छो पेमा, रिवालसर, हिमाचल प्रदेश, भारत - १४ जुलाई, २०१६ - गुरु पद्मसंभव का जन्म समारोह, जो तिब्बती कैलेंडर के ५वें महीने की १० तारीख को मनाया जाता है, आज प्रातः ४ बजे परम पावन दलाई लामा की उपस्थिति में उज्ञेन हेरुकाई ञिङमा विहार में आरंभ हुआ। सींग वाद्यों की ध्वनि की गूंज ने विद्याधर चक्र पर आधारित गणचक्र के प्रारंभ की घोषणा की। इसके पश्चात एक लघु अंतराल के लगभग तीन घंटों के बाद ८वीं शताब्दी के इस अवसर का समारोह भविष्यवाणी कर्ताओं के आह्वान से प्रारंभ हुआ, जब महान उपाध्याय शांतरक्षित, आचार्य पद्मसंभव और धर्मराज ठिसोंग देचेन ने धर्मपाल पेहर को तिब्बत के आध्यात्मिक और लौकिक परंपराओं की रक्षा के लिए वचनों से बाध्य कर दिया था।
नगाड़े और झांझ के साथ पांच भविष्यवाणी कर्ताओं, जिनका आह्वान विभिन्न तरह से मंदिर के अंदर किया जाता है, में शासकीय भविष्यवाणी कर्ता नेछुंग, ञेनछेन थंगला, दोर्जे युडोनमा, ज्ञलछेन कर्मा ठिनले और अभी तक अज्ञात स्त्री की उपस्थिति, जिसका माध्यम जांस्कर से आता है, शामिल थे। उनमें से प्रत्येक परम पावन के सान्निध्य में गए और उनके प्रति अपना सम्मान व्यक्त किया। प्रत्युत्तर में उन्होंने उन्हें तिब्बत की बौद्ध परम्पराओं की रक्षा के प्रति उनके वचन का स्मरण कराया और इस महत्वपूर्ण मोड़ पर उसे पूरा करने हेतु अपने प्रयासों को दुगुना करने के लिए कहा।
तिब्बत के नेछुंग विहार में जिस तरह समारोह मनाया जाता था उसी के प्रतिरूप स्वरूप तन्द्रा में ऊर्जावान भविष्यवाणी कर्ता पालकी पर रखे गुरु पद्मसंभव की एक मूर्ति के साथ मंदिर की प्रदक्षिणा करने निकले। वे लौटे और पुनः परम पावन के पास गए। जैसे उनकी तंद्रा स्थिति समाप्त होने आई तो उन माध्यमों को शीघ्र ही बाहर ले जाकर उनकी विस्तृत वेशभूषा से मुक्त कर दिया गया। अपनी सामान्य स्थिति में लौटकर, माध्यमों ने पुनः मंदिर के अंदर प्रवेश किया और आभार के प्रतीक स्वरूप एक रेशमी स्कार्फ प्राप्त किया।
मध्याह्न में, जनमानस, जिनकी संख्या अनुमानतः १०,००० तक पहुँच गई थी, झील के बगल में प्रवचन स्थल पर एकत्रित हुए। वहाँ जाते हुए मार्ग पर परम पावन टीसीवी के एक पूर्व छात्र द्वारा स्थापित पद्मसंभव पब्लिक लाइब्रेरी सोसायटी में आशीर्वाद देने हेतु किंचित देर रुके, जहाँ वर्तमान में ७००० पुस्तकों का संग्रह है। कार्यक्रम स्थल पर पहुँचकर वे मंच पर चढ़े और अपने पुराने मित्रों का अभिनन्दन करते और उनसे ठिठोली करते हुए मंडल के समक्ष विद्याधर मंत्र के अभिषेक की तैयारी के लिए बैठे। जब वे तैयार हो तो उन्होंने सिंहासन पर अपना आसन ग्रहण किया और सभा को संबोधित किया।
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"हम अपने काय, वाक् और चित्त से अच्छे और बुरे कर्म का निर्माण करते हैं। एक बार यदि आपने अपने चित्त पर नियंत्रण कर लिया तो आप अपने काय और वाक के कृत्यों को अनुशासित करने में सक्षम हो जाएँगे। साधारणतया यद्यपि हम दुःख नहीं चाहते, पर हम जानबूझकर अहित के कार्य में संलग्न होते हैं जो इन्हें जन्म देते हैं। हमें लगता है कि यदि हमारे पास स्वास्थ्य और धन हो तो सुखी होने के लिए वह पर्याप्त है, पर वास्तव में सुख हमारे चित्त की स्थिति पर निर्भर करता है। नकारात्मक भावनाओं से निपटने में, जो हमारे चित्त को व्याकुल करते हैं, हमें यथार्थ के विषय में अपनी भ्रांतियों पर काबू पाने की आवश्यकता है।
"बुद्ध सत्वों के अकुशल कर्मों को जल से धोते नहीं और न ही वे उनके दुःखों को अपने हाथों से हटाते हैं; उनकी कृपा धर्मता और मुक्ति के मार्ग का प्रकटीकरण है।
