थेगछेन छोलिंग, धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश, भारत, २३ मार्च २०१६ - तिब्बती चिकित्सा एवं ज्योतिष संस्थान के शताब्दी समारोह के उपलक्ष्य में थेगछेन छोलिंग पुष्पों और जरी वस्त्रों से सुसज्जित था। कशाग के पूर्व और वर्तमान सदस्यों के साथ सिक्योंग तथा निर्वासित तिब्बती संसद के अध्यक्ष और संसद सदस्य चुगलगखंग के नीचे मंच पर एकत्रित थे ।
परम पावन दलाई लामा के आगमन की प्रतीक्षा करते युवाओं और वयोवृद्धों तिब्बती, जिनसे प्रांगण भरा था, में आशा की एक लहर थी। और जैसे ही परम पावन अपने निवास के प्रवेश द्वार पर दिखाई दिए, ढोल की ध्वनि गूंजी और तिब्बती छात्रों के एक वाद्य वृन्द ने वादन प्रारंभ किया। मुस्कुराते और जनमानस का अभिनन्दन करते हिमाचल प्रदेश सरकार के सदस्यों के साथ वे बगीचे से होते हुए गुज़रे तथा अपना आसन ग्रहण किया।
इस अवसर के तिगुने महत्व का एक संक्षिप्त विवरण दिया गया। यह वर्ष १३वें दलाई लामा द्वारा ल्हासा में तिब्बती चिकित्सा एवं ज्योतिष संस्थान की स्थापना को चिह्नित करता है। आज का दिवस परम पावन दलाई लामा द्वारा निर्वासन में तिब्बती चिकित्सा एवं ज्योतिष संस्थान की पुर्नस्थापना को इंगित करता है। इसके अतिरिक्त ३२० वर्ष पूर्व ५वें दलाई लामा ने ल्हासा में चगपोरी पर एक चिकित्सा महाविद्यालय की स्थापना की थी।
हर कोई तिब्बती राष्ट्रीय गान के लिए खड़ा हुआ। चाय और मीठे चावल परोसे गए। तिब्बती चिकित्सा एवं ज्योतिष संस्थान के कर्मचारी और छात्रों ने इस अवसर के लिए विशेष रूप से लिखा गीत गाया और निदेशक टाशी छेरिंग ने पहले अंग्रेजी और तत्पश्चात भोट भाषा में लोगों को संबोधित किया। उन्होंने दुहराया कि तिब्बती चिकित्सा एवं ज्योतिष संस्थान का लक्ष्य मानवता के लाभ हेतु योगदान देने के लिए उपचार की तिब्बती कला, सोवा रिगपा का संरक्षण है। उन्होंने इसमें उनकी भूमिका के लिए संस्थान के छात्रों के कर्मचारियों और छात्रों को धन्यवाद दिया। उन्होंने स्मरण किया कि जब परम पावन दलाई लामा ने १९६१ में तिब्बती चिकित्सा एवं ज्योतिष संस्थान की पुनर्स्थापना की और पहले चिकित्सक डॉ येशे दोनदेन को नियुक्त किया था तो उन्होंने टिप्पणी की थी कि यह एक छोटी सी शुरुआत समय के साथ अपनी योग्यता प्रमाणित करेगी।
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निदेशक ने आगे कहा कि तिब्बत में चगपोरी में चिकित्सा महाविद्यालय नष्ट हो गया था और यद्यपि ल्हासा में तिब्बती चिकित्सा एवं ज्योतिष संस्थान बच गया पर उसके कई प्रमुख चिकित्सक बन्दी बना लिए गए थे। उन्होंने डॉ तेनजिन छोडक तथा डॉ लोबसंग वांज्ञल का उदाहरण दिया, जो कई वर्षों की कैद के बाद अंततः निर्वासन में तिब्बती चिकित्सा एवं ज्योतिष संस्थान में शामिल हो गए थे। उन्होंने तिब्बती चिकित्सा एवं ज्योतिष संस्थान तथा जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम जैसे हिमालय पार राज्यों के बीच आपसी सहयोग का संदर्भ दिया। उन्होंने ठिसोंग देचेन द्वारा समये में बुलाए गए सम्मेलन का उल्लेख किया जिसमें तिब्बती, भारतीय, चीनी और यूनानी परम्पराओं के चिकित्सकों ने भाग लिया था। उस अवसर पर जो सीखा गया उसे कनिष्ठ युथोग योनतेन गोनपो (११२६- १२०२) द्वारा चार चिकित्सा तंत्रों के रूप में स्थापित किया गया। उन्होंने परम पावन के एक उद्धरण के साथ समाप्त कियाः
"मानव जाति को एक स्वस्थ मन और एक स्वस्थ शरीर की आवश्यकता है और हम तिब्बती उस आवश्यकता में सहयोग दे सकते हैं यद्यपि हम शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं।"
हिमाचल सरकार में वन मंत्री श्री ठाकुर सिंह भरमोरी को बोलने हेतु आमंत्रित किया गया। उन्होंने निर्वासन में आने के बाद शीघ्र ही परम पावन द्वारा तिब्बती चिकित्सा एवं ज्योतिष संस्थान की पुनर्स्थापना के विचार की सराहना की और टिप्पणी की कि आज तिब्बती चिकित्सा परंपरा की स्थिति के लिए वह कितना महत्वपूर्ण था। उन्होंने सुझाव दिया कि पारम्परिक चिकित्सा प्रणालियों को पारस्परिक रूप से परामर्श करना और एक दूसरे का समर्थन करना चाहिए। यह उल्लेख करते हुए हिमालय पार का क्षेत्र औषधीय जड़ी बूटियों में समृद्ध है, उन्होंने आगाह किया कि हमें जननी धरती द्वारा प्रदत्त समृद्धि का विवेकपूर्ण रूप से उपयोग करने की आवश्यकता है।
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आयुष मंत्री श्री करण सिंह ने जनसमुदाय से कहा कि वे यह सुनिश्चित करने के लिए स्वयं को चिमटी काट रहे हैं कि वे स्वप्न नहीं देख रहे क्योंकि उन्हें विश्वास नहीं हो रहा कि उन्हें परम पावन के बगल में बैठने का सम्मान प्राप्त हुआ है। उन्होंने कहा कि आयुष के मंत्री के रूप में वे तिब्बती चिकित्सा एवं ज्योतिष संस्थान के कार्य से प्रभावित हुए हैं। चूँकि सोवा रिगपा, उपचार की तिब्बती कला को २०१० में भारत सरकार द्वारा मान्यता दी गई थी, वह इसे भारत और विदेशों में बढ़ाने की सहायता करने की आशा रखते हैं।
लाहौल एवं स्पीति के विधायक, श्री रवि ठाकुर, तिब्बतियों के एक लम्बे समय के मित्र और तिब्बती चिकित्सा एवं ज्योतिष संस्थान के समर्थक ने परम पावन को उनकी लाहौल एवं स्पीति की कई यात्राओं और वहाँ दिए गए प्रवचनों जिनमें कालचक्र दीक्षा भी शामिल है, के लिए कृतज्ञता व्यक्त की। उन्होंने तिब्बती चिकित्सा एवं ज्योतिष संस्थान के कार्यों की बहुत प्रशंसा की और जैसा उनके पूर्व सहयोगियों ने किया था परम पावन की दीर्घायु और स्वस्थ जीवन की कामना करते हुए समाप्त किया।
परम पावन ने प्रत्येक भारतीय नेता और रूसी सांसद इरिंचे मटखानोव, जो बुर्यातिया के निवासी हैं तथा स्वास्थ्य रक्षा के लिए राज्य ड्यूमा समिति के सदस्य हैं, को स्मृति चिन्ह भेंट किया। उन्होंने डॉ येशी दोनदेन के कई वर्षों की समर्पित सेवा के लिए और साथ ही कई अन्य चिकित्सकों और फार्मासिस्टों के प्रति अपनी सराहना व्यक्त की।
