपूर्ण पारंपरिक स्वागत किया।
आज ११ घंटों की नींद के बाद जागने पर उनका पहला कार्यक्रम बेल्जियम टेलिविज़न चैनल आरटीबीएफ के एडिटर - इन - चीफ, फ्रांसुआ मेज़्यूर को एक साक्षात्कार देना था। मेज़्यूर का प्रथम प्रश्न आगामी माइंड एंड लाइफ सम्मेलन के मुख्य विषय शक्ति और देखभाल से संबंधित था। वे जानना चाहते थे कि ये दोनों विचार किस तरह एक साथ काम कर सकते हैं। परम पावन ने उन्हें बताया कि शक्ति का संबंध क्षमता से है। यह प्रभावी होने के विषय में है। पर शक्ति रचनात्मक या विनाशकारी हो सकती है। दूसरी ओर देखभाल का संबंध दूसरों के जीवन, अधिकार और कल्याण के सम्मान के बारे में है। शक्ति लाभ के लिए उपयोग में लाई जाए तो यह अच्छी बात है। उन्होंने आगे कहाः
"चूँकि करुणा का संबंध मानव जीवन, हमारे अस्तित्व, मानवीय समाज से है कि यह सभी धार्मिक परम्पराओं के संदेश का अंग है। आज हम ७ अरब मनुष्य, शिक्षा प्रणाली और भौतिक लक्ष्यों की ओर उन्मुख जीवन शैली के परिणाम स्वरूप हर तरह की समस्याओं का सामना कर रहे हैं, जबकि केवल धर्म ही आंतरिक मूल्यों की अनुभूति प्रदान करता है। फिर भी हर कोई धर्म में रुचि नहीं रखता और यहाँ तक कि जो रखते हैं वे भी कुछ गंभीर नहीं हैं। केवल शिक्षा में सुधार द्वारा हम सभी मनुष्यों तक पहुँच सकते हैं।"
जब मेज़्यूर ने यूरोप, जिसमें बेल्जियम भी शामिल है, में हाल के आतंकवादी हमलों का संदर्भ दिया और परम पावन से पूछा कि जो लोग क्रोधित हैं उनसे वे क्या कहना चाहेंगे, तो उन्होंने उत्तर दिया कि तिब्बतियों ने भी कठिनाइयों का सामना किया है और कुछ क्रोधित हैं, पर वे उनसे कहते हैं कि क्रोध कोई सामधान नहीं लाता और चित्त की शांति भंग करता है।
उन्होंने राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश, जिनकी गणना वे अपने मित्र के रूप में करते हैं, को ११ सितम्बर की त्रासदी के बाद पत्र लिखने की बात की। उन्होंने कहा कि उन्होंने अपनी सहानुभूति अभिव्यक्त की थी पर यह आशा भी जताई थी कि जो भी प्रतिक्रिया हो वह अहिंसक हो। उन्होंने कहा कि वे अनुभव करते हैं कि यदि इराक संकट को लेकर यदि प्रतिक्रिया अहिंसक होती तो आज स्थिति बहुत बेहतर होती। उन्होंने इस बात पर बल देते हुए कहा कि बल का प्रयोग समाधान के स्थान पर और अधिक कठिनाइयों को जन्म देता है। उन्होंने कहा कि मुस्लिम आतंकवादी या बौद्ध आतंकवादी के रूप में उल्लेख करना किसी भी रूप में सहायक नहीं है, क्योंकि एक बार यदि लोग आतंकवादी हिंसा में संलग्न हो गए तो वे सच्चे मुसलमान, बौद्ध या जिस विश्वास का वे दावा करते हैं, वे नहीं रह जाते।
दो विश्व युद्धों के हिंसा के संदर्भ में, जिसने २०वीं सदी में यूरोप को तबाह कर दिया और लाखों लोग मारे गए थे, उन्होंने कहा कि यूरोपीय संघ का गठन परिपक्वता की निशानी थी।
