मैडिसन, डब्ल्यू आइ, संयुक्त राज्य अमेरिका, मार्च ९, २०१६ - हवा में वसंत का झोंका लिए एक उज्ज्वल प्रभात था जब अधिकांश दुकानों और कार्यालयों के खुलने से पहले परम पावन दलाई लामा गाड़ी से मैडिसन पहुँचे। जैसे ही वह नगर के निकट पहुँचे तो कैपिटल भवन आकाश की पृष्ठभूमि में खड़ा दिखाई दिया जिसकी विशाल सौम्य उपस्थिति थी जब उनकी गाड़ी ओवरचर सेंटर फॉर द आर्ट्स में प्रविष्ट हुई। रिची डेविडसन ने उनसे भेंट की तथा उनके साथ प्रोमेनेड सभागार गए।
प्रातः के मुख्य कार्यक्रमों से पहले उन्होंने तीन साक्षात्कार दिए। उन्होंने सेंटर फॉर हेल्थी माइंड्स के एक प्रतिनिधि को बताया कि उनके अद्भुत मस्तिष्क के कारण मनुष्यों में एक अद्वितीय क्षमता है जिसमें भाषा का प्रयोग शामिल है। विज्ञान ने भी दिखाया है कि आधारभूत मानव प्रकृति स्नेहशील है। अतः इस ओर शिक्षा के माध्यम से सुधार की प्रबल संभावनाएँ हैं।
उन्होंने कहा कि एक अधिक सुखी विश्व का निर्माण प्रत्येक के हित में है। परन्तु आधुनिक शिक्षा बाहरी मूल्यों और भौतिक विकास की ओर उन्मुख हो रही है। और तो और चूँकि हम जिन कई समस्याओं का सामना कर रहे हैं वे हमारी अपनी बनाई हुई हैं अतः हमें नैतिकता या आंतरिक मूल्यों की एक नई सोच की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी सलाह दी है कि जहाँ क्लेश हमारी आंतरिक शांति को नष्ट करते हैं, चित्त शोधन उसे पुनर्स्थापित करता है।
उनके संवाद के पूर्व नेशनल ज्योग्राफिक के गैरी नेल ने पत्रिका के संग्रह से परम पावन को तिब्बत के कई मूल चित्र प्रदान किए। नेल ने परम पावन से पूछा कि मानव व्यवहार और प्राकृतिक विश्व की रक्षा के बीच किस तरह संतुलन प्राप्त किया जाए। उन्होंने उत्तर दियाः
"यह जटिल है। चूँकि विश्व की जनसंख्या अभी भी बढ़ रही है, मात्र विकास को सीमित करना कोई समाधान नहीं है। परन्तु प्राकृतिक संसाधनों का ह्रास हो रहा है और जलवायु परिवर्तन हमें चेतावनी दे रहा है कि शीघ्र ही हमारे लिए पानी की कमी होगी। मैं कुछ समय से सहारा रेगिस्तान में सौर पैनलों की स्थापना के बारे में सोच रहा हूँ। उत्पादित बिजली विलवणीकरण संयंत्र चलाने के लिए काम में लाई जा सकती है। उत्पादित पानी रेगिस्तान की हरियाली के लिए उपयोग में लाया जा सकता है। यह भी स्पष्ट है कि इस समय जो राशि हम शस्त्रों पर खर्च कर रहे हैं उनका इस्तेमाल गरीबों को राहत देने में बेहतर रूप से किया जा सकता है।"
तकनीक के बारे में एक प्रश्न पर, यह देखते हुए कि विश्व में जितने लोग हैं उतनी ही संख्या में मोबाइल फोन हैं, परम पावन ने कहा कि उसका प्रभाव अच्छा है अथवा बुरा वह उपयोगकर्ता पर निर्भर करता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें प्रौद्योगिकी का दास नहीं बनना चाहिए, उसे हमारी सहायता करनी चाहिए।
