नई दिल्ली, भारत - २७ जनवरी २०१५ - शीत ऋतु की धूप खिली हुई थी, जब परम पावन दिल्ली के रोहिणी में तिब्बती यूथ हॉस्टल के अपने निवास स्थल से लगभग पौने आठ बजे निकले। वे उत्तर प्रदेश में गाजियाबाद जिले के साहिबाबाद में दयानंद एंग्लो - वैदिक स्कूल (डीएवी) के लिए रवाना होने से पहले हॉस्टल में निवास कर रहे तिब्बती छात्रों में से कुछ एक को 'गुड मॉर्निंग' कहने के िलए रुके।
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स्कूल के प्रधानाचार्य और अन्य प्रशासकों ने अत्यंत सौहार्दता से परम पावन का स्वागत िकया तथा धीरे धीरे उन्हें मैदान तक ले गए जहाँ ३००० से अधिक लोग उनके िलए प्रतीक्षारत थे जिनमें उत्साहित छात्र और डी ए वी स्कूल के कर्मचारियों के साथ अन्य प्रधानाध्यापक और अतिथि सम्मिलित थे। जैसे जैसे डी ए वी िवद्यालय के प्रमुख उन्हें एक भवन से होते हुए ले गए जिनमें नर्सरी कक्षाएँ थीं, उन्होंने बच्चों का अभिनन्दन करने के िलए अंदर झाँक कर देखा और उनमें से तीन के अंदर प्रवेश िकया। समूचे मैदान में हर कदम पर परम पावन ने बच्चों का अभिनन्दन किया जो उनसे हाथ मिलाने के िलए या उन्हें छूने के िलए उत्सुक थे।
एक बार मंच पर आते ही परम पावन ने जन मानस की ओर देख हाथ हिलाया और अंजलिबद्ध होकर स्कूल बैंड का अभिनन्दन िकया। पुष्पार्पण के एक संक्षिप्त समारोह के बाद डी ए वी स्कूल नेटवर्क के अध्यक्ष श्री ए के शर्मा ने व्यक्त िकया कि यह विद्यालय की विचारशीलता थी कि उन्होंने ऐसे व्यक्तित्व को सुनने के िलए उस अवसर का लाभ उठाया, जिन्होंने िवश्व भर में "शांति और ज्ञान के लिए योगदान" दिया है। श्री शर्मा ने बताया कि उनके विद्यालयों की स्थापना वेदों की शिक्षाओं के लोकाचार पर महर्षि दयानंद सरस्वती द्वारा की गई थी और उन्होंने छात्रों द्वारा परम पावन दलाई लामा के जीवन संबंधित ज्ञान सुनने के अवसर का स्वागत िकया।
"प्रिय बड़े और छोटे भाइयों और बहनों" परम पावन ने प्रारंभ िकया और एक बार फिर युवा भारतीयों के साथ बातचीत करने के अवसर प्राप्त होने पर अपनी प्रसन्नता व्यक्त की। "भारत िवॆश्व भर में सबसे अधिक जनसंख्या वाला लोकतांत्रिक राष्ट्र है और इसका एक लंबा इतिहास है। इसने कई महान िवचारकों को जन्म दिया है जिन्हें वस्तुओं की प्रकृति की पूर्ण जाँच के िलए 'प्राचीन वैज्ञानिकों' के नाम से संबोधित िकया जा सकता है। परम पावन ने टिप्पणी की कि इनमें से कुछ आचार्यों ने २००० वर्ष पूर्व ही क्वांटम भौतिकी की धारणा की खोज कर ली थी।"
उसके पश्चात परम पावन ने श्रोताओं को बताया, "आज विश्व समस्याओं से भरा हुआ है और भारत में अहिंसा का योगदान करने की क्षमता है। िवश्व की कई समस्याएँ उन लोगों के कारण हैं, जो भली भाँति शिक्षित तो हैं, पर अपने ज्ञान का उपयोग अधिक धन या सत्ता प्राप्त करने के िलए कर रहे हैं तथा धोखा और धौंस देकर दूसरों का शोषण करते हैं।"
इस बात की ओर संकेत करते हुए कि चरम स्वार्थ जो दूसरों के प्रति असम्मान की ओर ले जाता है, हमारी कई समस्याओं के मूल में है, परम पावन ने छात्रों को प्रोत्साहित किया, "आप २१वीं सदी की पीढ़ी विश्व को ऐसे रूप में परिवर्तित कर सकते हो जो नैतिकता से संबंध रखता हो। आप आज िवश्व में हो रहे अन्याय का सफाया कर सकते हैं जो वर्तमान भौतिकवादी शिक्षा द्वारा निर्देशित है।"
परम पावन ने छात्रों को बताया, "विश्व में इस स्थिति को सुधारने के िलए धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा, जो कि आस्थावान तथा आस्थाहीन दोनों का समान रूप से सम्मान करती है, भारत के लिए अनूठी है। आज नैतिकता के सिद्धांतों को बढ़ावा देने के लिए हम जिन समस्याओं का सामना कर रहे हैं उनके िलए ऐसे समाधानों को ढूँढना होगा जो विश्वासियों और गैर विश्वासियों दोनों पर लागू हो। आस्थाहीनों के िलए धर्म कारगर नहीं होगा।"