सभा को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किए जाने पर परम पावन ने यह कहते हुए प्रारंभ किया कि वह सभी अतिथियों और गणमान्य व्यक्तियों के नाम याद नहीं कर पा रहे, परन्तु उन्होंने सबका अभिनन्दन किया। उन्होंने कहा:
"यह तिब्बती इतिहास के सबसे कठिन समयों में से एक रहा है, पर हमने परिश्रम किया और तिब्बती चिकित्सा एवं ज्योतिष संस्थान की पुनर्स्थापना हमारे प्रयासों का अंग था। हम यहाँ अजनबियों के रूप में आए पर कई अलग अलग संगठन जो शरणार्थियों की देखरेख करते हैं हमारे प्रति दयालु थे। तो, अब, निर्वासन में ५० से अधिक वर्षों के पश्चात तिब्बत की अपनी भाषा है जो जो हमारी समृद्ध संस्कृति के संरक्षण का माध्यम है। कभी-कभी इसे पाँच महाविद्या और पाँच लघु विद्या के रूप में वर्णित किया जाता है जिसमें संस्कृत व्याकरण, प्रमाण, शिल्प, चिकित्सा और अाध्यात्मिक शामिल है।"
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उन्होंने जोर देकर कहा कि संस्कृत परम्परा के भारतीय आचार्यों के लिए किस तरह प्रमाण महत्वपूर्ण थे। उन्होंने जैसा बुद्ध ने सलाह दी थी उनकी शिक्षाओं के परीक्षण व मूल्यांकन के लिए उन उपायों का प्रयोग किया। इससे उन्हें उन शिक्षाओं को जिन्हें शब्दशः ग्रहण किया जा सकता था क्योंकि वे तर्क तथा प्रमाण से मेल खाते थे और वे जो व्याख्या की अपेक्षा रखते थे, में अंतर करने की क्षमता दी। उन्होंने उल्लेख किया कि दिङ्नाग और धर्मकीर्ति का तर्क और प्रमाण पर व्यापक साहित्य भोट भाषा में संरक्षित है और उन्हें तिब्बती शिक्षा में समाविष्ट करने के लिए छापा छोकी सेंगे (११०९- ६९) तथा “प्रमाण विद्यानिधि” के लेखक साक्य पंडित (११८२- १२५१) के योगदान की सराहना की।
शिल्प के बारे में परम पावन ने कहा कि वे व्यापक नहीं थे, पर उनमें बुद्धों, बोधिसत्वों और लामाओं की मूर्तियों का निर्माण शामिल था, कौशल जो कि स्थानीय स्तर पर नोर्बुलिंका संस्थान में संरक्षित थे। उन्होंने खुनु लामा रिनपोछे के कथन का उल्लेख किया कि शिल्प को बाह्य अथवा आंतरिक संदर्भ में समझा जा सकता है। आंतरिक परिवर्तन का बौद्धाभ्यास बाद के वर्ग का अंग होगा। परम पावन ने कठोर अध्ययन, अभ्यास तथा अनुभव उत्पन्न करने की तिब्बती परम्परा की सराहना की।
"मेरे अपने अनुभव से मैं परम्पराओं के मूल्य की सराहना करने लगा हूँ जिन्हें हमने जीवंत रखा है। बौद्ध धर्म की एक व्यापक प्रणाली समूचे तिब्बत में फैली पर फिर भी उस सम्बन्ध में अधिकांश तिब्बती अशिक्षित तथा अनजान बने रहे। अब यदि हम इन परम्पराओं को जीवित रखना चाहते हैं तो हमें उनके साथ अपनी बुद्धि से संलग्न होना होगा। यदि हम बिना किसी समझ या तर्क और कारण के उपयोग बिना केवल अंधविश्वास रखें तो बौद्ध धर्म जीवित न बचेगा।