नेल जानना चाहते थे कि किनकी कहानियाँ परम पावन को प्रेरित करती हैं और उन्होंने उन्हें महात्मा गांधी, नेल्सन मंडेला और मार्टिन लूथर किंग के प्रति अपनी प्रशंसा और साथ ही बिशप डेसमंड टूटू के लिए अपनी मेत्री के विषय में बताया। उन्होंने टिप्पणी की कि हम इन गहन मूल्यों की उपेक्षा कर देते हैं जिनकी प्रशंसा इन में से प्रत्येक ने की क्योंकि हमारी शिक्षा प्रणाली भौतिकवाद की ओर उन्मुख है।
एबीसी न्यूज के एंकर डेन हैरिस, जिन्होंने ध्यान के अपने अनुभव के विषय में ’१०% हेप्पियर' नाम से एक पुस्तक लिखी है, ने पूछा कि परम पावन जैसे एक धार्मिक नेता को किस प्रकार विज्ञान के क्षेत्र में रुचि उत्पन्न हुई। परम पावन ने समझाया कि बचपन से ही उनमें स्वाभाविक रूप से उत्सुकता रही है और उन्होंने विज्ञान द्वारा मानवता के लिए लाए गए लाभ को देखा है। यद्यपि उन्होंने यह भी देखा है कि चित्त या चेतना की ओर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है।
"यह महत्वपूर्ण है," उन्होंने कहा "क्योंकि शारीरिक सुख - सुविधाएँ आंतरिक शांति नहीं लाती। हम चित्त के भीतर आंतरिक शांति उत्पन्न करते हैं। जब हम तनाव और चिंता का अनुभव करते हैं, हमें चित्त शोधन द्वारा उसके साथ व्यवहार करना चाहिए। ध्यान के विभिन्न प्रकार हैं, विपश्यना और शमथ। यह केवल आँखें बंद कर विचारहीनता का विकास करना नहीं है। और न ही हम इस तरह जी सकते हैं पर हमारा सबसे बड़ा उपहार हमारी बुद्धि है, इसलिए हमें इसका इस्तेमाल करना चाहिए।"
एक बार पुनः प्रोमेनेड सभागार में एकत्रित हुए, विस्कॉन्सिन विश्वविद्यालय की कुलाधिपति, पूर्व संयुक्त राज्य अमेरिका के ओबामा प्रशासन में सचिव, रेबेका ब्लांक ने सत्र का प्रारंभ किया। उन्होंने गौरव व्यक्त किया कि सेंटर फॉर द हेल्थी माइंड्स विश्वविद्यालय का एक अंग था और उल्लेख किया कि परिसर इसके अंतःविषय दृष्टिकोण के अनुकूल था। वह वैज्ञानिक अनुसंधान को वास्तविक जीवन में परिवर्तित देखने को लेकर आशावान थीं। रिची डेविडसन ने समझाया कि सेंटर में कार्यरत पांच वैज्ञानिक अपने शोध के विषय में प्रस्तुतीकरण देंगे।
रेजिना लापाते ने बताया कि वह किस प्रकार भावनात्मक प्रसंस्करण में चेतना के प्रति सजगता की भूमिका का मूल्यांकन कर रहीं थीं। उन्होंने पाया कि सजगता भावनात्मक नियामक प्रक्रिया को विकसित करता है। जब जागरूकता के विषय में प्रश्न किया गया तो परम पावन ने इसके महत्व को स्वीकार किया और उल्लेख किया कि बिना इसके हम चल भी नहीं सकते। कोर्टलेंड डाहल ने मानव उत्कर्ष पर किए जा रहे अपने कार्य को प्रस्तुत किया और पूछा कि एक धर्मनिरपेक्ष संदर्भ में किस तरह का विश्लेषणात्मक ध्यान सबसे अनुकूल है। परम पावन ने दोहराया कि शमथ और विश्लेषणात्मक दो प्रकार की ध्यान अपने उद्देश्य की दृष्टि से अंतर नहीं रखते पर जिस प्रकार से ध्यान का व्यवहार किया जाता है उसमें अंतर रखते हैं। उन्होंने कड़े वैज्ञानिक अनुसंधान को विश्लेषणात्मक ध्यान के समान बताया।
जब मैट हिरेशबर्ग ने पुर्नविन्यास पर अपने कार्य की प्रस्तुति की तो उन्होंने टिप्पणी की स्वास्थ्य चित्त का आधारभूत गुण है। मेलिसा रोज़नक्रांज़ ने सूजन और तनाव में अपने अनुसंधान और इसे विनियमित करने में सजगता की भूमिका की बात की। उन्होंने उल्लेख किया कि सूजन दमा और अल्जाइमर सिंड्रोम में एक भूमिका निभाता है। सूजन को विनियमित करने का सार्वजनिक स्वास्थ्य परिणाम होगा।
अंत में, पेलिन केसेबिर ने २०वीं सदी में अमेरिकी संस्कृति में नैतिक उत्कृष्टता की जाँच की सूचना दी। गूगल बुक्स ग्रम व्यूअर का उपयोग करते हुए वे नैतिक घटक के शब्दों के प्रयोग की आवृत्ति में कुछ कमी देख पा रहीं थीं। उन्होंने 'दलाई लामा' शब्द के उपयोग में अधिकता का उल्लेख किया। उन्होंने 'करुणा' शब्द के प्रयोग में अधिकता पाई जिसका संबंध बौद्ध धर्म में बढ़ती रुचि से है और ऐसे समय इस तरह के नैतिक शब्दों में कमी हो रही है।
परम पावन ने टिप्पणी की कि जब लोग बहुत अधिक तनाव, क्रोध और हताशा का अनुभव करते हैं तो उन्हें परीक्षण करना चाहिए कि उनके तनाव का क्या कारण है, और सोचें कि किस तरह एक शांत चित्त जन्म लेता है। उचित प्रशिक्षण द्वारा एक क्रोधित व्यक्ति भी शांत और करुणाशील बन सकता है। उन्होंने इस ओर चल रहे अनुमोदन का समर्थन करते हुए बहुत सराहना और समर्थन व्यक्त किया।
सेंटर फॉर द हेल्थी माइंड्स द्वारा आयोजित मध्याह्न भोजन के दौरान बारबरा मेथिसन ने सेंटर के कार्य के लिए परम पावन के योगदान को स्वीकार किया और रिची डेविडसन के मानविकी और विज्ञान के चौराहे पर कार्य करने की क्षमता के विशेष गुण का वर्णन किया। उन्होंने उन दोनों के बीच एक मूल्यवान तालमेल का उल्लेख किया।
लेखक डैन ने उस समय का स्मरण किया जब वे और रिची डेविडसन १९७० दशक में कैम्ब्रिज में मनोविज्ञान स्नातक थे। बाद में जब एक बार माइंड एंड लाइफ बैठकें प्रारंभ हुईं तो परम पावन ने उनसे कहा, "हमारी परम्परा में क्लेशों से निपटने के कई उपाय हैं। आप उनका अपनी प्रयोगशालाओं में परीक्षण क्यों नहीं करते और यदि वे प्रभावशाली सिद्ध होते हैं तो उनका साझा करें।" यद्यपि इसका अर्थ समकालीन मनोविज्ञान अनुसंधान की धारा के विपरीत जाना है पर रिची डेविडसन ने परम पावन के सुझाव को स्वीकार किया और अब वे सेंटर फॉर हेल्थी माइंड्स के इन उपायों को अधिक व्यापक रूप से उपलब्ध बनाने के तरीके ढूँढ रहे हैं।
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द वर्ल्ड वा मेक का मध्याह्न सत्र कई समर्थकों, पीडब्ल्यूसी, नेशनल ज्योग्राफिक के गैरी नेल और माइंड एंड लाइफ की सुसान बॉयर-वू की श्रद्धांजलि के साथ प्रारंभ हुआ। तत्पश्चात आरून स्टर्न और एकाडमी फ़ॉर द लव ऑफ लर्निंग द्वारा संक्षिप्त संगीत प्रस्तुत किया गया। रिची डेविडसन ने परम पावन को उनकी आँखों की सुरक्षा हेतु एक टोपी प्रदान की जिस पर शब्द अंकित थे 'चेंज यूयर माइंड, चेंज द वर्ल्ड' और एबीसी के संचालक डेन हैरिस को चर्चाओं को प्रारंभ करने हेतु आमंत्रित किया। उन्होंने ध्यान को अपनाने के विषय पर बात की क्योंकि अपने जीवन में एक अंतर लाने में उन्होंने उसका प्रभाव के वैज्ञानिक प्रमाण की बात की।"