उन्होंने कहा कि "एक बेहतर विश्व बनाने की कुंजी एक और सम्पूर्ण शिक्षा प्रणाली का निर्माण करना है जिसमें दूसरों के प्रति करुणा तथा चिंता का प्रशिक्षण शामिल है। हाल ही के वैज्ञानिक निष्कर्ष जो दिखाते हैं कि आधारभूत मानव प्रकृति करुणाशील है, आशा का एक वास्तविक स्रोत है।"
मेज़्यूर ने परम पावन से पूछा कि क्या अगली दलाई लामा एक महिला हो सकती हैं और कि क्या अधिक महिला नेताएँ विश्व के लिए अच्छी होंगी। परम पावन ने पुष्टि की कि कुछ वर्षों पूर्व उन्होंने पेरिस की एक पत्रिका को बताया था कि यदि यह सहायक हो तो एक महिला दलाई लामा बहुत संभव है। उन्होंने यह भी टिप्पणी की, कि आज विश्व में लगभग २०० राष्ट्र हैं। यदि उनकी नेताएँ महिलाएँ होतीं तो बहुत संभव है कि हत्याएँ कम हों।
परम पावन ने सहमति जताई कि पारिस्थितिकी अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं की वृद्धि की आवृत्ति का प्रभाव हम सब पर पड़ रहा है। उन्होंने मेज़्यूर को आश्वस्त किया वे २०११ में इसलिए सेवानिवृत्त नहीं हुए थे क्योंकि वे हतोत्साहित थे अथवा किसी अन्य नकारात्मक कारण से अपितु निर्वासन में आने के बाद से उन्होंने तिब्बतियों के बीच लोकतंत्र की स्थापना के लिए कार्य किया था।
"चूँकि २०११ में मैं पूरी तरह से अपने राजनैतिक उत्तरदायित्वों से सेवानिवृत्त हो चुका हूँ, मैं तिब्बत की समृद्ध बौद्ध संस्कृति के संरक्षण, हमारी भोट भाषा और तिब्बत के प्राकृतिक पर्यावरण के लिए अपने प्रयासों को समर्पित करने में सक्षम रहा हूँ।"
अपने संवाद के अंत में, परम पावन ने मेज़्यूर से कहा, "मैं प्रार्थना करता हूँ कि जब मेरी मृत्यु हो तो मेरा पुनर्जन्म वहाँ हो, जहाँ मैं उपयोगी हो सकता हूँ।"
ब्रसेल्स की चौड़ी सड़कों पर, ट्राम और उनकी पटरियों के बीच होते हुए परम पावन गाड़ी से एक छोटी यात्रा के पश्चात सेंट लुई विश्वविद्यालय पहुँचे। यूरोपीय संसद में तिब्बत रुचि समूह के अध्यक्ष, थॉमस मान, सिक्योंग, डॉ लोबसंग सांगे और तिब्बती संसद के अध्यक्ष, खेनपो सोनम तेनफेल उनका स्वागत करने और सभागार के अंदर उनका अनुरक्षण करने हेतु वहाँ उपस्थित थे। सभागार में प्रवेश कर वे हाथ मिलाते और कई पुराने मित्रों की ओर देख अभिनन्दन में हाथ हिलाते हुए क्रमशः सामने की पंक्ति तक पहुँचे। दृष्टि बाधित कार्यकर्ता चेन गुआंगछेंग को देख उन्होंने अपना चश्मा उतारा और अभिनन्दन के लिए अपने चेहरे को महसूस करने के लिए उन्हें आमंत्रित किया।
आईसीटी यूरोप की संचालिका, छेरिंग जमपा ने ७वें टिब्बटेन सपोर्ट ग्रूप (तिब्बती सहायता समूह) (टीएसजी) सम्मेलन में प्रत्येक का स्वागत किया। उन्होंने घोषणा की कि ५० देशों से २५० प्रतिनिधियों भाग ले रहे थे। उन्होंने कहा कि इस तरह की बैठक के लिए ब्रसेल्स एक उपयुक्त स्थान था, चूँकि चीन के आर्थिक विस्तार के समक्ष, यूरोपीय संघ जैसे निकायों के लिए उचित रूप से सशक्त नीतियों का विकास महत्वपूर्ण है। उन्होंने इस अवसर के उद्घाटन के लिए मेतोक रिनपोछे को प्रार्थना का नेतृत्व करने के लिए आमंत्रित किया।
