नई दिल्ली, भारत, ४ जनवरी २०१६ - आज परम पावन दलाई लामा के पुराने मित्रों ने उनका हृदय से स्वागत किया, जो ८० वें वर्षगांठ पर उनका अभिनन्दन करने के इच्छुक थे। इस कार्यक्रम में चित्रों की एक जीवंत प्रदर्शनी शामिल थी, जिसको देखने में परम पावन ने रुचि और खुशी दिखाई, क्योंकि उन चित्रों ने उन्हें उन लोगों और उन स्थानों का स्मरण कराया जिनसे उनकी भेंट हुई है और जहाँ वे जा चुके हैं। इसी तरह जब मध्याह्न भोजनोपरांत वे समूह के साथ आए तो श्रोताओं में पुराने मित्रों को देखकर और उनका अभिनन्दन कर प्रसन्न हुए।
डेपुंग लोसेलिंग महाविहार के भिक्षुओं ने कार्यक्रम का प्रारंभ शरणगमन तथा बोधिचित्तोत्पाद के पदों के सस्वर पाठ से किया, जिसके पश्चात परम पावन की दीर्घायु के लिए एक प्रार्थना थी। सूत्रधार, सुश्री कोमल जी बी सिंह ने संक्षेप में बताया कि चूँकि परम पावन के लिए यह वर्ष व्यस्त रहा, भारत में कइयों के लिए जुलाई २०१५ में उनके ८०वें वर्षगांठ पर उन्हें बधाई देने और शुभेच्छा व्यक्त करने का अवसर नहीं मिल पाया था। उन्होंने प्रमुख आयोजक श्री अनलजीत सिंह को इस अवसर का परिचय देने हेतु आमंत्रित किया।
"मुझे यकीन है कि आप में से कई इससे परिचित हैं कि पूह विनी से नन्हें सूअर ने पूछा कि 'प्रेम की वर्तनी क्या है' और पूह ने उत्तर दिया, 'आप प्रेम की वर्तनी नहीं देखते उसका अनुभव करते हैं।' यही मेरे विचार थे जब मैं परम पावन से पहली बार मिला और वे हमारे समूचे ४० मिनट की भेंट के दौरान मेरा हाथ थामे रहे।"
भारत के सबसे जाने माने वकीलों में से एक, राम जेठमलानी ने कहा कि वे एक पापी थे और वे सोच रहे थे कि इस अवसर पर उनसे संबोधन करने का अनुरोध कर उन्हें क्योंकर सम्मानित किया गया था। उन्होंने स्वयं को परम पावन के एक बड़े प्रशंसक के रूप में घोषित किया, जिन्हें वे बुद्ध की शिक्षाओं के अभ्यास के एक जीवंत उदाहरण के रूप में देखते हैं।
पूर्व उप प्रधानमंत्री श्री लालकृष्ण आडवाणी पहुँचे और स्मरण करते हुए कहा कि किस प्रकार ऋषिकेश में कुछ वर्ष पूर्व चाहे वह स्वामी, साधु या संन्यासी हों, परम पावन ने उनकी दाढ़ी नहीं छोड़ी। उन्होंने बड़े स्नेह से उसे खींचा और किसी को भी उस पर आपत्ति नहीं हुई। वे उसका स्वागत करते हुए जान पड़े क्योंकि यह एक ऐसे व्यक्ति थे जिसके मन में किसी के लिए कोई दुर्भावना नहीं।
तत्पश्चात, डॉ कैलाश सत्यार्थी, जिन्होंने मलाला यूसुफजई के साथ २०१४ में नोबेल शांति पुरस्कार साझा किया था, ने भी कहा कि जब वे एक छोटे बालक मात्र थे तभी से वे परम पावन से प्रभावित थे। उन्होंने उनके संबंध में अपने विचारों को चार वस्तुओं, जो अंग्रेज़ी के सी शब्द से प्रारंभ होती हैं, में संक्षेपित किया साहस, जो नैतिकता, विश्वास और करुणा से निकलती हैं जो कि हम सब में है। डॉ सत्यार्थी ने कहा कि परम पावन की तरह उन्होंने करुणा का वैश्वीकरण अपना उद्देश्य बना लिया है। अंतिम 'सी' चाइल्डहुड, बचपन था, जो कि आयु वर्ग के अर्थ में नहीं पर एक मूल्य है, विश्व को देखने के एक तरीके के रूप में। उन्होंने कहा कि परम पावन की प्रशंसा करते हुए हम एक पवित्रता की पहचान करते हैं, जो कि बच्चों में प्रकट होती है।
