यूसीआई इरविन, सीए, संयुक्त राज्य अमेरिका - ७ जुलाई २०१५- आज प्रातः यूसीआई के लिए रवाना होने से पहले, केटीएलए ५ समाचार की क्रिस्टीना पासक्युची ने परम पावन दलाई लामा का साक्षात्कार लिया। उन्होंने पूछा कि उनके ८० वर्ष के जीवन काल में उन पर सबसे अधिक प्रभाव किसका पड़ा था। उन्होंने कहा कि कई लोग थे परन्तु हाल की हस्तियों में महात्मा गांधी और मार्टिन लूथर किंग जूनियर का उनके दृष्टिकोण पर अत्यधिक प्रभाव पड़ा था यद्यपि वे उन दोनों से ही नहीं मिले थे। उन्होंने कहा कि अन्यथा उन्हें प्राचीन भारत के बौद्ध आचार्यों का उल्लेख करना होगा।
जब वे यह जानना चाहती थी कि आज हमारे समक्ष सबसे बड़ा खतरा क्या था, परम पावन ने बिना किसी हिचकिचाहट के उत्तर दिया।
"हिंसा।"
यह पूछे जाने पर कि वह अपने थैले में क्या रखते हैं, जो उनके साथ सदा रहता है, उन्होंने उनसे कहा कि उनके पास बुद्ध की एक प्रतिमा है जो वो उस समय से अपने पास रखते चले आए हैं, जब से वे एक बौद्ध भिक्षु के रूप में दीक्षित हुए, कुछ मिठाइयाँ, कुछ कलम और टोपी का छज्जा, जो वे कभी कभी बहुत चमकदार रौशनी से अपनी आँखों की सुरक्षा हेतु पहनते हैं।
यूसीआई में मोटर गाड़ी से जाते समय हल्की बूंदा बांदी हो रही थी, जहाँ प्रथम पड़ाव सेंटर फॉर लिविंग पीस था। निदेशक केली स्मिथ ने परम पावन का स्वागत किया और परम पावन को एक नवनिर्मित अवलोकितेश्वर रेत मंडल दिखाने हेतु अनुरक्षण किया। उन्होंने अवलोकितेश्वर की सहस्र भुजाओं और नेत्रों के प्रतीकात्मक महत्व पर भी बल दिया। वज्र और घंटे को उठा कर, उन्होंने टिप्पणी की, कि वज्र, उपाय - करुणा का प्रतीक है - और घंटा, प्रज्ञा-शून्यता की समझ का। प्रज्ञा को करुणा द्वारा सक्रिय करते हुए और करुणा को प्रज्ञा द्वारा निर्देशित करते हुए ये दोनों सदैव साथ चलते हैं।
ब्रेन कार्यक्रम सेंटर सर्वप्रथम श्रोताओं को एक वीडियो दिखाई गई, जो परम पावन और उनकी गतिविधियों पर केंद्रित थी। एन करी ने तीसरे दिन का संचालन करते हुए सर्वप्रथम राजीव मेहरोत्रा को परम पावन की करुणा के अभ्यास के संबंध में कुछ कहने के लिए आमंत्रित किया। उन्होंने समझाया कि ज्ञान प्राप्त करने के संदर्भ में चित्त शोधन का विकास, जो नालंदा विश्वविद्यालय की परम्पराओं से आती है, उनकी दैनिक प्रतिबद्धता है। प्रोफेसर बॉब थरमन ने इसी विषय को आगे विस्तारपूर्वक बताया, और परम पावन द्वारा दिए जा रहे इस बात पर बल, कि एक व्यापक और संतुलित शिक्षा, जो मस्तिष्क के विकास के साथ सौहार्दता की भावना को विकसित करती, पर प्रकाश डाला।
एन करी ने पैनल के सदस्यों का परिचय करवाया, जो परम पावन के साथ मंच पर उपस्थित थेः लीप ऑफ फेथ से जुड़े, दलाई लामा फेलो, अरमान रोथर; गूगल आइड़िया के निदेशक, जारेड कोहेन; अभिनेत्री ज़ेंदया; यूसीआई के दलाई लामा स्कॉलर्स कार्यक्रम निदेशक, करीना हैमिल्टन; फिल्म निर्माता जस्टिन नेप्पी; टीम अम्बेसेडर स्टोम्प आउट बुलीइंग के डेनिएल निसिम; और किड्स इको क्लब के सह-संस्थापक; मैक्स ग्युन; अभिनेत्री रेजिना किंग, इंटरफेथ यूथ कोर के संस्थापक, एब्बू पटेल; नेटिव हवाइन नेविगेटर, नैनोआ थॉम्पसन।