प्रथम वक्ता, थॉमस मान, जिनका परिचय छेरिंग जमपा ने यूरोपीय संसद में एक तिब्बती स्तंभ के रूप में दिया, ने अपने सह अतिथियों का स्वागत किया तथा टिप्पणी की कि इस ७वें टीएसजी सम्मेलन ने चीन को एक संदेश भेजने के लिए एक अवसर प्रदान किया था। उन्होंने कहा कि यूरोपीय संसद और यूरोपीय समुदाय अपने तिब्बती मित्रों के साथ थे। उनके पश्चात यूरोपीय आर्थिक और सामाजिक समिति के पूर्व अध्यक्ष, हेनरी मलोस ने सभा को बताया कि कोर्सिका से संबंधित होने के कारण वे लोगों को अपने अस्तित्व बनाए रखने के संघर्ष को लेकर व्यक्तिगत रूप से परिचित थे। उन्होंने मार्च १० की सभा को संबोधित करने हेतु अपने धर्मशाला आगमन का स्मरण किया जिसको लेकर स्थानीय चीनी राजदूत बहुत चिढ़ गए थे। उन्होंने आगे बढ़ने के लिए संवाद को बनाए रखने हेतु यह कहते हुए प्रोत्साहित कियाः
"हमें कभी भी मानव अधिकार, नागरिक अधिकार और प्रत्येक के लिए राजनीतिक स्वतंत्रता का उल्लेख करने को विस्मरित नहीं करना चाहिए। जब यूरोपीय संघ इन मुद्दों को लेकर छोटे देशों के साथ कड़ा रुख रखता है, तो वह चीन को लेकर नरम रुख क्यों अपनाता है? तिब्बती मुद्दा हम सबको प्रभावित करता है क्योंकि उसके प्रति हमारी प्रतिक्रिया हमारे मूल्यों को प्रतिबिम्बित करती है।"
मानव अधिकार उप-समिति के उपाध्यक्ष और यूरोपीय संसद की विदेश मामलों की समिति के सदस्य क्रिस्टियन प्रेदा ने बैठक को यूरोपीय संसद में तिब्बती मुद्दे के प्रति व्यापक समर्थन का आश्वासन दिया। उन्होंने सुझाया कि चीन द्वारा मध्यम मार्ग दृष्टिकोण को अस्वीकार करने के बावजूद संवाद में प्रवेश करने की आवश्यकता अब और अधिक हो गई है।
सिक्योंग, डॉ लोबसांग सांगे ने परम पावन दलाई लामा, जो आशा की किरण हैं तथा तिब्बती लोगों द्वारा तिब्बत का जीवन तथा आत्मा माने जाते हैं, की उपस्थिति में अपने होने को लेकर सम्मान की अपनी भावना अभिव्यक्त की। उन्होंने सम्मेलन में भाग ले रहे सभी को केन्द्रिय तिब्बती प्रशासन (सीटीए) की ओर से धन्यवाद दिया और सुझाया कि जो आवश्यक था वह था वरिष्ठ लोगों का ज्ञान और युवाओं का उत्साह। ऐसा कहते हुए उन्होंने बल दिया कि "हम सफल होंगे। हम तिब्बत में तिब्बतियों की आकांक्षाओं को पूरा करेंगे।" उन्होंने टिप्पणी की कि आगामी दो वर्षों में चीन में बड़े परिवर्तन संभावित हैं, अतः तिब्बत के मुद्दे के समाधान हेतु संवाद में संलग्न होना महत्वपूर्ण होगा।
कठोर यथार्थ की ओर संकेत करते हुए कि तिब्बती अभी भी दमित हैं और तिब्बत पर अभी भी कब्जा है, एक स्थिति जो इतनी निराशाजनक है कि हाल ही में तीन भिक्षुणियों ने आत्महत्या कर ली और हाल के वर्षों में १४४ अन्य तिब्बतियों ने आत्म दाह कर लिया, उन्होंने एक शांतिपूर्ण समाधान खोजने के लिए तथा मध्यम मार्ग दृष्टिकोण को सफल बनाने के लिए अपना दृढ़ संकल्प व्यक्त किया। उन्होंने विश्वास जताया कि तिब्बत, जोखंग रमोछे और पोताला के समक्ष कालचक्र भूमि पर वापसी होगी।