अभिनेत्री शर्मिला टैगोर ने अपनी श्रद्धा परम पावन को कारण तथा सामान्य ज्ञान की आवाज़ कहकर अभिव्यक्त की और उनके प्रायः उद्धृत उद्धरण को दोहरायाः 'मंदिरों की कोई आवश्यकता नहीं है, जटिल दर्शन की कोई आवश्यकता नहीं। हमारे अपने चित्त, हमारे अपने हृदय हमारे मंदिर हैं, दर्शन दयालुता है।'
विदुषी और परम पावन की बहुत पुरानी मित्र जिन्हें वह 'माता जी' कहकर बुलाते हैं, डॉ कपिला वात्स्यायन ने "नागार्जुन को हमारे पास वापस लौटाने के लिए" और "जिस करुणा और परोपकारिता को हम पहचानते हैं उसे साकार करने के लिए" उनकी प्रशंसा की।
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इतिहासकार रामचंद्र गुहा, जो पर्यावरण और क्रिकेट में भी गहन रुचि रखते हैं, ने श्रोताओं को बताया कि वे इससे पहले परम पावन से नहीं मिले थे। यद्यपि बाल्यकाल से देहरादून में रहते हुए जहाँ तिब्बतियों की बड़ी संख्या में उपस्थिति है, वह लंबे समय से उनके बारे में सजग थे। उन्होंने सूचित किया कि रामचंद्र गांधी ने इंगित किया था किस प्रकार अहिंसा के विषय में अपनी पूर्ण प्रतिबद्धता, अंतर्धार्मिक संवाद के पोषण को लेकर उनकी गहन चिंता और बहुलवाद के महत्व और सभी प्राणियों के प्रति उनके प्रेम के कारण परम पावन महात्मा गांधी के साथ पूरी तरह एक थे। गुहा ने उल्लेख किया कि वे शरारत और हास्य में भी गांधी की तरह हैं और मध्याह्न भोजन के समय की एक घटना का उल्लेख किया जब किसी ने उनसे पूछा "कि क्या आपको स्मरण नहीं कि जब आप कलकत्ते में मदर टेरेसा से मिलने आए थे तो हमारी भेंट हुई थी? और परम पावन ने उत्तर दिया, "ठीक है, मुझे आपका स्मरण नहीं पर मुझे मदर टेरेसा का स्मरण है।"
विद्वान और वरिष्ठ भारतीय राजनीतिज्ञ, डॉ करण सिंह ने याद किया कि १९५६ में पंडित नेहरू के सान्निध्य में चाउ एन लाई ने प्रथम बार परम पावन और पंचेन रिनपोछे से उनका परिचय करवाया। उन्होंने परम पावन के कई गुणों की प्रशंसा की। उनका समभाव जिसका अर्थ है कि जो भी हो वे अपनी आनन्द की भावना और करिश्माई नेतृत्व को बनाए रखते हैं जिसके कारण बड़ी बाधाओं के बावजूद उन्होंने तिब्बती समुदाय को एक कर रखा है। यह देखते हुए कि परम पावन समूचे जीवन में सभी को आशीर्वाद देते रहे हैं, डॉ करण सिंह ने कहा कि बदले में उनसे अधिक आयु के मित्र के रूप में वह कुछ आशीर्वाद देना चाहेंगे और एक श्लोक का पाठ किया, पहले अंग्रेज़ी और फिर ध्वन्यात्मक संस्कृत में,
महालक्ष्मी का आपके आवास में निवास हो,
सरस्वती आपके कंठ में वास करे,
पूर्ण चन्द्र सम आपकी ख्याति हर देश में फैले,
आप शत वर्ष तक अनुयायियों से घिरे हों।
अरुणाचली राजनीतिज्ञ, तिब्बती आंदोलन के कोर ग्रुप के राष्ट्रीय संयोजक आर के खिरमी ने सुझाया कि भारत को तिब्बत की समस्या का समर्थन करना चाहिए ताकि परम पावन अपने जीवन काल में वहाँ लौट सकें। उन्होंने प्रार्थना की कि वह दीर्घ काल तक और स्वस्थ बने रहें।
चाय के संक्षिप्त अंतराल के बाद जब सब लौटे तो सरोद गुणी उस्ताद अमजद अली खान और उनके बेटों ने राग शांति का वादन कर दर्शकों को भावविभोर कर दिया। उनके मंत्रमुग्ध प्रदर्शन पर तालियों की गड़गड़ाहट से सभागार गूँज उठा।