"जहाँ तक आधुनिक शिक्षा का संबंध है, मेरे पास आधुनिक शिक्षा नहीं है," परम पावन ने स्वीकार किया। "बचपन से ही मैंने भारत के प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के पंडितों के लेखन का अध्ययन किया है। परन्तु विगत ३० वर्षों से मैं वैज्ञानिकों के साथ बातचीत में सलग्न हूँ, जो विशेष रूप से ब्रह्माण्ड विज्ञान, तंत्रिका जीव विज्ञान, भौतिक विज्ञान और मनोविज्ञान पर केन्द्रित है। ये संवाद पारस्परिक रूप से लाभकर सिद्ध हुए हैं। वैज्ञानिकों में चेतना के विभिन्न स्तरों के प्रति और रुचि जागी है। उदाहरणार्थ वे उन लोगों के विषय को लेकर उलझन में हैं, जो नैदानिक मृत्यु को प्राप्त किए हुए से जान पड़ते हैं, पर जिनके शरीर कई दिनों तक उसी प्रकार ताज़े दिखाई देते हैं। जो वे देखते हैं उसका विवरण नहीं दे पाते। बौद्ध परिप्रेक्ष्य से, इसका स्पष्टीकरण यह है कि शारीरिक मृत्यु के बावजूद, चेतना सूक्ष्मतम स्तर पर बनी रहती है।"
परम पावन ने नालंदा परंपरा की एक असामान्य विशेषता का उल्लेख किया, जो कि आजकल भी आकर्षक बनी हुई है, और वह है कि जो कुछ भी पढ़ाया जाए उसे कारण और तर्क के आधार पर चुनौती देना। उन्होंने बौद्ध साहित्य के तीन वर्गों की ओर भी ध्यानाकर्षित किया जिसमें एक जो धार्मिक मामलों पर केन्द्रित है जो केवल बौद्धों के लिए रुचिकर हो सकती है और विज्ञान तथा दर्शन जो कि सार्वभौिमक स्तर पर रुचिकर है।
उन्होंने विश्लेषण के उपयोग का प्रदर्शन किया, जब उन्होंने अपने श्रोताओं का ध्यान आकर्षित किया कि उनके सभी श्रोता तेनज़िन ज्ञाछो, दलाई लामा को देख सकते हैं, जो उनसे बातें कर रहा है, पर यदि वे यह पूछें कि तेनज़िन ज्ञाछो कौन है और कहाँ है, कि क्या उनका चित्त बोल रहा है, या कि क्या तेनज़िन ज्ञाछो उसका शरीर, उसका सिर, उसका हाथ या उसकी उंगलियाँ हैं तो अकस्मात् तेनज़िन ज्ञाछो की ठीक पहचान कठिन होगी। उन्होंने कहा कि भ्रांति या ऐसे दृश्यों के प्रति ग्राह्यता, जिसमें वास्तविकता का उचित संदर्भ नहीं है, के आधार पर, उद्वेलित करने वाली भावनाओं अथवा प्रक्षेपणों की उत्पत्ति होती है।
इस बात पर बल देते हुए कि वह २०वीं शताब्दी के हैं, एक समय जो अब अतीत है, परम पावन ने युवा लोगों से, जो २१वीं शताब्दी के हैं, आग्रह किया। उन्होंने उनसे कहा कि यदि वे एक यथार्थवादी दृष्टिकोण लेकर दृष्टि से सच्चा प्रयास करें तो वे अपनी शताब्दी को शांति और सुख का एक युग बना सकते हैं। उन्होंने उन्हें छेड़ते हुए कहा कि वे उसे देखने के लिए जीने की आशा नहीं रखते, क्योंकि उस समय तक वे स्वर्ग अथवा नरक में चले गए होंगे।
"पर" उन्होंने हँसी में कहा, "यदि मैं नरक में भी होऊँ तो मैं छुट्टी लेकर यह देखने आऊँगा, कि आप क्या कर रहे हैं। यदि आपने कोई प्रगति नहीं की तो जब मैं पुनः नरक लौटूँगा, तो मैं इसे बढ़ाने की सिफारिश करूँगा।"
एन करी ने पैनल के सदस्यों से अपने विचार और अनुभवों को साझा करने के लिए कहा ।
राजीव मेहरोत्रा ने चित्त शोधन के परात्मसम परिवर्तन के अभ्यास की बात की। बॉब थरमन ने स्वीकार किया कि वे परम पावन के अच्छे विद्यार्थी नहीं रहे हैं, और सबसे प्रथम तो उनका तिब्बती बौद्ध धर्म के प्रति आकर्षण का कारण, भक्ति कम परन्तु विश्लेषण के माध्यम से ज्ञान की प्राप्ति अधिक थी।
