नई दिल्ली, भारत, ८ अप्रैल २०१६ - आज प्रातः अमेरिकन एम्बेसी स्कूल के लिए रवाना होने से पहले, परम पावन दलाई लामा ने बीबीसी के संजय मजूमदार को एक साक्षात्कार दिया। मजूमदार ने यह पूछते हुए प्रारंभ किया कि हम किस तरह धर्म के नाम पर हो रही हिंसा को परास्त कर सकते हैं। परम पावन ने उन्हें बताया है कि जहाँ अल्पकालिक कदम उठाने की एक आवश्यकता हो सकती है, पर हमें यह भी सोचना है कि एक लंबे समय में इसे किस तरह रोका जाए। एक उपाय, उनकी आपसी समझ में सुधार करने के लिए विभिन्न आस्था वाले लोगों के बीच संपर्क बढ़ाना है, यह ध्यान में रखते हुए कि सभी धर्म प्रेम का एक ही संदेश सम्प्रेषित करते हैं और उसकी सुरक्षा के लिए सहिष्णुता और क्षमा का ध्यान रखते हैं।
इस विषय पर कि क्या तिब्बत समस्या के लिए समर्थन कम हो रहा है, परम पावन ने सुझाया कि यद्यपि नए कारण ध्यान आकर्षित कर सकते हैं, पर फिर भी तिब्बत के प्रति गहन चिंता और समर्थन बना हुआ है। और इसी के साथ तिब्बती लोगों की भावना प्रबल बनी हुई है। जैसै जैसे और अधिक चीनी बौद्ध धर्म में रुचि ले रहे हैं वे तिब्बती परम्परा के मूल्य की सराहना करने लगे हैं। परन्तु थोक रूप में सेंसरशिप के कारण से चीन के कई लोगों से वास्तविकता छुपी है। परम पावन ने इस बात पर बल दिया कि १.३ अरब चीनी लोगों को प्रामाणिक जानकारी प्राप्त करने का अधिकार है और उसके आधार पर गलत और सही में अंतर करने की क्षमता है। अंततः सत्य का बल बंदूक के बल की तुलना में अधिक सशक्त है।
पुनर्जन्म के बारे में एक प्रश्न के उत्तर में परम पावन ने दोहराया कि उनका निर्णय है, उसे ढूँढा जाए या नहीं, यह तिब्बती लोगों पर निर्भर है।
"मैं लोकतंत्र के लिए प्रतिबद्ध हूँ," उन्होंने कहा, "जबकि हमारी कई धार्मिक संस्थाएँ जैसे कि पुनर्जन्म, सामंतवाद के अवशेष हैं। आज हमें जिस नई वास्तविकता में हम अपने को पाते हैं, उसके अनुसार उचित कार्रवाई करने की आवश्यकता है। तिब्बती बौद्ध धर्म का भविष्य दलाई लामा की संस्था पर निर्भर नहीं करता। यह १०,००० भिक्षुओं और भिक्षुणियों, जो इस समय तिब्बती शिक्षा केंद्रों, अधिकतर दक्षिण भारत में शिक्षारत हैं, वे नालंदा परम्परा के संरक्षण को सुनिश्चित करेंगे।"
चाणक्यपुरी, नई दिल्ली, डिप्लोमेटिक एनक्लेव के अमेरिकन एम्बेसी स्कूल में आगमन पर, निदेशक पॉल श्मेलिक ने परम पावन का स्वागत किया। उसके बाद उन्होंने उनका अभिनन्दन करने लिए बाहर प्रतीक्षा कर रहे ३०० बच्चों में से कुछ क्षण उनके साथ हँसी ठिठोली करते बिताए। जिम के अंदर, निदेशक ने उन्हें सुनने के लिए उत्सुक छात्रों और शिक्षकों के एक प्रबल श्रोता समूह से उनका परिचय कराया। उससे पहले विद्यालय के गान वृन्द ने एक गीत गाया जो हिन्दी तथा भोट भाषा में अभिवादन "नमस्ते" और "टाशी देलेग” पर आधारित था। तत्पश्चात परम पावन ने प्रारंभ कियाः
