स्ट्रासबर्ग, फ्रांस, १५ सितम्बर २०१६- आज सुबह जब परम पावन दलाई लामा यूरोपीय संसद में पहुंचे, तो सूर्य के प्रकाश में बाहर सुसज्जित सदस्य राष्ट्रों के ध्वज हवा में लहरा रहे थे। उनकी यात्रा यूरोपीय संसद के अध्यक्ष मार्टिन शुल्ज के साथ एक बैठक से प्रारंभ हुई। तत्पश्चात उन्होंने समिति के साथ बैठक से पहले विदेश मामलों पर यूरोपीय संसद की समिति के अध्यक्ष, एलमर ब्रोक के साथ विचार विमर्श किया। स्वतंत्रता, मानवाधिकार और पर्यावरण के अधिवक्ता के रूप में उनका स्वागत किए जाने के अनन्तर परम पावन को संबोधन हेतु आमंत्रित किया गया ।
"आदरणीय भाइयों और बहनों, मनुष्य के रूप में हममें कोई भेद नहीं है, हमारा संबंध एक ही मानव परिवार से है। इस अवसर का प्राप्त होना मेरे लिए एक महान सम्मान की बात है। मैं यूरोपीय संघ की भावना का प्रशंसक हूँ। तिब्बत में हमारी अपनी समस्याओं के संबंध में, हम चीन की पीपुल्स रिपब्लिक से अलग होने की मांग नहीं कर रहे हैं; हम अलगाववादी नहीं हैं यद्यपि चीनी कट्टरपंथी हम पर इस तरह का निरंतर दोषारोपण कर रहे हैं।
"२०११ के बाद से मैं राजनीतिक उत्तरदायित्व से पूर्ण रूप से सेवानिवृत्त हो गया हूँ, जो अब एक निर्वाचित नेता द्वारा संचालित है। मैं ८१ का हूँ और कुछ मित्र कहते हैं कि मैं अपनी उम्र का नहीं लगता और मुझसे रहस्य पूछते हैं। मुझे लगता है कि इसका संबंध चित्त की शांति और विनाशकारी भावनाओं से निपटने से है। मानव प्रकृति मूल रूप से करुणाशील है और सभी मनुष्यों में चित्त की शांति का निर्माण करने की क्षमता है। और मेरा मानना है कि विश्व शांति केवल चित्त की शांति के आधार पर बनाई जा सकती है।
"मेरी तीन प्रतिबद्धताएँ हैं जिनके बारे में मैं आपको बताना चाहूँगा। सबसे पहले मानवता की एकता की भावना को बढ़ावा देना है, कि हम सभी समान रूप से मनुष्य हैं। आम तौर पर हम अपने बीच के गौण अंतरों पर बहुत अधिक ध्यान देते हैं, जैसे कि हमारी धार्मिक आस्था, राष्ट्रीयता, हम धनवान हैं अथवा निर्धन इत्यादि और आधारभूत रूप में जो हममें आम है उसकी उपेक्षा करते हैं। जैसा कि मैंने पहले उल्लेख किया, मैं यूरोपीय संघ की भावना की सराहना करता हूँ तथा अफ्रीका और एशिया में इस प्रकार का संघ देखना चाहूँगा।"
परम पावन ने समझाया कि एक बौद्ध भिक्षु के रूप में, प्राचीन भारत के नालंदा आचार्यों, विचारकों और दार्शनिकों के एक अनुयायी होने के नाते, उसकी दूसरी प्रतिबद्धता अंतर्धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देना है। उन्होंने कहा कि सभी धार्मिक परंपराएँ प्रेम को अपने मुख्य संदेश बनाती हैं जो सहिष्णुता, संतोष और आत्म अनुशासन द्वारा समर्थित है। उन्होंने कहा कि भारत में विश्व की सभी प्रमुख परम्पराओं का प्रतिनिधित्व है और वे समरसता से एक साथ रहती हैं। उन्होंने प्रश्न किया कि यदि भारत यह कर सकता है, तो क्यों अन्य देश क्यों नहीं?
