मुंडगोड, कर्नाटक, भारत, १ जुलाई २०१६ - अपनी दो सप्ताह की संयुक्त राज्य अमेरिका की यात्रा के पश्चात परम पावन भारत लौटे और ३० जून को गोवा पहुँचे, जहाँ उप मुख्यमंत्री, डेपुंग महाविहार के वरिष्ठ विहाराध्यक्ष तथा दोगुलिंग तिब्बती आवास, मुंडगोड, कर्नाटक, के प्रतिनिधियों ने उनका स्वागत किया। उसके बाद वे सड़क मार्ग से होते हुए कारवार तटीय शहर पहुँचे जहाँ भारतीय जिला अधिकारियों और कर्नाटक में स्थापित तिब्बती बौद्ध धर्म के सभी संप्रदायों के महाविहारों के उपाध्यायों और प्रतिनिधियों ने उनका स्वागत किया। परम पावन ने पश्चिमी घाट से दक्कन के पठार, जहाँ दोगुलिंग स्थित है, की यात्रा करने के पूर्व वहाँ रात में विश्राम किया।
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तिब्बती समुदाय के सदस्य आज प्रातः परम पावन की यात्रा पर अपनी श्रद्धा और हर्ष व्यक्त करने के लिए मार्ग पर पंक्तिबद्ध थे। गाड़ी में उन्हें आवास के प्रशासनिक केंद्र से होते हुए गदेन महाविहारीय विश्वविद्यालय ले जाया गया जो कई जीवन कालों में दलाई लामाओं का निवास स्थान रहा है। तिब्बती बौद्ध धर्म के गेलुग परम्परा के परम शीर्ष, गदेन ठि रिनपोछे, शरपा छोजे रिनपोछे और सभी संप्रदायों के विहाराध्यक्षों ने उनका स्वागत किया। चाय प्रस्तुत की गई जिसके दौरान परम पावन ने एकत्रित हुए वरिष्ठ भिक्षुओं से अध्ययन और अभ्यास का प्रतिनिधित्व करती नालंदा परम्परा के महत्व की बात की और उनसे इस अनूठी परंपरा के संरक्षण हेतु आवश्यक कड़े मानकों को बनाए रखने का आग्रह किया।
उसके बाद परम पावन ने अपनी हाल की अमेरिका की यात्रा और शहरों के महापौरों से किए भेंट की बात की, जिनमें से कुछ ने दयालुता का शहर और करुणा के शहर जैसे नामों को ग्रहण किया हैं। उन्होंने महाविहार की सभा को बताया कि किस तरह वे शहर अपने नागरिकों में करुणा और दया के गुणों को एकीकृत करने का काम कर रहे थे, किस तरह अपराध कम हो रहे थे और विद्यालयों कम होते अपराधों की सूचना दे रहे थे। उन्होंने अभिव्यक्त किया कि किस प्रकार मनोविज्ञान और तकनीक युक्त बौद्ध धर्म के महान ज्ञान के साथ जिससे चित्त की स्थिति के अच्छे गुणों को विकसित किया जा सकता है, ये समाज इन शहरों के सराहनीय प्रयासों की ओर एक महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं, जो वे आशा करते हैं कि अंततः समूचे विश्व के देशों द्वारा अपनाए जाएँगे।
दोगुलिंग आवास की अपने सप्ताह भर की यात्रा के दौरान परम पावन आगामी चार दिनों में प्रत्येक दिन ८१ भिक्षुओं को भिक्षु संवर प्रदान करेंगे। वर्ष भर के लंबे ८०वें जन्मदिन समारोह के आयोजकों और तिब्बती समुदाय के अनुरोध पर वह ६ जुलाई को समापन समारोह में सम्मिलित होंगे।