चर्चा के अंत में परम पावन ने अन्य प्रमुख धार्मिक परम्पराओं के प्रति जो सम्मान विकसित किया है उसकी अभिव्यक्ति की। उन्होंने कैथोलिक भिक्षु थॉमस मर्टन, के लिए विशेष रूप से प्रशंसा व्यक्त की, जिन्होंने उन्हें सबसे प्रथम ईसाई धर्म के विषय में बताया। उन्होंने अपने कई मुसलमान मित्रों के प्रति भी अपनी प्रशंसा का उल्लेख किया और बताया कि 'जिहाद' शब्द का अर्थ दूसरों को हानि पहुँचाना नहीं है। इसका वास्तविक अर्थ है अपने अंदर के क्लेशों से जूझना।
सत्र का अंत एक आदिवासी हवाई नेविगेटर नैनोआ थॉम्पसन द्वारा परम पावन को पत्तों की एक माला की प्रस्तुति और श्रोताओं में से अपने एक सहयोगी को एक पारम्परिक श्रद्धांजलि गीत को गाने के लिए आमंत्रण से हुआ। परम पावन ने "दलाई लामा दीर्घायु बनें " की गूँज के बीच मंच से प्रस्थान किया।
यूसीआई के पेसिफिक बॉलरूम में मध्याह्न का भोज हुआ। लिविंग पीस सेंटर की अध्यक्ष केली स्मिथ ने परम पावन का स्वागत किया। सीनेटर जेनेट गुयेन उनके साथ मंच पर शामिल हुए और घोषणा की, कि उनके कहने पर कैलिफोर्निया सीनेट ने जुलाई का महीना दया का महीना घोषित कर दिया था। यूसीआई के चांसलर हावर्ड गिलमेन ने सभा से परम पावन का परिचय कराया और स्मरण किया कि उन्होंने पहले कई बार परिसर का दौरा किया था और वे १९८९ में इरविन में थे, जब परम पावन को यह समाचार मिला कि उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
सक्रिय कार्यकर्ता और रैपर माइकल फ्रांटि ने मंच संभाला और इराक में अपंग बच्चों और अमेरिकी सैनिकों के लिए प्रदर्शन करने के अपने अनुभवों के बारे में बात करने के बाद, अपने गीत का वादन किया जो इससे सम्बंधित था कि प्रत्येक व्यक्ति को हर दिन गले लगाने की आवश्यकता पड़ती है। उन्होंने कमरे को आनन्द व मैत्री भाव से भर दिया।
नवपरिवर्तन के शहर इरविन के महापौर छोय, परम पावन को एक उपहार और मान्यता का प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने पहुँचे।
अपने सम्बोधन में परम पावन ने उल्लेख किया, कि अधिक से अधिक लोग आंतरिक मूल्यों पर ध्यान दे रहे हैं जो कि आशाजनक है। फ्रांटि से बात करते हुए उन्होंने कहा कि उसके शरीर पर की गई गोदाई पर सबसे पहले उनकी दृष्टि गई, पर उसके बाद वे वास्तव में उसके प्रदर्शन की ऊर्जा से प्रभावित थे।
ब्रेन कार्यक्रम सेंटर में १००० से अधिक तिब्बती मंगोलियाई और भूटानी परम पावन के साथ उनका जन्मदिन मनाने की प्रतीक्षा कर रहे थे। बच्चों के एक समूह ने उनके लिए आनन्द का एक गीत गाया, परन्तु जब बाद का वयस्क दल तकनीकी कठिनाइयों में उलझ गया तो परम पावन ने और अधिक प्रतीक्षा न करने का निर्णय लेते हुए अपना व्याख्यान प्रारंभ किया।
उन्होंने बताया कि किस प्रकार विगत एक हजार से अधिक वर्षों से तिब्बत ने पूरे सामर्थ्य से नालंदा परम्परा को संरक्षित रखा है। राजनैतिक विखंडन के बावजूद जिसने तिब्बत को व्यथित किया, जिसने तिब्बतियों को एक बांध कर रखा था, वह उनकी भाषा और कांग्यूर तथा तेंग्यूर को बचाकर रखना था। उन्होंने भिक्षुओं और उपासकों को समान रूप से पठन व अध्ययन के लिए प्रोत्साहित किया। न केवल 'बोधिपथक्रम' का पठन व अध्ययन परन्तु अन्य ग्रंथों का भी जैसे भवविवेक की "तर्कज्वाला"।