अज्ञान मात्र कुछ न जानना है अथवा यथार्थ की मिथ्या दृष्टि है। बुद्ध हमें इसी मिथ्या दृष्टि को सही करने में हमारी सहायता करते हैं। यथार्थ के प्रति हमारी व्यापक भ्रांति है कि वस्तुओं की स्वभाव सत्ता होती है। हम एक ऐसे आत्मा के विषय में सोचने लगते हैं जो कि हमारे शरीर और चित्त का नियंत्रक है। मात्र काय तथा चित्त के आधार पर ज्ञापित आत्मा के परे इस प्रकार की स्वभाव सत्ता रखने वाली किसी भी आत्मा का अस्तित्व नहीं है। बुद्ध जिसका प्रकटीकरण करते हैं वह धर्मता है जिससे हम मुक्त हो जाएँगे।
"जब चीजें सुचारू रूप से चल रही हों तो हम आसानी से बुद्ध, धर्म और संघ, का स्मरण करते हैं पर जब वस्तुएँ बिगड़ जाएँ तो हम उन्हें विस्मरित कर देते हैं। मैंने एक कहानी सुनी और करमापा रिनपोछे को बताई जो कि खम के एक घुमंतू की है जो ल्हासा में अपने याक को लेकर आया। जब उसे एक नदी पार करनी पड़ी तो उसने करमापा के आशीर्वाद का यह कहते हुए 'करमापा खेन-नो' आह्वान किया, लेकिन पानी में एक याक को खोने के बाद उसने अपनी धुन बदल दी और कहने लगा 'करमापा नरक में जाओ'।
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परम पावन ने टिप्पणी की कि यथार्थ के प्रति हमारी भ्रांति के परिणामस्वरूप अकुशल कार्य और नकारात्मक भावनाएँ जन्म लेती हैं। परन्तु यदि दुःख से बाहर निकलने का कोई मार्ग न होता तो बुद्ध उस संबंध में न बोलते। नैरात्म्य को समझने वाली प्रज्ञा एक ऐसा कारक था जिसने अज्ञानता का अंत किया और एक बार वह स्पष्ट हो जाए तो हम देखते हैं कि बुद्ध की देशनाएँ तर्क पर आधारित हैं। परम पावन ने खम की एक और कहानी बताई कि कोई किसी विहार के विहाराध्यक्ष से मिलने गया और उन्हें अनुपस्थित पाया और उसे बताया गया कि वह वयोवृद्धों को भयभीत करने गांव गया हुआ है। परम पावन ने बल दिया कि धर्म शिक्षण में भय के लिए कोई स्थान नहीं है।
"इससे कहीं अधिक प्रभावी ज्ञान और समझ है और यही कारण है कि मैं मित्रों को छोटे मंदिरों को भी पुस्तकालयों और शिक्षा स्थानों में बदलने के लिए प्रोत्साहित कर रहा हूँ। कांग्यूर और तेंग्यूर के ३०० से अधिक संख्या में ग्रंथों का शेल्फों में रखे जाने और श्रद्धा की वस्तुओं के रूप में पूजे जाने के स्थान पर अध्ययन किया जाना चाहिए।
"युक्तिषष्टिक कारिका' में नागार्जुन कहते हैं, मैं पुण्य तथा ज्ञान को संचित कर लूँ जो बुद्ध के दो काय को जन्म देते हैं। इन दोनों के संचय में मात्र पुण्य का संभार नहीं अपितु प्रज्ञा भी निहित है। सत्यद्वय की समझ से ही हम मुक्ति मार्ग में प्रवेश करते हैं। जब हम तंत्र में प्रवेश करते हैं तो इसमें शिष्य के चित्त को चित्त की प्रभास्वरता से परिचय कराना भी निहित हो सकता है।
"मैंने यह दीक्षा ठुलशिक रिनपोछे से प्राप्त की, जो वास्तविक अर्थों में एक गैर सांप्रदायिक दृष्टिकोण अपनाने के अतिरिक्त वास्तव में एक महान साधक थे। इस विद्याधर मंत्र चक्र का प्रकटीकरण विद्याधर गोदेमछेन द्वारा किया गया, जो जंग-तेर (उत्तरी निधि) परम्परा के अग्रदूत थे जिसको बाद में दोर्जे डग महाविहार ने बनाए रखा और जिसमें पांचवें दलाई लामा ने भाग लिया था।"
अभिषेक के प्राथमिक के रूप में, परम पावन ने एक समारोहीय बोधिचित्तोत्पाद में सभा का नेतृत्व किया। अभिषेक के उस बिन्दु पर जहाँ मंडल में एक फूल डालने की प्रथा है, परम पावन ने निर्वासन में तिब्बती संसद के अध्यक्ष, जो एक ञिङमा प्रतिनिधि भी हैं, खेनपो सोनम तेनफेल को श्रोताओं में से भिक्षुओं का प्रतिनिधित्व करने के लिए बुलाया। इसके बाद उन्होंने सिक्योंग डॉ लोबसंग सांगे को उपासक लोगों का प्रतिनिधित्व करने के लिए आमंत्रित किया।
परम पावन के काफिले की गति धीमी की गई जब वह विहार लौटते हुए झील के किनारे गए, क्योंकि बड़ी संख्या में लोग उनकी झलक पाने के लिए मार्ग पर पंक्तिबद्ध थे। व्हीलचेयर में उनका अभिनन्दन करने के लिए प्रतीक्षा कर रहे लोगों को अपनी गाड़ी से आशीर्वाद देने के लिए उन्होंने कई बार अपनी गाड़ी रोकी।
कल प्रातः तड़के ही वह वापस धर्मशाला लौटने के लिए गाड़ी से रवाना हो जाएँगे।