छेरिंग जमपा ने उनके उल्लासजनक भाषण के लिए सिक्योंग को धन्यवाद दिया और उन्हें आश्वस्त किया, "हम एक अंतर लाएँगे।" उन्होंने फ्लेमिश संसद के अध्यक्ष, जेन प्यूमन्स को सभा को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया। उन्होंने शांतिपूर्ण ढंग से समस्या को सुलझाने के लिए नए विचारों को लाने का संकल्प जताया। उन्होंने टिप्पणी की कि जहाँ वे और उसके साथी देशवासी तथा और महिलाएँ एक अलग महाद्वीप पर रहते हैं और उनका दृष्टिकोण तिब्बतियों से अलग है, पर जो उन्हें निकट लाता है वह यह कि, "हम सब इंसान हैं।"
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यद्यपि कार्यक्रमानुसार उनका संबोधन नहीं था पर रिचर्ड गियर ने सम्मेलन से इस अवसर पर पुनर्चिन्तन, दूरदृष्टा होने और चीन की बढ़ती आर्थिक शक्ति से हताश न होने अपितु अवसर को एक दुनिया के अंग के रूप में देखने का आग्रह किया। "अपने बच्चों के रहने के लिए हम जिस तरह का विश्व चाहते हैं, उस तरह का निर्मित करने का प्रयास करना चाहिए," उन्होंने कहा, "परम पावन की निष्पक्षता और न्याय की भावना को एक मार्गदर्शक के रूप में देखते हुए। हमें चीनी लोगों को भाई और बहनों के रूप में देखना है। हमें एक उज्जवल भविष्य के लिए आगे देखने की आवश्यकता है।"
यह कहते हुए कि, जो कई तिब्बत समर्थकों को अपने उद्देश्य पर टिकाए रखती है वह परम पावन दलाई लामा से मिलने वाली प्रेरणा, साथ ही तिब्बत में रहने वाले तिब्बती लोग हैं, छेरिंग जमपा ने परम पावन को संबोधित करने हेतु आमंत्रित किया। परम पावन ने प्रारंभ किया:
"चूँकि हम सभी इंसान हैं, मुझे सदा अनौपचारिक रूप से बात करना अच्छा लगता है। मैं एक तिब्बती हूँ और इसलिए आज जीवित ७ अरब मनुष्यों में से एक हूँ। यदि हम पिछली शताब्दी की ओर मुड़ कर देखें तो बहुत अधिक हत्या और हिंसा थी, क्योंकि लोगों ने सोचा कि समस्याओं के समाधान के लिए बल प्रयोग एक मार्ग है। जिस अन्योन्याश्रित विश्व में हम अपने आपको पाते हैं उसमें यह पूरी तरह से तारीख से बाहर है। तिब्बती बौद्ध संस्कृति का सार शांति, अहिंसा और करुणा है - जिसकी पूरे विश्व को आवश्यकता है। मेरा मानना है कि सभी ७ अरब मनुष्यों का एक अधिक करुणाशील विश्व निर्मित करने का एक उत्तरदायित्व है। हम परिणाम अगले वर्ष बल्कि अगले एक दशक में भी नहीं देख सकेंगे, पर यदि हम अभी प्रारंभ करें तो इस सदी के अंदर सकारात्मक परिवर्तन देख सकते हैं।
"जो कुछ भी मुझ से बन पड़ता है, मैं शांतिदेव की सलाह के आधार पर करता हूँ कि यदि किसी समस्या का समाधान निकल सकता है तो हमें ऐसा करने के लिए कार्य करना चाहिए, पर यदि उसका समाधान नहीं हो सकता तो उसको लेकर चिंता से कोई लाभ नहीं। परिणामस्वरूप मेरा चित्त शांत है।
