मुंडगोड, कर्नाटक, भारत - कल सुबह, परम पावन दलाई लामा ने बेंगलुरू से हुबली की एक छोटी उड़ान ली। उनके वायुयान से बाहर कदम रखते ही स्थानीय उपायुक्त उनकी अगुवानी के लिए उपस्थित थे। आगमन कक्ष में डेपुंग ठिपा और लिंग रिनपोछे ने उनका अभिनन्दन किया जबकि लोसेललिंग, गोमंग तथा रातो के उपाध्याय हवाई अड्डे के प्रवेश द्वार पर प्रतीक्षा कर रहे थे। परम पावन गाडी से गदेन महाविहार के आगे शिविर क्रमांक १ से होते हुए मुंडगोड आवास शिविर गए। मार्ग पर युवा और वृद्ध, विहार वासी और साधारण लोग उनके स्वागतार्थ पंक्तिबद्ध होकर खड़े थे। डेपुंग लाची आगमन पर उन्होंने छह भिक्षु, जो व्हीलचेयर पर उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे, से बात करने का समय निकाला। विहार में प्रवेश करने पर उन्हें औपचारिक रूप से एक मंडल तथा प्रबुद्धता के काय वाक् व चित्त के तीन प्रतीक प्रस्तुत किए गए।
आज प्रातः गहन, घरघराहट युक्त श्रृंग ध्वनि ने एक प्रतिष्ठित अतिथि की उपस्थिति का आभास दिया। दिवस के कार्यक्रमों को प्रारंभ करने से पूर्व परम पावन ने डेपुंग लाची विहार के अपने आवास में नव प्रतिस्थापित १०३वें गदेन ठिपा से भेंट की।
एक बार तिब्बती पुनः मार्ग पर कतारबद्ध थे जब परम पावन की गाड़ियों का काफिला डेपुंग देयंग विहार की ओर एक राजकीय गति से रवाना हुआ। नूतन मंदिर में प्रवेश कर परम पावन ने दोनों ओर अपने पुराने मित्रों की ओर लक्ष्य किया और उनके बीच अभिनन्दन का आदान-प्रदान हुआ। मंदिर के शीर्ष स्थान पर उन्होंने विभिन्न मूर्तियों के समक्ष अपनी श्रद्धा व्यक्त की, रक्षक गृह में लघु समय लगाया और सिंहासन पर अपना आसन ग्रहण किया। गदेन ठिसूर रिज़ोंग रिनपोछे, लिंग रिनपोछे, कुंदेलिंग रिनपोछे और देयंग रिनपोछे की दृष्टि के समक्ष, नेछुंग कुतेन (मानवीय माध्यम) थुबतेन ङोडुब ने एक मंडल का समर्पण तथा प्रबुद्ध काय, वाक् और चित्त के तीन प्रतीक प्रस्तुत किए।
नेछुंग कुतेन राज्य भविष्यवाणी कर्ता का माध्यम है, इस विहार की पुनर्स्थापना का प्रमुख कर्ता रहा है। लगभग १५ वर्ष पूर्व उन्हें एक ऐसे विहार के स्वप्न स्पष्ट और बार बार आए जिन्हें वे पहचान नहीं पा रहे थे, जिससे वे आश्चर्यचकित हुए क्योंकि नेछुंग विहार की पुनर्स्थापना पहले ही हो चुकी थी। एक अवसर पर, तन्द्रावस्था के उपरांत, परम पावन ने उससे उसके स्वप्नों के विषय में पूछा और उन्होंने समझाया। परम पावन ने मात्र यही टिप्पणी की, कि यह रोचक था। जब उन्होंने नेछुंग विहार के वरिष्ठ भिक्षुओं को बताया कि उसने क्या स्वप्न देखा था तो उनमें से एक ने सुझाव दिया कि विषयाधीन विहार देयंग विहार था।
इसके पूर्व परम पावन ने स्पष्ट रूप से निर्देश दिए थे कि पंचम दलाई लामा की प्रज्ञा पारमिता और माध्यमका पर भाष्यों को पुनः छापा जाए। उन्होंने डेपुंग लाची को पुस्तकें दी थीं जहाँ वे बिना पढ़े पड़ी रहीं क्योंकि लोसेललिंग और गोमांग पंचेन सोनम डगपा और जमयंग शेपा की रचानाओं का अध्ययन करते हैं। इसलिए, जब नेछुंग कुतेन ने उन्हें बताया कि उसके स्वप्न निर्वासन में डेपुंग देयांग विहार की पुन: स्थापना का सूत्रपात करते जान पड़ते हैं, वे खुश थे क्योंकि उस विहार की विशिष्ठ विशेषताओं में से एक था कि इनके भिक्षु पंचम दलाई लामा के इन कार्यों का अध्ययन करते थे। साथ ही पंचम के समय से ही, युवा दलाई लामाओं, जिनमें परम पावन भी शामिल थे, ने पहले डेपुंग देयंग में प्रवेश लिया और अपना प्रशिक्षण वहाँ प्रारंभ किया।
