वीसबादेन, हेस्स, जर्मनी - १४ जुलाई २०१५- आज प्रातः भारत के लिए रवाना होने से पहले परम पावन दलाई लामा को वीसबादेन सिटी हॉल और हेस्स संसद में आमंत्रित किया गया। सिटी हॉल की सीढ़ियों पर मेयर आर्नो ग्रॉसमैन ने उनकी अगुवानी की और उन्हें अंदर ले गए।
द्वार पर डब्ल्यू सोमरसेट मोम का उद्धरण लिए एक बैनर लटका था जिसमें लिखा था ः 'थोड़ा सामान्य ज्ञान, मानव समझ, सहिष्णुता और हास्य - इन सबके साथ जीना कितना आरामदायक है ।' नागरिक सभा के अध्यक्ष ने हेस्स राज्य की राजधानी वीसबादेन के नागरिकों की ओर से उनका स्वागत किया।
"आपने अपने ८०वें जन्मदिन पर यहाँ आकर हमें गौरवान्वित किया है, हमारी ओर से आपको विशेष शुभकामनाएँ। दो दिन पूर्व कुर्पार्क में हम आपके शांति, मानवता और जीवन के लिए सम्मान के संदेश को सुनने के लिए एकत्रित हुए थे। आप अपने सुनने वाले सभी के हृदय और चित्त को छू लेते हैं। वीसबादेन के नागरिकों की ओर से मैं आपका धन्यवाद करता हूँ और जर्मन गणराज्य के सबसे सुन्दर शहर में आपका स्वागत करता हूँ।"
मेयर ग्रोसमेन ने भी परम पावन का स्वागत किया:
"परम पावन, वीसबादेन आपको यहाँ पाकर खुश है। पिछले रविवार को शहर की ओर से कुर्पार्क में बोलने का सम्मान मुझे भी प्राप्त हुआ। मैं अापके निष्ठा से प्रभावित हुआ। आप अपने ७०वें जन्मदिन पर यहाँ आए थे और अब आप यहाँ अपने ८०वे जन्मदिन पर हैं। इस कठिन समय में आपका शांति और सुख का संदेश महत्वपूर्ण है। मैं इस बात से भी प्रभावित हुआ कि आप अपनी गिनती ७ अरब मनुष्यों में से एक के रूप में करते हैं, जो आपकी विनम्रता दर्शाता है। इस स्वागत समारोह की मेजबानी करना हमारे लिए सौभाग्य की बात है और हम पुनः शीघ्र ही आपको देखने की आशा करते हैं।"
परम पावन ने उत्तर दियाः
"श्री मेयर, श्री अध्यक्ष तथा सभा के सदस्यों, मुझे आमंत्रित करने तथा आप लोगों के साथ मेरे विचारों को साझा करने का अवसर देने के लिए धन्यवाद। सार यह है कि हर कोई एक सुखी जीवन चाहता है और हम में से प्रत्येक इसे प्राप्त करने के लिए दूसरों पर निर्भर रहता है। यहाँ तक कि अपने स्वयं के हित में, आप को ध्यान रखना होगा कि आप दूसरों को किस तरह सुखी रख सकते हैं।
"पता नहीं मैंने इस शहर और अपने बीच एक विशेष संबंध विकसित किया है, जो मुझे बहुत प्रिय है। चूँकि मैं यहाँ पहले कई बार आया हूँ, आप में से कइयों के चेहरे मेरे परिचित हैं, मुझे आपके नाम याद नहीं पर मुझे आपके मुस्कुराते चेहरे बहुत प्रिय हैं। आज दोपहर को मैं भारत लौट रहा हूँ और नहीं जानता कि मेरे पुनः आने की संभावना कब होगी, पर चूँकि मुझे जहाँ भी आमंत्रित किया जाता है, मैं वहाँ जाता हूँ, तो यदि आप मुझे आमंत्रित करेंगे तो मैं आऊँगा। धन्यवाद।"
मेयर ने परम पावन को शहद का उपहार दिया और बदले में परम पावन ने मेयर को अपनी पुस्तकों में से दो की प्रतियां दीः 'ए ट्रू किनशिप ऑफ फेथ्स' और 'बियोंड रिलिजियन'।
हेस्से संसद, नासाओ के एक राजकुमार के एक पूर्व महल में स्थित है और सिटी हॉल से स्कोयेर के सामने चलने की दूरी पर है। राष्ट्रपति नॉर्बर्ट कार्टमेन ने हेस्स राज्य के लोगों की ओर से उनका स्वागत किया और कहा कि वह हेस्स प्रधानमंत्री, उनके पुराने मित्र वोल्कर बौफियर और संसद में विभिन्न राजनीतिक समूह जैसे ग्रीन्स, लिबरल, एल्डर्स इत्यादि की उपस्थिति में उनका स्वागत करते हुए गौरव का अनुभव करते हैं।