आयोजन स्थल के बाहर सड़कों पर दोलज्ञल/शुगदेन समर्थक प्रदर्शनकारियों पर टिप्पणी करते हुए परम पावन ने कहाः
"उनकी उपस्थिति से मुझे कोई अंतर नहीं पड़ता। उनके प्रति मुझमें करुणा का भाव है, क्योंकि अपने अज्ञान में वे धोखा खा रहे हैं। १९५१ से १९७० के उत्तरार्ध तक, अज्ञानवश मैं भी दोलज्ञल तुष्टि करता रहा। पर मुझमें बहुत शंकाएँ थी, जिसके कारण मैंने शोध किया। मैंने पाया कि ५वें दलाई लामा ने लिखा था कि टुल्कु डगपा ज्ञलछेन वास्तव में लामा नहीं थे और वे एक उग्र आत्मा के रूप में उभरे थे। ५वें दलाई लामा ने उनका संदर्भ 'विकृत प्रार्थना के परिणामस्वरूप उत्पन्न हुई दुरात्मा जो धर्म और सत्वों का अहित करती है' के रूप में दिया था।
"जो मुझे वास्तव में चिंतित करता है, वह इस अभ्यास से संबंधित सांप्रदायिकता और विभाजकता है। इस विषय में जो उदाहरण मैंने सुना है वह खम में ज़िंग ज़िंग विहार है। जहाँ एक ओर विहार के भिक्षु दोलज्ञल तुष्टि पर बने रहे, आस-पास के विहारों के सदस्यों ने दूरी बना रखी। एक बार जब उन्होंने इसे छोड़ दिया तो क्षेत्र में सभी १७ विहारों के सदस्य एक दूसरे के प्रति अधिक अनुकूल और सौहार्दपूर्ण बन गए।
"जब मैं दोलज्ञल की तुष्टि में लगा हुआ था और स्वर्ग आश्रम में रह रहा था, मुझे एक स्वप्न आया कि मैं पेमा कथंग, जो गुरु रिनपोछे की जीवनी है, की एक प्रतिलिपि बाहर ही छोड़ आया था और वह गायब हो गई थी। मैंने इस बारे में गेशे रबतेन को बताया और उन्होंने मुझसे कहा कि यह दोलज्ञल की करामात थी।
"ज़ेमे रिनपोछे की पीली पुस्तक 'योग्य पिता के पवित्र शब्द' ने लामाओं और सरकारी अधिकारियों और दोलज्ञल के बीच संबंधों का वर्णन किया था। नेछुंग ने मुझे पहले बताया था कि दोलज्ञल के साथ जुड़ा रहना एक गलती थी और मैंने उसे चुप रहने के लिए कहा था। एक बार यह पुस्तक सामने आई, तो मैंने उससे कहा कि वह जो कहना चाहता था कह सकता था। दोलज्ञल का 'डेगपा' या भयंकर आत्मा होना इतना अधिक महत्व न रखता, यदि वह धर्म को हानि न पहुँचाता, पर उसके साथ बहुत गंभीर संप्रदायवाद और धमकी जुड़ी हुई है। १,२ ,३,५वीं और १३वें दलाई लामाओं में सभी ने आध्यात्मिक अभ्यास का एक लौकिक, गैर सांप्रदायिक दृष्टिकोण अपनाया। उन्हीं के वंशज होने के नाते यह उचित ही है कि मैं भी उनकी परम्परा का पालन करूँ।
"जैसा मैंने कहा, मेरी अधिभावी चिंता सांप्रदायिकता और इस अभ्यास के परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाला सामाजिक विभाजन है। ये बेचारे जो विरोध कर रहे हैं वे इसका सत्य नहीं जानते। हमें उन्हें ठीक करना है पर क्रोध करने का, उन्हें परेशान करने या उन्हें बाहर करने का कोई आधार नहीं है। इस समय वे अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अभ्यास कर रहे हैं, पर ऐसा करने का अधिकार मुझे भी है।"
जब परम पावन मंच से निकले तो एकत्रित तिब्बतियों ने अविरत रूप से "परम पावन दलाई लामा दीर्घायु बने रहें " का नारा लगाया। कल, दिन में बहुत तड़के ही वे लास एंजलिस से न्यूयॉर्क के लिए रवाना होंगे।