गणमान्य विधिवेत्ता फली नरीमन ने कहा कि उन्होंने परम पावन में दो बातें देखी हैं, एक तो वे अपने आपको बहुत सहजता से लेते हैं और दूसरा वे किसी के भी प्रति बैर नहीं पालते। उन्होंने कहा कि कई वर्षों पहले लंदन में बिशप डेसमंड टूटू ने प्रश्न किया था कि गांधी, परम पावन और मंडेला जैसे लोग इतने लोकप्रिय क्यों हैं। अपने ही प्रश्न का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा, "क्योंकि हम सब में अच्छाई की प्रवृत्ति है। और जब हम उसे देखते हैं तो पहचानते हैं।"
विद्वान और दिल्ली के वर्तमान उप राज्यपाल नजीब जंग ने टिप्पणी की कि पारंपरिक भारत में लोग इस धरा को ऋषियों की उपस्थिति से समृद्ध मानते थे। उन्होंने बल देते हुए कहा कि गांधी की तरह दृढ़ता से शांति के भाव को धारण करते हुए परम पावन ने राष्ट्र को एक बेहतर स्थान बनाया है। पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने परम पावन द्वारा स्वयं के वर्णन के प्रति प्रशंसा व्यक्त की:
"मैं एक साधारण मनुष्य हूँ, तिब्बत का एक नागरिक, जिसने बौद्ध भिक्षु होने का चयन किया।"
ऐसे समय जब विश्व में ६० लाख विस्थापित लोग हैं, परम पावन ऐसे लोगों के एक समूह का प्रतिनिधित्व करते हैं और वह लगातार इस दृढ़ सलाह के साथ कि एक दिन न्याय की विजय होगी उनमें आशा की भावना पुनः जाग्रत करते हैं।
सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा रॉय ने बिशप टूटू के विचारों को प्रतिध्वनित किया जब उन्होंने परम पावन के संबंध में कहा, "आप में अच्छाई है, आप में सच्चाई है क्योंकि आप एक बात कहकर कुछ और नहीं करते।" उन्होंने आगे कहा कि जीवन के लिए आशा उतना ही महत्वपूर्ण है जितना भोजन, "आप हमें आशा देते रहें।"
एक जैन आचार्य ने हिंदी में मुक्त स्वर में परम पावन स्तुति की। उनके बाद पूर्व ब्रिटिश उच्चायुक्त सर रिचर्ड स्टैग ने विनम्रता, मानवता, हास्य और आशा के गुणों की प्रशंसा की, परम पावन जिसके प्रकाश स्तम्भ हैं। भारत के पूर्व विदेश सचिव श्याम सरन ने सूचित किया कि परम पावन से प्रत्यक्ष रूप से मिलने से पहले उन्होंने स्वयं देखा था कि तिब्बत में लोग किस तरह प्रबल रूप से परम पावन को हृदय में रखते हैं। उन्होंने आगे कहा, "यद्यपि परम पावन जो स्वागत उन्हें भारत में मिला उसके लिए स्वयं को भाग्यशाली कहकर वर्णित करते हैं पर हम वास्तव में उनके आभारी हैं कि वह हमारी ओर उन्मुख हुए।"
२००४ - १४ तक भारत के प्रधानमंत्री रहे डॉ मनमोहन सिंह ने परम पावन का संदर्भ विश्व के लिए ईश्वर के एक उपहार के रूप में दिया।
उन्होंने कहा कि "उनके साथ हुई मेरी हर भेंट ने मुझे सदा अपने जीवन के साथ और अधिक शांति की भावना दी है।", "हमारी धरा ऋषियों की धरा है और वे उनमें से एक हैं जो देश को एक सही मार्ग पर दिशा दे रहे हैं। ऐसे अशांत समय में वे हमें भौतिक विकास के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी के हमारे उपयोग को हमारे आध्यात्मिक मूल्यों के साथ मिलाने की शिक्षा देते हैं। मेरी यही प्रार्थना है कि वे दीर्घायु हों ताकि भारत के, एशिया के और विश्व के लोग, उनके आशीर्वाद से लाभान्वित हों।"
अंत में सुश्री कोमल जी बी सिंह ने परम पावन से सभा को संबोधित करने का अनुरोध किया। उन्होंने सदैव की तरह प्रारंभ कियाः
