स्ट्रासबर्ग, फ्रांस, १८ सितंबर २०१६ - आज भोर में जब परम पावन दलाई लामा ज़ेनिथ स्ट्रासबर्ग जाने के लिए अपने होटल से रवाना हुए तो अंधेरा था और बारिश हो रही थी। रास्ते में पौ फटी और जब उनका आगमन हुआ तो उनका सौहार्दपूर्ण स्वागत किया गया। वे तत्काल ही मंडल मंडप शामियाने के समक्ष बैठ कर अभिषेक की तैयारियों में संलग्न हो गए जो वे प्रदान करने वाले थे। लगभग एक घंटे के बाद उन्होंने श्रोताओं को संबोधित किया।
" जैसा मैं कल कह रहा था, बौद्ध शिक्षाएँ एक सामान्य संरचना के अनुकूल देखी जा सकती हैं अथवा एक विशेष लक्ष्य के अनुरूप बनाई जा सकती हैं। आज का प्रवचन दूसरी श्रेणी का है। इस अभिषेक का संबध महान करुणाशील अवलोकितेश्वर से है। ञिङ्मा परम्परा दूर, निकट तथा गहन दूरदर्शी शिक्षाओं के विषय की बात करती है; इसका संबंध दूरदर्शीं शिक्षाओं के अंतर्गत आता है। यह महान ५वें दलाई लामा की ‘शुद्धाभास’ के अंतर्गत आता है।
"प्रथम दलाई लामा ने टाशी ल्हुन्पो की स्थापना की, दूसरे, जो गैर सांप्रदायिक पीली टोपी के रूप में जाने जाते हैं, डेपुंग चले गए जो दलाई लामाओं का निवास बन गया। तीसरे और चौथे वहाँ रहते थे। ५वें दलाई लामा का सक्यों के 'मार्ग और फल’ परम्परा के साथ एक विशेष संबंध था और उन्होंने एक ग्रंथ की रचना की जिसका उपयोग वे अभी भी करते हैं। ६वें और ७वें दलाई लामा महान आचार्य थे और ८वें को असाधारण अनुभव हुए। १३वें दलाई लामा का तेर्तोन सोज्ञल लेरब लिंगपा के साथ संबंध था, जिनके वज्रकिलय अनुष्ठान का आज भी नमज्ञल विहार द्वारा पालन किया जाता है।
"दुनियावी और गैर-सांप्रदायिक अभ्यास के विषय में, सबसे प्रथम तो मैने अपने दोलज्ञल (शुगदेन) संबंध के कारण इसका पालन नहीं किया। ५वें दलाई लामा ने दोलज्ञल को एक 'अविश्वसनीय आत्मा' माना, जो सिद्धांतों और सत्वों को त्रुटिपूर्ण प्रार्थनाओं के कारण क्षति पहुँचाती है। एक बार जब मैंने दोलज्ञल के साथ अपने सारे संबंध विच्छेद कर लिए तो मैं गुह्य दृष्टि सहित ञिङ्मा की व्याख्याओं को दिलगो खेनचे रिनपोछे से प्राप्त करने में सक्षम हुआ जो बहुत ही सहायक थे। गुह्यसमाज की निष्पन्न क्रम को समझने के लिए मैंने चित्त की प्रकृति को समझने के मार्गदर्शन को बहुत सहायक पाया।
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"जब मैं बालक था तो मैंने ‘शुद्धाभास’ का सम्पूर्ण संचरण तगडग रिनपोछे से प्राप्त किया था। मैंने उस समय बहुत निकटता से ध्यान नहीं किया था, लेकिन मुझे स्मरण हैं कि मैंने कुछ स्वप्न देखे थे। निर्वासन में मैं शिक्षाओं के क्रम को लेकर एकांतवास करने में सक्षम हो सका।
"मैंने सुना है कि कुछ लोगों ने रिपोर्ट किया है कि मेरा कथना है कि किसी को भी दोलज्ञेल का अभ्यास नहीं करना चाहिए। मेरा ऐसा कहना नहीं है। इस अभ्यास में समस्याएँ हैं, जो मुझे अपने अनुभव से पता है और यही कारण है कि मैं लोगों को यह सुझाता हूँ कि वे यह न करें। पर यदि कोई इसे करना चाहता है तो वे कर सकते हैं। गदेन व सेरा महाविहार के पास के विहारों में आज भिक्षु हैं जो विशेष रूप से इस अभ्यास का पालन कर रहे हैं।