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"आप चाहे कितनी देर तक उनका पाठ करते रहें, मात्र प्रार्थना से कोई विशेष अंतर न पड़ेगा। मैं एक छात्र के रूप में नागार्जनु के प्रति समर्पित हूँ, पर मुझे नहीं लगता कि उनसे प्रार्थना करने से कुछ लाभ होगा। हमें अध्ययन करने तथा समझने की आवश्यकता है। यदि हम नहीं करते तो कांग्यूर और तेंग्यूर के ३०० से अधिक ग्रंथों से भी कोई विशेष लाभ न होगा। बुद्ध पापों को जल से नहीं धोते और न ही हाथों से दुःख दूर करते हैं। जिसकी अनुभूति उन्होंने स्वयं की है वे उसकी शिक्षा देकर सत्वों की सहायता करते हैं। अपने चित्तों को विशुद्ध करने के लिए हमें अपने क्लेशों पर काबू पाना होगा जो उन्हें बाधित करते हैं। इसका यह अर्थ हुआ कि हमें व्यापक रूप से अध्ययन भी करना चाहिए। यदि आप एक गेलुगपा हैं तो आपको यदि हो सके तो अन्य परम्पराओं, ञिङमा, सक्या और काग्यू का अध्ययन करना चाहिए।
"सोवा रिगपा के संबंध में, यदि ८वीं शताब्दी में एक महान सम्मेलन आयोजित किया जा सकता था, जब सुविधाएँ इतनी अपर्याप्त थीं, तो आज जब हमारे पास सुविधाएँ और अवसर हैं तो हम इसे दोहराने में सक्षम होना चाहिए। हमारी परम्परा तिब्बती, आयुर्वेद, चीनी और यूनानी प्रणालियों से आई है। हमें इन परंपराओं के चिकित्सकों के साथ मिलना, चर्चा करना व हम जो जानते हैं उसके बारे में विचार विनिमय करना चाहिए। हमें मात्र चार तंत्रों पर ही निर्भर नहीं होना चाहिए, पर अन्य खोजों को भी स्वीकार करना चाहिए। यह आत्मसंतुष्टि का समय नहीं है। हमें अपनी रुचि का विस्तार करना चाहिए, यह पता लगाना चाहिए कि हम क्या योगदान दे सकते हैं और क्या सीख सकते हैं। तत्कालिक रोगों के लिए एलोपैथिक उपचार प्रायः अधिक उपयुक्त है, पर दीर्घकाल के लिए तिब्बती चिकित्सा में महान उपचार के गुण हैं।"
परम पावन ने स्वीकार किया कि तिब्बती चिकित्सा एवं ज्योतिष संस्थान ने तिब्बती चिकित्सा, खगोलीय और ज्योतिषीय परंपराओं के संरक्षण में बहुत कार्य किया है पर जब वे तिब्बती आवासों में लंबे समय के रोगियों से मिलते हैं तो सोचने पर बाध्य होते हैं कि कुछ उपेक्षित तो नहीं रह गया।
"आप सोच सकते हैं कि यदि आप जैसे हैं बस इसी रूप में कार्य करते रहें तो सब कुछ ठीक होगा परन्तु आलोचना सुनने और अपनी कमियों की जाँच करने और उनका समाधान करने के उपायों को खोजने की भी आवश्यकता है। उदाहरणार्थ निवारक उपायों की एक महत्वपूर्ण भूमिका है। चलिए देखते हैं कि हम किस तरह सुधार ला सकते हैं। बस इतना ही, धन्यवाद। टाशी देलेक।"
और उसी के साथ परम पावन ने मंच से नीचे उतरे और पुनः मुस्कुराते हुए तथा श्रोताओं को अभिनन्दन करते हुए अपने निवास लौटे। उद्यान में समारोह, जिसमें गीत और नृत्य शामिल थे और मध्याह्न का भोजन जारी रहा।