"युवा भाइयों और बहनों और बड़े भाइयों और बहनों, मैं यहाँ पुनः आकर बहुत प्रसन्न हूँ। समय गतिशील है, उसे कोई नहीं रोक सकता। २०वीं सदी जा चुकी है और हम २१वीं सदी में १५ वर्ष से अधिक में पहुँच चुके हैं। अतीत को परिवर्तित नहीं किया जा सकता, पर हमारे पास भविष्य को आकार देने और एक अधिक खुशहाल दुनिया बनाने का अवसर है। और वह कौन करेगा? आप में से जो आज युवा हैं। अब से एक या दो दशकों में, मैं नहीं रहूँगा। पर यदि मैं नरक में भी पहुँचा तो एक अंतराल लेकर लौटूँगा यह देखने के लिए कि आप कैसे हैं। यदि आप शांति और एक अधिक न्यायसंगत विश्व के लिए काम कर रहे हैं, तो जब मैं वहाँ लौटूँगा तो नरक के प्रबंधक से कह दूँगा कि वे उसके आकार को कम कर सकते हैं। पर यदि मैंने देखा कि आप तब भी जाति, राष्ट्रीयता, धर्म या सामाजिक स्थिति के आधार पर हिंसा और भेदभाव में लगे हुए हैं तो मैं सूचित कर दूँगा कि सबको शामिल करने के लिए, क्योंकि वे नरक के भागी होंगे, नरक का विस्तार किया जाए। चूँकि आप परिवर्तन ला सकते हैं, आप हमारी आशा के आधार हैं।
"दूसरा कारण कि मैं यहाँ आकर खुश हूँ वह है, कि मैं एक वृद्ध व्यक्ति हूँ और जब मैं अपने समवयस्क अन्य लोगों से मिलता हूँ तो सोचता हूँ कि 'हम में से कौन पहले जाएगा ? ' जबकि जब मैं आप जैसे युवा लोगों से मिलता हूँ तो मैं युवा और ताजा अनुभव करता हूँ। विगत ३० वर्षों से मैं वैज्ञानिकों के साथ नियमित रूप से विचार-विमर्श कर रहा हूँ और उन्होंने मुझे अपने निष्कर्षों के बारे में बताया गया है कि आधारभूत मानव स्वभाव करुणाशील तथा सकारात्मक है। आज जीवित सभी ७ अरब मनुष्य यह आम अनुभव साझा करते हैं कि हमारी माँओं ने हमें जन्म दिया है। उनमें तथाकथित आतंकवादी कहलाए जाने वाले भी शामिल हैं। हम सब ने हमारी माता के प्रेम का आनन्द उठाया है।
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"हम अभी भी २१वीं सदी के प्रारंभ में हैं और मेरा विश्वास है कि यदि इस समय प्रारंभ करते हुए यदि हम प्रयास करें तो शताब्दी के उत्तरार्ध तक हम विश्व को और अधिक शांतिपूर्ण स्थान बना सकते हैं। हमें प्रयास करना होगा। मानव की जनसंख्या बढ़ रही है और जलवायु परिवर्तन का प्रभाव पड़ रहा है। उसके ऊपर हमने और अधिक समस्याएँ खड़ी कर ली हैं। हिंसा भड़क उठती है क्योंकि हमारी नकारात्मक भावनाएँ नियंत्रण के बाहर हो जाती हैं। उदाहरणार्थ मानव अधिकारों के उल्लंघन, कारणों से उत्पन्न होते हैं और हमें सोचना है कि वे क्या कारण हैं। उनका संबंध क्रोध और सम्मान का अभाव है। यदि हम सौहार्दता तथा दूसरों के प्रति चिन्ता का विकास करें तो हम इनका प्रतिकार कर सकते हैं। तब दूसरों पर धौंस जमाने या शोषण करने के लिए कोई स्थान न होगा।"
परम पावन ने समझाया कि मनुष्य सामाजिक प्राणी हैं, जो एक समुदाय के सहयोग के बिना अपने बूते पर जीवित नहीं रह सकते। इसलिए उन्होंने कहा, कि मात्र अपने हित की सोचना संकीर्ण चित्तता है, जबकि दूसरों की देखरेख करना किसान द्वारा अच्छी फसल के लिए अपने खेत की जुताई करने के समान है। उन्होंने ध्यानाकर्षित किया कि जहाँ अतीत में छोटे समुदाय अधिकांशतः आत्मनिर्भर थे, पर अब हम बहुत अन्योन्याश्रित हैं। हमें एक दूसरे की आवश्यकता है। इस बीच, हम जहाँ कहीं भी हों जलवायु परिवर्तन हम सभी को प्रभावित कर रहा है, और हमारी वैश्विक अर्थव्यवस्था अन्योन्याश्रित है। यही कारण है कि हमें आज जीवित ७ अरब मनुष्यों के लिए चिंता की भावना की आवश्यकता है।
