लंदन, इंग्लैंड - १९ सितम्बर २०१५- आज प्रातः परम पावन दलाई लामा मिलबैंक मिलेनियम घाट से एक नौका पर टेट ब्रिटेन के लिए रवाना हुए। उनका गंतव्य लगभग १० मील की दूरी पर नदी का स्रोत ०२ एरिना था। धूसर आकाश के नीचे यात्रा करते हुए वे लंदन के कई स्मारकों से होते हुए गुज़रे, संसद और लैम्बेथ पैलेस से लेकर लंदन आई और शार्ड और अंत में ०२ एरिना। वे ग्रीनविच यॉट क्लब में उतरे जहाँ से ०२ एक छोटी सी ड्राइव के बाद था।
परम पावन की पहली बैठक ब्रिटेन और उत्तरी यूरोप के अन्य देशों के ७०० तिब्बतियों के साथ थी। ०२ इंडिगो थिएटर में प्रवेश करते हुए उनके समक्ष मानो सफेद रेशम स्कार्फ का एक समुद्र प्रस्तुत किया गया। वे हँसे और अपना आसन ग्रहण करने से पूर्व मंच से पुराने मित्रों का अभिनन्दन किया जिसके पश्चात छेरिंग पासंग ने रिपोर्ट पढ़ते हुए कहाः
"हम तिब्बतियों का एक विशेष कार्मिक संबंध है कि हमने आपके नेतृत्व में तिब्बतियों के रूप में जन्म लिया है। हम आपके कारण एकजुट हैं। हम तिब्बती संघर्ष में योगदान के लिए अपना पूरा प्रयास कर रहे हैं।"
रिपोर्ट ने स्पष्ट किया कि आज ब्रिटेन में ७०० से अधिक तिब्बती हैं और उनमें से एक तिहाई कम से कम १८ वर्ष के हैं। इसने ब्रिटेन तिब्बती समुदाय द्वारा तिब्बतियों को शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति आदि के संदर्भ में दिए जा रहे धन और समर्थन को रेखांकित किया। परम पावन ने उत्तर दिया:
"हमारे इतिहास के इस कठिन समय के दौरान मैं बहुत अधिक कुछ करने में सक्षम नहीं हो पाया हूँ। पर मुझसे जो बन पड़ा, वह मैंने किया है और आपने मुझ पर अपना विश्वास रखा है।
"पुरातत्विक निष्कर्षों के अनुसार तिब्बती सभ्यता प्राचीन है। तिब्बती सम्राट सोंङचेन गम्पो की एक चीनी पत्नी और एक नेपाली पत्नी थी। वे दोनों ने तिब्बत में बुद्ध की प्रतिमाएँ लेकर आईं थीं। ८वीं सदी में ठिसोंङ देचेन, चीन के साथ मौजूद घनिष्ठ संबंधों के बावजूद, तिब्बत में बौद्ध धर्म लाने के लिए विशेष रूप से स्रोत के रूप में भारत की ओर अभिमुख हुए। उन्होंने नालंदा के शीर्ष विद्वान शांतरक्षित, जो एक दार्शनिक और तर्कशास्त्री थे, को शिक्षा देने के लिए आमंत्रित किया। शांतरक्षित ने तिब्बती भाषा में बौद्ध साहित्य के अनुवाद को प्रोत्साहित किया। कहा जाता है कि उन्होंने स्वयं तिब्बती सीखना प्रारंभ किया। समये महाविहार की स्थापना दो अलग विभागों विनय और अनुवाद इत्यादि को लेकर प्रतिस्थापित हुई।
बौद्ध शिक्षा की तिब्बती प्रणाली के बारे में उन्होंने कहा:
"हमें अपने प्रयासों को बनाए रखने की आवश्यकता है, विशेष रूप से भिक्षुओं और भिक्षुणियों को। केवल ‘महान पथ क्रम (लमरिम)' का अध्ययन पर्याप्त नहीं है। 'अभिसमयालंकार’ कहता है कि त्रिरत्न का अध्ययन चार आर्य सत्य और सत्य द्वय के संदर्भ में करो।
