सूरत, गुजरात, भारत - २ जनवरी २०१५- आज संतोकबा पुरस्कार प्राप्त करने के लिए अपने होटल से निकलने के पूर्व परम पावन दलाई लामा ने मीडिया के साथ एक छोटी भेंट की। उन्होंने मानव मूल्यों और अंतर्धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देने, मानवता की एकता की भावना को प्रोत्साहित करने और वैश्विक उत्तरदायित्व के संदर्भ में सोचने के लिए हमारी आवश्यकता के विषय में अपनी प्रतिबद्धताओं को रेखांकित किया। उन्होंने सुझाव दिया कि भारत के हजारों वर्षों प्राचीन मूल्यों के बारे में जागरूकता पैदा करने में मीडिया भी भाग ले सकता है। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि एक तिब्बती के रूप में वह शांति, करुणा और अहिंसा की संस्कृति, जो तिब्बत ने भारत से प्राप्त की, के संरक्षण के लिए प्रेरित अनुभव करते हैं।
धर्मातंरण के संबंध में प्रारंभिक प्रश्न परम पावन के विचारों को जानना था और उन्होंने स्पष्ट किया कि यदि यह स्वैच्छिक है तो वह इसे स्वीकार करते हैं और उन्होंने तिब्बत में लोगों का उदाहरण दिया, जो विवाह इत्यादि के कारण इस्लाम में परिवर्तित हो गए। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि यह विचार कि मात्र एक ही धर्म है और एक ही सत्य है, किसी एक व्यक्ति के िलए सच हो सकता है, पर एक समुदाय के संदर्भ में यह आज की तारीख से बाहर है। वास्तविकता यह है कि कई धर्म हैं और कई सत्य हैं। जो आवश्यक है वह है, आपसी सम्मान।
परम पावन से पूछा गया कि वह हथियारों और नशीली दवाओं के व्यापार पर रोक लगाने पर कैसे निपटेंगे। उन्होंने कहा:
"रोम में हाल ही में नोबेल शांति पुरस्कार विजेताओं के शिखर सम्मेलन के अंत में स्पष्ट रूप से अंतिम घोषणा में कई मुद्दों में से एक परमाणु अस्त्रों को समाप्त करने के लिए कदम उठाने की आवश्यकता की थी। यहाँ तक कि इन अत्यंत विनाशकारी हथियारों में से एक या दो का उपयोग भी आपदा जनक होगा। जहाँ हम शांति के लिए प्रार्थना करते हैं, शस्त्रों का आकर्षक व्यापार, कारोबार का एक गलत रूप है। इसी प्रकार चूँकि मानव मस्तिष्क के कार्य इतने अद्भुत हैं कि कुछ भी जैसे नशीली दवाएँ, जो उसके कार्य को नुकसान पहुँचाती हैं, हानिकारक हैं।"
इस तथ्य पर परम पावन के विचार पूछे गए कि भारत की जनसंख्या के ७ - १५% दलित होने के कारण वे बौद्ध धर्म में धर्मातरण करने के लिए डॉ अम्बेडकर के साथ हो गए। उन्होंने उत्तर दियाः
"एक बौद्ध के रूप में, मेरे विचार से वंश या जाति के आधार पर कोई भेदभाव अनुचित है। बुद्ध ने भी जाति व्यवस्था का विरोध किया। हमें ऐसी पुरानी परंपराओं को ठीक करने के लिए कदम उठाने चाहिए। धार्मिक नेताओं को बात करनी चाहिए और अपने अनुयायियों को उन्हें संशोधित करने की सलाह देनी चाहिए। जहाँ उच्च जाति के लोगों के लिए यह उचित है कि वे सुविधाएँ देकर तथा रोज़गार उपलब्ध कराके गरीबों और दलितों की सहायता करें, दलितों को स्वयं अपनी स्थिति को ऊपर उठने और शिक्षा प्राप्त करने के लिए कठोर परिश्रम करना चाहिए। इसी तरह विश्व के कई भागों में धनवानों और निर्धनों के विशाल अंतर को सुधारा जाना चािहए। यह अत्यंत अनुचित है कि निर्धनों तथा दलितों को सुझाया जाए कि उन्हें अपनी स्थिति को स्वीकार करना चाहिए, क्योंकि यह उनका कर्म है।"
संजीव कुमार सभागार में एक भरे पूरे जनसमुदाय ने उत्साहपूर्वक संतोकबा पुरस्कार प्राप्त करने के लिए परम पावन के आगमन का स्वागत किया। इस अवसर का उद्घाटन हुआ जब वे अपने सह अतिथि गुजरात के राज्यपाल, ओ पी कोहली और मुख्य अतिथि पंकज पटेल के साथ दीप प्रज्ज्वलन में सम्मिलित हुए।
