टाशी ल्हुन्पो, बाइलाकुप्पे, कर्नाटक, भारत - २५ दिसम्बर २०१५- टाशी ल्हुन्पो महाविहार के प्रांगण में आज प्रातः कार्यक्रमों का प्रारंभ परम पावन दलाई लामा द्वारा जम्पा कलदेन की आत्मकथा के विमोचन से हुआ, जिनका तीन वर्ष पूर्व आज के दिन निधन हुआ था। १९२३ में छमदो में जन्मे जम्पा कलदेन १९५० के दशक में छुशी गंगडुग क्रांति में शामिल हुए। निर्वासन में मुख्यतः उन्होंने सुरक्षा विभाग में कार्य किया और १९८७ में सेवानिवृत हुए। परम पावन ने कहा कि जम्पा कलदेन के परिवार ने पुस्तक के विमोचन का अनुरोध किया था जो कि तिब्बती पुस्तकालय एवं अभिलेखागार द्वारा तिब्बती में प्रकाशित हुई है और उन्हें प्रसन्नता है कि वे उनकी पत्नी और बेटी की उपस्थिति में ऐसा कर रहे हैं।
उसके पश्चात परम पावन ने गदेन ठि रिनपोछे का उल्लेख कियाः मैंने उनसे 'बुद्धपालित' की व्याख्या चन्द्रकीर्ति के 'प्रसन्नपद' और अन्य शिक्षाएँ ग्रहण की हैं। वे मेरे प्रति बहुत दयालु रहे हैं। अपने समय में ग्यूमे और डेपुंग के लोसेलिंग महाविहार के उपाध्याय के रूप में उन्होंने भिक्षुओं की शिक्षा के स्तर को ऊपर उठाने में बहुत परिश्रम किया। गदेन ठिपा के रूप में यह उनका अंतिम वर्ष होगा, हम सबको उनके लिए प्रार्थना करनी चाहिए।
"तीन दिन पहले, तगलुंग चेटुल रिनपोछे का निधन हो गया। पञ्चम दलाई लामा ने पेमा ठिनले और तगडग लिंगपा और दोर्जे डाग महाविहार के उत्तरी निधि वंश के साथ घनिष्ठ संबंधों की स्थापना की। तगलुंग चेटुल रिनपोछे दोर्जे डाग के और निर्वासन में उस परम्परा के प्रधान लामा थे। अपने जीवन के उत्तरार्ध में वह ञिङमा परम्परा के प्रमुख भी बने। वे एक महान गुरु थे। मुझसे उनके त्वरित पुनरागमन के लिए प्रार्थना की रचना करने के लिए कहा गया और मुझे तत्काल ही ऐसा करने में प्रसन्नता हुई। कृपया उनके त्वरित पुनरागमन के लिए प्रार्थना करें।
"आज मेरे प्रव्रज्य गुरु व वरिष्ठ अध्यापक, क्याब्जे लिंग रिनपोछे के निधन की भी ३२वीं बरसी है। यहाँ उपस्थित उनके पुनर्जन्म को तीन वर्ष पहले एक गंभीर सड़क दुर्घटना का सामना करना पड़ा, पर अब उनकी स्थिति में अच्छी तरह सुधार हुआ है। कृपया उनके अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करें, हमें उनसे महान आशाएँ हैं।
"मुझे अपने कनिष्ठ अध्यापक क्याब्जे ठिजंग रिनपोछे के पुनर्वतरण के लिए बड़ी आशाएँ थी, पर उनकी परिस्थितियाँ अस्पष्ट हैं।
"आप में से यहाँ जो पश्चिम से हमारे साथ होने के लिए आए हैं, आप शारीरिक रूप से यहाँ हैं, पर मुझे लगता है कि आप हृदय से क्रिसमस के अवसर पर अपने परिवार के साथ घर पर हैं? आपको मेरा विशेष अभिनन्दन।"
परम पावन ने फिर समझाया कि यह टेहोर खंगछेन के गेशे छुलगा, सेरा जे महाविहार के एक भिक्षु हैं जिनसे वे भारत में और संयुक्त राज्य अमेरिका के बोस्टन कुरुकुल्ला केन्द्र में जानते थे, की अंतिम इच्छा थी कि वे नागार्जुन के 'सत्व आराधना स्तव’ का शिक्षण देंगे। उन्होंने कहा कि जब उनसे कहा गया था तो वे उससे परिचित नहीं थे और उन्होंने उत्तर दिया कि वे इस पर वे विचार करेंगे। इस वर्ष कुरुकुल्ला केन्द्र के वर्तमान शिक्षक गेशे ठिनले ने अनुरोध दोहराया। उन्होंने कहा कि उन्होंने ग्रंथ की व्याख्या गदेन ठि रिनपोछे से प्राप्त की थी। चूँकि नागार्जुन का 'बोधिचित्त विवरण’ भी वितरित की गई पुस्तिका में शामिल किया गया है, उन्होंने कहा कि वह उसे भी पढ़ेंगे।