"हमें बिना अहंकार के अपनी परम्पराओं पर गर्व होना चाहिए। चीनी साम्यवादी वर्षों से तिब्बतियों की हत्या तथा उन्हें पीड़ित कर रहे हैं, पर हमारी भावना अभी भी प्रबल है। हम बलशाली हैं। उन्होंने इसकी आशा नहीं की थी। हमें इसे बनाए रखने होगा, विशेषकर शिक्षा के हमारे मानकों के संबंध में।"
एक अन्य कक्ष में तिब्बत के मित्र और समर्थकों के साथ भेंट करते हुए परम पावन ने तिब्बत के पर्यावरण के लिए अपनी चिंता व्यक्त करते हुए प्रारंभ किया। उन्होंने उल्लेख किया कि ऊँचाई पर नाज़ुक पर्यावरण के कारण जो भी नुकसान होगा उससे उबरने में किसी अन्य स्थान की तुलना में अधिक समय लगेगा। उन्होंने चीनी पर्यावरण वैज्ञानिक का उल्लेख किया जिनके अनुसार वैश्विक जलवायु के लिए तिब्बती पठार उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना कि उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव। उन्होंने तिब्बत को तीसरा ध्रुव कहा। परम पावन ने टिप्पणी की कि एक अनुमान के अनुसार एशिया भर में १ अरब लोग तिब्बत से निकलती नदियों के पानी पर निर्भर हैं।
उन्होंने कहा कि "बौद्ध धर्म तिब्बत में आया और हमारी संस्कृति को शांति तथा अहिंसा की संस्कृति में परिवर्तित कर दिया। यह आज के विश्व में सही अर्थों में उपयुक्त है। चीन को भी इसी तरह की संस्कृति की आवश्यकता है। यह पारंपरिक रूप से एक बौद्ध देश है और कहा जाता है कि अब वहाँ अब ४०० अरब चीनी बौद्ध हैं जिनमें से कई तिब्बती बौद्ध धर्म में रुचि रखते हैं। उनमें से कई जिनसे मैं मिलता हूँ मुझे चीन आने के लिए आमंत्रित करते हैं।"
परम पावन ने कहा कि तिब्बत भौतिक रूप से पिछड़ा है और उसे विकास की आवश्यकता है। उन्होंने कई तिब्बतियों की संख्या का उदाहरण दिया जो पश्चिम की ओर अपना गंतव्य ढूँढते हैं, जिनमें से कई गैर कानूनी रूप से करते हैं। वे भौतिक विकास ढूँढते हैं आध्यात्मिक विकास नहीं। उन्होंने स्पष्ट किया कि तिब्बत के लिए चीन के साथ रहना परस्पर लाभकारी हो सकता है। उन्होंने स्वीकार किया कि युवा तिब्बती और अन्य लोग हैं जिनका मानना है कि उन्हें पूर्ण स्वतंत्रता के लिए लड़ना चाहिए और यह उनका अधिकार है पर उन्हें यथार्थवादी भी होना होगा।
ब्रिटेन और तिब्बत के बीच घनिष्ठ ऐतिहासिक संबंधों की चर्चा करते हुए परम पावन ने कहा:
"मुझे यह जानकर प्रसन्नता है कि यहाँ आप लोगों के बीच इस तरह के लम्बे समय के मित्र हैं। कृपया हमें अपने मूल्यों, हमारी आध्यात्मिकता और हमारे ज्ञान को संरक्षित करने में सहायता करें। वे न केवल हमारे लिए, बल्कि चीन के लोगों के लिए भी अत्यंत सहायक हो सकते हैं।”
मध्याह्न भोजन के पश्चात परम पावन के ०२ एरीना मंच पर आते ही १०,००० श्रोताओं ने पूरे उत्साह के साथ उनका स्वागत किया। एक युवा तिब्बती महिला ने आमदो के एक पूर्व भिक्षु नवांग लुडू का परिचय कराने से पूर्व उनकी दीर्घायु के लिए एक प्रार्थना के पाठ का नेतृत्व किया। उन्होंने एक मार्मिक पर्वतीय गीत प्रस्तुत किया जिसके बाद उनकी अपनी कृति की प्रस्तुति थी जिसमें उन्होंने परम पावन की प्रशंसा २१वीं सदी के प्रकाश तथा हिम प्रदेश के लोगों की आत्मा के रूप में की है। इसके बाद ६ और १४ के बीच की आयु के ५२ तिब्बती बच्चों ने एक गीत गाया जिसमें तिब्बत में तिब्बतियों के पुनर्मिलन और उनके दुःखों के अंत के लिए प्रतीक्षा की भावना थी।
"प्रिय भाइयों और बहनों," मंच पर रखे माइक्रोफोन के समक्ष खड़े हो परम पावन ने बोलना प्रारंभ किया, "मैं यहाँ आपके साथ होकर और अपने कुछ विचारों और अनुभवों का साझा करते हुए बहुत प्रसन्न हूँ। और जब प्रश्नोत्तर का सत्र होगा तो मैं आशा करता हूँ कि मैं आपसे कुछ सीखूँगा। हमें इस प्रकार का अवसर देने के लिए मैं आयोजकों की सराहना करता हूँ और मैं आपको आने के लिए धन्यवाद देता हूँ।
"मैं आज जीवित ७ अरब मनुष्यों में से केवल एक हूँ। हम सभी शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से एक समान हैं। हम सभी समस्याओं का सामना करते हैं पर हम सबमें उनसे जूझने की भी समान क्षमता है। वैज्ञानिकों ने दिखाया है कि यहाँ तक कि छोटे बच्चों में भी सहायता की चित्रों को लेकर सकारात्मक प्रतिक्रिया होती है और अहित के चित्र देख वे पीछे हट जाते हैं, जो स्पष्ट करता है कि आधारभूत मानव प्रकृति करुणाशील और अच्छी है।
"इसे देखने के लिए हम अपने सामान्य ज्ञान का उपयोग कर सकते हैं। अपने पड़ोसियों को देखें। हो सकता हैं वे सम्पन्न हों पर यदि उनमें सौहार्दता का अभाव है, यदि वे एक दूसरे को लेकर शंकाकुल हैं तो वे सुखी नहीं हो सकते जबकि वे जो विश्वास करते हैं और सौहार्दपूर्ण हैं वे सुखी हैं।
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परम पावन ने घोषित किया कि ८० वर्ष की उम्र में वह २०वीं सदी की पीढ़ी के अंतर्गत आते हैं। वे युवा जो ३० वर्ष की आयु से कम के हैं, २१वीं सदी की पीढ़ी के हैं। उन्होंने स्वीकार किया कि २०वीं सदी की पीढ़ी ने कई समस्याओं को जन्म दिया था जिसमें पर्यावरण का नुकसान भी शामिल था। उनके विचारों में से कुछ, जैसे कि धारणा कि बल द्वारा समस्याओं का समाधान हो सकता है, अब पूरी तरह से तारीख से बाहर है। उन्होंने आगे कहाः
"मैं एक सुखी जीवन जीना चाहता हूँ और अन्य भी एक सुखी जीवन जीना चाहते हैं। यह ऐसा है जिसे करने का हम सबको अधिकार है। मेरा विश्वास है कि यदि हम सब प्रयास करें और भविष्य को लेकर एक दीर्घकालीन दृष्टिकोण अपनाएँ, तो हम एक बेहतर विश्व के लिए परिवर्तन ला सकते हैं। अब कुछ प्रश्न।”
संचालक द्वारा परिचय दिए जाने के पूर्व ही इस समय सभा के पीछे से किसी ने चिल्ला कर अस्पष्ट रूप से पूछा।
"क्या तिब्बती समुदाय में भेदभाव है? क्या यह सच है?" परम पावन ने सीधा उत्तर दिया।
"मुझे लगता है कि आप शुगदेन प्रश्न के बारे में पूछ रहे है, एक विवाद जो लगभग ४०० वर्षों से चल रहा है। पर यह केवल विगत ८० वर्षों से प्रमुख रूप से सामने आया है। मेरे अपने संबंध में, जब मैं इस आत्मा की तुष्टि कर रहा था तो मुझे कोई धार्मिक स्वतंत्रता न थी। मुझे केवल उस समय वह स्वतंत्रता प्राप्त हुई जब मैंने उसकी प्रकृति और उसकी पृष्ठभूमि को समझा और उसका अभ्यास बन्द कर दिया। तब से यह मेरा कर्तव्य हो गया है कि इसे मैं दूसरों को स्पष्ट करूँ। यदि जो मैं कह रहा हूँ उस पर आप ध्यान देना चाहें तो यह आप पर निर्भर है। परन्तु आप दक्षिण भारत जाएँ तथा स्वयं देखें कि जो भिक्षु इसका अभ्यास करना चाहते हैं उनके विहार उस भूमि पर हैं जो कि तिब्बती शरणार्थियों के लिए प्रदान की गई थी। आप स्वयं देख सकते हैं कि वास्तव में वे जो अभ्यास करना चाहते हैं, उन्हें उसके लिए स्वतंत्रता है।"
इस पर श्रोताओं के उत्साहित स्वर तथा ज़ोरदार तालियों की आवाज़ से वातावरण गूँज उठा। तिब्बत हाउस ट्रस्ट के हेंसजोर्ग मेयर ने प्रश्नोत्तर का संचालन करने के लिए लेखक व वैज्ञानिक डैनियल गोलमेन का परिचय कराया जो परम पावन के लम्बे समय से मित्र रहे हैं। उन्होंने परम पावन के ८०वें जन्मदिन को चिह्नित करने के हाल ही में एक पुस्तक ‘ए फोर्स फॉर गुडः द दलाई लामाज़ विज़न फॉर अवर वर्ल्ड ’प्रकाशित की थी।
पहला प्रश्न जो उन्होंने परम पावन के समक्ष रखा कि जैसा परम पावन नियमित रूप से करते हैं, वैसे वे भी बीबीसी समाचार सुनते आ रहे थे और वे जानना चाहते थे कि वे किस प्रकार उदास होने से बचते हैं।
सबसे पहले, कई समस्याएँ जिनका सामना हम करते हैं वे हमारी अपनी निर्मिति हैं, तो न्याय से हमें उन्हें हल करने में सक्षम होना चाहिए। दूसरा हमें स्मरण रखना चाहिए कि मीडिया किस सीमा तक सकारात्मक विकास पर बिना ध्यान दिए रहती है। ऐसा लगता है कि केवल हत्या, हिंसा, यौन शोषण की कहानियाँ समाचार बनती हैं। मैं निश्चित रूप से सोचता हूँ कि मीडिया को एक और अधिक संतुलित दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
"हाल ही में मैंने बीबीसी पर सुना, कि यह पाया गया है कि उनके बच्चों की आवश्यकता के अनुसार मां के दूध की मात्रा में परिवर्तन होता है। यह मुझे एक अवसर का स्मरण कराता है जब मैं दिल्ली में एक अंतर्धर्म बैठक में भाग ले रहा था। मैं बौद्ध परंपरा का प्रतिनिधित्व कर रहा था, एक अन्य शिक्षक इस्लाम का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व धर्म के महान विद्वान तथा जम्मू-कश्मीर के पूर्व राजा के बेटे डॉ कर्ण सिंह कर रहे थे। मैंने उन्हें छेड़ते हुए कहा कि जब माँ के दूध की बात आती है, तो एक निर्धन किसान के पुत्र के रूप में संभवतः उनकी स्थिति राजा के बेटे से बेहतर थी जिन्हें एक दाय माँ दी गई थी।
"एक बात जो हमने सीखी है वह यह कि माता पिता को अपने बच्चों के साथ जितना समय वे बिता सकते हैं वो बिताना चाहिए। उन्हें अधिक से अधिक स्नेह प्रदान करें। यह स्नेह हमारे जीवन का पहला सबक है। मेरे मामले में, मेरी माँ इतनी स्नेहमयी थी कि हमने उन्हें कभी क्रोधित न देखा - मेरे पिता के विपरीत।