एस आर के फाउंडेशन के प्रेरक तथा अपनी माँ की स्मृति में इस पुरस्कार को प्रारंभ करने वाले गोविंद ढोलकिया ने समझाया कि इसका उद्देश्य ऐसे लोगों को सम्मानित करना है, जिन्होंने मानवता की बेहतरी में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होंने घोषणा की कि यह सातवाँ पुरस्कार परम पावन को दिया जाएगा। उन्होंने स्मरण किया कि कल उनके साथ हुई बातचीत में परम पावन, जो अपनी स्वयं की माँ की सरल दयालुता के प्रभाव की प्रशंसा करते हैं, ने पूछा कि क्या उन्होंने कभी अपनी माँ को क्रोध भरा मुख देखा था। जब उन्होंने पुष्टि की, कि उन्होंने नहीं देखा था तो उन्होंने पाया कि यह दोनों के बीच एक साझा अनुभव था।
प्रत्येक अतिथि का सम्मान गुलदस्तों, फलों की टोकरियों तथा अन्य स्मृति चिन्हों के साथ किया गया, जबकि वक्तव्य हिंदी और गुजराती में दिए गए। मुख्य अतिथि, पंकज पटेल ने अंग्रेजी में बोलते हुए तीन माताओं का वन्दना किया ः माता जिसने हमें जन्म दिया, माँ सरस्वती जिसने हमें ज्ञान दिया और वह माँ जो वह धरा है जिस पर हम रहते हैं। जब परम पावन की बारी आई तो उन्होंने सभा को संबोधित कियाः
"आदरणीय राज्यपाल, मेरे सह अतिथि, बड़े भाइयों और बहनों और छोटे भाइयों और बहनों, जब भी मैं सार्वजनिक रूप से बोलता हूँ तो मुझे लगता है मनुष्य के रूप में हम सब एक समान हैं। मुझे लगता है कि इस पुरस्कार का उपहार देकर आपने मुझे बहुत सम्मान दिया है। मैं इस पगड़ी की सराहना करता हूँ जो उत्तरी - पूर्वी तिब्बत के एक किसान के बेटे को गुजरात से एक किसान के बेटे से जोड़ती है। किसानों की समाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका है क्योंकि जो भोजन हम कर रहे हैं, उसका उत्पादन वे करते हैं। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि हम अपने ग्रामीण क्षेत्रों में विकास लाएँ। वे गरीब, जो हमारे शहर की मलिन बस्तियों में भरे हुए हैं, वे वहाँ इस कारण से हैं कि वे उन गाँवों में प्रगति करने में असमर्थ हैं, जहाँ के वे निवासी हैं।"
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"यदि ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन में सुधार हो तो सभी लाभान्वित होंगे। मित्र बताते हैं कि विकास का हमारा वर्तमान रूप बहुत दिनों तक बना नहीं रह सकता तो हमें गरीबों को ऊपर उठाने और जाति तथा लिंग भेदभाव जैसे मुद्दों को चुनौती देने के लिए एक अलग दृष्टिकोण ढूँढने की आवश्यकता है। स्वास्थ्य के हित में हमें कीटनाशक और कृत्रिम उर्वरकों के उपयोग को सीमित करने और अधिक जैविक कृषि के उपायों की भी खोज करनी चािहए।"
उन्होंने अपनी तीन प्रतिबद्धताओं की बात की ः एक मानव होने के नाते सभी के हितार्थ मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देना, एक बौद्ध भिक्षु के रूप में धार्मिक परम्पराएँ, जो समान रूप से करुणा, सहिष्णुता, संतोष और आत्म अनुशासन का संदेश देती हैं, के बीच सद्भाव तथा पारस्परिक सम्मान को प्रोत्साहित करना। और अंत में, उन्हंोंने कहा कि एक तिब्बती के रूप में, जो ज्ञान तिब्बतियों ने ७वीं और ८वीं शताब्दी में नालंदा परंपरा से प्राप्त किया, वे उस ज्ञान के संरक्षण में रुचि रखते हैं। इसमें चित्त का ज्ञान सम्मिलित है, जो समृद्ध तथा गहन है, और तिब्बती भाषा में सबसे अधिक उचित रूप से व्यक्त किया गया है, आज भी उपयोगी और प्रासंगिक बना हुआ है।
मध्याह्न भोजनोपरांत कई युवा पत्रकारों ने परम पावन से प्रश्न पूछे। उनमें पुनः धर्मांतरण से प्रश्न शामिल था। परम पावन ने बताया कि शिक्षित लोगों का धर्म परिवर्तन करना कहीं अधिक कठिन है इसलिए इस मामले में शिक्षा की एक भूमिका है। उन्होंने दोहराया कि सभी प्रमुख धार्मिक परम्पराओं की शिक्षाओं के माध्यम से मानवता की सहायता करने की क्षमता है। उनके अपने अनुयायियों के लिए एक संदेश के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने उत्तर दियाः