"यह ग्रंथ 'बोधिचित्त विवरण’ दार्शनिक समझ और चित्त प्रशिक्षण का एक स्रोत है। यह विभिन्न अबौद्ध और बौद्ध विचारधाराओं की दृष्टि से आत्म की परख करता है। रचना का सार निम्नलिखित पदों में व्यक्त किया गया है:
वो परिणाम जो वांछनीय और अवांछनीय हैं
संसार में भाग्यवान या दुर्भाग्यपूर्ण जन्मों के रूप में
सत्वों की सहायता से मिलते हैं
अथवा उनका अहित कर
करुणा के कारण दृढ़ मूल
बोधिचित्त के तने से उत्पन्न
सच्चा बोधिचित्त परोपकार का एकमात्र फल है
यही जिनपुत्रों द्वारा विकसित किया जाता है
जब अभ्यास से यह होता है दृढ़
दूसरों के दुःख से व्याकुल
[बोधिसत्व] ध्यान के आनंद को त्याग
अथक नरक की गहराई में भी उतरते हैं ।
"यह एक महान ग्रंथ है और चूँकि हमारे पास मुद्रित प्रतियां हैं, आप सरलता से इसे पढ़ सकते हैं। जहाँ तक 'सत्व आराधना स्तव’ का सार है, यह इन पंक्तियों में व्यक्त है:
अतः यदि आप सत्वों का हित करें तो वह मेरे लिए सर्वश्रेष्ठ भेंट है
सत्वों का अहित मेरे लिए सबसे बड़ा अहित है
चूँकि मैं और सत्व एक समान सुख व दुःख की अनुभूति करते हैं
सत्वों का अहित कर तुम किस तरह मेरे शिष्य हो सकते हो?
जब तक मेरी शिक्षाएँ जो सत्वों के लिए हितकारी हैं, इस ब्रह्मांड में ज्वलित हैं
उस समय तक आप जो दूसरों के लिए परम हित चाहते हो
को भी बने रहना चाहिए।"
परम पावन ने टिप्पणी की कि यदि उन्होंने प्रयास किया तो संभवतः वे उन दोनों ग्रंथों को समाप्त कर सकते हैं जिनका पाठ वे कर रहे हैं। सबसे प्रथम वे ज़ामर पंडित के भाष्य तथा विशेष अंतर्दृष्टि खंड की ओर मुड़े। उन्होंने टिप्पणी की कि जब मंजुश्री ने उन्हें एक साधु का जीवन जीने के लिए आग्रह किया तो जे रिनपोछे पहले से ही व्यापक स्तर पर अध्ययन और शुद्धीकरण तथा पुण्य संभार का अभ्यास कर चुके थे। यह उन्होंने ल्हाडिंग में किया था जहाँ उन्होंने 'प्रतीत्य समुत्पाद स्तुति' लिखी थी। जे रिनपोछे यह टिप्पणी करने के लिए प्रेरित हुए थे कि जिन लोगों ने गहन अध्ययन किया है उनके लिए यह स्वीकार करना कठिन होगा कि सत्वों का अस्तित्व मात्र ज्ञापित स्तर पर होता है, पर इस बात पर बल दिया कि उन्हें अपने चित्त को ऐसा करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। उसके ज्ञापित रूप के अतिरिक्त अलग से कोई व्यक्ति नहीं है।
ज़मार ग्रंथ के अंत तक पहुँचते हुए परम पावन ने समझाया कि उन्होंने यह व्याख्या एक गोलोग भिक्षु से प्राप्त की थी और यह बहुत अच्छी है। पर साथ ही गोलोग के इस भिक्षु ने विशेष अंतर्दृष्टि का संचरण नहीं लिया था, तो परम पावन ने उसे किसी ऐसे के पास जाने को कहा जिसके पास यह ज्ञान हो। वह तिब्बत वापस गया और उसे एक बहुत ही वृद्ध भिक्षु मिला जिसके पास यह था, जिसने उसे यह शिक्षा दी और उसके तुरन्त बाद उसकी मृत्यु हो गई। ऐसा प्रतीत हुआ मानों वह केवल उस शिक्षा को देने के एक अवसर की प्रतीक्षा कर रहा था।
मध्याह्न के भोजन के बाद, परम पावन ने 'विमुक्ति हस्त धारण' से पाठ किया, सर्वप्रथम ध्यान खंड पर और उसके पश्चात विशेष अंतर्दृष्टि की ओर जाते हुए। इस संबंध में कि स्वयं का अभ्यास किस प्रकार आयोजित करें, परम पावन ने सलाह दी: