बेंगलुरू, कर्नाटक, भारत - २ जनवरी २०१६- आज प्रातः परम पावन दलाई लामा को विदाई देने गदेन ठि रिनपोछे, शरपा छोजे और जंगचे छोजे जैसे प्रमुख लामा और कई उपाध्याय टाशी ल्हुन्पो सभागार में प्रतीक्षारत थे। जब उन्होंने एक बड़े पीले औपचारिक छत्र से परिरक्षित होकर बाहर धूप में कदम रखा तो टाशी ल्हुन्पो के भिक्षु महाविहार की सीढ़ियों पर बैठे थे। जब अंतिम सामूहिक चित्र खींचे जा रहे थे तो वे उनके बीच मुस्कुराते हुए बैठे और उसके बाद अपनी गाड़ी में सवार हो गए। टाशी ल्हुन्पो से गाड़ी में जाते समय हज़ारों की संख्या में तिब्बती मार्ग पर खड़े थे, कुछ के हाथों में पुष्प अथवा अगरबत्तियाँ थीं पर लगभग सभी श्वेत स्कार्फ पकड़े हुए थे , जिस पर प्रातः की धूप खिल रही थी ।
तिब्बती आवास से कुछ दूरी पर, परम पावन की गाड़ी रुकी और उपाध्याय जो उनके पीछे आ रहे थे, गाड़ी के दरवाज़े तक आए और एक अंतिम बार अपना सम्मान व्यक्त किया। गाड़ियों का काफिला फिर बेंगलुरू की ओर बढ़ा और मांड्या में एक छोटे से अंतराल के लिए रुका, जहाँ स्थानीय प्रेस के सदस्य उनका अभिनन्दन करने हेतु उपस्थित थे। यात्रा जारी रखने से पहले उन्होंने उनसे और स्थानीय पुलिस अनुरक्षण से आंतरिक शांति के महत्व तथा प्राचीन भारतीय संस्कृति के मूल्यों के संरक्षण के महत्व की बात की। मध्याह्न के भोजन समय तक वे बेंगलुरू पहुँचे।
मध्याह्न के पूर्वार्ध में उन्हें भारतीय प्रशासनिक सेवा(आईएएस) संघ (कर्नाटक) की एक बैठक को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया गया था।
"भाइयों और बहनों," अभिनन्दन करते हुए वे बोले "मैं आज आपसे मिल कर अत्यंत प्रसन्न हूँ। हम सब मानवता का अंग हैं, हम ७ अरब जो मनुष्य के रूप में आधारभूत ढंग से समान हैं। निस्सन्देह हममें आस्था, त्वचा और बालों के रंग का अंतर है, हममें से कुछ विभिन्न देशों से आते हैं और अलग-अलग भाषाएँ बोलते हैं, पर ये सब गौण अंतर हैं। प्राथमिक बात यह है कि हम अनिवार्यतः एक हैं। जिन समस्याओं का हम सामना कर रहे हैं वह हमारे बीच के गौण अंतर पर आधारित गलतियों पर बल देने से है।
" हमारे विश्व में हिंसा, हत्या और भ्रष्टाचार का स्रोत एक दूसरे को 'हम' और 'उन’ के संदर्भ में देखते हुए आत्मकेन्द्रितता की एक प्रबल भावना से प्रेरित होना है। इसके स्थान पर हमें सभी मनुष्य की एकता की भावना को बढ़ावा देने का एक प्रयास करना है। हमें समग्र मानवता के कल्याण के बारे में सोचना है। यदि मानवता सुखी है तो व्यक्तियों के रूप में हम सुखी होंगे। यदि मानवता भय और शंका की दृष्टि से भरी है तो हम दुखी होंगे।"
प्राचीन मिस्र, चीनी और भारतीय सभ्यताओं की तुलना करते हुए परम पावन ने सुझाया कि सिंधु घाटी संस्कृति ने अब तक बुद्ध जैसे विचारकों और शिक्षकों की सबसे बड़ी संख्या को जन्म दिया था। उन्होंने कहा कि भारतीय प्रशासनिक सेवा के सदस्यों के रूप में, उनके श्रोता प्राचीन भारतीय मूल्यों की रक्षा करने और उसे बढ़ावा देने की स्थिति में थे। उन्होंने कहा कि उनका अर्थ पूजा और अनुष्ठान करने से नहीं अपितु अहिंसा और चित्त के विज्ञान जैसे मूल्यों से था।
"चित्त का ज्ञान, भावनाएँ और उनके प्रकार्य कुछ ऐसे हैं जिनका एक अकादमिक स्तर पर अध्ययन किया जा सकता है। इसी आधार पर मैं विगत ३० वर्षों से अधिक आधुनिक वैज्ञानिकों के साथ विचार विमर्श में लगा हुआ हूँ। इससे परस्पर लाभ हुआ है। उदाहरण के लिए मैंने जाना है कि परम्परागत बौद्ध ब्रह्माण्ड विज्ञान, जिसमें धरती को सपाट माना गया है जिसके केंद्र में मेरु पर्वत है गलत है। दूसरी ओर, क्वांटम भौतिकी का दावा कि किसी का भी वस्तुनिष्ठ अस्तित्व नहीं, माध्यमक दृष्टिकोण से मेल खाता है कि चूँकि सब वस्तुएँ कारणों और परिस्थितियों पर निर्भर करती है, उनका अस्तित्व मात्र ज्ञापित रूप में है।"
परम पावन ने अपने श्रोताओं को बताया कि पिछले ५६ वर्षों से जो उनके जीवन का श्रेष्ठ अंग था, इस देश में रहते हुए, भारतीय विचारों से भली भांति शिक्षित होकर वे स्वयं को भारत का पुत्र मानते हैं। वे विश्व में जहाँ भी यात्रा करते हैं वे अहिंसा और अंतर्धार्मिक सद्भाव की प्राचीन भारतीय विचारों का साझा करते हैं।
भारतीय प्रशासनिक सेवा के सदस्यों के लिए उनकी सलाह के विषय में पूछे जाने पर
उन्होंने उत्तर दिया :
"ईमानदार, पारदर्शी और सच्चे बनें, इस तरह आप विश्वास स्थापित कर पाएँगे।"
इस प्रश्न पर कि क्या बिना धर्म के धार्मिक मूल्यों की रक्षा करना संभव है, उन्होंने कहा कि वह इसे ही धर्मनिरपेक्ष नैतिकता कहते हैं। उन्होंने स्वीकार किया कि कुछ मित्र धर्मनिरपेक्ष शब्द को लेकर चौकस रहते हैं पर वे उसे सभी धार्मिक परंपराओं के प्रति, यहाँ तक कि उनके लिए भी जिनका धर्म में कोई विश्वास नहीं है, के अर्थ में व्याख्यायित करते हैं। उन्होंने सुझाया कि ७ अरब लोगों के विश्व में, जहाँ १ अरब लोग धर्म में कोई रूचि नहीं व्यक्त करते तो वहाँ प्रेम, करुणा, सहिष्णुता और क्षमा की समझ के आदान प्रदान के एक उपाय की आवश्यकता है। वह तरीका धर्मनिरपेक्ष नैतिकता का विकास है। परम पावन ने आधुनिक शिक्षा प्रणाली में धर्मनिरपेक्ष नैतिकता को शामिल करने के लिए एक पाठ्यक्रम तैयार करने हेतु उत्तरी अमेरिका, यूरोप और भारत में चल रही परियोजनाओं का उल्लेख किया। उन्होंने लगभग एक दर्जन से अधिक अमेरिकी शहरों को 'दया के शहरों' के रूप में घोषित करने की प्रभावशीलता का भी उल्लेख किया।
एक अंतिम प्रश्नकर्ता जानना चाहते थे कि जब बुद्ध ने बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त किया तो क्या हुआ। सबसे प्रथम परम पावन ने संस्कृत से भोट भाषा में अनुवाद किए गए ३०० से अधिक खंडों की ओर ध्यान आकर्षित किया। तत्पश्चात उन्होंने बुद्ध प्रकृति का उल्लेख किया जिसका संदर्भ मूल चित्त से है, चित्त जो स्वभावतः विशुद्ध है, जो कि क्रोध, मोह तथा अज्ञानता से मुक्त है। चूँकि ये क्लेश चित्त का अंग नहीं हैं, उन्हें समाप्त किया जा सकता है। जब ऐसा होता है तो बुद्ध का चित्त प्रकट होता है।
जब बैठक समाप्त हुई तो संयोजकों ने परम पावन को उनसे बात करने हेतु समय देने के लिए हृदय से धन्यवाद दिया और उन्हें बोन्साई बोधि वृक्ष की एक भेंट दी। कल प्रातः वह दिल्ली के लिए उड़ान भरने वाले हैं।