तत्पश्चात परम पावन स्नेह और मैत्री के महत्व की ओर मुड़े। "एक मुस्कान ऐसी है जो हम मनुष्य दूसरों के प्रति व्यक्त कर सकते हैं। जब हम विश्वास का निर्माण करते हैं, एक सच्ची मुस्कान हमें दूसरों के निकट लाती है, जो मैत्री की ओर ले जाती है, उन्होंने छात्रों से कहा, "यदि आप एक नास्तिक से पूछें कि क्या हम पैसे से मैत्री खरीद सकते हैं तो उसका उत्तर नकारात्मक होगा। विश्वास तथा मैत्री प्राप्त करने हेतु एक उन्मुक्त हृदय की आवश्यकता होती है। एक बंद हृदय हमें ये नहीं दिला सकते।"
यहाँ तक कि जानवर भी हमारे प्रेम व स्नेह की सराहना करते हैं, परम पावन ने समझाया। उन्होंने छात्रों को तिब्बत में नोरबूलिंगा, ग्रीष्मकालीन महल के तलैया में उनके मछलियों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध के िवषय में बताते हुए कहा, "जब वे मेरी कदमों की आहट सुनतीं तो अत्यंत आनंद से जल से बाहर उछलतीं थीं।"
यह प्रदर्शित करने के िलए कि किस प्रकार हमारी शारीरिक संरचना ही अन्य लोगों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाने की है, परम पावन ने स्कूल के प्रधानाचार्य को गले लगाया और अानंद से भरे श्रोताओं में करतल ध्वनि गूँज उठी। "एक सामाजिक जानवर के रूप में स्नेह हमें एक साथ लाता है जबकि क्रोध हमें अलग धकेलता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि क्रोध तथा भय हमारे स्वास्थ्य के लिए अहितकारी हैं और चित्त की शांति हमारे स्वास्थ्य के लिए अच्छी है।"
परम पावन ने उल्लेख किया कि धार्मिक सद्भाव भारत के लिए अनूठा है और भारत के धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण और अहिंसा से जुड़ा हुआ है। "आप को अपने संस्कृति के विषय में गंभीरता से सोचना चाहिए," उन्होंने छात्रों से कहा। "धरती पर सात अरब लोगों के लिए जिन्हें इन सिद्धांतों पर शिक्षित करने की आवश्यकता है, आप नूतन विश्व के निर्माता हैं।" परम पावन ने समझाया कि धर्म निरपेक्ष नैतिकता समूचे मानवता के िलए है और
हम इसे इस परिप्रेक्ष्य में देखने की आवश्यकता है और अपने परिवारों से प्रारंभ कर हमें नैतिक सिद्धांतों को बढ़ावा देना है। फिर हमें इसका प्रसार आगे करना है, दस लोगों में, सौ लोगों में, लाख लोगों में आदि आदि।
"युवाओं" उन्होंने विद्यालय के छात्रों से कहा, आप में इन नैतिक सिद्धांतों को प्रकट करने की क्षमता है।" एक सुखी २१वीं सदी के लिए आपके पास ऐसा करने का अवसर और पर्याप्त समय है। आपको यह सोच कर हतोत्साहित नहीं होना चािहए कि विश्व में बहुत अधिक समस्याएँ हैं और आप उनके संबंध में कुछ नहीं कर सकते। परिवर्तन व्यक्ति के साथ प्रारंभ होना चाहिए और उसका दूसरों तक प्रसरण होना चाहिए। सोचें कि आप पर विश्व का उत्तरदायित्व है और प्रयास करें।"
इसके बाद परम पावन ने कई छात्रों के प्रश्नों के उत्तर दिए। एक लड़का जानना चाहता था कि उनके सहपाठियों के साथ उनकी तुलना करते हुए जो बच्चों में अवसाद का कारण बनता है, माता-पिता द्वारा अच्छे अंक की मांग का किस प्रकार सामना करें। परम पावन ने प्रश्न के दोनों पक्षों की ओर से प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, कि यदि वे आलसी हैं तो माता-पिता को अपने बच्चों को प्रेरित करना चाहिए। पर यदि बच्चों ने अपनी पूर्ण क्षमता के अनुसार सर्वश्रेष्ठ किया हो, पर अपनी माता-पिता की आशाओं पर खरे न उतरे हों, तो संभव है कि माता पिता भी अवास्तविक माँग कर रहे हों।
अंत में परम पावन ने दसवीं और बारहवीं कक्षा के कुछ छात्रों को उनकी परीक्षाओं के लिए प्रमाण-पत्र प्रदान किए और व्यक्तिगत रूप से कुछ हर्षित युवा प्राप्तकर्ताओं को विशेष पुरस्कार सौंपे।
कल परम पावन नई दिल्ली के एक महिला महाविद्यालय में करुणा तथा शिक्षा पर एक व्याख्यान देंगे।