"एक अच्छे मानव बनो।"
सामाजिक मीडिया के संबंध में, परम पावन ने कहा कि हम उनका उपयोग जिसके लिए करते हैं उसके आधार पर वे उपयोगी या हानिकारक हो सकते हैं। वे सोच रहे थे कि क्या वे लोगों को कम गहनता लिए अधिक जानकारी देते हैं। यह पूछे जाने पर कि उनके लिए ध्यान क्या अर्थ रखता है, परम पावन ने समझाया कि दो प्रकार के हैंः एकाग्र चित्त ध्यान का विकास और अंतर्दृष्टि जो विश्लेषण से आती है। उन्होंने कहा कि जब वे प्रातः तीन बजे उठते हैं वे आत्मा की प्रकृति, विश्व की प्रकृति इत्यादि को लेकर प्रश्न करते हैं। इस तरह का विश्लेषण क्रोध और राग जैसी विनाशकारी भावनाएँ, जो आत्मा को लेकर भ्रांत धारणा पर आधारित हैं, को कम करने में सहायक होता है। एक अंतिम प्रश्न पर ः
"आप अपने खाली समय में क्या करते हैं," उन्होंने हँसी में उत्तर िदया ः
"मैं सोता हूँ। मुझे नींद बहुत प्रिय है।" और फिर आगे कहा, "लगभग ८० वर्ष की आयु में भी मेरा पठन व अध्ययन जारी है।"
चूँकि पुष्पों की प्रस्तुति आदि के साथ उद्योगपतियों के साथ विचार-विमर्श का अवसर भी था, परम पावन ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि बहुत अधिक औपचारिकता में भाग लेने के बजाय वे प्रश्नोत्तर के आदान-प्रदान में भाग लेना अधिक पसंद करेंगे। संचालक, हरीश भिमानी ने स्वीकार किया और तत्काल सभा से प्रश्न आमंत्रित किए।
परम पावन ने इस प्रश्न का उत्तर स्पष्ट किया कि क्या १५वें दलाई लामा होंगे, कि उन्होंने पहले ही कह दिया है कि वह तिब्बती लोगों की इच्छा पर निर्भर करेगा।
व्यापार में नैतिकता के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि कोई मानव गतिविधि नैतिक है या नहीं, यह प्रेरणा पर निर्भर करता है। यदि हम अन्य लोगों के कल्याण की चिंता की भावना से प्रेरित हेते हैं, तो हमारे कार्य नैतिक होंगे। उन्होंने कहा कि एक सकारात्मक प्रेरणा के अतिरिक्त हमें स्थिति का आकलन करने में सक्षम होने के लिए प्रज्ञा की आवश्यकता है। विरोधाभास, जैसे एक तंबाकू कंपनी का कैंसर शोध के लिए वित्तीय पोषण करना आपस में मेल नहीं खाता, जैसे कि शांति के लिए प्रार्थना करते हुए शस्त्रों के व्यापार का समर्थन करना जारी रखना।
जैन धर्म के शिक्षक महावीर और बुद्ध के शिक्षक के बीच अंतर पर टिप्पणी करने के लिए आमंत्रित किए जाने पर परम पावन ने तुरन्त स्वीकार किया कि दोनों में महावीर वरिष्ठ थे। उन्होंने टिप्पणी की, कि दोनों ने अहिंसा पर बल दिया और उनकी शिक्षाओं के बीच अंतर आत्मन और अनात्मन के प्रति दृष्टिकोण को लेकर है, जहाँ बौद्ध धर्म किसी स्वभाव गत सत्ता के अभाव पर ज़ोर देता है।
यह पूछे जाने पर कि कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व स्वैच्छिक हो अथवा अनिवार्य, परम पावन ने विचार व्यक्त िकए कि अच्छे कार्य सदा स्वैच्छिक होने चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि एक बार आप इन चीजों के बारे में नियम बना लें तो वे पाखंड के लिए एक आवरण हो जाते हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि ऐसे कार्य जो दूसरों के सुख तथा कल्याण को सुनिश्चित करें उन्हें सकारात्मक और नैतिक माना जा सकता है।
सत्रांत में पहुँचने पर, जैसे ही आशीर्वाद की आशा करते हुए उन्हें जनसमुदाय ने घेर लिया, वे इतना कह पाए ः
"कल और आज के लिए धन्यवाद, मैंने यहाँ अपने प्रवास का आनंद लिया है। धन्यवाद।"
कल परम पावन भारत-तिब्बत मंगल मैत्री संघ द्वारा आयोजित एक सार्वजनिक व्याख्यान देने के लिए नासिक की यात्रा करेंगे।