मुंडगोड, कर्नाटक, भारत, ६ जुलाई २०१६ - अपने ८१वें जन्मदिन के अवसर पर परम पावन दलाई लामा सम्पूर्ण भारत में सभी परम्पराओं के तिब्बती महाविहारों के भिक्षुओं के साथ सम्मिलित हुए, जो उनके लिए दीर्घायु समर्पण हेतु एकत्रित हुए थे। यह कार्यक्रम तिब्बती बौद्ध धर्म के गेलुग परम्परा और दोगुलिंग तिब्बती आवास के प्रतिनिधियों द्वारा आयोजित किया गया था, जहाँ परम पावन लगभग एक सप्ताह से अतिथि रहे हैं।
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दीर्घायु समर्पण के उपरांत डेपुंग महाविहार के मुख्य सभागार के समक्ष एक सार्वजनिक उत्सव हुआ। १४,००० की संख्या का सम्पूर्ण स्थानीय तिब्बती समुदाय एक विशाल शामियाना के नीचे जमा हुआ। उनके साथ स्थानीय गणमान्य व्यक्ति, साथ ही स्थानीय ईसाई, हिंदू और मुसलमान नेता सम्मिलित हुए, जिन्होंने दुशाला और हार जैसी पारम्परिक भेंट प्रस्तुत कर और उन्हें जन्मदिन की बधाई देते हुए परम पावन के प्रति अपना सम्मान व्यक्त किया। धन्यवाद के अपने शब्दों में परम पावन ने भारत की दीर्घ काल से चली आ रही धार्मिक सहिष्णुता और सद्भाव की परम्परा की प्रशंसा की। उन्होंने कहा,
"अंतर्धार्मिक सद्भाव कुछ ऐसा है जिसके समर्थन के लिए मैं बहुत प्रयास कर रहा हूँ, मैं आपसे मेरे इस प्रयास में सम्मिलित होने का आग्रह करता हूँ।"
जब परम पावन को जन्मदिन का केक प्रस्तुत किया गया तो विद्यालयों के कुछ युवा बच्चों के सामूहिक स्वर आपको जन्मदिन मुबारक हो" मुखरित हुए।
परम पावन के जन्मदिन के अंकन के अतिरिक्त दिन में दोगुलिंग तिब्बती आवास की ५०वीं वर्षगांठ का समारोह भी हुआ। एक संक्षिप्त संबोधन में परम पावन ने १९५९ में तिब्बत से पलायन किए गए भिक्षुओं द्वारा सामना की गई कठिनाइयों का भी स्मरण किया। पहले उन्हें बक्सा दुआर, पश्चिम बंगाल में युद्ध के एक पूर्व कैदी शिविर में रखा गया था, जहाँ अस्वास्थ्यकर परिस्थितियों के फलस्वरूप कई लोगों की मृत्यु हुई। उन्होंने प्रारंभिक बसने वालों के कठिन परिश्रम की बहुत सराहना की जिनके प्रयासों के कारण अंततः एक संपन्न आवास उभरा।
डेपुंग लोसलिंग महाविहार के नए शास्त्रार्थ प्रांगण के उद्घाटन के दौरान परम पावन ने देखा कि किस प्रकार तिब्बतियों ने अध्ययन के एक अनूठे ढंग को आगे बढ़ाया है:
"हम मात्र भाष्य का पाठ नहीं करते, हाथ में लिए गए ग्रंथ के हर शब्द पर विचार किया जाता है और उसका विश्लेषण किया जाता है, और जो समझा गया है उसके विषय में और आगे पढ़ा जाता है और औपचारिक शास्त्रार्थ द्वारा उसे सशक्त किया जाता है। यह दृष्टिकोण जिसमें तर्क और कारण का उपयोग होता है वह तिब्बती बौद्ध अभ्यास की परम्परा में अद्वितीय है।"
अंत में, परम पावन ने वयोवृद्ध निवास में तिब्बती समुदाय के वरिष्ठ सदस्यों के साथ भेंट की। उन्होंने उनके द्वारा अपने जीवन में की गई भक्ति और कठोर परिश्रम की प्रशंसा की और उन्हें उनके धर्म से संबंधी नियमों को बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित किया।
कल परम पावन, गाड़ी से गोवा जाएँगे जहाँ से वह धर्मशाला पहुँचने हेतु दिल्ली के लिए उड़ान भरेंगे।