रिची डेविडसन ने ज़ोर दिया कि स्वास्थ्य कुछ ऐसा है जिसे सीखा जा सकता है और उन्होंने उनके द्वारा जाने गए चार घटकों का उल्लेख किया जो इस प्रक्रिय में योगदान दे सकते हैं। सबसे प्रथम लचीलापन है, ंजिसका संदर्भ तेज़ी से है जिससे आप विपरीत परिस्थितियों से उबर सकते हैं। दूसरा एक सकारात्मक दृष्टिकोण है। परम पावन की ओर मुड़ते हुए उन्होंने कहा कि वे जिनसे भी मिलते हैं वे उनकी बुनियादी अच्छाई की ओर देखते हैं। यह करते हुए कि तीसरा घटक ध्यान है, उन्होंने टिप्पणी की कि एक भटकता चित्त एक दुखी चित्त होता है। चौथा उदारता है। डेविडसन ने निष्कर्ष निकाला कि इन चार घटकों के आधार पर वह लोगों को यह समझने के लिए प्रोत्साहित करने की आशा रखते हैं स्वास्थ्य एक कौशल है जिसे सीखा जा सकता है।
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मनोवैज्ञानिक सोना डिमदिजियान ने भी पुष्टि की कि यदि हम विश्व में शांति चाहते हैं, तो हमें चित्त की शांति, आंतरिक शांति की भावना की आवश्यकता होती है। उन्होंने कहा कि उनका शोध ने परीक्षण किया है कि स्वास्थ्य का विकास करने के लिए किस तरह लोगों को प्रशिक्षित किया जाए। वे महिलाओं के गर्भावस्था के दौरान और बाद में जागरूकता और संज्ञानात्मक उपचार द्वारा अवसाद से बचाने और उसके उपचार हेतु काम करता है। हार्वर्ड मेडिकल स्कूल की १०० मिलियन हेल्थियर लाइव्स की सोमा स्टाउट ने चर्चा की किस तरह स्वास्थ्य तथा समानता के लेन्स से समस्त विश्व में जीवन को सुधारा जाए।
परम पावन इन विषयों को उठाया:
"हम सामाजिक प्राणी हैं, हमारे लिए साथ मिलकर कार्य करना स्वाभाविक है। प्रत्येक व्यक्ति का अस्तित्व समुदाय के अन्य लोगों पर निर्भर करता है। हम भारी रूप से अन्योन्याश्रित हैं। साथ ही यह नारा कि 'अपना चित्त बदलें, विश्व को बदलें' हमें स्मरण दिलाता है कि परिवर्तन व्यक्ति के साथ प्रारंभ होना चाहिए। अपनी आंतरिक शक्ति और आत्म विश्वास का निर्माण करते हुए हम सौहार्दता का विकास कर सकते हैं, जिससे दूसरों के कल्याण की चिंता को पोषित कर सकते हैं। निश्चित रूप से हममें स्वार्थ है पर हमें अपना स्वार्थ दूसरों की चिंता करते हुए अपने स्वार्थ के प्रति सोचना चाहिए, न कि मूर्खता और संकीर्णता से केवल अपने ही विषय में सोचना चाहिए।"
डेन हैरिस ने सूचित किया की, कि ऐसी आलोचनाएँ है कि जगरूकता और ध्यान पर व्याख्यान की आड़ में चुपचाप बौद्ध धर्म से परिचय करना शामिल है और परम पावन से टिप्पणी करने के लिए कहा। उन्होंने उत्तर दिया कि सभी प्रमुख धार्मिक परंपराएँ मनुष्य से संबंधित हैं। प्रेम और करुणा के अभ्यास पर बल देते हुए वे सभी सहनशीलता, क्षमा और आत्मानुशासन की सलाह देते हैं। उन सबका समान लक्ष्य है फिर भले ही वे इस तक पहुँचने के लिए अलग अलग दृष्टिकोण अपनाते हों।