उन्होंने बताते हुए कि मनुष्य के रूप में हम सभी शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से एक जैसे हैं, परम पावन ने कहा कि हम न केवल सुख और समस्याओं से मुक्त होने की इच्छा साझा करते हैं, पर हमें एक सुखी जीवन जीने का अधिकार है। सामाजिक प्राणी के रूप में हम सभी को मित्रों की आवश्यकता है। मैत्री विश्वास पर निर्भर करती है और विश्वास तब बढ़ता है जब हम अपना जीवन दूसरों के प्रति सम्मान और चिंता का विकास करते हुए ईमानदारी और सच्चाई से जीते हैं। सम्पत्ति, शक्ति और प्रतिष्ठा सच्चे और विश्वसनीय मित्र आकर्षित नहीं करते।
"विश्व में परिवर्तन लाना आप, जो आज युवा हैं, पर निर्भर करता हैं और जो दूरदृष्टि के आधार पर प्रयास कर सकते हैं। मैं आपसे आग्रह करता हूँ कि जो मैंने कहा है उस पर सोचें कि इसे किस तरह क्रियान्वित किया जा सकता है।"
छात्रों के प्रश्नों के उत्तर देते हुए परम पावन ने समझाया कि विश्व के समक्ष इतने संकटों के बाद भी वे आशावादी बने रहते हैं, क्योंकि उन्हें विश्वास है कि आधारभूत मानव स्वभाव करुणाशील और सकारात्मक है। यह पूछे जाने पर कि क्या वह पालतू जानवर रखते हैं, उन्होंने उल्लेख किया कि उनके पास एक कुत्ता था जिसकी अंततः मृत्यु हो गई। एक समय उनके पास कुछ तोते थे जिनकी उन्होंने देख भाल की थी, जब वे घायल हो गए थे। और विगत ५० वर्षों से उन्होंने एक बिल्ली रखी है।
एक और छात्र जानना चाहता था कि जब उन्हें साहस की आवश्यकता होती हैं, तो वह कहाँ पाते हैं। परम पावन ने कहा कि वह ईमानदारी और सच्चाई से जीने के प्रयास में साहस पाते हैं, जो एक और कारण है कि वह खाली औपचारिकता के स्थान पर मानवीय सौहार्दता पसंद करते हैं। अपने सबसे पसंदीदा स्थान के बारे में एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि वे हर स्थान पर खुश हैं, पर उन्हें अमेरिका और इटली अच्छा लगता है, जहाँ लोग सीधे और सौहार्दपूर्ण हैं। यह पूछे जाने पर कि क्या वह अभी भी दया के बारे में सीख रहे हैं, उन्होंने माना कि वे ऐसा कर रहे हैं और इसे बढ़ाने के उपायों में से एक के रूप में विश्लेषणात्मक ध्यान की सिफारिश की।
उन्होंने कहा कि वह नहीं मानते कि विज्ञान और धर्म के बीच एक संघर्ष है, विशेषकर यदि आप पोप बेनेडिक्ट के विचार देखें, जो आस्था और कारण दोनों की आवश्यकता की सिफारिश करते हैं। उन्होंने माना कि आगामी दलाई लामा एक महिला हो सकती हैं। अंत में, उन्होंने कहा कि विश्व में परिवर्तन व्यक्तियों के स्वयं के परिवर्तन के साथ प्रारंभ होता है।
कार्यक्रम का समापन निदेशक पॉल श्मेलिक के स्कूल की ओर से, परम पावन द्वारा उनके लिए समय निकालने और वहाँ आकर उन्हें सम्बोधित करने के लिए धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ। उपहारों का आदान-प्रदान हुआ और परम पावन मध्याह्न भोजन के लिए अपने होटल लौट आए।