रृंग वाद्य, झांझ और ढोल के निपुण वादन के साथ डेपुंग महाविहार के संस्थापक, 'जमयंग छोजे की प्रार्थना', 'पंचम दलाई लामा की स्तुति' और 'पद्मसंभव की सप्त पंक्ति स्तुति' के सस्वर पाठ, चाय और मीठे चावल के वितरण के पश्चात परम पावन ने सभा को संबोधित किया।
"मैं यहाँ जब पहले आया था तो विहार निर्माणाधीन था और अब यह पूरा हो गया है। यहाँ आते हुए रास्ते में मैं सोच रहा था कि यहाँ कितने भिक्षु हैं क्योंकि यह उन संस्थानों से एक था जहाँ से मेरे शास्त्रार्थ सहायकों का चयन किया जाता था। उसके परिणामस्वरूप जब मैं प्रज्ञा पारमिता तथा माध्यमक का अध्ययन कर रहा था तो मैंने इन विषयों पर पंचम दलाई लामा द्वारा लिखी पुस्तकें पढ़ी थीं।
"मैंने नमज्ञल और ग्यूमे महाविहार जैसे संस्थानों, जो आनुष्ठानिक कार्यकलापों में स्वयं को लगाते थे, के भिक्षुओं को अध्ययन के लिए अवसर प्रदान करने हेतु प्रोत्साहित किया है। तो, यहाँ भी देयंग में नेछुंग - पंच-उद्गम राजा रक्षक जिसके भिक्षुओं आदी हैं, के अनुष्ठानों के अतिरिक्त, मैंने पंचम दलाई लामा द्वारा स्थापित पाठ्यक्रम के साथ ही तृतीय दलाई लामा के नीतार्थ और नेयार्थ ग्रंथों पर लेखन, जो चोंखापा के 'सद्व्याख्या सार' और गेदुन डुब के तर्क और ज्ञान-मीमांसा पर लेखन के श्रमसाध्य अध्ययन को प्रोत्साहित कर रहा हूँ। जैसा कहा जाता है,' सत्य द्वय की नींव रखने पर, उपाय तथा प्रज्ञा के दो मार्ग का अनुपालन कर हम रूप और धर्म के दो काय को प्राप्त कर सकते हैं।"
देयंग विहार से परम पावन के काफिले ने तनिक दूरी पर रातो विहार की ओर राह बनाई। अपनी गाड़ी से बाहर कदम रखते ही उन्होंने उपाध्याय द्वारा प्रदत्त पारम्परिक स्वागत स्वीकार किया और जैसा कि अब उनकी आदत बन चुकी है, प्यार से उनके नाक की छोर की चुटकी ली। उपाध्याय और भिक्षुओं ने हाथ में एक समारोहीय पीला रेशमी छत्र धारण करते हुए परम पावन का नूतन शास्त्रार्थ प्रांगण के नव सिंहासन-मंडप में अनुरक्षण किया।
सर्वप्रथम विहार के वरिष्ठ अवतिरत लामा रातो क्योंगला रिनपोछे को आगे आकर उनके साथ बैठने के लिए आह्वान कर परम पावन ने अवसर का उद्घाटन करने के लिए दीप प्रज्ज्वलित किया। इसके उपरांत विहार के नए संविधान का औपचारिक रूप से खोला और विमोचित किया जिसकी भोट भाषा में प्रतियाँ वहाँ उपस्थित लोगों को दी गईं।
एक संक्षिप्त भाषण में, जो उपाध्याय ने भोट भाषा और अंग्रेजी में पढ़ा, उन्होंने परम पावन की करुणा के साकार रूप और सत्वों का मार्ग दर्शक होने के लिए उनकी प्रशंसा की। उन्होंने भिक्षुओं की ओर से उन्हें उनका संरक्षक होने के लिए आभार व्यक्त किया, यह स्मरण करते हुए कि रातो विहार एक तिब्बती सरकारी विहार है। तिब्बत में यह एक महत्वपूर्ण विहार था जिसके तत्वावधान में प्रतिवर्ष, हर वर्ष तीन महा स्तंभों के विद्वान जंग गुन छो अथवा शीतकालीन शास्त्रार्थ सत्र में तर्क का अध्ययन व शास्त्रार्थ करते थे।
उपाध्याय ने यह भी टिप्पणी की कि मुट्ठी भर रातो भिक्षु जो निर्वासन में आए थे वे अपने महाविहार की पुनर्स्थापना के लिए बहुत अल्प संख्या में थे जब तक कि परम पावन ने १९८८ में छुवर रिनपोछे को इसके उपाध्याय के रूप में नियुक्त नहीं किया। यह लगातार बढ़ा। अब यहाँ पूर्वी और पश्चिमी तिब्बत से १००, साथ ही नेपाल, भूटान, ताइवान, अमेरिका और भारत के कई भागों से भिक्षु हैं।