"जो मैं कहता हूँ वह यह है कि दोलज्ञल ने ५वें दलाई लामा के साथ अपना बंधन तोड़ दिया और तब से विवादास्पद रहा है। मैंने लोगों को इस अभ्यास को न करने हेतु प्रोत्साहित किया है, पर मैंने यह नहीं कहा कि कोई भी इसे नहीं कर सकता।"
परम पावन ने ञिङ्मा परम्परा में प्रस्तुत नौ यानों या वाहनों को समझाया। इनमें तीन बाह्य यान शामिल हैं, जो श्रावकों, प्रत्येक बुद्धों और बोधिसत्वों के अभ्यास से संबंधित हैं; तीन बाह्य तंत्र, क्रिया, चर्या और योग, साथ ही तीन आंतरिक तंत्र, महायोग अनुय़ोग और और अतियोग। शून्यता की समझ सभी नौ यानों से संबंधित है, लेकिन कुनख्येन जमयंग शेपा ने कहा कि जहाँ सूत्र और तंत्र दोनों शून्यता की शिक्षा देते हैं ,अंतर तंत्र के उच्चतर व्यक्तिपरक चित्त में है। परम पावन ने कहा वर्तमान अभिषेक महायोग श्रेणी में और उसमें भी पद्म कुल के अंतर्गत आता है।
यह बताते हुए कि तांत्रिक अभ्यास में एक वज्र और घंटे के उपयोग की आवश्यकता है, परम पावन ने कहा कि वज्र उपाय का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि घंटा प्रज्ञा का प्रतिनिधित्व करता है। उच्चतर तंत्रों में वज्र स्पष्टतया प्रभास्वरता के सूक्ष्म चित्त, आनंद के चित्त का प्रतीक है और घंटा शून्यता को जानने वाली प्रज्ञा का प्रतीक है। महत्वपूर्ण बात यह नहीं है कि वज्र और घंटा किस वस्तु के बने होते हैं, पर यह है कि वे किस का प्रतिनिधित्व करते हैं। उपाय तथा प्रज्ञा प्रबुद्धता के कारणों को संदर्भित करते हैं। डमरू, आंतरिक अग्नि के प्रज्ज्वलित होने का प्रतीक है।
परम पावन ने अभिषेक प्रदान करने की प्रक्रिया प्रारंभ की, जिसमें उपासक संवर देना, बोधिचित्तोत्पाद और बोधिसत्व संवर प्रदान करना भी शामिल था। अंत में, उन्होंने प्रत्येक से जिन्होंने अभिषेक लिया था, अभ्यास करने का आग्रह किया।
मध्याह्न भोजनोपरांत अपने सार्वजनिक व्याख्यान में, परम पावन ने दोहराया कि वे जिनसे भी मिलते हैं, वे उन्हें ऐसे मानव के रूप में देखते हैं जो शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से उन्हीं के समान है। उन्होंने कहा कि जीवन का उद्देश्य सुखी होना है और आशा हमारे अस्तित्व का आधार है। उन्होंने १९७३ में यूरोप की अपनी प्रथम यात्रा और उनकी यह आशा कि विकसित देशों में लोग और सुखी होंगे का स्मरण किया। इसके बजाय कई तनाव और शंकाकुल थे। संयुक्त राज्य अमेरिका में, वे अत्यंत धनवान लोगों से मिले, जो अपने आप में दुखी थे। उन्होंने निष्कर्ष निकाला भौतिक विकास अपने आप में शांति नहीं लाता।
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उन्होंने कहा कि "हमारी मूल प्रकृति करुणाशील होने और सभी ७ अरब मुनष्यों में अधिक करुणाशील हो सकने की क्षमता होने के बावजूद, शिक्षा व्यवस्था भौतिक लक्ष्यों की ओर उन्मुख है। इसका आंतरिक मूल्यों के साथ संबंध नहीं है, और न ही यह प्रकट करती है कि किस तरह चित्त की शांति प्राप्त की जा सकती है। यद्यपि धर्म पारम्परिक रूप से इन बातों को संबोधित करता है, पर आज एक अरब मनुष्य, इसमें कोई रुचि नहीं लेते, जबकि जो लोग स्वयं को धार्मिक कहते हैं वास्तव में इसे गंभीरता से नहीं लेते। शिक्षाविदों, वैज्ञानिकों और अन्य मित्रों जिनसे मैंने बात की है वे इस बात से सहमत हैं कि हमें सामान्य ज्ञान, सामान्य अनुभव और वैज्ञानिक निष्कर्षों के आधार पर सार्वभौमिक मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए एक अलग दृष्टिकोण लेने की आवश्यकता है।"