बौफियर ने सरकार की ओर से परम पावन का अभिनन्दन किया ः
"हम एक नोबेल पुरस्कार विजेता के रूप में, एक ऐसा व्यक्ति जिसने मानवता की शांति को लेकर अपने कार्य के लिए सम्मान अर्जित किया है और एक व्यक्ति जिसने संघर्षों के समाधान के वैकल्पिक तरीकों की सिफारिश की है, के रूप में आपका स्वागत करते हैं। मैं पिछली बात आपसे तिब्बत हाउस में मिला था। हम आपको यहाँ पाकर केवल सम्मानित ही नहीं अपितु भावुक भी हैं और आपको आपके ८०वें जन्मदिवस पर बधाई देते हैं।"
उत्तर में परम पावन ने पूछा कि क्या वहाँ उपस्थित लोग उनसे कुछ पूछना चाहेंगे। पहला प्रश्न यह था कि वह चीन में नए नेतृत्व का आकलन कैसे करते हैं।
"सबसे पहले, तो पिछले वर्ष राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने पेरिस में और बाद में नई दिल्ली में कहा, कि वे मानते हैं चीनी संस्कृति को पुनर्जीवित करने में बौद्ध धर्म एक महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है। परन्तु उनके भारत आने से पहले भारतीय पत्रकारों के एक दल को ल्हासा जाने के लिए आमंत्रित किया गया था। वहाँ के उप पार्टी सचिव ने उन्हें स्पष्ट रूप से यह महसूस कराया कि दलाई लामा के प्रतिनिधियों के साथ वार्ताएँ सुचारू रूप से चल रही हैं और मेरे चीन में एक तीर्थ स्थान की यात्रा करने की व्यवस्था की जा रही है। कुछ ही समय बाद पार्टी सचिव ने ऐसी सभी बातों को खारिज कर दिया। इसलिए संकेत मिश्रित से हैं।
"इस समय शी जिनपिंग सक्रिय रूप से भ्रष्टाचार से निपटने में लगे हुए हैं, तो वह पूरी तरह व्यस्त हैं। ऐसा सुझाया गया है कि वे इस वर्ष के अंत वे इस बात की चर्चा करना चाहेंगे कि तिब्बती समस्या के बारे में क्या करना है। देखते हैं।
"तिब्बत के अंदर, लोगों की भावना बहुत सशक्त है। इस बीच, चीनी बौद्ध, तिब्बती बौद्ध धर्म में और अधिक रुचि ले रहे हैं।"
परम पावन से पूछा गया कि क्या तिब्बत में हान चीनी के हस्तांतरण की नीति अभी भी जारी थी। उन्होंने उत्तर दिया कि कट्टरपंथी अभी भी तिब्बती अस्मिता को नष्ट करने और तिब्बती एकता में खलल डालने को लेकर कटिबद्ध थे। वे अपने ही देश में तिब्बतियों को तुच्छ अल्पसंख्यक बनाने के लिए हान लोगों को स्थानांतरित करने में लगे हुए हैं। परन्तु जहाँ ५० और ६० के दशक में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना को इस बात की चिन्ता न थी कि बाहरी विश्व क्या सोचेगा, पर जब से देंग जियाओपिंग ने चीनी अर्थव्यवस्था खोल दी है वे वैश्विक सार्वजनिक राय के प्रति अधिक संवेदनशील हो गए हैं। उन्होंने आगे कहा कि अब चीन में ४०० लाख बौद्ध हैं।
एक प्रश्नकर्ता जानना चाहते थे, कि आगामी दस वर्षों में तिब्बतियों के विकास के लिए परम पावन की क्या आशाएँ हैं। उन्होंने उत्तर दियाः
"मैं ज्ञान में वृद्धि देखना चाहूँगा। पिछले ३० वर्षों में मैंने वैज्ञानिकों के साथ गंभीर विचार-विमर्श किया है और यह स्पष्ट हो गया है कि इससे पारस्परिक लाभ हुआ है। बौद्ध परम्परा में चित्त के संबंध में उपयोगी ज्ञान की निधि है। आज कई समस्याएँ क्रोध जैसे उद्वेलित करने वाली भावनाओं के प्रभाव से जन्म लेती हैं। मैं लोगों की सहायता करने के लिए कि उनसे कैसे निपटा जाए, पूरी तरह से समर्पित हूँ। शिक्षा प्रणाली में नैतिकता की एक बड़ी भावना, जो आवश्यक नहीं कि धर्म पर आधारित हो, परन्तु सामान्य ज्ञान, सामान्य अनुभव और वैज्ञानिक निष्कर्ष पर आधारित, को प्रस्तुत करने की आवश्यकता पर बढ़ती आम सहमति है।