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परम पावन ने स्पष्ट किया कि तिब्बती संस्कृति जो शांति की संस्कृति है, अहिंसा और करुणा, वह भाषा जो उसका सम्प्रेषण करती है और तिब्बती पर्यावरण की सुरक्षा के संरक्षण के लिए चिंता, उनकी तीसरी प्रतिबद्धता का गठन करती है।
सभागार में उठाए गए प्रश्नों और टिप्पणियों के बीच यह अवलोकन था कि अपनी बढ़ती आर्थिक शक्ति के बावजूद, चीन एक प्रमुख शक्ति होने की स्थिति से बहुत दूर है, क्योंकि यह मानव अधिकारों के लिए कोई सम्मान प्रकट नहीं करता। परम पावन ने इसका प्रत्युत्तर देते हुए संकेत किया कि अब भी एक ही व्यवस्था और एक ही कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा शासित होने के बावजूद विगत ४० वर्षों में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं, और कुछ नहीं तो कम से कम ४०० लाख चीनी बौद्ध उभरे हैं।
एक अन्य प्रश्नकर्ता बर्मा में रोहिंग्या मुस्लिम समुदाय के उत्पीड़न के बारे में पूछा। परम पावन ने उत्तर दिया कि जब उन्होंने पहली बार इसके बारे में सुना तो उन्होंने बर्मी बौद्धों से बुद्ध के चेहरे की कल्पना करने का आग्रह किया था, इस समझ के साथ कि यदि बुद्ध वहाँ होते तो वे रोहिंग्यों की रक्षा करते। उन्होंने कहा कि ११ सितंबर की त्रासदी के बाद से उन्होंने मुस्लिम समुदाय की रक्षा करने का बीड़ा उठाया है। उन्होंने अपने विश्वास को दोहराया कि मुस्लिम आतंकवादी या बौद्ध आतंकवादी के रूप में संदर्भित करना गलत है, क्योंकि एक बार वे हिंसक आतंकवाद में लिप्त हो गए तो वे सही मुसलमान या बौद्ध नहीं रह जाते और कुछ लोगों की शरारत के लिए एक पूरे समुदाय को दोषी ठहराना गलत है।
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करतल ध्वनि की गूंज और परम पावन से हाथ मिलाने और उनके साथ सेल्फी लेने की इच्छा की भीड़ भाड़ से निकलते हुए परम पावन गाड़ी से अल्प दूरी पर स्थित यूरोपीय परिषद गए। उनकी आधिकारिक यात्रा के प्रारंभ में प्रोटोकॉल प्रमुख, राफेल बेनिटेज़ ने उनका तथा उनके प्रतिनिधिमंडल का पेले दे यूरोप में अनुरक्षण किया। महासचिव थोर्बजोर्न जगलैंड ने उनका स्वागत किया और उन्होंने यूरोपीय परिषद की गोल्डन बुक पर हस्ताक्षर किए। संसदीय असेंबली के अध्यक्ष, पेड्रो अग्रामुंत द्वारा उनके स्वागत किए जाने तथा इसके गोल्डन बुक पर हस्ताक्षर करने से पहले उन्होंने महासचिव के साथ एक लघु बैठक की। उनकी उस छोटी बैठक के बाद श्री अग्रामुंत ने आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए एक युवा अभियान # नो हेट नो फियर के लिए परम पावन का समर्थन मांगा।
मानवाधिकार आयोग के सदस्यों के साथ एक बैठक के लिए जाते हुए परम पावन अपने पुराने मित्र दिवंगत वक्लेव हावेल की प्रतिमा देख कर चकित हुए और अपनी श्रद्धांजलि देने हेतु रुके। श्री जगलैंड ने बैठक में उनका परिचय दिया परन्तु वे संसद में उत्तरदायित्वों को निभाने हेतु चले गए।
बैठक को संबोधित करते हुए परम पावन ने भाइयों और बहनों के रूप में सदस्यों को संबोधित करते हुए और सभी मनुष्यों की एकता की भावना को बढ़ावा देने के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहराते हुए प्रारंभ किया। उन्होंने उल्लेख किया कि हम जिन कई समस्याओं का सामना कर रहे हैं वे हमारे गौण अंतर जैसे राष्ट्रीयता, विचारधारा या धर्म पर हमारे बल देने के कारण उत्पन्न होती हैं। वे अदूरदर्शिता, संकीर्णता और राजनीतिक जोड़-तोड़ से उकसे संघर्ष की उपस्थिति में धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने तिब्बत के पर्यावरण की सुरक्षा और भोट भाषा और संस्कृति के संरक्षण के लिए एक तिब्बती के रूप में अपना तीसरी प्रतिबद्धता बताई।