परम पावन ने मानव सुख और धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए अपनी प्रतिबद्धताओं का उल्लेख किया। उन्होंने आगे कहा एक तिब्बती के रूप में उन्होंने २०११ में अपनी राजनीतिक भूमिका से संन्यास ले लिया है पर वे तिब्बती संस्कृति और भाषा और तिब्बत के नाजुक प्राकृतिक पर्यावरण के संरक्षण के लिए काम करने के लिए उत्साहपूर्ण रूप से चिंतित रहते हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि जो कोई भी तिब्बत जा सकते हैं वे स्वयं जाकर देखें कि वहाँ क्या हो रहा है और जिन चीनियों से मिले उन्हें सूचित करें।
श्रोताओं में से एक ने आतंकवादी के एक के बाद एक हमलों से स्तम्भित उस समाज के विश्वास को बहाल करने के लिए उनकी सलाह मांगी। उन्होंने सुझाव दिया कि वे उन विशेष घटनाओं पर इतना नहीं सोचें, पर किंचित पीछे हटकर उन्हें एक व्यापक संदर्भ में देखें। जब विनम्रता की भूमिका पर एक और प्रश्न उनके समक्ष रखा गया तो उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि यह एक ऐसा गुण है जिसे कायरता पर नहीं, अपितु शक्ति और विश्वास पर स्थापित होना चाहिए।
उनके पशुओं के प्रति व्यवहार के बारे में विचार पूछे जाने पर परम पावन ने कहा कि निस्सन्देह बौद्ध सभी सत्वों के कल्याण के लिए प्रार्थना करते हैं क्योंकि वे सभी चाहते हैं और एक सुखी जीवन के अधिकारी हैं। उन्होंने कहा कि जब दक्षिण भारत में तिब्बती कृषक आवास स्थापित किए गए थे तो वे ऐसे उपायों से बचे जिसमें केवल वध का स्थान था। उन्होंने सूचित किया कि तिब्बत में १५ वर्ष साल की उम्र में उन्होंने राजकीय भोजों में मांस परोसना बंद कर दिया था। निर्वासन में, महाविहारों के मुख्य रसोईघर अब केवल शाकाहारी भोजन तैयार करते हैं।
"परन्तु" उन्होंने स्वीकार किया, "यद्यपि मैं अन्य लोगों को शाकाहारी मार्ग का अनुसरण करने के लिए प्रोत्साहित करता हूँ, पर मैं स्वयं शाकाहारी नहीं हूँ। यह एक विरोधाभास है। कारण यह है कि ६० के दशक में मैं २० महीनों के लिए सख्त शाकाहारी था जब तक मैं हैपेटाइटिस से बीमार नहीं पड़ गया। परिणामस्वरूप मेरे डॉक्टरों ने मुझे मिश्रित आहार लेने की सलाह दी जिसकी मेरे शरीर को आदत थी।"
एक और अधिक शांतिपूर्ण दुनिया बनाने के संबंध में, परम पावन ने घोषणा की कि शिक्षा महत्वपूर्ण कारक है।
"शांति," उन्होंने कहा, "पैसे या सत्ता पर निर्भर नहीं करती; यहाँ तक कि कम हथियार तैनात कर सकते हैं। शांति अनिवार्य रूप से हमारे सौहार्दता के विकास पर निर्भर करता है।"
जब श्रोताओं ने निरंतर तालियों की गड़गड़ाहट के साथ अपना समर्थन और अनुमोदन व्यक्त किया तो उन्होंने उनसे अपील किया कि वे स्वयं से पूछें कि जो कुछ उन्होंने सुना क्या वह उन्हें उचित लग रहा था। और यदि ऐसा था तो उन्होंने सुझाया कि वे इस पर कार्य करें और दूसरों के साथ साझा करें। अगर ऐसा नहीं था, तो उन्होंने कहा कि वे उसे भूल जाने के लिए स्वतंत्र हैं।
कल परम पावन पोलैंड में व्रोकला की यात्रा करेंगे।