"आदरणीय बड़े भाई और बहनों, छोटे भाइयों और बहनों, आज आपने मेरा ८०वें जन्मदिन मनाने के लिए इस कार्यक्रम का आयोजन किया है। मैं इसकी बहुत सराहना करता हूँ। आप में से कुछ मेरी सबसे पुराने मित्रों में से हैं। मैंने भारत में अपने जीवन का बड़ा भाग बिताया है। कठिन परिस्थितियों में मैंने वास्तव में भारत की स्वतंत्रता के मूल्य को पहचाना है और मैं मेरे प्रति आपकी सौहार्दता की भावना का सम्मान करता हूँ। परन्तु मेरे समक्ष किए जा रहे इतनी अधिक प्रशंसा के बीच मुझे अपने आप को स्मरण दिलाने की आवश्यकता है कि 'मैं एक भिक्षु हूँ, मैं एक बौद्ध भिक्षु हूँ।'
"मैं इस अवसर पर अपनी तीन प्रतिबद्धताओं को आपके साथ साझा करना चाहता हूँ। मैं एक मानव हूँ, आज जीवित ७ अरब लोगों में से एक। चूँकि हमारा अपना भविष्य अन्य लोगों पर निर्भर करता है, हममें से प्रत्येक का उनके विषय में और जिस विश्व में हम रह रहे हैं उसके बारे में सोचने का उत्तरदायित्व है।
"परोपकारिता का अर्थ अपने आपकी अथवा अपने हितों की उपेक्षा करना नहीं है। पर हम सबको मैत्री की आवश्यकता है और मैत्री विश्वास पर निर्भर है। दूसरों के प्रति चिंता की अभिव्यक्ति विश्वास को जन्म देती है। यह सामान्य ज्ञान है जिसे हम स्वयं देख सकते हैं, कि एक धनवान व्यक्ति जो किसी का विश्वास नहीं करता, कभी भी सुखी न होगा जबकि एक निर्धन व्यक्ति जो मित्रों से घिरा हुआ है आनन्द से भरा हुआ होता है। अतः दूसरों का ध्यान रखना अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने का श्रेष्ठ उपाय है।
"यह मानवता की एकता की भावना के विकास से जुड़ा है जिसके विषय में मैं जहाँ कहीं भी जाता हूँ उसके विषय में बात करता हूँ। परिणामस्वरूप विश्व के हर भाग में मेरे मित्र हैं। और इस संबंध में कई वैज्ञानिक इसमें रुचि ले रहे हैं कि चित्त की शांति किस तरह हमारे सामान्य कल्याण में योगदान दे सकती है। चित्त तथा भावनाओं के कार्यों का प्राचीन भारतीय ज्ञान गहन है। प्राचीन भारतीय मनोविज्ञान बहुत उन्नत था।"
परम पावन ने प्राचीन भारत से प्राप्त ज्ञान और तिब्बत में उसे जीवित रखने की बात की। उन्होंने सुझाया कि तिब्बती न केवल चेले हैं परन्तु विश्वसनीय चेले रहे हैं क्योंकि इतिहास के उतार-चढ़ाव के दौरान उन्होंने इस ज्ञान को जीवित रखा है।
"यह ज्ञान काफी हद तक नालंदा परम्परा के अंतर्गत आता है। मेरे सम्मानित भारतीय भाइयों और बहनों, अधिकतम लाभ सुनिश्चित करने के लिए अपनी प्राचीन विरासत के प्रति अधिक ध्यान देने और उसके मूल्यों को विज्ञान और प्रौद्योगिकी के साथ मिलाने का समय आ गया है। अहिंसा केवल अपने कार्यों में अहिसंक होने की बात नहीं है पर अपने हृदयों में भी करुणाशील होने की है। जिस प्रकार हम अपने शारीरिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए शारीरिक स्वच्छता का पालन करते हैं, उसी तरह अपने आंतरिक शांति और सम्पूर्ण स्वास्थ्य के लिए हमें भावनात्मक स्वास्थ्य की आवश्यकता है। करुणा की एक सच्ची भावना मूलतः सभी मनुष्यों को एक समान देखने पर आधारित है।"