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जब गोलमेन ने और अधिक विशिष्ट रूप से करुणा के विकास के बारे में पूछा तो परम पावन ने उन्हें बताया कि हम सब में जैविक रूप पर आधारित करुणा की समझ है, पर यह पक्षपाती हो जाती है, यह अधिकांश रूप से उनकी ओर निर्देशित होती है जिनके प्रति हमारा मोह है। परन्तु यह संभव है कि हम अपनी बुद्धि का प्रयोग करें और दूसरों तक अपनी करुणा का विस्तार करें, जिनमें हमारे शत्रु भी शामिल हों। उन्होंने समझाया कि किस प्रकार कर्ता और उनके कार्य में अंतर करना आवश्यक है। किसी ने आपका अहित किया होगा और उनका कार्य गलत है, पर वे मानव बने रहते हैं जो करुणा के पात्र हैं।
परम पावन ने स्पष्ट किया क्रोध की तरह मोह एक एकाकी भावना नहीं है, अपितु कई अन्य भावनाओं से संबंधित है। इसे समझने के लिए चित्त का प्राचीन भारतीय ज्ञान और यह कैसे कार्य करता है, सहायक हो सकता है।
गंदी राजनीति पर प्रश्न थे और परम पावन ने स्पष्ट किया कि सभी मानव गतिविधियों की गुणवत्ता मुख्य रूप से प्रेरणा पर निर्भर करती है। ऐसा नहीं है कि राजनीति गंदी है, पर यदि प्रेरणा स्वार्थी अदूरदर्शी और संकीर्ण हो तो उसके ऐसा होने की संभावना है। यह पूछे जाने पर कि चीजें बेहतर या बदतर हो रही है, परम पावन ने तीस और उससे अधिक वर्षों में जब वे आधुनिक वैज्ञानिकों के साथ विचार विमर्श में संलग्न हैं उस दौरान आपसी समझ में जो महान प्रगति हुई है, उसका संदर्भ दिया।
"मैंने वस्तु और भौतिक विश्व के विषय में बहुत कुछ सीखा है और आधुनिक वैज्ञानिकों ने चेतना और चित्त के जीवन में बहुत रुचि ली है। इन चर्चाओं में से धर्मनिरपेक्ष नैतिकता की आवश्यकता की एक समझ उभरी है।
"
परम पावन ने यह भी टिप्पणी की कि २०वीं सदी के उत्तरार्ध का दृष्टिकोण, कि युद्ध समस्याओं का समाधान है, अब तारीख से बाहर है। परन्तु जैसा कि जलवायु परिवर्तन पर कोपेनहेगन शिखर सम्मेलन ने स्पष्ट किया कि जब बहुत अधिक देश, वैश्विक हित से पहले राष्ट्रीय हित रखते हैं तो अभी भी मानवता की एकता की भावना के विकास की बहुत अधिक आवश्यकता है।
कार्यक्रम की समाप्ति से पहले इयान कमिंग, जो परम पावन के ब्रिटेन की यात्राओं के दौरान एक फोटोग्राफर के रूप में कार्य करते हैं, ग्रेट ब्रिटेन बेक ऑफ में एक प्रतियोगी थे। उन्होंने परम पावन के ८०वें जन्मदिवस के लिए बनाए गए केक को प्रस्तुत किया और श्रोताओं ने जन्म दिवस मुबारक का गीत गाया। परम पावन ने उनका धन्यवाद किया और श्रोताओं की ओर अभिमुख हुएः
"आज हमने जो बातें की हैं, कृपया उस पर सोचें। यदि आप सोचते हैं कि इनमें से कुछ बिंदु लाभकारी हैं तो उन पर और सोचें, उन्हें जाँचें और उन्हें कार्य में लाने का प्रयास करें। यदि आप प्रतिदिन इन चीजों के बारे में २० मिनट तक सोचने में सक्षम होते हैं तो आप पाएँगे कि आपका जीवन और अधिक सुखी है। जन्मदिवस मनाने से अधिक महत्वपूर्ण यह है कि क्या हम प्रत्येक दिन सार्थक रूप से रह सकते हैं। धन्यवाद।"
श्रोताओं ने सौहार्दता से उत्साह अभिव्यक्त किया। परम पावन मंच से निकलकर ग्रीनविच यॉट क्लब गए जहाँ सदस्यों ने उनका स्वागत किया। जैसे ही नौका टेम्स पर लौटी मध्याह्न का सूर्य पूरी उज्ज्वलता से सामने नदी पर चमक रहा था।