'भारत में तिब्बती विहारों में हमने एक और अधिक शांतिपूर्ण विश्व हेतु योगदान करने के उद्देश्य से अध्ययन के पाठ्यक्रम में विज्ञान को शामिल करने का निश्चय किया है।
"इस बीच, मैं २०११ के बाद से राजनीतिक उत्तरदायित्वों से सेवानिवृत्त हो गया हूँ। मैंने तिब्बती राजनीतिक विषयों में भी दलाई लामा का हस्तक्षेप समाप्त कर दिया है। तो अब हम पर एक सामंती व्यवस्था के पुनर्स्थापना करने के प्रयास को लेकर दोषारोपण के लिए कोई स्थान नहीं रह जाता, वास्तव में निर्वासन समुदाय की लोकतांत्रिक साख चीन की तुलना में अधिक उन्नत है।"
परम पावन ने अंतर्धार्मिक समझ को बढ़ावा देने की अपनी प्रतिबद्धता का भी उल्लेख किया और यह कि, उन्होंने सुझाया है कि भारत, जिसकी अंतर्धार्मिक सद्भाव की अपनी लंबी परंपरा है, को इससे संबंधित एक सम्मेलन बुलाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह ध्यान में रखते हुए कि भारत में २०० अरब मुसलमान हैं, विचारों का आदान-प्रदान करने के लिए कट्टरपंथियों और आतंकवादियों को आमंत्रित करना संभव होना चाहिए।
अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी की चीन के विदेश मंत्री वांग यी के साथ हुई चर्चाओं का संदर्भ देते हुए, जिसमें उन्होंने दृढ़ता से तिब्बती प्रतिनिधियों के साथ संवाद करने की वकालत की थी, परम पावन ने टिप्पणी की:
"हमारे मित्र हैं, पर चीन एक छोटा राष्ट्र नहीं है!'
जब उनसे ज़ोर देकर पूछा गया कि क्या तिब्बत लौटने की कोई आशा है तो परम पावन ने उत्तर दिया ः
"प्रत्येक तिब्बती इस की आशा रखता है। एक अल्पावधि के लिए, मैं तीर्थ यात्रा की छोटी यात्रा की कल्पना कर सकता हूँ, परन्तु स्थायी रूप से लौटना, मैं नहीं जानता। मुझे श्री शिराक, जब वह पेरिस के मेयर थे, से पूछना याद है, कि उनके विचार से क्या वे इस तरह की वापसी पर विचार करना उचित समझते हैं और उन्होंने कहा कि जहाँ वे सोचते हैं कि देंग जियाओपिंग एक अच्छा आदमी है, पर उनके विचार से एक कम्युनिस्ट तानाशाह पर विश्वास करना उचित न होगा।"
श्री बौफियर और उनके उप प्रधानमंत्री तारिक अल-वज़र ने परम पावन के साथ अपनी बैठक की। जब वे बाहर आए तो प्रेस प्रतीक्षा कर रहा था और परम पावन का यह कहना थाः
"अब मैं भारत जा रहा हूँ और अपने दूसरे घर लौट रहा हूँ। जन्मदिन समारोह समाप्त हो गए हैं। मैं खुश हूँ कि पिछले दो दिन मैं यहाँ अपने पुराने मित्रों के साथ बिता पाया। मैं मानवीय मूल्यों के महत्व और यह तथ्य कि विश्व का परिवर्तन, व्यक्तियों द्वारा अपने भीतर आंतरिक शांति के निर्माण के साथ प्रारंभ होता है, के विषय में बात करने में सक्षम हुआ हूँ।"
वीसबादेन और फ्रैंकफर्ट की उनकी यात्रा के प्रभावों के विषय में पूछे जाने पर उन्होंने उत्तर दिया:
"सुखद ।"
हेस्स संसद से वे गाड़ी दिल्ली जाने हेतु विमान पर सवार होने के िलए फ्रैंकफर्ट हवाई अड्डे गए और कल प्रातः धर्मशाला पहुँचेंगे।