"वैज्ञानिक निष्कर्ष यह है कि आधारभूत मानव स्वभाव करुणाशील है, आशा का एक स्रोत है। यह स्मरण रखते हुए कि हम सब समान रूप से मानव हैं, हमें सभी के कल्याण के बारे में चिंतन करना है।"
परम पावन ने अपने मित्रों और तिब्बत के समर्थकों को एक व्यापक दृष्टिकोण लेने का; मानव सुख को बढ़ावा देने और अंतर्धार्मिक सद्भाव को प्रोत्साहित करने की उनकी प्रतिबद्धताओं का अनुकरण करने के लिए काम करने के लिए आग्रह किया। इसके अतिरिक्त उन्होंने अपने आपको तिब्बती और एक ऐसे व्यक्ति, जिन पर तिब्बती लोगों का विश्वास है, के रूप में वर्णित किया। उन्होंने कहा कि बचपन से ही उनकी लोकतंत्र में रुचि थी और तिब्बत में सुधारों को कार्यान्वित करने में विफल होने के बाद वे निर्वासन में यह स्थापित करने में सफल रहे। परिणाम यह हुआ कि एक निर्वाचित नेतृत्व के साथ उन्होंने अपने आपको २००१ में आंशिक रूप से और २०११ में पूर्ण रूप से सेवा निवृत्त होने में सक्षम पाया। और तो और उन्होंने स्वेच्छा से भविष्य में दलाई लामा द्वारा एक राजनैतिक भूमिका लेने का अंत कर दिया।
उन्होंने कहा कि उनकी सेवानिवृत्ति ने उन्हें तिब्बती संस्कृति और भाषा के संरक्षण के लिए काम करने का समय दिया। ऐसा करने के उपायों में से एक आधुनिक वैज्ञानिकों के साथ वार्तालाप में संलग्न होना है। उनमें से कई चित्त तथा भावनाओं के प्रकार्य के तिब्बती अनुभव और समझ से सीखने में रुचि रखते हैं।
"जो अधिक महत्वपूर्ण है वह यह समझना है कि क्रोध, भय और संदेह जैसे क्लेश कैसे हो सकते हैं। वे हिंसा की ओर प्रवृत्त करते हैं। प्रार्थना से सहायता न मिलेगी, परन्तु निष्पक्ष होकर और लगाव से मुक्त होकर करुणा की समझ से उसके विकास करने और व्यवहृत करने से हो सकता है।"
परम पावन ने भी बड़े पैमाने पर तिब्बतियों, चीनियों तथा विश्व के लिए तिब्बती पठार पर उचित पारिस्थितिकी के महत्व पर भी बात की। तिब्बत के संबंध में उन्होंने कहा कि एक समस्या है। यह तिब्बतियों के लिए अच्छा नहीं है, पर यह चीनियों के लिए भी अच्छा नहीं है। यह कुछ ऐसा है जिसे हल किया जाना चाहिए। उन्होंने सच्चाई में अपने विश्वास का उल्लेख किया, कि अल्पावधि में बंदूक की शक्ति प्रबल प्रतीत हो सकती है, परन्तु दीर्घकाल में सच ही कायम रहता है। अंततः उन्होंने टिप्पणी की, कि जहाँ नेता और सरकारें आती जाती हैं, पर लोग समग्र रूप में बने रहते हैं, इसलिए चीनी लोगों के बीच संपर्क और सहानुभूति बढ़ाना महत्वपूर्ण है।
बैठक अध्यक्ष, ले एमिस डु तिब्बत, बेल्जियम, मार्क लिएश्वो के आभार प्रदर्शन के साथ समाप्त हुई। सभागार छोड़ते समय लोगों के साथ बातचीत करते हुए परम पावन अपने होटल में लौट आए। कल वे शक्ति और देखभाल पर माइंड एंड लाइफ यूरोप सम्मेलन में भाग लेंगे।