"तिब्बत के ६० लाख तिब्बतियों की ओर से उनकी ओर से दिए गए समर्थन के लिए यूरोप में हमारे मित्रों को धन्यवाद देना मेरा कर्तव्य है।"
प्रश्नों के अपने उत्तर में परम पावन ने कहा कि उनके मत से स्वतंत्रता और अधिकारों का विचार इस धारणा पर आधारित है कि मानव स्वभाव करुणाशील है, क्योंकि इस तरह के अधिकार और स्वतंत्रता आप को हत्या अथवा दूसरों को नुकसान पहुँचाने की अनुमति नहीं देते। उन्होंने वह दोहराया जो इस वर्ष के प्रारंभ में उन्होंने जेनेवा में कहा था कि मानव अधिकारों के उल्लंघन में क्रोध या घृणा से भरा उद्देश्य निहित होता है। उन्होंने कहा:
"भौतिक लक्ष्य लिए आंतरिक मूल्यों का अभाव रखते हुए वर्तमान शिक्षा प्रणाली अपर्याप्त है। और जब तक हम इसे २१वीं सदी में बदल न लें तब तक हमारे भाग्य में हिंसा और पीड़ा की २०वीं सदी की गलतियों को दोहराना ही होगा।"
नो हेट नो फियर की संदेशवाहिका ऐनी ब्रस्सेयूर ने उन्हें आंदोलन का बैड्ज प्रस्तुत किया और उन्हें बताया कि उनके तीन लक्ष्य हैं - गरीबी, भ्रष्टाचार और घृणा।
बैठक के लिए परम पावन के समापन शब्द थे कि "एक बेहतर विश्व के निर्माण में प्रत्येक व्यक्ति योगदान कर सकता है। प्रमुख बात है कि कार्य तत्काल प्रारंभ किया जाए।"
स्ट्रासबर्ग सिटी हॉल में तिब्बतियों ने परम पावन के लिए एक पारम्परिक स्वागत प्रस्तुत किया। महापौर रोलाण्ड राइस और उनकी पत्नी ने उनका स्वागत किया जिन्होंने सभागार के अंदर उनका अनुरक्षण किया। एक लघु स्वागत समारोह के दौरान उन्होंने गोल्डन बुक पर हस्ताक्षर किए और उन्हें मार्सेल रूडाल्फ सहिष्णुता पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वे महापौर राइस द्वारा आयोजित मध्याह्न भोज में कई धार्मिक नेताओं के साथ शामिल हुए।
स्ट्रासबर्ग सम्मेलन में एक सार्वजनिक व्याख्यान के दौरान, जिसका शीर्षक था 'युवा लोगों से मिलने के लिए दलाई लामा ने स्ट्रासबर्ग चुना है' जिसमें ९०० छात्रों और ११०० की संख्या में लोगों ने भाग लिया, परम पावन ने जब मंच संभाला तो हर्ष ध्वनि गूंजी। अंग्रेजी में बोलते हुए जिसका फ्रांसीसी अनुवाद श्रद्धेय मैथ्यू रिकार्ड ने किया, वे बोले:
"युवा भाइयों और बहनों, मैं आप लोगों के बीच आकर खुश हूँ। आप जैसे युवा लोगों के साथ मिलकर मैं भी युवा अनुभव करता हूँ। मैं २०वीं सदी का हूँ, वो समय जो जा चुका है, जो अब मात्र एक स्मृति है। अतीत नहीं बदला जा सकता, परन्तु भविष्य को अभी भी आकार दिया जा सकता है और यह आप के द्वारा किया जाएगा, जो २१वीं सदी की पीढ़ी के हैं। यही कारण है कि आप आशा के आधार हैं।
"२०वीं सदी हिंसा से बिखरी हुई थी, जिसमें से किसी ने भी विश्व को एक बेहतर स्थान नहीं बनाया। अतः इसके बजाय इस शताब्दी को शांति का युग होना चाहिए, यह ध्यान में रखते हुए कि विश्व शांति लोगों पर निर्भर है, जो अपने हृदयों में आंतरिक शांति विकसित कर रहे हैं। पर यदि हम भय और क्रोध से भरे हुए हो तो हमें कोई शांति न मिलेगी। इसके लिए दृढ़ संकल्प और इच्छा शक्ति और आशा की एक सशक्त भावना की आवश्यकता है जिसके बिना कुछ भी सफल न होगा।"
एक सौहार्दपूर्ण और स्नेहपूर्ण पारस्परिक व्यवहार के अंत में, छात्रों ने परम पावन को विदा देते हुए पुनः उनके प्रति हर्ष व्यक्त किया। जैसे ही उन्होंने सिटी हॉल से प्रस्थान किया हल्की रिमझिम होने लगी। कल वे स्ट्रासबर्ग विश्वविद्यालय में एक विज्ञान सम्मेलन में भाग लेंगे।