उन्होंने आगे कहा कि डेपुंग लोसेललिंग विहार की दया के कारण, रातो भिक्षु विख्यात लोसेललिंग विद्वानों के साथ अध्ययन करने और लोसेललिंग शास्त्रार्थ प्रांगण में शास्त्रार्थ करने में सक्षम हुए हैं जिस तरह की परम्परा तिब्बत में रही थी। परिणामस्वरूप अब तक निर्वासन में १४ रातो भिक्षुओं ने ल्हरम्पा गेशे के रूप में योग्यता प्राप्त की है। उपाध्याय ने परम पावन की दीर्घायु और सभी सत्वों के कल्याण के लिए उनकी प्रार्थना की सफलता की प्रार्थना की।
"यह नया संविधान जिसका उद्घाटन करने का अनुरोध मुझसे उपाध्याय ने किया है, एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है," परम पावन ने उत्तर देना प्रारंभ किया। "और ऐसा ही इस शास्त्रार्थ प्रागंण का उद्घाटन है। नालंदा परम्परा जिसे हम ने तिब्बत में बनाए रखा प्रबुद्धता के मार्ग को कारण और तर्क के प्रयोग से प्रकट करती है, मात्र श्रद्धा के कारण स्वीकार करना नहीं। अन्य बौद्ध देशों में, जैसा कि वे जो पालि परम्परा का पालन करते हैं, जो विनय का पालन करने में ईमानदार हैं, और चीन जो संस्कृत परम्परा का पालन करता है, इस प्रकार के श्रमसाध्य अध्ययन की कोई परंपरा नहीं है। हम तिब्बती दार्शनिक ग्रंथों का अध्ययन करने उनके अर्थ को काम में लाने और अपने चित्त में परिवर्तन लाने में सक्षम हुए हैं।
"सभी धार्मिक परम्पराएँ धैर्य, सहनशीलता, संतोष इत्यादि के विकास पर सलाह देती हैं, पर केवल बुद्ध ने अपने अनुयायियों से उन्होंने जो कहा उसे केवल विश्वास के आधार पर स्वीकार न कर तर्क के आधार पर जांचने का आग्रह किया। परन्तु पालि परम्परा और चीनी बौद्ध धर्म की परम्पराएँ शास्त्रों को आधिकारिक रूप मानती हैं। नालंदा के एक आचार्य चन्द्रकीर्ति ने इस दृष्टिकोण को चुनौती दी।"
परम पावन दलाई लामा ने एक अच्छे शिष्य होने के लिए रातो उपाध्याय की प्रशंसा की, जो अपने शिक्षक पर अच्छी तरह से निर्भर थे और स्वीकार किया कि उन्हें नियुक्त करने, एक अमरीकी उपाध्याय नूतन था। परन्तु उन्होंने एक पूर्व उदाहरण की ओर संकेत किया कि हालांकि पुराने तिब्बत, जहां मंगोलियाई विद्वान नियमित रूप से विहारों में उत्तरदायी पदों को प्राप्त करते थे।
"आज के विश्व में, चूंकि सच्चे सुख के लिए भौतिक विकास पर्याप्त नहीं है, अधिक से अधिक लोग वैज्ञानिक उपायों से चित्त तथा भावनाओं के कार्यकलापों पर ध्यान देने लगे हैं। इन विषयों के संदर्भ में नालंदा परम्परा को जो कहना है वह हम सहायक रूप में मानवता के लिए योगदान दे सकते हैं। परिणामस्वरूप मैंने रातो उपाध्याय को एक अतिरिक्त उत्तरदायित्व सौंपा है, अपने शिक्षा और अनुभव के प्रकाश में जांचने की कि इन क्षेत्रों के शैक्षिक रूप से अध्ययन में किस हद तक रुचि है।
"हम बौद्ध परंपराओं में निहित ज्ञान को केवल विश्वास पर निर्भर होकर जीवित न रखेंगे, पर सावधान और गहन अध्ययन से हम कर सकते हैं। इसको आगे ले जाने का उत्तरदायित्व आप, जो अभी युवा हैं, के कंधों पर आएगा।"
तत्पश्चात एक संक्षिप्त परन्तु कुशल शास्त्रार्थ का प्रदर्शन हुआ, जिसमें तर्क, विहारीय अनुशासन और मध्यम मार्ग परम्परा जैसे विषय रखे गए।
विहार के नए संविधान के विमोचन और शास्त्रार्थ प्रांगण के उद्घाटन के लिए परम पावन के प्रति तथा इस समारोह के अवसर पर सम्मिलित होने के लिए सभी उपाध्यायों, पूर्व उपाध्यायों और अन्य अतिथियों के प्रति कृतज्ञता अभिव्यक्त की गई। अंत में, विहार ने सभी अतिथियों को एक मनोरम मध्याह्न के भोजन का आनंद लेने के लिए आमंत्रित किया।