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उन्होंने मोंटसेराट, स्पेन में एक ईसाई भिक्षु से मिलने की बात की जिसने पाँच वर्ष पहाड़ों पर एक साधु के रूप में जीवन बिताया था। जब परम पावन ने उससे उसके अभ्यास के विषय के बारे में पूछा तो उसने बताया कहा कि उसने प्रेम पर ध्यान किया था। जब उसने उन्हें यह बताया तो परम पावन ने उसकी आँखों में सच्चे सुख की चमक देखी। एक तिब्बती भिक्षु जिसने तिब्बत में चीनी कारागार में १८ वर्ष साल बिताए ने बताया कि उसे कई संकटों का सामना करना पड़ा था। परम पावन ने सोचा कि उसका अर्थ उसके जीवन के संकट से था और उन्होंने उससे इस विषय में पूछा पर उन्हें यह जानकर हैरानी हुई कि उसका अर्थ उसके कैदकर्ता के प्रति करुणा खोने का खतरा था। परम पावन ने निष्कर्ष निकाला कि जिस अभ्यास का भी हम पालन करें उसके प्रति गंभीर होने की आवश्यकता है।
जैसे ही बैठक समाप्त होने को आई डेन हैरिस ने परम पावन के समक्ष एक प्रश्न रखा कि उदाहरणार्थ, क्या आईएसआईएस के अत्याचारों के संदर्भ में हिंसा के प्रयोग को कभी भी न्यायोचित ठहराया जा सकता है। उन्होंने उत्तर दियाः
"यह कहना कठिन है। चिंता की भावना के कारण एक कठोर प्रतिक्रिया देना कभी कभी उपयोगी हो सकता है, पर साधारण रूप से हिंसा के प्रयोग से बचना बेहतर है। आपकी जो भी मूल मंशा हो उसका सदा नियंत्रण से बाहर होने का संकट है। शांति की खोज का अर्थ यह नहीं है कि कोई और संघर्ष नहीं होगा, हमें सदा संघर्ष का सामना करना पड़ेगा, पर हमें संवाद के माध्यम से उनके साथ निपटना सीखना होगा। यदि २०वीं सदी के रक्तपात से बचना है तो यह महत्वपूर्ण है। प्रतीत होता है कि बिना किसी प्रभाव के हमने सैकड़ों वर्षों तक शांति के लिए प्रार्थना की है। हमें इसे प्राप्त करने हेतु कार्य करना है।
"मैं कभी कभी मजाक में सुझाता हूँ कि यदि आज हमारी यीशु मसीह या बुद्ध के साथ भेंट हो और हम उनसे विश्व में शांति निर्माण हेतु आग्रह करें तो वे पूछ सकते हैं कि जिन समस्याओं का सामना हम कर रहे हैं उनका निर्माण किसने किया है। उत्तर है कि हमने किया हैं और उनका समाधान करना हमारा उत्तरदायित्व है। एक विशुद्ध प्रेरणा, बुद्धि और करुणा से सभी अल्पकालिक और दीर्घकालिक परिणामों को ध्यान में रखते हुए हमें संवाद के लिए तैयार होने की आवश्यता है। मेरे विचार से वही एक यथार्थवादी दृष्टिकोण है।"
रिची डेविडसन ने केंद्र के मित्रों और समर्थकों का आभार व्यक्त किया। उन्होंने परम पावन को विशेष रूप से आने के लिए धन्यवाद दिया और उनसे बार बार आने का अनुरोध किया। बैठक का अंत हुआ और परम पावन भारत लौटने की अपनी यात्रा प्रारंभ करने के लिए गाड़ी से मैडिसन हवाई अड्डे के लिए रवाना हुए।