परम पावन ने अंतर्धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देने की अपनी प्रतिबद्धता का उल्लेख किया। उन्होंने अपनी लंबे समय से चली आ रही प्रशंसा दोहराई कि किस प्रकार भारत में जन्मी धार्मिक परम्पराएँ, विभिन्न हिंदू परंपराएँ, जैन धर्म, बौद्ध धर्म इत्यादि उन परम्पराओं के साथ जिनका उद्भव कहीं और हुआ है, जैसे पारसी, यहूदी, ईसाई और इस्लाम धर्म के साथ सद्भाव से जीती हैं। अहिंसा और अंतर्धार्मिक सद्भाव में भारत बाकी विश्व के लिए एक उदाहरण है।
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तीसरा, परम पावन ने घोषित किया कि निस्संदेह वे एक तिब्बती हैं। परन्तु उन्होंने स्पष्ट किया कि वे न केवल सभी राजनीतिक जिम्मेदारी से व्यक्तिगत रूप से सेवानिवृत्त हो गए हैं परन्तु उन्होंने खुशी और स्वेच्छा से राजनीतिक विषयों में दलाई लामा की भागीदारी का अंत कर दिया है। आज उनकी चिंता का विषय तिब्बत की पारिस्थितिकी को लेकर है। जलवायु परिवर्तन में तिब्बत की भूमिका उत्तर और दक्षिण ध्रुवों के समान है जिसके कारण कुछ लोग तिब्बत को तीसरे ध्रुव के रूप में संदर्भित करते हैं। अधिक ऊंचाई तिब्बत की पारिस्थितिकी को विशेष रूप से नाज़ुक बनाती है और एक बार उसके क्षतिग्रस्त होने पर उसे बहाल करना कठिन है।
इसके अतिरिक्त परम पावन तिब्बती संस्कृति को शांति और अहिंसा की संस्कृति के रूप में देखते हैं, जो कि विश्व के अन्य भागों के लिए महत्वपूर्ण हो सकती है। अतः इसे जीवित रखना महत्वपूर्ण है। जहाँ इसके धार्मिक पहलुओं का संबंध केवल बौद्धों से है, पर बौद्ध विज्ञान और दर्शन का अध्ययन शैक्षणिक स्थितियों के अंतर्गत किया जा सकता है जिसमें किसी की भी रुचि और हित की संभावना है।
"बुद्ध ने एक अनूठे रूप से अपने अनुयायियों को सलाह दी कि जो भी शिक्षा उन्होंने दी उसे श्रद्धा के कारण उसी रूप में स्वीकार न करें, पर कारण के आधार पर उसकी जाँच व परीक्षण करें" परम पावन ने समझाया। "यह स्वस्थ शंका वैज्ञानिकों के लिए आकर्षक है और विगत तीस वर्षों में हमने जो उपयोगी विचार विमर्श आयोजित किए हैं उस पर आधारित है।"
"कृपया मेरी इन तीन प्रतिबद्धताओं को ध्यान में रखें और यदि वे आपके लिए किसी भी रूप में सहायक हों तो आप उनको कार्यान्वित कर सकते हैं। मैं आज आप सब के यहाँ आने की सराहना करता हूँ और आयोजकों को उनके सभी प्रयासों के लिए धन्यवाद देना चाहूंगा।"
आयोजकों की ओर से डॉ मनमोहन सिंह ने परम पावन को चन्दन पर खचित सारनाथ के अशोक स्तंभ के सिंहों की प्रतिकृति प्रस्तुत की। ये चार सिंह शक्ति, साहस, गौरव और आत्मविश्वास का प्रतिनिधित्व करते हैं और अब भारत के प्रतीकों में से एक हैं। सारनाथ वह स्थान है, जहाँ बुद्ध ने पहले चार आर्य सत्यों की देशना दी।
अनलजीत सिंह ने उन सबका धन्यवाद दिया जिन्होंने अपनी बात रखी और अपने विचार साझा किए। उन सभी की ओर से जिन्होंने, जिसे उन्होंने एक बहुत ही खास दिन कहा, में भाग लिया था उन्होंने परम पावन के निरंतर अच्छे स्वास्थ्य, सुख और शांति के लिए प्रार्थना और शुभकामनाएँ व्यक्त की।
एक महीने के एक सफल दौरे के अंत में जिसमें उन्होंने दिल्ली, बेंगलुरू, हुन्सुर और बाइलाकुप्पे की यात्रा की , परम पावन दलाई लामा कल धर्मशाला लौटेंगे।